-डॉ रमाकान्त राय
आज गुरु पूर्णिमा है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि सभी गुरु पूर्णिमा को ही अवतरित हुए हैं क्योंकि उसमें पूर्णता भाव है।
पूर्ण होते ही सरलता,
स्वाभाविकता और सहजता का प्रशांत वातावरण निर्मित हो जाता है।त ब
गुरु सहज ही मार्गदर्शक हो जाता है। गुरु कोई भी हो सकता है। गौतम बुद्ध गुरु की
खोज में किस किसकी शरण में नहीं गए, नहीं मिला कोई। खुद
भगवान बन गए। मेल मुहम्मद जायसी ने पद्मावत में हीरामन तोते को गुरु कहा है। कहते
हैं - गुरु सुआ जेहि पंथ दिखावा। मार्गदर्शन करने वाला ही गुरु है। सारा उद्योग
आपको करना है। चलना, दौड़ना, गिरना सब
आपके पैरों से होगा। आंखें भी आपकी होंगी। शक्ति आपकी। सामर्थ्य आपका। सबकुछ आपके
पास है लेकिन एक तत्त्व का अभाव है। अभाव नहीं कहेंगे, अभाव
में अनुपस्थिति अनिवार्य रूप से है। वह है, जो आपको गतिमान
कर देती है। जो आपको सही मार्ग पर लाकर खड़ा कर देती है। गुरु उसी मार्ग की तरफ
संकेत कर देता है। आपका मुंह उसी दिशा की तरफ कर देता है।
यह बहुत अराजक बात है कि
सभी रास्ते ईश्वर के पास जाते हैं, इसलिए कोई भी चुन लो। ऐसा
कहने वाला गुरु नहीं है, गुरु घंटाल है। अव्वल तो यह बात ही
मिथ्या है। सभी रास्ते ईश्वर के पास जाते हैं तो जिनने निरीश्वरवादी प्रतिपत्ति की,
वह घास नहीं खोद रहे थे। उनके पास भी दृष्टि है। ज्ञान है। एक
निष्पत्ति है। इसलिए यह बात मिथ्या है। और यदि मान लें
कि जाते होंगे सभी रास्ते ईश्वर के पास। तो भी इसका बहुत महत्त्व है कि आपने कौन
सा मार्ग चुना है।
मेरी मां अपनी कहानियों से सिखाती थीं,
"बेटा, कुछ आगे चलने पर दो राह मिलेगी।
एक छह मास वाली, एक छह दिन वाली। तुम छह मास वाली
चुनना।" सभी रास्ते (लक्ष्य) ईश्वर के पास जाते हैं तो वह बार बार छह मास
वाला रास्ता चुनने को क्यों कहती थीं। वह मेरी पहली गुरु हैं। उनका बताया रास्ता
एक पंथ है। आज कह सकता हूं कि वही रास्ता लेकर चल रहा हूं।
तो यह कहना है कि जीवन में इसका बहुत महत्त्व है कि
आपने कौन सा रास्ता चुना है। गुरु कौन है? एक व्यक्ति
ट्रेनिंग लेकर आया और अपने पेट में बम बांधकर खुद को उड़ा लिया। उसके गुरु ने
बताया था कि इससे तुम्हें सहज ही वह मिल जाएगा, जिसे तुम इस
जहन्नुम में नहीं खोज पा रहे। एक दूसरा है जो बता रहा है कि बाहर कुछ नहीं है।
कबीर गुरु नहीं हैं लेकिन यह यह अवश्य देखते हैं कि अरे इन दोउ राह न पाई! वह अपना
अनुभव साझा करते हैं, जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ! पानी में कौन सा रास्ता होगा? क्या
पाना है पानी के भीतर? बात अभिधा में नहीं समझी जा सकती। तो
व्यंजना से अर्थ लेना पड़ता है, रत्न, मोती,
मूल्यवान वस्तुएं। सांसारिक लोगों का धन यही है। लोग यही तो खोज रहे
हैं। गहरे पानी में पैठने पर मिलेगा। लेकिन कबीर के बारे में तो यह ठीक नहीं हुआ!
उन्हें इन पत्थरों से क्या लेना। तब इस मूल्यवान का अर्थ उस दृष्टि से जुड़ जाता
है। अर्थ झन्न से खुल जाता है। मार्ग महत्त्वपूर्ण है। श्रीमद्भागवत गीता में
भगवान कहते हैं, स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः। यहां
जो धर्म है, वह उसी मार्ग से परिचालित है।
पुनः दुहरा दूं कि मार्ग महत्त्वपूर्ण है। गुरु
मार्गदर्शक है। वह हमारी उंगली पकड़कर सही मार्ग में डाल देता है। वह जो कुछ बताता
है, गुर है। आवश्यक नहीं है कि वह उस मार्ग का पथिक हो ही।
सिगरेट पीने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद है।
वह पी रहा है तो जानता है। एक बिना फूंके बता रहा है क्योंकि उसका पर्यवेक्षण है।
भोक्ता का पर्यवेक्षण अधिक प्रामाणिक है लेकिन उसका दायरा सीमित है। द्रष्टा का
पर्यवेक्षण उसकी व्यापक दृष्टि में है। वह प्रत्यक्ष भोक्ता नहीं है, तथापि वह जानता है।
यह जानना बहुत विशेष है। ज्ञान का ही लोकप्रिय संस्करण है जानना।
गुरु जानता है। वह तत्त्वदर्शी है। उसके संज्ञान में चीजें आती हैं और वह जान जाता
है। विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है लेकिन उसके पास अंतर्दृष्टि नहीं है। उसके
पास तो वह सूक्ष्म दृष्टि भी नहीं है जिससे वह तत्त्व दर्शन कर ले। हमारे मित्र डॉ
मुकेश गौतम होम्योपैथी की दवाओं के बारे में बताते हैं। वह कहते हैं कि बेलाडौना 1M
की दवा की शीशी पर से लेबल हटा दीजिए और प्रयोगशाला में भेज दीजिए।
विज्ञान थक जाएगा किंतु बता नहीं पाएगा कि इसमें दवा कौन सी है। विज्ञान की
अक्षमता बहुधा प्रकट होती रहती है किंतु गुरु तो सिद्ध है। वह निरूपण कर देता है।
विदेह राजा जनक ने मुनि अष्टावक्र से पूछा, "यह
ज्ञान कितनी अवधि में प्राप्त किया जा सकता है?"अ
ष्टावक्र ने कहा, "राजन! ज्ञान एक कल्प, एक युग, एक वर्ष, एक मास,
एक दिन, एक घड़ी, एक
क्षण, एक निमिष मात्र में पाया जा सकता है।" उन्होंने
बताते बताते क्रमश: समयावधि कम की। एक निमिष मात्र में? पलक
झपकने में जितना समय लगता है, उतने में? अष्टावक्र ने कहा हां, उतने में ही।
मैं कुंग फू पांडा देख रहा था। उसमें पांडा के साथी बुरी तरह
घायल होकर लौटे हैं। अंग भंग हुआ पड़ा है। शिफू आते हैं, वह
बिंदु छूते हैं, जहां मूल है। सब भले चंगे हो जाते हैं। उस
तत्त्व को जानना है। डॉ मुकेश भी उसी तत्त्व की चर्चा करते हैं। मुझे एक समस्या
होती है तो घंटों बातें करते हैं, जानते हैं। कान की समस्या
थी, पूछा,"बादल घिरता है तो कैसा
लगता है?" भाई, कान की दिक्कत है!
बादलों से क्या लेना देना! लेकिन उन्हें इसका उत्तर चाहिए। प्रकृति की पहचान हो तो काम आसान हो जाता है।
मार्ग दिखाने वाला गुरु है। उसके महत्त्व को बताया
नहीं जा सकता। कबीर तो कहते हैं कि सात समद की मसि, जंगली
वृक्षों की लेखनी से भी गुरु का बखान नहीं हो सकता।
एक नया वर्ग जन्मा है। धन से सब कुछ खरीद लेना चाहता है।
ज्ञान भी। गुरु भी। एक दूसरा है जो गुरु को ग्रू, ग्रु कहकर
थोड़ा मित्रवत हो गया है। बहुतेरे रूप हो गए हैं। लेकिन उसकी महिमा बनी हुई है।
उसका महत्त्व बना हुआ है।
गुरु को मेरा प्रणाम है।
🙏🙏
2 टिप्पणियां:
गुरु के महत्व का अद्भुत चित्रण किया है आपने सर,
हमे गुरु की महिमा का ज्ञान कराने हेतु आपका धन्यवाद 🙏🙏
सत्य ही है, जिससे ज्ञान प्राप्त हो वही गुरु है, फिर चाहे वो प्रकृति की कोई घटना ही क्यों न हो ।।
बहुत बहुत धन्यवाद
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