नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
भाग - 15
तेरहवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
पिछली चौपाई में नाम के माहात्म्य पर चर्चा हुई थी जिसमें बताया गया है कि हनुमान जी का नाम लेने से भूत पिशाच निकट नहीं आते। उसी को आगे बढ़ाते हुए इस चौपाई में बताया गया है कि हनुमान जी का निरंतर नाम स्मरण करने से सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और कष्ट समाप्त। नाम स्मरण एक ओषधि है। हनुमान जी का नाम स्मरण तन और मन को स्वस्थ रखता है।
नाम का यह अद्भुत प्रभाव केवल हनुमान में ही है। श्री हनुमान चालीसा के इस पंक्ति का विस्तार हनुमान जी के विभिन्न मंदिरों में मिलता है। इसमें एक प्रसिद्ध मंदिर ददरौवा सरकार का भिंड मध्य प्रदेश में है जहां हनुमान जी का मंदिर डॉक्टर हनुमान जी के नाम से जाना जाता है।
श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति अपने विचार, कर्म और वाणी में हनुमान जी का ध्यान रखता है, उसे हनुमान जी संकट में घिरने पर बचा लेते हैं। इसका आशय यह भी है कि यदि कोई व्यक्ति संकट में घिर जाए तो उसे अपने सोच विचार में सबसे पहले हनुमान जी को लाना चाहिए। हनुमान जी का ध्यान उसे संकट से निकालने में सक्षम होगा। फिर उसके क्रिया कलाप और बोलने में भी हनुमान जी ध्यान करना उसे इस स्थिति से निश्चित ही उबार लेगा।
इस चौपाई में यह पूर्वनिश्चित तथ्य भी सन्निहित है कि यदि कोई व्यक्ति अपने मन, कर्म और वाणी में हनुमान जी को रखता है तो वह संकट में पड़ेगा ही नहीं। यदि वह संकट में है तो इसकी ओषधि भी यह ध्यान ही है। यहां ध्यान रखने की बात यह है कि चौपाई के प्रवाह में कर्म को क्रम लिखा गया है। यह लय और छंद के निर्वाह के लिए ही होता है।
पिछली चौपाइयों में हनुमान जी के नाम और स्मरण का उल्लेख हुआ है। यह नवधा भक्ति के अंग हैं।
श्री हनुमान चालीसा इस तरह हनुमान जी की नवधा भक्ति प्रणाली से की गई आराधना है।
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