श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में कहा गया है कि हनुमान जी की सेवा करने से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए अन्य किसी देवता का स्मरण करने की आवश्यकता नहीं है। जो भी व्यक्ति हनुमान जी का ध्यान करता है, उसके समस्त संकट कट जाते हैं और पीड़ा दूर हो जाती है।
यहां तुलसीदास जी ने एकनिष्ठता पर बल दिया है और हनुमान जी के प्रति अगाध श्रद्धा व्यक्त की है। हनुमान जी सभी सुख देने वाले हैं। यहां चौपाई के दूसरे अर्द्धाली में 'और देवता' की चर्चा किंचित विचार करने के लिए रोकती है।
स्वयं तुलसीदास जी वैष्णव हैं। भगवान श्रीराम में उनकी गहन आस्था है। राम के प्रति उनकी भक्ति की अनन्यता सर्वविदित है तब वह हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य देवता का ध्यान तक नहीं करने के लिए क्यों कहते हैं? इसका एक उत्तर तो यह है कि रघुकुल शिरोमणि श्रीरामचंद्र कोई देवता नहीं हैं। वह तीनों लोकों के स्वामी हैं। इसमें देवलोक भी आता है। वह सृष्टि के पालक हैं। और दूसरे, वह हनुमान जी से इस प्रकार अभिन्न हैं कि एक का स्मरण दूसरे के साथ ही है। वस्तुत: हनुमान और श्रीराम में अभेद है। तुलसीदास जी ने आजीवन शैव और वैष्णव मत की एकात्मकता पर बल दिया और अपनी रचना में इसी प्रकार विन्यास भी किया। इसलिए यहां हनुमान जी के संबंध में चर्चा करते हुए यह कहना तर्कसंगत और उचित तथा समावेशी है।
श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के नाम स्मरण के माहात्म्य को पुनः बताया गया है। तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी के नाम का जो भी व्यक्ति सुमिरन करता रहता है, उसके समस्त संकट कट जाते हैं और पीड़ा समाप्त हो जाती है।
तुलसीदास जी न केवल हनुमान चालीसा में अपितु अपने समस्त साहित्य में स्मरण, स्मृति पर सबसे अधिक जोर देते हैं। हमें याद रखना है। हनुमान जी याद रहेंगे तो श्रीराम की याद रहेगी। श्रीराम की स्मृति ध्यान में आएगी तो मर्यादा का स्मरण रहेगा। नीति का ध्यान रहेगा। वह प्रतिबद्धता स्मरण में रहेगी। रावण का संज्ञान रहेगा। हमें हमारी परम्परा और अनुशासन का ज्ञान रहेगा। यह सब अज्ञान और भय को मिटा देने वाले हैं। रोग और शोक को खत्म कर देने वाले हैं।
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