तुम्हरे भजन राम को पावै। |
श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की कृपा, उनके नाम का स्मरण, उनके गुणों का बखान करना आदि का माहात्म्य बारम्बार हुआ है। इस चौपाई में कहा गया है कि हनुमान जी को बार बार याद करने, भजने से भगवान श्रीराम का सानिध्य प्राप्त होता है। इसके साथ ही जन्म जन्मांतर के कष्ट से मुक्ति मिल जाती है।
जन्म जन्मांतर की अवधारणा भारतीय सनातन संस्कृति की पहचान है। हमारे यहां जीवन से पहले के जीवन का और जीवन के बाद के जीवन का भी लेखा जोखा है। सृष्टि में 84 लाख योनियां बताई गई हैं जिसमें मनुष्य जीवन सर्वश्रेष्ठ है। इसमें भी शृंखला चलती रहती है। भगवत कृपा से यह क्रम बंद होता है। भगवत कृपा होती है तो भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ में जगह मिलती है। यह भगवान श्रीराम का लोक है। श्री हनुमान चालीसा इसी लोक में स्थान पाने के लिए हनुमान जी के भजन पर जोर देता है।
श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में भी हनुमान जी की महिमा गाई गई है। तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी के भजन के प्रभाव से प्राणी अन्त समय श्री रघुनाथजी के धाम जाते हैं। श्रीरघुनाथ जी का धाम बैकुंठ है। यह तीनों लोकों से इतर है। यहां जाने का अर्थ है- जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाना। यही मोक्ष है। बैकुंठ धाम जाने का आशय है जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्त हो जाना। तुलसीदास जी यह भी लिखते हैं कि यदि मृत्युलोक में जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्रीहरिभक्त कहलायेंगे। इसमें पुनर्जन्म की धारणा में विश्वास तो जताया ही गया है यह भी कहा गया है कि श्रीहरि का भक्त होना अत्यंत गौरव का विषय है। भगवान श्रीराम का भक्त सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है। जो श्रीराम का भक्त है, वही वैष्णव है। जो वैष्णव है वह सहृदय, दयालु और सज्जन है। नरसी मेहता गुजरात के कवि हुए हैं। अपने गीत में वह कहते हैं कि वैष्णव वह है जो दूसरे का दुःख जानता है। यह जानना किसी भी व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाता है।
श्री हनुमान चालीसा का प्रभाव यह है कि इसके गायन/पाठ से व्यक्ति बैकुंठ धाम का पात्र हो जाता है और मर्त्यलोक में वह श्री विष्णु का भक्त समझा जाता है। यह चौपाई एक अन्य विशिष्ट पक्ष की ओर ध्यान कराती है कि स्वयं भगवान शिव के रूप हनुमान जी भी बैकुंठ धाम को श्रेष्ठ मानते हैं।
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