सोमवार, 13 जनवरी 2025

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।।

भाग- 23
अंतिम छंद, दोहा।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

श्री हनुमान चालीसा के इस अंतिम छंद में हनुमान जी को पुनः पवन तनय अर्थात पवन देव का पुत्र बताया गया है। यह कहकर उन्हें किसी भी तरह के संकट को हर लेने वाला यानि ले लेने वाला कहा गया है। हनुमान जी साक्षात् मंगल मूर्ति हैं। वह सदा सर्वदा मंगल करने वाले हैं। गोस्वामी तुलसीदास की प्रार्थना है कि हनुमान जी, जो देवताओं के राजा हैं- सुरभूप; वह भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और जानकी जी के साथ हृदय में निवास करें।

इस दोहे में बहुत सहजता से भगवान श्रीराम, उनके अनुज शेषावतार लक्ष्मण और साक्षात् जगदम्बा सीता जी के साथ हनुमान जी को भी हृदयंगम करने की बात है। यह और इस जैसी कई अन्य युक्तियों को देखकर लगता है कि गोस्वामी तुलसीदास समन्वय की विराट चेष्टा के पैरोकार हैं।

श्री हनुमान चालीसा का समापन भी दोहे से हुआ है। आरंभ में दो दोहा और अंत में एक; कुल तीन दोहे श्री हनुमान चालीसा में हैं। तुलसीदास की काव्य योजना बहुत सुचिंतित और एक सुगठित वास्तु की तरह है। श्रीरामचरितमानस में जिस वर्ण से आरम्भ हुआ है उसी वर्ण से पूर्ण। यह महीन संरचना का एक अंग है।

श्री हनुमान चालीसा की यह कड़ी यहां पूरी होती है। हनुमान जी की चालीसा का यह शृंखलाबद्ध व्याख्या वाला प्रभाग पूर्ण हुआ। भगवान श्री राम और बजरंगी हनुमान जी की जय के साथ इस शृंखला को यहां विराम देता हूं।
 
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राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।


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सद्य: आलोकित!

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