गुरुवार, 2 जनवरी 2025

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : ग्यारहवीं चौपाई

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहे तुम्हारी सरना।
तुम रक्छक काहू को डरना।।

भाग - 13
ग्यारहवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।


श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में हनुमान जी को भगवान श्रीराम का द्वारपाल कहा गया है और बताया गया है कि बिना हनुमान जी की अनुमति के भगवान श्रीराम के यहां पहुंचना संभव नहीं है।

भगवान श्रीराम तीनों लोकों के स्वामी हैं, यद्यपि एक भक्त अपने भगवान के सम्मुख अपनी भक्ति भावना से पहुंच सकता है लेकिन हनुमान जी भगवान श्रीराम तक पहुंचने के मार्ग में द्वारपाल की तरह विद्यमान हैं। यह उनकी महत्ता का सूचक है।

हनुमान चालीसा की इस पंक्ति में राजदरबारों की संस्कृति की झलक मिलती है जहां राजा तक पहुंचने के लिए सुरक्षा के कई चरणों से पार होना पड़ता है। बहुधा भावना के आवेग में श्रद्धालु समय असमय का ध्यान न करते हुए भगवान के सम्मुख पहुंचकर निवेदन करना चाहता है, तब कुछ मर्यादाओं का अनुपालन आवश्यक हो जाता है। द्वारपाल की व्यवस्था इसी के निमित्त है। श्री हनुमान जी को भगवान श्रीराम जी के द्वार का रखवाला कहना उनके महत्व का परिचायक है।

श्री हनुमान चालीसा की इस ग्यारहवीं चौपाई में हनुमान जी को रक्षक बताया गया है। रक्षक अर्थात जो हमारी रक्षा करे। किसी भी कष्ट, दुख आदि से हमें बचा ले। आपदा विपदा में हम पर कोई आंच न आने दे। यह विश्वास प्रकट किया गया है कि हनुमान जी के रक्षक रूप में रहने पर हमारे मन से डर, भय निकल जाता है। इसलिए हनुमान जी के साथ रहने भर से हम अभय हो जाते हैं।

गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान जी की वन्दना करते हुए हनुमान जी की शरण में रहने को ही हर तरह का सुख माना है। उनका कहना है कि हनुमान जी की शरण में जाने पर सभी तरह के सुख प्राप्त हो जाते हैं और चूंकि वह रक्षक हैं तो हमें अभय मिल जाता है। हनुमान जी अपने शरणागत को समस्त सुख प्रदान करने वाले, उनकी रक्षा करने वाले और अभय प्रदान करने वाले महाप्रभु हैं।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : ग्यारहवीं चौपाई


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