श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी के प्रभाव को चारो युगों में व्याप्त कहा गया है। यह चार युग हैं - सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग। यह सब जानते ही हैं कि त्रेता युग भगवान श्रीराम के अवतरण का था। इसी काल में हनुमान जी का सबसे अधिक प्रतापी स्वरूप दिखता है। परन्तु केवल त्रेता में ही नहीं, अपितु प्रत्येक युग में हनुमान जी महाराज का माहात्म्य है, यह बात प्रकाश की तरह स्पष्ट है। इसकी ख्याति भी प्रकट है।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी की व्याप्ति चारों युगों में बताई गई है। यह हनुमान जी के अनादि, अनंत और अमर्त्य स्वरूप का परिचायक है।
इसी चौपाई में हनुमान जी को साधु और सन्तों का रखवाला कहा गया है। उन्हें असुरों का विनाशक और रामचंद्र जी का दुलारा भी बताया गया है। चौपाई में साधु और सन्त समाज के रक्षक के रूप में हनुमान जी की वंदना की गई है। सामान्यतया साधु और सन्त समानार्थी हैं किंतु व्यवहार और साधना के स्तर पर दोनों में सूक्ष्म भेद है।
साधु कौन है? साधु वह है जो सज्जन है। सदाचरण करता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और मत्सर; पांच विकारों से अपने को दूर रखता है अथवा दूर रखने के लिए निरंतर साधना करता है। सामान्यतया वह इस हेतु एकांत की खोज करता है और सांसारिक जीवन से मुक्त होने का प्रयास करता है। साधु के रहने का स्थान आश्रम, कुटिया आदि है। बहुत से लोग जो गृहस्थ जीवन से विरत होते जाते हैं, साधु बनने के मार्ग में होते हैं। हम सज्जन को साधु कह सकते हैं।
सन्त कौन है? सन्त, साधु से एक कोटि आगे की सिद्धि कही जा सकती है। वह जिसका मन सदैव ब्रह्म ज्ञान में लगा रहे, जो सदाचरण की राह से चलते हुए आत्मज्ञानी हो गया है, वह सन्त है।
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