शनिवार, 11 जनवरी 2025

जय जय जय हनुमान गोसाईं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु  गुरुदेव  की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छुटहि बँदि महा सुख होई॥

भाग- 21
उन्नीसवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं


हनुमान जी की वंदना बहुविध करने के बाद गोस्वामी तुलसीदास ने इस चौपाई में उनकी जयकार की है और उन्हें गुसाईं कहा है। साथ ही उनसे अपेक्षा की है कि वह गुरुदेव की तरह कृपा करें। वह कहते हैं कि  यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करे तो वह समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे महासुख की प्राप्ति हो जाती है। यहां चौपाई में प्रयुक्त गुसाईं गोस्वामी का लोक व्यवहारित शब्दरूप है। गोस्वामी दो शब्दों का युग्म है- गो+स्वामी। गो का अर्थ है इंद्रिय। हम जानते हैं कि पांच कर्म इंद्रियां हैं और पांच ज्ञानेंद्रियां। यह किसी भी शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग है। कहा जाए कि यही वास्तव में शरीर है तो गलत न होगा। इस प्रकार काया का स्वामी जो है, जो हमारा आराध्य है, उसे गोस्वामी कहा जाएगा। जो अपनी काया का स्वामी है वह भी गोस्वामी होता है।

दूसरे प्रभाग में हनुमान जी से गुरुदेव की भाँति कृपा करने को कहा गया है। गुरुदेव की महिमा भारतीय सनातन परंपरा में खूब गाई गई है। वह अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाले हैं। कबीर ने तो उन्हें गोविंद से भी श्रेष्ठ कहा है। यहां श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की वंदना पूरी होती है। इसी चौपाई में हनुमान चालीसा पढ़ने के माहात्म्य पर चर्चा है।

इस चौपाई में शत बार पाठ करने की बात है। यह बारम्बारता के लिए है। गुणी जन शत की संख्या सात भी बताते हैं किंतु यहां यह समझना चाहिए कि एक दिन में ही पाठ नहीं करना है। बंदी जीवन से आशय है बंधन से युक्त जीवन। यह अनावश्यक प्रतिबंधों, कष्ट आदि से जनित होता है। महासुख की बात भी इसी चौपाई में है। #महासुख का अर्थ है साधकों को सिद्धि प्राप्त हो जाने पर मिलने वाला परमानंद। बौद्ध साधना पद्धति में महासुख को निर्वाण के सुख की तरह समझा गया है। इसे मैथुन अथवा रति से प्राप्त सुख के लिए भी जोड़ते हैं।लेकिन कुल मिलाकर महासुख का अर्थ अतिशय आनंद की स्थिति से है। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा के पाठ से अपरिमित सुख प्राप्ति का उपाय इस चौपाई में बताया है।
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