हनुमान जी की वंदना बहुविध करने के बाद गोस्वामी तुलसीदास ने इस चौपाई में उनकी जयकार की है और उन्हें गुसाईं कहा है। साथ ही उनसे अपेक्षा की है कि वह गुरुदेव की तरह कृपा करें। वह कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करे तो वह समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे महासुख की प्राप्ति हो जाती है। यहां चौपाई में प्रयुक्त गुसाईं गोस्वामी का लोक व्यवहारित शब्दरूप है। गोस्वामी दो शब्दों का युग्म है- गो+स्वामी। गो का अर्थ है इंद्रिय। हम जानते हैं कि पांच कर्म इंद्रियां हैं और पांच ज्ञानेंद्रियां। यह किसी भी शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग है। कहा जाए कि यही वास्तव में शरीर है तो गलत न होगा। इस प्रकार काया का स्वामी जो है, जो हमारा आराध्य है, उसे गोस्वामी कहा जाएगा। जो अपनी काया का स्वामी है वह भी गोस्वामी होता है।
दूसरे प्रभाग में हनुमान जी से गुरुदेव की भाँति कृपा करने को कहा गया है। गुरुदेव की महिमा भारतीय सनातन परंपरा में खूब गाई गई है। वह अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाले हैं। कबीर ने तो उन्हें गोविंद से भी श्रेष्ठ कहा है। यहां श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की वंदना पूरी होती है। इसी चौपाई में हनुमान चालीसा पढ़ने के माहात्म्य पर चर्चा है।
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