हस्ताक्षर, दस्तखत , signature की भाषा नहीं होती। वह आपके नाम की मुहर है, आपके व्यक्तित्व का चिह्न है। यह चिह्न रेखाओं से बनता है। सामान्य लोग सामान्यतः अपना हस्ताक्षर करते हैं तो वह अपनी जानी हुई लिपि में अपना नाम लिख देते हैं। यह प्रवृत्ति है। अपना नाम लिखना, पहचान बताने का सबसे आसान तरीका है। जो व्यक्ति जिस लिपि में साक्षर होता है, उसी लिपि में हस्ताक्षर करता है।
हिन्दी कोई लिपि नहीं है। हिन्दी एक भाषा है। इसकी लिपि देवनागरी है। नाम रमाकान्त राय लिखा जाए या Rama Kant Roy एक ही है। इसमें भाषा कहां है? लिपि अलग है। देवनागरी और रोमन।
तो कहना यह है कि आचार्य प्रशांत को बेसिक्स का ज्ञान नहीं है। वह सामान्य लोगों को मूर्ख बनाने के लिए यहां हैं और यह काम कर रहे हैं।
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