रविवार, 26 जनवरी 2025

विद्यापति और किंवदंती

विद्यापति शृंखला तीन

विद्यापति का जीवन जितना प्रमाणिक है, उतना ही किंवदंतियों से भरा हुआ भी। इसमें सबसे प्रमुख है "उगना महादेव" से जुड़ी कथा। मिथिला क्षेत्र में मान्यता है कि भगवान शिव विद्यापति की भक्ति और प्रतिभा से बहुत मुदित थे और उनकी सेवा-टहल के लिए रूप बदल कर रहने लगे। विद्यापति के इस टहलुआ का नाम उगना था। विद्यापति जहां जहां जाते, उगना साथ रहता।

विद्यापति

एक दिन की बात। विद्यापति कहीं जा रहे थे। प्यास लगी। उगना साथ था। उन्होंने अपनी चिंता से अवगत कराया। उगना तत्क्षण आंख से ओझल हुआ और कुछ क्षण में ही जल लेकर उपस्थित हुआ। विद्यापति ने जल ग्रहण किया तो उन्हें आश्चर्य हुआ। वह गंगातीरी कवि थे। लाया गया जल गंगा नदी का था जबकि उस स्थान से गंगा पर्याप्त दूर थीं। उन्होंने इस संबंध में पूछताछ की तब उगना अपने असली स्वरूप में आ गए। यह साक्षात् महादेव थे।


महादेव ने कहा कि इस रहस्य के विषय में किसी को बताया तो अंतर्धान हो जाऊंगा। विद्यापति के समक्ष दोहरा संकट था। भगवान का सानिध्य और उनसे टहल कराना! बस किसी किसी तरह निबाह हो रहा था।


एक दिन किसी कार्य में देरी होने पर विद्यापति की पत्नी ने उगना को डांट लगाई। कथा है कि विद्यापति की पत्नी सुशीला ने उगना को जलावन के लिए लकड़ी लाने को भेजा। उन्हें देरी हो गई तो झुंझला कर उन्होंने लकड़ी का एक चेरा दे मारा। यह भी किंवदंती प्रचलित है कि महादेव की पूजा के लिए स्थान लीपा गया था जिस पर उगना ने आसन जमा लिया। इससे क्षुब्ध होकर सुशीला ने डांट दिया। विद्यापति से न रहा गया। हस्तक्षेप करते हुए  उन्होंने सब कुछ बता दिया। इस प्रसंग को संकेतित करता हुआ विद्यापति का गीत "उगना रे मोर कत गेलाह" इतना करुण है कि सिहरन उठती है।

"उगना रे मोरे कतए गेलाह.

कतए गेलाह हर किदहु भेलाह

माँग नही बटुआ रुसी बैसलाह.

जोही-हेरी आनी देल हंसी उठलाह.

जे मोरा उगनाक कहत उदेस.

ताहि देब कर कंगन सन्देश.

नंदन वन बिच भेटल महेश.

गौरी मन हरकित मेटल कलेस.

विद्यापति भन उगानासं काज.

नही हितकर मोर तिहुअन  राज."

भगवान शिव अंतर्धान हो गए। वह #उगना_महादेव कहे गए। आज भी मिथिला क्षेत्र में एक कुआं है, जिसे इससे जोड़कर देखा जाता है। लोग अपने घर में महादेव का मंदिर नहीं बनाते हैं कि विद्यापति के यहां जब महादेव नहीं रुके तो उनके यहां क्यों रुकेंगे। विद्यापति की शिव के प्रति भक्ति का यह अनूठा उदाहरण है।

उगना महादेव मंदिर


एक किंवदंती है कि अंतिम समय में विद्यापति ने मां गंगा का सानिध्य चाहा। गंगा उनके पास आईं और अपने गोद में रखकर बेटे को मुक्ति प्रदान की।


अगले भाग में हम विद्यापति द्वारा विरचित ग्रंथों की चर्चा करेंगे।


#मैथिल_कोकिल #साहित्य #Vidyapati #कविता #मिथिलांचल 

विद्यापति : तीन

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विद्यापति : सामान्य परिचय

विद्यापति : शृंखला दो

कुछ समय पहले तक विद्वान यही मानते रहे हैं कि विद्यापति बंगला भाषा के कवि थे। गौड़ीय संप्रदाय के महान भक्त चैतन्य महाप्रभु के बारे में कहा जाता है कि वह विद्यापति के गीत गाते-गाते विशेष मनःस्थिति में चले जाते थे, सुध बुध खो देने वाली स्थिति में।

विद्यापति : सामान्य परिचय

ओड़िया के प्रसिद्ध कवि हुए हैं चंडीदास! चंडीदास ने राधा और कृष्ण को आश्रय बनाकर कविताएं की हैं। उनकी कविता में विरह का पक्ष इतना प्रधान है कि राधा संयोग के क्षण में भी इस चिंता में रहती हैं कि कृष्ण चले जायेंगे।

सूरदास का नाम कृष्ण भक्त कवियों में आदर और श्रद्धा से लिया ही जाता है। उनके यहां भक्ति और प्रेम की सीमारेखा ही मिट गई है। चंडीदास, सूरदास और विद्यापति की तिकड़ी में विद्यापति सबसे उज्ज्वल पक्ष हैं।

उज्ज्वलनीलमणि के रचनाकार रूप गोस्वामी ने शृंगार को उज्ज्वल रस कहा है कि यह जीवन का सबसे ललित और उज्ज्वल पक्ष लाता है। समर्पण और प्रेम का शिखर शृंगार में है। ऐसे में विद्यापति के काव्य के उज्ज्वल पक्ष को रेखांकित करने का संदर्भ लेना चाहिए। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने विद्यापति के शृंगार संबंधी पदों के प्रभाव का वर्णन करते हुए इसकी मादकता को ‘नागिन की लहर’ कहा है।

अंग्रेजी अध्येता और इतिहासकार जॉर्ज ग्रियर्सन ने इस मान्यता को स्थायित्व प्रदान किया कि विद्यापति मिथिला के थे और उनकी पदावली मैथिली में है अन्यथा वह बंगला के कवि माने जाते थे। हालांकि ग्रियर्सन को इसका श्रेय भी है कि उसने विद्यापति के परिवार वालों के उत्तराधिकार के अधिकार को विलोपित कर दिया था।

विद्यापति का जन्म दरभंगा अब मधुबनी जिला के बिस्फी नामक ग्राम में 1380 ईसवी में हुआ था। कालांतर में उनके प्रिय राजा शिव सिंह ने यह गांव उन्हें जागीर में दे दी थी। इस आशय का एक ताम्रपत्र भी मिला है और यह प्रमाणिक है।

विद्यापति का काल सल्तनत के बादशाह गयासुद्दीन तुगलक का है, जिनके साथ विद्यापति का संवाद भी है। कीर्तिलता नामक ग्रंथ में विद्यापति ने जौनपुर शहर का बहुत सुंदर वर्णन किया है और यवनों के अत्याचार की तरफ संकेत भी। जौनपुर के हाट/बाजार में चहल पहल का भी वर्णन यथार्थपरक है।

#विद्यापति शृंखला के आरंभ में ही हम यह बताना चाहते हैं कि वह उन चुनिंदा कवियों में हैं जिनका जीवन वृत्त प्रमाणिक साक्ष्यों के आधार पर निर्मित किया जा सका है। वह मिथिला ही नहीं, समूचे बिहार और बंगाल में कितने लोकप्रिय हैं, इसका अनुमान चंडीदास, चैतन्य महाप्रभु के उल्लेख से समझा ही जा सकता है, यह देखकर भी जाना जा सकता है कि लोक में वह गहरे रचे बसे हैं। उनके काव्य में तत्कालीन ऐतिहासिक चरित्र बहुत ठाठ के साथ उपस्थित हैं। पदावली तो शिवसिंह और लखिमा देवी के उल्लेख से भरी हुई है जिनका ऐतिहासिक साक्ष्य है।

स्रोतों से पता चलता है कि विद्यापति को राजा शिवसिंह के साथ काम करने का कम समय मिला लेकिन युवराज रूप में शिवसिंह उनके बहुत अभिन्न मित्र थे। पदावली में बहुत से ऐसे पद हैं जो उनकी अभिन्नता की घोषणा करते हैं।

विद्यापति परम शैव थे। यद्यपि शक्ति और वैष्णव मत के प्रति उनके मन में पूरा सम्मान था लेकिन शिव के वह अनन्य उपासक थे। उन्हें गंगा नदी का सानिध्य मिला था और उनका देहावसान लगभग 80 साल की आयु में 1460 ईस्वी में गंगा तट पर ही हुआ। उनके विषय में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। इनपर चर्चा करेंगे अगली कड़ी में।

विद्यापति : दो
#Vidyapati #साहित्य #पदावली #मैथिल_कोकिल

शनिवार, 25 जनवरी 2025

विद्यापति शृंखला एक

महत्वपूर्ण सूचना 

कभी निश्चय किया था कि दस दिन तक अभिनव जयदेव; #विद्यापति, मैथिल कोकिल के जीवन, काव्य और उनसे संबंधित इतिहास, किंवदंतियों आदि पर चर्चा करेंगे किंतु अपरिहार्य कारणों से वह शृंखला बीच में ही छूट गई थी। अब हम वह पूरा करना चाहते हैं।

हम जानते हैं कि हिंदी साहित्य के आरंभिक काल के कवि विद्यापति शैव, वैष्णव और शाक्त के संगम हैं। उनके यहां इतिहास बहुत स्पष्ट और अभिलिखित है। कविता में शृंगार योजना ऋषियों को भी विचलित कर देने वाला है। राधा और कृष्ण के प्रेम का अकुंठ और मादक रूप बहुत आकर्षक है। लोक में उनकी व्याप्ति अद्भुत है। आज भी एक बड़े क्षेत्र में विद्यापति की रचनाएं गाई जाती हैं और वह स्त्री समाज में समादरणीय हैं। वह बंगाल और ओडिसा तक में समान रूप से लोकप्रिय हैं। उनकी रचना में मिथिला क्षेत्र के साथ जौनपुर का भी उल्लेख है। तत्कालीन समाज का सबसे प्रमाणिक चित्रण उनके यहां है।

विद्यापति की रचनाओं ने हिंदी साहित्य को गहरे स्तर तक प्रभावित किया है। कवि शिरोमणि सूरदास से लेकर समस्त कृष्ण भक्त कवियों पर विद्यापति का स्पष्ट प्रभाव दिखता है। आधुनिक काल में नागार्जुन, रेणु और रामवृक्ष बेनीपुरी पर उनका गहरा प्रभाव है।

तो आगामी कुछ दिन तक हम विद्यापति पर एक स्वतंत्र पोस्ट लिखेंगे जो एक दूसरे से जुड़े होंगे। आपसे अपेक्षा रहेगी कि हमारा उत्साहवर्धन हो।

#विद्यापति_एक
#विद्यापति #Vidyapati #MaithilKokil #मैथिलकोकिल #साहित्य #कविता #पदावली


शनिवार, 18 जनवरी 2025

हिन्दी में हस्ताक्षर

हस्ताक्षर, दस्तखत , signature की भाषा नहीं होती। वह आपके नाम की मुहर है, आपके व्यक्तित्व का चिह्न है। यह चिह्न रेखाओं से बनता है। सामान्य लोग सामान्यतः अपना हस्ताक्षर करते हैं तो वह अपनी जानी हुई लिपि में अपना नाम लिख देते हैं। यह प्रवृत्ति है। अपना नाम लिखना, पहचान बताने का सबसे आसान तरीका है। जो व्यक्ति जिस लिपि में साक्षर होता है, उसी लिपि में हस्ताक्षर करता है।
हिन्दी कोई लिपि नहीं है। हिन्दी एक भाषा है। इसकी लिपि देवनागरी है। नाम रमाकान्त राय लिखा जाए या Rama Kant Roy एक ही है। इसमें भाषा कहां है? लिपि अलग है। देवनागरी और रोमन।
तो कहना यह है कि आचार्य प्रशांत को बेसिक्स का ज्ञान नहीं है। वह सामान्य लोगों को मूर्ख बनाने के लिए यहां हैं और यह काम कर रहे हैं।


शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

श्री हनुमान चालीसा

दोहा - 

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। 
बरनऊं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार। 
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार।।

श्री हनुमान जी महाराज

चौपाई - 
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
 तुम रक्षक काहू को डर ना।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि भक्त कहाई।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।। 
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। 
श्री राम लक्ष्मण सीता जी और हनुमान
दोहा - 
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।।

मंगलवार, 14 जनवरी 2025

चंद्रभागा (चेनाब) नदी पर पुल

चंद्रभागा (चेनाब) नदी पर दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल बनकर तैयार है! हम नित प्रति नई ऊंचाइयां छू रहे हैं। तेज गति की रेलगाड़ी अब इसपर चला करेंगी।

चंद्रभागा पर बना पुल वीडियो।

आइए चंद्रभागा के संबंध में कुछ रोचक जानते हैं।


चन्द्रभागा नदी हिमाचल प्रदेश में लाहौल और स्पीति जिले में सूरज ताल और चन्द्र ताल से निकलती है। इसे चेनाब या चिनाब कहने लगे हैं और अब यही नाम मिलता है। ऋग्वेद में इस नदी का नाम अस्किनी है। यह शतद्रु (सतलुज) की सहायक नदी है जो आगे जाकर सिंधु में समाहित होती है।

चन्द्र भागा
चंद्रभागा नदी


चंद्रभागा (चेनाब) त्रिमु में इरावती (रावी) और वितस्ता (झेलम) नदी से मिलती है और आगे बढ़कर उचशरीफ के पास शतद्रु (सतलज) में मिल जाती है। पञ्चनद (पंजाब) क्षेत्र की अन्य नदी विपासा (ब्यास) फिरोजपुर के पास शतद्रु नदी में मिलती है। यह शतद्रु मिथनकोट में सिंधु में समाहित हो जाती है।

सूरजताल, जहां से भागा नदी निकलती है, लेह जाने वाली सड़क पर स्थित बारा लाचा ला नामक दर्रे के पास स्थित है। स्पीति घाटी में स्थित चन्द्रताल के पास ही चन्द्रा नदी का उद्गम स्थान है। टांडी नामक स्थान पर भागा और चंद्रा संगम करती हैं।

ईसा से लगभग तीन सौ साल पहले इस चंद्रभागा और वितस्ता (झेलम) के बीच के क्षेत्र में राजा पोरस का राज्य था। वह पोरस जिसका संघर्ष सिकंदर के साथ हुआ। 

चंद्रभागा पर बना पुल


पंजाबी के साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध कवि सुरजीत पातर बताते हैं - "पंजाब की कविता और साहित्य में चिनाब का उल्लेख सबसे ज़्यादा है। हीर-रांझा के दुखद रोमांस या किस्सा में, नायक रांझा चिनाब नदी को पार करके अपने पैतृक गांव तख्त हजारा से झंग शहर पहुंचता है। नदी के किनारे ही उसकी पहली मुलाकात हीर से होती है। वे नदी के किनारे जंगल में मिलते हैं।

सुरजीत पातर
सुरजीत पातर (चित्र - down to earth से)


सोहनी-महिवाल के एक अन्य लोकप्रिय किस्सा में नायिका सोहनी महिवाल से मिलने के लिए चिनाब नदी के पानी में मिट्टी का घड़ा तैराती है। अंत में, एक ईर्ष्यालु रिश्तेदार उसके घड़े की जगह एक नया बना घड़ा रख देता है, जो टूट जाता है और सोहनी डूब जाती है। महिवाल उसे बचाने के लिए तैरता है। लेकिन वह भी उफनते पानी में डूब जाता है।"

(डाउन टू अर्थ में)

देवेंद्र सत्यार्थी ने लिखा है - नहीं रीसां चिनाब दियां, भरेंव सुक्की वाघे। चेनाब अद्वितीय है, भले सूख जाए। बहुत सारे कवियों/साहित्यकारों ने इस नदी को बहुत प्यार से याद किया है। अमृता प्रीतम ने विभाजन के दृश्य को याद करते हुए लिखा है - "अज्ज बेले लशां बिछियां, ते लहू दी भरी चिनाब। वह लिखती हैं कि प्रेमियों की नदी आज लाशों और खून से भरी हुई है। प्रख्यात पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह ने एक कविता में कहा था कि उनकी अस्थियों को गंगा के बजाय चिनाब में प्रवाहित किया जाए, क्योंकि यह 'प्रेम की नदी' है।

चेनाब प्रेम की नदी है। हीर रांझा और सोहनी महिवाल की नदी है। इसमें बहने वाला जल प्रेमियों की आँख का जल है। मोहन सिंह ने एक कविता में लिखा कि गंगा नदी देवताओं को बनाती है, यमुना देवियों को जबकि चेनाब प्रेमियों का निर्माण करती है।


मैंने कहीं पढ़ा था कि चेनाब, चेन+आब से बना है जहां चेन का अर्थ चंद्रमा है, आब का जल। इस तरह चेनाब का अर्थ चंद्रमा का जल है। शीतल और प्रिय।

यह नाम चंद्रभागा से ही निष्पन्न समझना चाहिए। चंद्रमा का भाग, हिस्सा समझने पर भी यही अर्थ आयेगा। इस्लामिक संस्कृति के प्रभाव में इस नदी का नाम बदल गया। कवियों/कलाकारों ने इस नदी में सांस्कृतिक भाव भर दिए। चेनाब नाम चल गया। प्रेम की चर्चा होती है तो हीर रांझा याद आ जाते हैं। चेनाब नाम याद आ जाता है। जबकि यह चंद्रभागा है।

मैं हमेशा कहता हूं कि एक संघर्ष हर तरफ चल रहा है। कई मोर्चे पर जारी है। सभ्यता संघर्ष। इस संघर्ष में विरासत पर अधिकार करने की कोशिशें बदस्तूर जारी हैं। झेलम वितस्ता का बदला नाम है। सतलुज का नाम शतद्रु था। व्यास विपासा थी। रावी इरावती का परिवर्तित नाम है।

आज नदियों के नाम बदले हैं। पर्वत शिखरों के नाम बदले जा रहे हैं! नया चलन पहले फैशन और साझा विरासत के नाम पर चल रहा है और बाद में एक कागज लेकर कोई आ जाता है कि महाकुंभ क्षेत्र का इतना अंश हमारा है, जिसपर मेला लग रहा है।

अपने प्राचीन नाम को याद रखें। उन्हें प्रयोग में ले आएं। आज बिन्त नाम पढ़ते समय याद आया कि बिन्नी/बिनती/बंटी आदि नाम हमने उसी के प्रभाव में स्वीकार कर लिए हैं। हमने बहुत अंगीकृत किया है। इतना अधिक कि हम हम नहीं रह गए हैं, वह हो जाने के कगार पर हैं!

मुझे वह नहीं होना है! पुल हमें जोड़ें। अधिग्रहित न कर लें।
इति।

सोमवार, 13 जनवरी 2025

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।।

भाग- 23
अंतिम छंद, दोहा।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

श्री हनुमान चालीसा के इस अंतिम छंद में हनुमान जी को पुनः पवन तनय अर्थात पवन देव का पुत्र बताया गया है। यह कहकर उन्हें किसी भी तरह के संकट को हर लेने वाला यानि ले लेने वाला कहा गया है। हनुमान जी साक्षात् मंगल मूर्ति हैं। वह सदा सर्वदा मंगल करने वाले हैं। गोस्वामी तुलसीदास की प्रार्थना है कि हनुमान जी, जो देवताओं के राजा हैं- सुरभूप; वह भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और जानकी जी के साथ हृदय में निवास करें।

इस दोहे में बहुत सहजता से भगवान श्रीराम, उनके अनुज शेषावतार लक्ष्मण और साक्षात् जगदम्बा सीता जी के साथ हनुमान जी को भी हृदयंगम करने की बात है। यह और इस जैसी कई अन्य युक्तियों को देखकर लगता है कि गोस्वामी तुलसीदास समन्वय की विराट चेष्टा के पैरोकार हैं।

श्री हनुमान चालीसा का समापन भी दोहे से हुआ है। आरंभ में दो दोहा और अंत में एक; कुल तीन दोहे श्री हनुमान चालीसा में हैं। तुलसीदास की काव्य योजना बहुत सुचिंतित और एक सुगठित वास्तु की तरह है। श्रीरामचरितमानस में जिस वर्ण से आरम्भ हुआ है उसी वर्ण से पूर्ण। यह महीन संरचना का एक अंग है।

श्री हनुमान चालीसा की यह कड़ी यहां पूरी होती है। हनुमान जी की चालीसा का यह शृंखलाबद्ध व्याख्या वाला प्रभाग पूर्ण हुआ। भगवान श्री राम और बजरंगी हनुमान जी की जय के साथ इस शृंखला को यहां विराम देता हूं।
 
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राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।


रविवार, 12 जनवरी 2025

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय  सिद्धि  साखी  गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥

भाग- 22
बीसवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।


श्री हनुमान चालीसा पाठ सिद्धिदायक है। हनुमान जी अष्ट सिद्धि के दाता हैं, यह वरदान उन्हें माता जानकी ने दे रखा है। अष्ट सिद्धि नौ निधि पर हमने विस्तार से चर्चा की है। श्री हनुमान चालीसा को पढ़ने से सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं, यह बात इस चौपाई में कही गई है और इसके लिए यह भी कहा गया है कि इस बात की साक्षी स्वयं गौरी पार्वती हैं। उन्होंने इस चौपाई में स्वयं को भगवान का सदा सदा से चेरा अर्थात सेवक माना है और प्रार्थना की है कि श्री भगवान जी हमेशा उनके हृदय में निवास करें। हम जानते हैं कि हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा तुलसीदास जी को भगवान शिव के कहने से मिली थी। यह हनुमान चालीसा पढ़ना प्रभावकारी है, इसकी साक्षी स्वयं माता पार्वती हैं।

तुलसीदास जी ने सामान्य मानवी पर विश्वास जताने के लिए इस वाक्य की योजना की है। जिस बात का साक्ष्य स्वयं माता पार्वती हैं, उसमें अविश्वास करने का कोई कारण नहीं हो सकता।

यह श्री हनुमान चालीसा की अंतिम चौपाई है। सभी कवियों की तरह तुलसीदास जी इस पंक्ति में अपनी छाप के साथ हैं। तुलसीदास का नाम तुलसी ही था किंतु भगवान से भक्ति और स्वयं को सेवक मानने के उनके आग्रह को देखते हुए उनके नाम के साथ ही दास शब्द जुड़ गया। जब यह संज्ञा में परिवर्तित हो गया तो तुलसी ने अपने सेवक रूप को पृथक प्रकट किया और इसी भाव को धारण किया। वह रघुकुल शिरोमणि श्रीरामचंद्र जी के सदा सदा से सेवक बनकर रहना चाहते हैं।

भगवान के भक्त के लिए इससे सुघड़ और उच्च भाव नहीं हो सकता कि वह श्री हरि के सबसे निकट के सेवक बनें। चूंकि भगवान की लीलाओं के भगवान के निकट के संबंधी किसी न किसी के अवतार हैं, इसलिए उसमें सम्मिलित होने की गुंजाइश नहीं है तो सेवक के रूप में रहना सबसे अधिक स्वीकार्य और सहज है। तुलसीदास जी यही प्रार्थना भी करते हैं।

होय सिद्ध साखी गौरीसा।
होय सिद्ध साखी गौरीसा।


पुनः बताना है कि हमारे विवेचन में अब तक बाईस भाग में दो दोहा के साथ जिन बीस चौपाइयों की चर्चा हुई है, वह चालीस अर्द्धाली हैं। चौपाई की एक अर्द्धाली में दो चरण होते हैं। चालीस पंक्तियों की रचना होने के कारण यह चालीसा है।
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शनिवार, 11 जनवरी 2025

जय जय जय हनुमान गोसाईं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु  गुरुदेव  की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छुटहि बँदि महा सुख होई॥

भाग- 21
उन्नीसवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं


हनुमान जी की वंदना बहुविध करने के बाद गोस्वामी तुलसीदास ने इस चौपाई में उनकी जयकार की है और उन्हें गुसाईं कहा है। साथ ही उनसे अपेक्षा की है कि वह गुरुदेव की तरह कृपा करें। वह कहते हैं कि  यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करे तो वह समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे महासुख की प्राप्ति हो जाती है। यहां चौपाई में प्रयुक्त गुसाईं गोस्वामी का लोक व्यवहारित शब्दरूप है। गोस्वामी दो शब्दों का युग्म है- गो+स्वामी। गो का अर्थ है इंद्रिय। हम जानते हैं कि पांच कर्म इंद्रियां हैं और पांच ज्ञानेंद्रियां। यह किसी भी शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग है। कहा जाए कि यही वास्तव में शरीर है तो गलत न होगा। इस प्रकार काया का स्वामी जो है, जो हमारा आराध्य है, उसे गोस्वामी कहा जाएगा। जो अपनी काया का स्वामी है वह भी गोस्वामी होता है।

दूसरे प्रभाग में हनुमान जी से गुरुदेव की भाँति कृपा करने को कहा गया है। गुरुदेव की महिमा भारतीय सनातन परंपरा में खूब गाई गई है। वह अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाले हैं। कबीर ने तो उन्हें गोविंद से भी श्रेष्ठ कहा है। यहां श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की वंदना पूरी होती है। इसी चौपाई में हनुमान चालीसा पढ़ने के माहात्म्य पर चर्चा है।

इस चौपाई में शत बार पाठ करने की बात है। यह बारम्बारता के लिए है। गुणी जन शत की संख्या सात भी बताते हैं किंतु यहां यह समझना चाहिए कि एक दिन में ही पाठ नहीं करना है। बंदी जीवन से आशय है बंधन से युक्त जीवन। यह अनावश्यक प्रतिबंधों, कष्ट आदि से जनित होता है। महासुख की बात भी इसी चौपाई में है। #महासुख का अर्थ है साधकों को सिद्धि प्राप्त हो जाने पर मिलने वाला परमानंद। बौद्ध साधना पद्धति में महासुख को निर्वाण के सुख की तरह समझा गया है। इसे मैथुन अथवा रति से प्राप्त सुख के लिए भी जोड़ते हैं।लेकिन कुल मिलाकर महासुख का अर्थ अतिशय आनंद की स्थिति से है। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा के पाठ से अपरिमित सुख प्राप्ति का उपाय इस चौपाई में बताया है।
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शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

और देवता चित न धरई।

और  देवता  चित न  धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
संकट  कटै  मिटै  सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

भाग- 20
अठारहवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
और  देवता  चित न  धरई।

श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में कहा गया है कि हनुमान जी की सेवा करने से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए अन्य किसी देवता का स्मरण करने की आवश्यकता नहीं है। जो भी व्यक्ति हनुमान जी का ध्यान करता है, उसके समस्त संकट कट जाते हैं और पीड़ा दूर हो जाती है।

यहां तुलसीदास जी ने एकनिष्ठता पर बल दिया है और हनुमान जी के प्रति अगाध श्रद्धा व्यक्त की है। हनुमान जी सभी सुख देने वाले हैं। यहां चौपाई के दूसरे अर्द्धाली में 'और देवता' की चर्चा किंचित विचार करने के लिए रोकती है।

स्वयं तुलसीदास जी वैष्णव हैं। भगवान श्रीराम में उनकी गहन आस्था है। राम के प्रति उनकी भक्ति की अनन्यता सर्वविदित है तब वह हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य देवता का ध्यान तक नहीं करने के लिए क्यों कहते हैं? इसका एक उत्तर तो यह है कि रघुकुल शिरोमणि श्रीरामचंद्र कोई देवता नहीं हैं। वह तीनों लोकों के स्वामी हैं। इसमें देवलोक भी आता है। वह सृष्टि के पालक हैं। और दूसरे, वह हनुमान जी से इस प्रकार अभिन्न हैं कि एक का स्मरण दूसरे के साथ ही है। वस्तुत: हनुमान और श्रीराम में अभेद है। तुलसीदास जी ने आजीवन शैव और वैष्णव मत की एकात्मकता पर बल दिया और अपनी रचना में इसी प्रकार विन्यास भी किया। इसलिए यहां हनुमान जी के संबंध में चर्चा करते हुए यह कहना तर्कसंगत और उचित तथा समावेशी है।

श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के नाम स्मरण के माहात्म्य को पुनः बताया गया है। तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी के नाम का जो भी व्यक्ति सुमिरन करता रहता है, उसके समस्त संकट कट जाते हैं और पीड़ा समाप्त हो जाती है।

तुलसीदास जी न केवल हनुमान चालीसा में अपितु अपने समस्त साहित्य में स्मरण, स्मृति पर सबसे अधिक जोर देते हैं। हमें याद रखना है। हनुमान जी याद रहेंगे तो श्रीराम की याद रहेगी। श्रीराम की स्मृति ध्यान में आएगी तो मर्यादा का स्मरण रहेगा। नीति का ध्यान रहेगा। वह प्रतिबद्धता स्मरण में रहेगी। रावण का संज्ञान रहेगा। हमें हमारी परम्परा और अनुशासन का ज्ञान रहेगा। यह सब अज्ञान और भय को मिटा देने वाले हैं। रोग और शोक को खत्म कर देने वाले हैं।

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी को याद रखना है और इसे बार बार स्मरण में रखना है, ऐसा कहा गया है। सुमिरन शब्द में बारंबारता है। इसे सदैव ध्यान में रखना है।
 
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गुरुवार, 9 जनवरी 2025

तुम्हरे भजन राम को पावै।

तुम्हरे  भजन  राम  को  पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्त काल रघुबर पुर  जाई।
जहां जन्म हरी भक्त कहाई।।

भाग- 19
सत्रहवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
तुम्हरे  भजन  राम  को  पावै।
तुम्हरे  भजन  राम  को  पावै।

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की कृपा, उनके नाम का स्मरण, उनके गुणों का बखान करना आदि का माहात्म्य बारम्बार हुआ है। इस चौपाई में कहा गया है कि हनुमान जी को बार बार याद करने, भजने से भगवान श्रीराम का सानिध्य प्राप्त होता है। इसके साथ ही जन्म जन्मांतर के कष्ट से मुक्ति मिल जाती है।

जन्म जन्मांतर की अवधारणा भारतीय सनातन संस्कृति की पहचान है। हमारे यहां जीवन से पहले के जीवन का और जीवन के बाद के जीवन का भी लेखा जोखा है। सृष्टि में 84 लाख योनियां बताई गई हैं जिसमें मनुष्य जीवन सर्वश्रेष्ठ है। इसमें भी शृंखला चलती रहती है। भगवत कृपा से यह क्रम बंद होता है। भगवत कृपा होती है तो भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ में जगह मिलती है। यह भगवान श्रीराम का लोक है। श्री हनुमान चालीसा इसी लोक में स्थान पाने के लिए हनुमान जी के भजन पर जोर देता है।

श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में भी हनुमान जी की महिमा गाई गई है। तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी के भजन के प्रभाव से प्राणी अन्त समय श्री रघुनाथजी के धाम जाते हैं। श्रीरघुनाथ जी का धाम बैकुंठ है। यह तीनों लोकों से इतर है। यहां जाने का अर्थ है- जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाना। यही मोक्ष है। बैकुंठ धाम जाने का आशय है जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्त हो जाना। तुलसीदास जी यह भी लिखते हैं कि यदि मृत्युलोक में जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्रीहरिभक्त कहलायेंगे। इसमें पुनर्जन्म की धारणा में विश्वास तो जताया ही गया है यह भी कहा गया है कि श्रीहरि का भक्त होना अत्यंत गौरव का विषय है। भगवान श्रीराम का भक्त सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है। जो श्रीराम का भक्त है, वही वैष्णव है। जो वैष्णव है वह सहृदय, दयालु और सज्जन है। नरसी मेहता गुजरात के कवि हुए हैं। अपने गीत में वह कहते हैं कि वैष्णव वह है जो दूसरे का दुःख जानता है। यह जानना किसी भी व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाता है।

श्री हनुमान चालीसा का प्रभाव यह है कि इसके गायन/पाठ से व्यक्ति बैकुंठ धाम का पात्र हो जाता है और मर्त्यलोक में वह श्री विष्णु का भक्त समझा जाता है। यह चौपाई एक अन्य विशिष्ट पक्ष की ओर ध्यान कराती है कि स्वयं भगवान शिव के रूप हनुमान जी भी बैकुंठ धाम को श्रेष्ठ मानते हैं।

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बुधवार, 8 जनवरी 2025

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति कर दासा।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

भाग- 18
सोलहवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

श्री हनुमान चालीसा की यह चौपाई बहुत महत्वपूर्ण है। इस चौपाई में हनुमान जी को अष्ट सिद्धि, नौ निधि का प्रदाता कहा गया है। और यह भी बताया गया है कि राम रसायन उनके पास है। हनुमान जी को सिद्धियां और निधियाँ सहज प्राप्त हैं। आठ सिद्धियां जो बताई गई हैं, वह हैं - अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व। नौ निधियाँ- पद्म, महापद्म, नील, मुकुंद, नंद, मकर, कच्छप, शंख, खर्व या मिश्र हैं।

जब हनुमान जी ने श्री जानकी जी का पता लगाया और उन्हें भगवान श्रीराम का संदेश सुनाया तो प्रसन्न होकर साक्षात् जगदम्बा ने उन्हें वरदान किया कि वह अष्ट सिद्धि और नौ निधि किसी को भी प्रदान कर सकते हैं। हनुमान जी इन्हीं सिद्धियों के बल पर अपना आकार घटा बढ़ा सकते थे और आवश्यकता के अनुसार रूप धारण कर सकते हैं। वह बल बुद्धि और विद्या के आगार इसलिए भी हैं।
हनुमान जी की कृपा से हम सृष्टि के समस्त लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

इस चौपाई में हनुमान जी को सदैव भगवान श्रीराम के निकट रहने वाले सेवक के रूप में बताया गया है जिसके पास राम रसायन है।

राम रसायन क्या है?
सामान्यतया रसायन का अर्थ ओषधि से लिया जाता है। कहा जाता है कि राम नाम एक ओषधि है जो हर तरह के दुःख और कष्ट से मुक्त करने में सक्षम है। किंतु यह राम रसायन का सरलीकरण ही है। राम रसायन कष्ट में पड़े और दुःखी जन के लिए ओषधि है लेकिन यह नाम सर्वजन के लिए आनंददायी है इसलिए ओषधि कहना इसका क्षेत्र संकोच करना है।

रसायन रस का आनंद है। रस की व्याख्या करते हुए तैत्तिरीयोपनिषद् में कहा गया है - रसो वै स:।
रसं ह्येवायं लब्ध्वानन्दी भवति।
अर्थात् वह रस का स्वरूप है। जो इस रस को पा लेता है वही आनन्दमय बन जाता है। सः यहाँ स्वयम्भू सर्जक के लिए प्रयोग किया गया है और रस उनकी सुन्दर रचना से मिला आनन्द है। जब प्राणी इस आनन्द को, इस रस को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं आनन्दमय बन जाता है।
राम रसायन तुम्हरे पासा।


अथर्ववेद में आता है - "श्रीरामएवरसोवैसः।यस्यदासरसोवैपादः। यस्य शान्तरसो वै शिरः। वात्सल्यः प्राणः। शृङ्गारो बाहू। संख्यात्मा।" अर्थात् वह रसो वै सः ही एकमात्र #श्रीराम हैं। जिसका दास्य रस है उसके पैर हैं, शांत रस है सिर है, वात्सल्य रस है प्राण है, श्रृंगार रस है भुजा है और सख्य रस है आत्मा।

अतः स्पष्ट है कि रसायन और उसमें भी राम रसायन अतिविशिष्ट तत्त्व है। श्री हनुमान जी के पास यह है। हनुमान चालीसा इसे विशेष रूप से उल्लिखित करता है।
 
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मंगलवार, 7 जनवरी 2025

चारों जुग परताप तुम्हारा।

चारों  जुग  परताप  तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु सन्त के  तुम  रखवारे।
असुर निकन्दन राम दुलारे।।

भाग- 17
पन्द्रहवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
चारों  जुग  परताप  तुम्हारा।

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी के प्रभाव को चारो युगों में व्याप्त कहा गया है। यह चार युग हैं - सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग। यह सब जानते ही हैं कि त्रेता युग भगवान श्रीराम के अवतरण का था। इसी काल में हनुमान जी का सबसे अधिक प्रतापी स्वरूप दिखता है। परन्तु केवल त्रेता में ही नहीं, अपितु प्रत्येक युग में हनुमान जी महाराज का माहात्म्य है, यह बात प्रकाश की तरह स्पष्ट है। इसकी ख्याति भी प्रकट है।

हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी की व्याप्ति चारों युगों में बताई गई है। यह हनुमान जी के अनादि, अनंत और अमर्त्य स्वरूप का परिचायक है।

इसी चौपाई में हनुमान जी को साधु और सन्तों का रखवाला कहा गया है। उन्हें असुरों का विनाशक और रामचंद्र जी का दुलारा भी बताया गया है। चौपाई में साधु और सन्त समाज के रक्षक के रूप में हनुमान जी की वंदना की गई है। सामान्यतया साधु और सन्त समानार्थी हैं किंतु व्यवहार और साधना के स्तर पर दोनों में सूक्ष्म भेद है।

साधु कौन है? साधु वह है जो सज्जन है। सदाचरण करता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और मत्सर; पांच विकारों से अपने को दूर रखता है अथवा दूर रखने के लिए निरंतर साधना करता है। सामान्यतया वह इस हेतु एकांत की खोज करता है और सांसारिक जीवन से मुक्त होने का प्रयास करता है। साधु के रहने का स्थान आश्रम, कुटिया आदि है। बहुत से लोग जो गृहस्थ जीवन से विरत होते जाते हैं, साधु बनने के मार्ग में होते हैं। हम सज्जन को साधु कह सकते हैं।

सन्त कौन है? सन्त, साधु से एक कोटि आगे की सिद्धि कही जा सकती है। वह जिसका मन सदैव ब्रह्म ज्ञान में लगा रहे, जो सदाचरण की राह से चलते हुए आत्मज्ञानी हो गया है, वह सन्त है।

समाज में, सदाचरण करने वाले लोगों के मार्ग में बहुत बाधाएं हैं। न केवल सांसारिक विषय अपितु आसुरी शक्तियाँ भी उन्हें विचलित करती हैं और उनकी साधना में बाधक हो जाती हैं। हनुमान जी ऐसे सज्जनों के रक्षक देवता हैं। श्री हनुमान चालीसा में उन्हें साधु सन्त समाज का रक्षक बताया गया है। वह इस रक्षा के क्रम में असुरों के विनाशक भी हैं। इसलिए वह भगवान श्रीराम के दुलारे हैं।
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सोमवार, 6 जनवरी 2025

सब पर राम तपस्वी राजा।

सब  पर   राम  तपस्वी  राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा।।
और  मनोरथ  जो  कोइ लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥

भाग - 16
चौदहवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : चौदहवीं चौपाई


श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी की चर्चा तो है ही, भगवान श्रीराम के तपस्वी रूप की बात भी आई है। रघुकुल शिरोमणि श्रीरामचंद्र जी सभी राजाओं में श्रेष्ठ, तपस्वी कहा गया है। तपस्वी वह है जो तप करता है, तप्त होता है। जीवन के संघर्षों के ताप को सहकर जो निखरता है, वह तपस्वी है। यह गर्मी पाने के लिए, गर्म करने के लिए नहीं है। भगवान श्रीराम का जीवन तो संघर्ष का आख्यान ही है। प्रख्यात साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर ने रश्मिरथी में -
"वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।"
लिखकर पांडवों के तपस्वी रूप का उल्लेख किया है लेकिन रघुकुल शिरोमणि श्रीराम का तो तापस वेश ही है। निराला ने राम की शक्ति पूजा में इस रूप को बहुत अच्छी तरह प्रकट किया है। ऐसे तपस्वी श्रेष्ठ राजा रामचंद्र के सभी कार्य सफल करने वाले हनुमान जी हैं।

इस चौपाई में यह व्यक्त हुआ है कि भगवान श्रीराम के राजसी जीवन में भोग नहीं अपितु तप प्रधान है और इस चक्रवर्ती सम्राट का सकल काज हनुमान जी ने अपने हाथ से संपन्न किया है। हनुमान जी की वंदना करते हुए यह उल्लिखित होना प्रभु और सेवक दोनों की महानता का परिचय देता है। चालीसा की यह पंक्ति इसलिए भी बहुत महत्व की है।

इसी चौपाई में आता है कि श्री हनुमान जी की कृपा जिस पर बनी रहती है वह यदि कोई भी कामना प्रकट करे तो वह पूरी होकर रहती है। जो व्यक्ति कोई मनोरथ, कामना, अभिलाषा प्रकट करता है उसे जीवन में हनुमान जी की कृपा से अमित फल की प्राप्ति होती है।

यहां दो प्रमुख शब्द हैं -
१. मनोरथ, अर्थात मन में उपजी कोई कामना। वैसे तो हनुमान जी के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में ऐसा तोष व्याप्त हो जाता है कि उसे किसी अन्य तत्व की कामना ही नहीं रहती तथापि यदि कोई भाव वह मन में प्रकट करता है तो..
२. अमित फल, अमित का अर्थ है कभी न समाप्त होने वाला। यह शाश्वत है, चिरस्थाई, पूर्णता लाने वाला। हनुमान जी की कृपा से मनोरथ की पूर्ति के क्रम में जो फल प्राप्त होता है वह अमित है। कभी न चुकने वाला।

अतएव, हनुमान जी की कृपा ही जीवन में अनंत सुख प्रदान करने वाली है। श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की वंदना करते हुए यह चौपाई उनके पुण्य प्रताप का सुंदर निदर्शन करती है।

आइए, हनुमान जी महाराज का वंदन करें। हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें।
 
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रविवार, 5 जनवरी 2025

नासै रोग हरै सब पीरा।

नासै   रोग   हरै  सब  पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट   तें  हनुमान  छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

भाग - 15
तेरहवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : तेरहवीं चौपाई


पिछली चौपाई में नाम के माहात्म्य पर चर्चा हुई थी जिसमें बताया गया है कि हनुमान जी का नाम लेने से भूत पिशाच निकट नहीं आते। उसी को आगे बढ़ाते हुए इस चौपाई में बताया गया है कि हनुमान जी का निरंतर नाम स्मरण करने से सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और कष्ट समाप्त। नाम स्मरण एक ओषधि है। हनुमान जी का नाम स्मरण तन और मन को स्वस्थ रखता है।
नाम का यह अद्भुत प्रभाव केवल हनुमान में ही है। श्री हनुमान चालीसा के इस पंक्ति का विस्तार हनुमान जी के विभिन्न मंदिरों में मिलता है। इसमें एक प्रसिद्ध मंदिर ददरौवा सरकार का भिंड मध्य प्रदेश में है जहां हनुमान जी का मंदिर डॉक्टर हनुमान जी के नाम से जाना जाता है।

श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति अपने विचार, कर्म और वाणी में हनुमान जी का ध्यान रखता है, उसे हनुमान जी संकट में घिरने पर बचा लेते हैं। इसका आशय यह भी है कि यदि कोई व्यक्ति संकट में घिर जाए तो उसे अपने सोच विचार में सबसे पहले हनुमान जी को लाना चाहिए। हनुमान जी का ध्यान उसे संकट से निकालने में सक्षम होगा। फिर उसके क्रिया कलाप और बोलने में भी हनुमान जी ध्यान करना उसे इस स्थिति से निश्चित ही उबार लेगा।

इस चौपाई में यह पूर्वनिश्चित तथ्य भी सन्निहित है कि यदि कोई व्यक्ति अपने मन, कर्म और वाणी में हनुमान जी को रखता है तो वह संकट में पड़ेगा ही नहीं। यदि वह संकट में है तो इसकी ओषधि भी यह ध्यान ही है। यहां ध्यान रखने की बात यह है कि चौपाई के प्रवाह में कर्म को क्रम लिखा गया है। यह लय और छंद के निर्वाह के लिए ही होता है।

पिछली चौपाइयों में हनुमान जी के नाम और स्मरण का उल्लेख हुआ है। यह नवधा भक्ति के अंग हैं।
श्री हनुमान चालीसा इस तरह हनुमान जी की नवधा भक्ति प्रणाली से की गई आराधना है।

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शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

आपन तेज सम्हारो आपै।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांकते कांपे।।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महावीर   जब   नाम  सुनावै॥

भाग - 14
बारहवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला


श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी को ऐसे चरित्र का व्यक्ति कहा गया है जो अपने तेज और वेग को स्वयं ही नियंत्रित करता है। इसका अर्थ यह है कि हनुमान जी को नियंत्रित कर सके, ऐसा कोई नहीं। अन्य कोई इस संसार में नहीं है जो हनुमान जी पर नियंत्रण कर सके। यह उनके स्वयंभू और सर्वशक्तिमान चरित्र का परिचायक है। श्री हनुमान जी अपने नियंता स्वयं हैं। उनकी गर्जना, हुंकार ऐसी है कि त्रैलोक्य विकम्पित हो उठे। यह उनके तेजस्वी स्वरूप की एक झलक है। युद्ध भूमि में हनुमान जी ने क्रोध में आकर जब रावण पर मुष्टिका प्रहार किया था तो रावण जैसा बलशाली योद्धा मूर्छित हो गया था। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान जी को अपने वेग का नियंत्रक स्वयं बताकर बहुत काव्यात्मक तरीके से उनके माहात्म्य का निदर्शन कराया है।

श्री हनुमान चालीसा के इस अंश में नवधा भक्ति के प्रमुख अंग नाम के माहात्म्य को दोहराया गया है। इसमें बताया गया है कि श्री हनुमान जी का प्रभाव ऐसा है कि उनका नाम लेने मात्र से भूत पिशाच आदि निकट नहीं फटकते। महावीर हनुमान जी का विरूद है। इस नाम के प्रभाव से ही सब आसुरी शक्तियों भयाक्रांत रहती हैं।

श्री हनुमान चालीसा की यह सबसे विख्यात चौपाई है। सांसारिक भय से मुक्ति का मंत्र है यह। सामान्य जन का सम्बल। इसलिए सबसे अधिक बार गाई जाने वाली उक्ति है यह। श्री हनुमान जी का नाम भूत भगाने वाला है। यहां भूत का आशय अतीत की कटु स्मृतियों से है। जो भूत हमें सताता है वह अतीत की कटु स्मृति है। हम उससे बचना चाहते हैं। हालांकि स्मृतियों को सहेजकर, अपने भूत पर नियंत्रण रखकर अधिक शक्तिशाली तरीके से निर्वाह हो सकता है।

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गुरुवार, 2 जनवरी 2025

राम दुआरे तुम रखवारे।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहे तुम्हारी सरना।
तुम रक्छक काहू को डरना।।

भाग - 13
ग्यारहवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।


श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में हनुमान जी को भगवान श्रीराम का द्वारपाल कहा गया है और बताया गया है कि बिना हनुमान जी की अनुमति के भगवान श्रीराम के यहां पहुंचना संभव नहीं है।

भगवान श्रीराम तीनों लोकों के स्वामी हैं, यद्यपि एक भक्त अपने भगवान के सम्मुख अपनी भक्ति भावना से पहुंच सकता है लेकिन हनुमान जी भगवान श्रीराम तक पहुंचने के मार्ग में द्वारपाल की तरह विद्यमान हैं। यह उनकी महत्ता का सूचक है।

हनुमान चालीसा की इस पंक्ति में राजदरबारों की संस्कृति की झलक मिलती है जहां राजा तक पहुंचने के लिए सुरक्षा के कई चरणों से पार होना पड़ता है। बहुधा भावना के आवेग में श्रद्धालु समय असमय का ध्यान न करते हुए भगवान के सम्मुख पहुंचकर निवेदन करना चाहता है, तब कुछ मर्यादाओं का अनुपालन आवश्यक हो जाता है। द्वारपाल की व्यवस्था इसी के निमित्त है। श्री हनुमान जी को भगवान श्रीराम जी के द्वार का रखवाला कहना उनके महत्व का परिचायक है।

श्री हनुमान चालीसा की इस ग्यारहवीं चौपाई में हनुमान जी को रक्षक बताया गया है। रक्षक अर्थात जो हमारी रक्षा करे। किसी भी कष्ट, दुख आदि से हमें बचा ले। आपदा विपदा में हम पर कोई आंच न आने दे। यह विश्वास प्रकट किया गया है कि हनुमान जी के रक्षक रूप में रहने पर हमारे मन से डर, भय निकल जाता है। इसलिए हनुमान जी के साथ रहने भर से हम अभय हो जाते हैं।

गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान जी की वन्दना करते हुए हनुमान जी की शरण में रहने को ही हर तरह का सुख माना है। उनका कहना है कि हनुमान जी की शरण में जाने पर सभी तरह के सुख प्राप्त हो जाते हैं और चूंकि वह रक्षक हैं तो हमें अभय मिल जाता है। हनुमान जी अपने शरणागत को समस्त सुख प्रदान करने वाले, उनकी रक्षा करने वाले और अभय प्रदान करने वाले महाप्रभु हैं।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : ग्यारहवीं चौपाई


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बुधवार, 1 जनवरी 2025

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

भाग - 12
दसवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई 

श्री हनुमान चालीसा शृंखला की इस चौपाई में हनुमान जी के एक महत्वपूर्ण कार्य को याद किया गया है। जब श्री जानकी का लंकाधिपति रावण ने हरण कर लिया तो वानर सेना को सीता जी का पता लगाने के लिए चारों दिशाओं में भेजा गया। वहां संपाति, जो जटायु के भाई थे; ने बताया कि रावण जानकी जी को लेकर दक्षिण दिशा में गया है।
तब जांबवंत के समझाने और हनुमान जी का बल स्मरण कराने पर हनुमान जी लंका जाने पर तैयार हो गए। बल स्मरण कराने के क्रम में गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरितमानस में लिखा है -
कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होय तात तुम पाहीं।।

हनुमान चालीसा की इस चौपाई में यह बताया गया है कि उन्होंने भगवान श्रीराम द्वारा दी गई चिन्हारी मुद्रिका अपने मुंह में दबाई और समुद्र लांघ गए। यह सब इतना क्षिप्र गति से हुआ कि किसी किसी को समझ में ही नहीं आया।

तुलसीदास जी ने हनुमान जी के माहात्म्य को याद करते हुए इस चौपाई में यह भी जोड़ दिया है कि हनुमान जी की शक्तियों को देखते हुए इस काम के हो जाने में कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। यह हनुमान जी के लिए बहुत सहज कार्य था। श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी का माहात्म्य बहुत प्रखर तरीके से व्यक्त हुआ है।

श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में हनुमान जी के सम्बन्ध में यह भी कहा गया है कि दुनिया के जितने भी दुर्गम काम हैं, वह सब हनुमान जी के अनुग्रह यानी कृपा से संपन्न हो जाते हैं। दुर्गम का अर्थ है जहां जाना कठिन हो, जिसे करना कठिन हो। हनुमान जी उन सभी कार्यों को सुगम कर देते हैं जो दुर्गम हैं। हनुमान जी का अनुग्रह, कृपा प्राप्त हो जाए तो कठिन से कठिन कार्य आसान हो जाते हैं। यह कृपा कैसे प्राप्त हो? इसके लिए आवश्यक है कि हनुमान जी के श्रीचरणों में ध्यान लगा रहे। हम श्री हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें और हनुमान जी में अपनी भक्ति बनाए रखें।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई 



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सद्य: आलोकित!

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