श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी को ऐसे चरित्र का व्यक्ति कहा गया है जो अपने तेज और वेग को स्वयं ही नियंत्रित करता है। इसका अर्थ यह है कि हनुमान जी को नियंत्रित कर सके, ऐसा कोई नहीं। अन्य कोई इस संसार में नहीं है जो हनुमान जी पर नियंत्रण कर सके। यह उनके स्वयंभू और सर्वशक्तिमान चरित्र का परिचायक है। श्री हनुमान जी अपने नियंता स्वयं हैं। उनकी गर्जना, हुंकार ऐसी है कि त्रैलोक्य विकम्पित हो उठे। यह उनके तेजस्वी स्वरूप की एक झलक है। युद्ध भूमि में हनुमान जी ने क्रोध में आकर जब रावण पर मुष्टिका प्रहार किया था तो रावण जैसा बलशाली योद्धा मूर्छित हो गया था। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान जी को अपने वेग का नियंत्रक स्वयं बताकर बहुत काव्यात्मक तरीके से उनके माहात्म्य का निदर्शन कराया है।
श्री हनुमान चालीसा के इस अंश में नवधा भक्ति के प्रमुख अंग नाम के माहात्म्य को दोहराया गया है। इसमें बताया गया है कि श्री हनुमान जी का प्रभाव ऐसा है कि उनका नाम लेने मात्र से भूत पिशाच आदि निकट नहीं फटकते। महावीर हनुमान जी का विरूद है। इस नाम के प्रभाव से ही सब आसुरी शक्तियों भयाक्रांत रहती हैं।
श्री हनुमान चालीसा की यह सबसे विख्यात चौपाई है। सांसारिक भय से मुक्ति का मंत्र है यह। सामान्य जन का सम्बल। इसलिए सबसे अधिक बार गाई जाने वाली उक्ति है यह। श्री हनुमान जी का नाम भूत भगाने वाला है। यहां भूत का आशय अतीत की कटु स्मृतियों से है। जो भूत हमें सताता है वह अतीत की कटु स्मृति है। हम उससे बचना चाहते हैं। हालांकि स्मृतियों को सहेजकर, अपने भूत पर नियंत्रण रखकर अधिक शक्तिशाली तरीके से निर्वाह हो सकता है।