शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : बारहवीं चौपाई

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांकते कांपे।।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महावीर   जब   नाम  सुनावै॥

भाग - 14
बारहवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला


श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी को ऐसे चरित्र का व्यक्ति कहा गया है जो अपने तेज और वेग को स्वयं ही नियंत्रित करता है। इसका अर्थ यह है कि हनुमान जी को नियंत्रित कर सके, ऐसा कोई नहीं। अन्य कोई इस संसार में नहीं है जो हनुमान जी पर नियंत्रण कर सके। यह उनके स्वयंभू और सर्वशक्तिमान चरित्र का परिचायक है। श्री हनुमान जी अपने नियंता स्वयं हैं। उनकी गर्जना, हुंकार ऐसी है कि त्रैलोक्य विकम्पित हो उठे। यह उनके तेजस्वी स्वरूप की एक झलक है। युद्ध भूमि में हनुमान जी ने क्रोध में आकर जब रावण पर मुष्टिका प्रहार किया था तो रावण जैसा बलशाली योद्धा मूर्छित हो गया था। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान जी को अपने वेग का नियंत्रक स्वयं बताकर बहुत काव्यात्मक तरीके से उनके माहात्म्य का निदर्शन कराया है।

श्री हनुमान चालीसा के इस अंश में नवधा भक्ति के प्रमुख अंग नाम के माहात्म्य को दोहराया गया है। इसमें बताया गया है कि श्री हनुमान जी का प्रभाव ऐसा है कि उनका नाम लेने मात्र से भूत पिशाच आदि निकट नहीं फटकते। महावीर हनुमान जी का विरूद है। इस नाम के प्रभाव से ही सब आसुरी शक्तियों भयाक्रांत रहती हैं।

श्री हनुमान चालीसा की यह सबसे विख्यात चौपाई है। सांसारिक भय से मुक्ति का मंत्र है यह। सामान्य जन का सम्बल। इसलिए सबसे अधिक बार गाई जाने वाली उक्ति है यह। श्री हनुमान जी का नाम भूत भगाने वाला है। यहां भूत का आशय अतीत की कटु स्मृतियों से है। जो भूत हमें सताता है वह अतीत की कटु स्मृति है। हम उससे बचना चाहते हैं। हालांकि स्मृतियों को सहेजकर, अपने भूत पर नियंत्रण रखकर अधिक शक्तिशाली तरीके से निर्वाह हो सकता है।

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गुरुवार, 2 जनवरी 2025

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : ग्यारहवीं चौपाई

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहे तुम्हारी सरना।
तुम रक्छक काहू को डरना।।

भाग - 13
ग्यारहवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।


श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में हनुमान जी को भगवान श्रीराम का द्वारपाल कहा गया है और बताया गया है कि बिना हनुमान जी की अनुमति के भगवान श्रीराम के यहां पहुंचना संभव नहीं है।

भगवान श्रीराम तीनों लोकों के स्वामी हैं, यद्यपि एक भक्त अपने भगवान के सम्मुख अपनी भक्ति भावना से पहुंच सकता है लेकिन हनुमान जी भगवान श्रीराम तक पहुंचने के मार्ग में द्वारपाल की तरह विद्यमान हैं। यह उनकी महत्ता का सूचक है।

हनुमान चालीसा की इस पंक्ति में राजदरबारों की संस्कृति की झलक मिलती है जहां राजा तक पहुंचने के लिए सुरक्षा के कई चरणों से पार होना पड़ता है। बहुधा भावना के आवेग में श्रद्धालु समय असमय का ध्यान न करते हुए भगवान के सम्मुख पहुंचकर निवेदन करना चाहता है, तब कुछ मर्यादाओं का अनुपालन आवश्यक हो जाता है। द्वारपाल की व्यवस्था इसी के निमित्त है। श्री हनुमान जी को भगवान श्रीराम जी के द्वार का रखवाला कहना उनके महत्व का परिचायक है।

श्री हनुमान चालीसा की इस ग्यारहवीं चौपाई में हनुमान जी को रक्षक बताया गया है। रक्षक अर्थात जो हमारी रक्षा करे। किसी भी कष्ट, दुख आदि से हमें बचा ले। आपदा विपदा में हम पर कोई आंच न आने दे। यह विश्वास प्रकट किया गया है कि हनुमान जी के रक्षक रूप में रहने पर हमारे मन से डर, भय निकल जाता है। इसलिए हनुमान जी के साथ रहने भर से हम अभय हो जाते हैं।

गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान जी की वन्दना करते हुए हनुमान जी की शरण में रहने को ही हर तरह का सुख माना है। उनका कहना है कि हनुमान जी की शरण में जाने पर सभी तरह के सुख प्राप्त हो जाते हैं और चूंकि वह रक्षक हैं तो हमें अभय मिल जाता है। हनुमान जी अपने शरणागत को समस्त सुख प्रदान करने वाले, उनकी रक्षा करने वाले और अभय प्रदान करने वाले महाप्रभु हैं।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : ग्यारहवीं चौपाई


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बुधवार, 1 जनवरी 2025

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

भाग - 12
दसवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई 

श्री हनुमान चालीसा शृंखला की इस चौपाई में हनुमान जी के एक महत्वपूर्ण कार्य को याद किया गया है। जब श्री जानकी का लंकाधिपति रावण ने हरण कर लिया तो वानर सेना को सीता जी का पता लगाने के लिए चारों दिशाओं में भेजा गया। वहां संपाति, जो जटायु के भाई थे; ने बताया कि रावण जानकी जी को लेकर दक्षिण दिशा में गया है।
तब जांबवंत के समझाने और हनुमान जी का बल स्मरण कराने पर हनुमान जी लंका जाने पर तैयार हो गए। बल स्मरण कराने के क्रम में गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरितमानस में लिखा है -
कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होय तात तुम पाहीं।।

हनुमान चालीसा की इस चौपाई में यह बताया गया है कि उन्होंने भगवान श्रीराम द्वारा दी गई चिन्हारी मुद्रिका अपने मुंह में दबाई और समुद्र लांघ गए। यह सब इतना क्षिप्र गति से हुआ कि किसी किसी को समझ में ही नहीं आया।

तुलसीदास जी ने हनुमान जी के माहात्म्य को याद करते हुए इस चौपाई में यह भी जोड़ दिया है कि हनुमान जी की शक्तियों को देखते हुए इस काम के हो जाने में कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। यह हनुमान जी के लिए बहुत सहज कार्य था। श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी का माहात्म्य बहुत प्रखर तरीके से व्यक्त हुआ है।

श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में हनुमान जी के सम्बन्ध में यह भी कहा गया है कि दुनिया के जितने भी दुर्गम काम हैं, वह सब हनुमान जी के अनुग्रह यानी कृपा से संपन्न हो जाते हैं। दुर्गम का अर्थ है जहां जाना कठिन हो, जिसे करना कठिन हो। हनुमान जी उन सभी कार्यों को सुगम कर देते हैं जो दुर्गम हैं। हनुमान जी का अनुग्रह, कृपा प्राप्त हो जाए तो कठिन से कठिन कार्य आसान हो जाते हैं। यह कृपा कैसे प्राप्त हो? इसके लिए आवश्यक है कि हनुमान जी के श्रीचरणों में ध्यान लगा रहे। हम श्री हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें और हनुमान जी में अपनी भक्ति बनाए रखें।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दसवीं चौपाई 



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सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : बारहवीं चौपाई

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांकते कांपे।। भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महावीर   जब   नाम  सुनावै॥ भाग - 14 बारहवीं चौपाई श्री हनुमान चाल...

आपने जब देखा, तब की संख्या.