बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

पूर्णकाम : मानस शब्द संस्कृति

 

पूर्णकाम: मानस शब्द संस्कृति 

पूरनकाम राम सुख रासी।
मनुज चरित कर अज अबिनासी।।

जो सब कुछ पा चुके हैं, जिनकी समस्त कामनाएं पूर्ण हो गई हैं, वे श्रीराम सुख की राशि हैं। यह दुर्लभ स्थिति है।

नागार्जुन की बहुत प्रसिद्ध कविता है, उन्हें प्रणाम। इस कविता में उन्होंने लिखा -
"जो नहीं हो सके #पूर्णकाम
उन्हें प्रणाम।"

यह कविता सामान्य जन का अभिवादन करती है इसलिए प्रगतिवादी मानी जाती है। आधुनिक युग ने यह बोध दिया है कि पूर्णकाम होना मनुष्य की असफलता नहीं है। उसकी नियति है और यह स्वीकार कर लेने के बाद कोई हीन भावना नहीं रहती।
तुलसीदास जी श्रीराम को सदैव पूर्णकाम, सुख सागर, भक्त वत्सल, प्रणतपाल आदि कहते रहते हैं। यह ईश्वर की विशेषता है। श्रीराम जो अजन्मा और अविनाशी हैं, वह मनुष्य का अवतार लेकर लीला कर रहे हैं, #मर्यादा की स्थापना कर रहे हैं।

#मानस_शब्द #संस्कृति


2 टिप्‍पणियां:

राजीव चिकारा HARSH ने कहा…

पर नागार्जुन का मन्तव्य तो राम चरित मानस वाला नहीं है श्रीमंत।
वे तो जो कार्य पूर्ण नहीं हुए उन्हें अपूर्ण रह जाने पर भी सम्मान देने अर्थात मानसिक तनाव ना लेने की शिक्षा दे रहे हैं।

डॉ रमाकान्त राय ने कहा…

जी. मेरा आशय शब्द मीमांसा करना ही है. श्रीरामचरितमानस के विशिष्ट शब्द की मीमांसा करना. किसी परवर्ती कवि ने इसी शब्द का कैसा और किस सन्दर्भ में प्रयोग किया है, यह जानना आवश्यक हो सकता है.

सद्य: आलोकित!

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