मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला नवीं चौपाई

तुम्हरो  मंत्र  बिभीषन   माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

भाग - 11
नवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला नवीं चौपाई

श्री हनुमान चालीसा में आता है कि हनुमान जी के सहयोग से वानरराज सुग्रीव किष्किंधा के राजा बने तो उनका मंत्र पाकर विभीषण लंकेश बन गए। जब हनुमान जी श्री जानकी जी का पता लगाने लंका गए तो वहां उन्होंने नगर में घूम घूम कर सब कुछ अपने पर्यवेक्षण में ले लिया। इसी क्रम में वह विभीषण से मिल आए। लंका में विभीषण इस तरह थे जैसे दांतों के मध्य जिह्वा। हनुमान जी ने उनसे चर्चा की। इस चर्चा में ही यह सूत्र था कि क्या करना है।

विभीषण उन चरित्रों में हैं, जिन्हें अमरत्व प्राप्त है। हनुमान जी ने एक कुशल रणनीतिकार के रूप में विभीषण को समझाकर अपने पक्ष में कर लेने में सफलता पाई थी। विभीषण के श्रीराम के पक्ष में आ जाने से बहुत सी कठिनाइयां दूर हो गई थीं। "इसकी नाभि में बाण मारिए प्रभु" बताने वाले विभीषण न होते तो लंका के बहुत से भेद न खुलते और युद्ध लम्बा खिंच जाता।

हनुमान जी के इस महान कार्य को तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में सम्मिलित किया है। उन्हें एक सफल मंत्रणाकार बताया है जिनकी सलाह से सुग्रीव राजा बने और विभीषण को लंका का अधिपति बनाया गया। इससे हनुमान जी के तीक्ष्ण बुद्धि, दूरदृष्टा स्वभाव और कौशल का पता चलता है।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला नवीं चौपाई

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी के बचपन के एक प्रसंग को अभिव्यक्त किया गया है। इसमें कहा गया है कि हनुमान जी ने बचपन में पृथ्वी से एक युग अर्थात 12 सहस्र योजन दूर स्थित सूर्य को मीठा फल समझकर निगल लिया था। हनुमान जी के बाल्यावस्था की यह कथा अतिप्रचलित है। इसी के बाद इंद्र ने राहु के कहने पर मारुति पर वज्र से प्रहार किया, जिससे उनकी ठुड्ढी, हनु टूट गई। वह मूर्छित हो गए। पवनदेव को जब यह पता चला तो उन्होंने अपना प्रवाह रोक दिया। संपूर्ण सृष्टि में त्राहि त्राहि मच गई। तब सभी देवताओं के प्रयत्न से हनुमान जी को जाग्रत किया गया और उन्हें विशिष्ट शक्तियों से युक्त कर दिया गया। उनका नाम भी हनुमान तभी पड़ा।

इस चौपाई में तुलसीदास जी ने पृथ्वी से सूर्य की जो दूरी बताई है, वह विज्ञान की गणना के बहुत निकट है। तुलसीदास जी ने सूर्य को निगल लेने का वर्णन अन्यत्र भी किया है - बाल समय रवि भक्ष लियो तब तीनहू लोक भयो अंधियारो!

सूर्य को निगल लेने वाले प्रसंग पर अव्यावहारिकता का प्रसंग उठाया जाता है किंतु यह सहज हो जाता है जब यह जान लिया जाए कि सूर्य और हनुमान दोनों ही रुद्र के अंश हैं। वाल्मीकि रामायण में जांबवान द्वारा कहलाया गया है कि हनुमान जी ने बचपन में सूर्य को निगलने के लिए चार सौ योजन की एक छलांग लगा दी थी। यह समुद्र लांघने के लिए उनके बल का स्मरण था।

तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के बाल्यकाल का जो प्रसंग उठाया है वह बहुत गूढ़ है। किंचित लाक्षणिक भी। बचपन में ही खेल खेल में मारुति ने जो कर दिखाया, उसने उन्हें और भी बलवान तथा समृद्ध बनाया। श्री हनुमान चालीसा में उसका सुघड़ और काव्यात्मक उल्लेख है।

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सोमवार, 30 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : आठवीं चौपाई

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

भाग - 10
आठवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला
श्री हनुमान चालीसा शृंखला


श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में सूर्य पुत्र यम, धन-धान्य, समृद्धि के अधिपति कुबेर और दिग्पालों की बात है जो हनुमान जी के बारे में वर्णन करते रहते हैं। तुलसीदासजी भी हनुमान जी का यश गाते हैं किंतु साथ ही यह जोड़ते हैं कि जब सनक आदि मुनि, देवर्षि नारद, देवि सरस्वती, शेषनाग, यमराज, कुबेर, दिगपाल आदि हनुमान जी की बड़ाई करते रहते हैं तो कवि और विद्वान लोग इसे कहां तक कह सकेंगे अर्थात वह उनके समक्ष असमर्थ ही समझे जाएंगे।

यहां जिन महानुभावों का उल्लेख है, वह सूचक है कि हनुमान जी के यश और कार्यवृत्त से कोई अछूता नहीं है। ऐसा कोई नहीं है जो उन्हें और उनके प्रताप को न जानता हो। जानने भर से, परिचय मात्र से बहुत सी अड़चन दूर हो जाती हैं।

श्री हनुमान चालीसा अद्भुत है। यह मात्र कविता नहीं है, वंदना नहीं है; यह मनन योग्य कृति है। प्रस्तुत चौपाई की दूसरी अर्द्धाली में हनुमान जी के बल, बुद्धि और कौशल की चर्चा करते हुए महाराजा सुग्रीव पर किए गए उपकार की चर्चा है।

वानरराज सुग्रीव, सूर्य के पुत्र हैं। उनकी ग्रीवा (कंठ) बहुत सुंदर थी इसलिए वह सुग्रीव हैं। किष्किंधा में जब बालि ने सुग्रीव को निष्कासित कर दिया तो उनके साथ हनुमान और जांबवंत भी ऋष्यमूक पर्वत पर चले गए। वह सुरक्षित स्थान था क्योंकि बालि को मातंग ऋषि ने शाप दिया था कि वह ऋष्यमूक पर्वत पर नहीं जा सकेगा। मातंग ऋषि के आश्रम में ही सुग्रीव की भेंट भगवान श्रीराम से हुई। इस भेंट को हनुमान जी ने संयोजित किया था।

यहां यह उल्लिखित करना आवश्यक है कि ऐसा नहीं था कि बालि का शासन बुरा था। वह सुग्रीव के कृत्य से आहत था, इसलिए उसने सुग्रीव को राज्य से निष्कासित कर दिया और रूमा, सुग्रीव की पत्नी को अपने अधिकार में रख लिया था। यह अनाचार का एक उदाहरण है।

हनुमान जी की मंत्रणा ने दो ऐसे लोगों को मिलाया, संयोगवश जिनकी पत्नी का हरण हो गया था। और दोनों वनवास कर रहे थे।हनुमान जी का यह उपकार सुग्रीव पर रहा और यह एक निर्णायक विषय था। बालि जैसे महाबली को मारना संभव नहीं था, श्रीराम ने यह किया और सुग्रीव को पुनः किष्किंधा का शासक बनाया। सुग्रीव ने बालि के पुत्र अंगद को युवराज बनाया।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : आठवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : आठवीं चौपाई

हनुमान चालीसा की इस चौपाई में विशेष रूप से हनुमान जी के यश और वृत्त की चर्चा की गई है। श्री हनुमान जी हरेक भांति प्रशंसनीय हैं।

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रविवार, 29 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : सातवीं चौपाई

सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।

भाग - 9
सातवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला
श्री हनुमान चालीसा शृंखला

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की वंदना करते हुए तुलसीदास जी ने कहा है कि हनुमान जी के यश का गान हजारों मुख करते हैं। अर्थात असंख्य लोग हनुमान जी के प्रति श्रद्धा और पूज्य भाव रखते हैं। यहां "यश गावैं" पद अति विशिष्ट है। यशो गान तब होगा, जब आदर और श्रद्धा की मात्रा अधिक होगी। हजारों लोग हनुमान जी की प्रशंसा करते रहते हैं, यह कहकर श्रीपति भगवान राम, हनुमानजी को अपने गले से लगा लेते हैं। भगवान राम को याद करते हुए उन्हें श्रीपति कहा गया है। श्री का सामान्य अर्थ लक्ष्मी है लेकिन लाक्षणिक अर्थ में धन, धान्य, समृद्धि, शोभा और ऐश्वर्य! भगवान श्रीराम इस सबके भी स्वामी हैं।

श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी की लोकप्रियता का बखान है और इस लोकप्रियता का एक लाभ है, भगवान श्रीराम का सानिध्य!

इस चौपाई में हनुमान जी का यशोगान करने के क्रम में उन सभी मुनियों, देवताओं को याद किया गया है जो वाणी के हस्ताक्षर हैं अर्थात जिनकी वाणी में तेज और अर्थ है तथा जिनको त्रिकाल का ज्ञान है। इसमें ब्रह्मा के पुत्र सनकादि का उल्लेख है। परमपिता ब्रह्मा के चार पुत्र हैं - सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार। यह सब मुनि मंत्रद्रष्टा हैं। इन मुनियों के साथ साथ देवर्षि नारद, साक्षात् सरस्वती और अहीसा शेषनाग जी, जो अहि अर्थात सर्पों के प्रधान हैं, भी हनुमान जी के गुणों की प्रशंसा करते हैं।

तुलसीदास जी ने ब्रह्मा जी के चार पुत्र, सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार का उल्लेख जिस प्रकार एक शब्द में कर दिया है, वह उनकी सामासिक पद प्रयोग की क्षमता का परिचायक है। अतः यह कहा जा सकता है कि श्री हनुमान चालीसा हनुमान जी का कवित्वपूर्ण आख्यान है।

इसके बाद वाली चौपाई में यशोगान का यह क्रम पूरा होता है जहां कहा गया है कि यह सब लोग भी हनुमान जी के गुणों का संपूर्ण व्याख्यान नहीं कर पाते हैं।

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शनिवार, 28 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला :छठी चौपाई

लाय संजीवन लखन जियाए।
श्री रघुवीर हरषि उर लाए।।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला :छठी चौपाई

छठी चौपाई
भाग - 8
श्री हनुमान चालीसा शृंखला

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी के सर्वाधिक बड़े कामों में से एक संजीवनी बूटी लाने को रेखांकित किया गया है। मेघनाद से युद्ध के क्रम में शेषावतार लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है। हनुमान जी ने लंका प्रवेश के क्रम में ही "मंदिर मंदिर प्रतिकर सोधा" करके नगर की संरचना का ज्ञान कर लिया था। वह विभीषण के कहने पर सुषेण वैद्य को ले आते हैं। उनके निर्देश पर संजीवनी लाना होता है।

संजीवनी कहां है? इस विषय पर विद्वान एकमत हैं कि संजीवनी बूटी द्रोणगिरी पर्वत पर थी। यह वर्तमान उत्तराखंड में है। अर्धरात्रि के समय हनुमान जी इस वनस्पति को पहचान नहीं पा रहे थे। तब उन्होंने द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उखाड़ लिया था और इस हिस्से को लंका ले गए थे। इस विशेष उपक्रम से लक्ष्मण जी की मूर्छा भंग हुई और एक बड़ा संकट टल गया।

भगवान श्रीराम लक्ष्मण के शक्ति बाण लगने से बहुत निराश और व्यथित हो गए थे। तुलसीदास जी ने उनके विलाप का मार्मिक वर्णन कवितावली में किया है। लक्ष्मण के मूर्छित होने पर वह स्वयं के पुरुषार्थ के थकने की व्यथा बताते हैं - मेरो सब पुरुषारथ थाको! इसलिए जब हनुमान जी के प्रयास से लक्ष्मण उठ बैठे तो रघुवीर भगवान श्रीराम ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया।

इस चौपाई में तुलसीदास जी ने हनुमान और श्रीराम के एकत्व को निरूपित किया है। सीता जी का पता लगाना, लंका दहन के बाद संजीवनी बूटी लाना क्रमशः अत्यधिक महत्व के काम हैं। यह सब हनुमान चालीसा में अभिव्यक्त हुआ है। इस अभिव्यक्ति का उद्देश्य हनुमान जी की महानता प्रदर्शित करना है।

हनुमान जी के योगदान से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम ने उनकी बहुत प्रशंसा की। इस चौपाई में आता है कि हनुमान जी की भूरि भूरि प्रशंसा भगवान श्रीराम ने की और उन्हें भरत समान भाई माना। अव्वल तो भगवत कृपा मिलना कठिन है, यदि मिल जाए तो भगवान का सानिध्य मिलना दुर्लभ। हनुमान जी की विशिष्टता यह है कि उन्हें भगवान श्रीराम ने भरत समान भाई माना।

भरत समान ही क्यों? तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में भगवान श्रीराम की भरत के प्रति भावना का कुछ परिचय दिया है। जब लक्ष्मण उद्धत होते हैं कि भरत सैन्य बल समेत वन क्षेत्र में भी आ गए हैं तो श्रीराम उन्हें समझाते हैं -
भरतहि होइ न राजमद, बिधि हरि हर पद पाई!
(भरत को कभी राज सत्ता का अहंकार नहीं हो सकता, चाहे उन्हें त्रिदेवों का पद भी क्यों न मिल जाए।) इस आलोक में देखें तो हनुमान जी को भरत समान भाई कहना बहुत बड़ा सम्मान है। हनुमान जी को मिलने वाला यह सम्मान शैव और वैष्णव मतानुयायी लोगों के मध्य आपसी सौहार्द और प्रेम की भी सूचना देता है।

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शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पांचवीं चौपाई

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र  के  काज  संवारे।।

pilua mahaveer


पांचवीं चौपाई।
भाग - सात।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के दो रूप, सूक्ष्म और विकट की चर्चा है। सिद्धियों के प्रभाव से हनुमान जी अपना रूप मनचाहा धर सकते हैं। जब वह सीताजी का पता लगाने के क्रम में लंका में पहुंचे तो सुरक्षा कारणों से वह सीता जी के पास सूक्ष्म रूप में पहुंचे। इससे पहले वह मसक समान रूप धारण कर चुके थे, जब लंकिनी से साक्षात् हुआ था। वहीं उन्होंने सुरसा के निकट अपना रूप विस्तार किया था।

सूक्ष्म रूप देखकर श्री जानकी जी को एक बार संदेह भी हुआ तब हनुमान जी ने अपना "भूधराकार शरीर" दिखाया। फिर तो उन्हें आशीर्वाद मिला, आठ सिद्धि और नौ निधि प्रदान करने वाले स्वामी का। हनुमान जी का एक विकट रूप लंका में दिखा जब रावण ने "अंग भंग करि पठियऊ बंदर" का आदेश दिया तो हनुमान जी ने अपना रूप विस्तार किया। उनकी पूंछ में लगाई गई आग ने समूची लंका को जला दिया। इस एक कदम से लंका के निशाचरों में जो भय व्याप्त हुआ, वह कभी गया ही नहीं। स्वयं रावण भी मानता था कि वानरों में हनुमान बलशाली हैं।आशय यह कि हनुमान जी आवश्यकता अनुरूप विविध रूप धारण कर कार्यों में सफल होते हैं।



इस चौपाई में उनके भीम रूप धारण कर असुरों का संहार करने की चर्चा है। भीम रूप अर्थात विशाल स्वरूप में। भीम का अर्थ विशाल, बड़ा है। हनुमान जी लंका में प्रवेश के साथ ही असुरों का मर्दन आरम्भ कर देते हैं। "मुठिका एक महाकपि हनी।" से लेकर अक्षय कुमार के संहार तक वह लंका में भय का पर्याय बन चुके हैं। युद्ध में तो वह अपने मुष्टिका प्रहार से रावण तक को मूर्छित कर देते हैं।

हनुमान जी ने विविध स्वरूप में आकर कौतुक नहीं किया और न ही धाक जमाने के लिए चमत्कार। उनका एक ही उद्देश्य है, भगवान श्रीरामचन्द्र जी का कार्य संवारना।और भगवान श्रीराम का काम क्या है? असुरों का संहार कर धर्म की प्रतिष्ठा करना। धर्म की प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक है कि आसुरी शक्तियों पर नियंत्रण हो, उनका उन्मूलन हो। हनुमान जी महाराज इस कार्य में भगवान श्रीराम के सबसे बड़े सहायक हैं। इस चौपाई में हनुमान जी के इस योगदान को रेखांकित कर भगवान श्रीराम की वंदना भी कर ली गई है। वस्तुतः भगवान श्रीराम का अवतार ही धर्म की संस्थापना के निमित्त हुआ था। हनुमान जी इस महत् कार्य के सबसे बड़े सहयोगी हैं।

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गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : चौथी चौपाई

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।


चौथी चौपाई ।
भाग - छह।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

पंचनदा में हनुमान जी


श्रीहनुमान चालीसा की चौथी चौपाई में हनुमान जी को विद्यावान, गुणी और अत्यन्त चतुर प्रकृति का बताया गया है। हनुमान जी विद्यावान हैं। वह विद्या के जानकार तो हैं ही, नियामक भी हैं। भारतीय सनातन परंपरा में विद्या और अविद्या बहुत गूढ़ विषय हैं। विद्या का मूल अर्थ है, सत्य का ज्ञान, परमार्थ तत्व का ज्ञान या आत्मज्ञान। इसके दो रूप हैं - परा और अपरा विद्या।

हनुमान जी गुणी हैं और अत्यन्त चतुर। विद्या और गुण की उपस्थिति से यह चातुर्य आ ही जाता है। ऐसे अनेक अवसर रामायण में आए हैं जब हनुमान जी ने अपनी चतुराई से सफलता प्राप्त की है।

हनुमान जी के लिए एक अर्द्धाली में यह कहकर मान दिया गया है कि वह भगवान श्रीराम का काम करने के लिए आतुर हैं। आतुर में त्वरा है, शीघ्रता है और इससे काम शीघ्र ही संपन्न हो जाता है। इस प्रकार हनुमान जी की उपस्थिति से ही काम पूरा होने की संभावना शत प्रतिशत हो जाती है।

विद्यावान गुणी और अत्यन्त चतुर हनुमान जी को रसज्ञ, रसिया कहा गया है जो भगवान श्रीराम के चरित्र के गुणगान से आनंदित होता है। वह प्रभु श्रीराम के चरित्र का बखान सुनने के सदा आकांक्षी हैं। यह उनकी सर्वाधिक अभिरुचि का क्षेत्र है। रसिया वह है जो तत्त्व ज्ञान रखता है और उसमें आनंद का अनुभव करता है। इस जीवन का सबसे मूल्यवान तत्त्व रामकथा में है।

हनुमान जी राम कथा सुनने के रसिया हैं और उनके मन मस्तिष्क में हमेशा श्रीराम, उनके अनुज शेषावतार लक्ष्मण और साक्षात् जगदम्बा सीता हैं। यहां यह बताने का प्रयास है कि हनुमान जी भगवान श्रीराम के अनन्य उपासक हैं। यह उपासना श्रीराम, लक्ष्मण और श्री जानकी जी के सानिध्य में है।

तुलसीदास जी ने अपने श्रेष्ठ कवित्व का परिचय यहां दिया है। वह हनुमान जी की अनन्य भक्ति का परिचय देने के लिए ऐसे पद प्रयोग करते हैं।

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बुधवार, 25 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : तीसरी चौपाई

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे।
कांधे   मूंज   जनेऊ   साजे।।
संकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन।।

तीसरी चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला
भाग - 5


श्री हनुमान चालीसा की तीसरी चौपाई में हनुमान जी के स्वरूप का वर्णन है। इसमें कहा गया है कि हनुमान जी के हाथ में वज्र रहता है। यह वज्र गदा रूप में है। जो विशिष्टता वज्र की है अर्थात जो शत्रुओं का नाश करने वाला कठोर धातु से निर्मित है, वह सदैव हनुमान जी के हाथ में रहता है। इसका आशय है कि वह सदैव युद्ध के लिए सन्नद्ध रहते हैं। उनके दूसरे हाथ में ध्वजा है। यह ध्वजा विजय का चिह्न है। यह परिचायक है कि हनुमान जी विजय का प्रतीक हैं। वह जहां हैं, वहीं विजय है।

हनुमान जी यज्ञोपवीत धारण करने वाले द्विज हैं। उन्होंने मूंज का जनेऊ अपने कंधे पर रखा हुआ है। यह जनेऊ उनके पवित्र स्वरूप का परिचायक है। गदा, ध्वज और जनेऊ! यह उनके बल, पराक्रम और पवित्रता के सूचक हैं।
ध्वजा उनकी विजयी उपस्थिति का सूचक है, वज्र शक्ति का और जनेऊ धर्म का।

श्री हनुमान चालीसा में इस चौपाई के दूसरी अर्द्धाली में हनुमान जी को भगवान शिव का स्वरूप (सुवन) कहा गया है। हनुमान जी के पिता महाबलशाली कपि केसरी हैं। इसलिए उन्हें केसरीनंदन कहा गया है। केसरी देवताओं के गुरु बृहस्पति के पुत्र थे। उनके छह पुत्र हुए - हनुमान, मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान।
इनमें हनुमान जी सबसे बड़े थे जिनको महान तेजस्वी, महाप्रतापी कहकर समस्त संसार के लिए वंदनीय बताया गया है।

हनुमान जी एकादश रुद्र हैं। यह भगवान शिव का एक स्वरूप है। इस चौपाई के "सुवन" शब्द का अर्थ कोई कोई पुष्प और कोई "स्वयं" भगवान शिव लेता है। लेकिन यह बात समझना चाहिए कि हनुमान जी स्वयं महादेव ही हैं। तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में सभी अध्यायों (काण्ड) के आरंभ में भगवान शिव की स्तुति की है किंतु सुंदरकांड में हनुमान जी की ही वंदना है क्योंकि वह स्वयं ही भगवान शिव हैं।

हनुमान जी के व्यक्तित्व का तेज और प्रताप ऐसा है कि वह समस्त संसार में पूजनीय हैं, वंदनीय हैं।

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सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : चौदहवीं चौपाई

सब  पर   राम  तपस्वी  राजा। तिनके काज सकल तुम साजा।। और  मनोरथ  जो  कोइ लावै। सोई अमित जीवन फल पावै॥ भाग - 16 चौदहवीं चौपाई श्री हनुमान ...

आपने जब देखा, तब की संख्या.