मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला नवीं चौपाई

तुम्हरो  मंत्र  बिभीषन   माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

भाग - 11
नवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला नवीं चौपाई

श्री हनुमान चालीसा में आता है कि हनुमान जी के सहयोग से वानरराज सुग्रीव किष्किंधा के राजा बने तो उनका मंत्र पाकर विभीषण लंकेश बन गए। जब हनुमान जी श्री जानकी जी का पता लगाने लंका गए तो वहां उन्होंने नगर में घूम घूम कर सब कुछ अपने पर्यवेक्षण में ले लिया। इसी क्रम में वह विभीषण से मिल आए। लंका में विभीषण इस तरह थे जैसे दांतों के मध्य जिह्वा। हनुमान जी ने उनसे चर्चा की। इस चर्चा में ही यह सूत्र था कि क्या करना है।

विभीषण उन चरित्रों में हैं, जिन्हें अमरत्व प्राप्त है। हनुमान जी ने एक कुशल रणनीतिकार के रूप में विभीषण को समझाकर अपने पक्ष में कर लेने में सफलता पाई थी। विभीषण के श्रीराम के पक्ष में आ जाने से बहुत सी कठिनाइयां दूर हो गई थीं। "इसकी नाभि में बाण मारिए प्रभु" बताने वाले विभीषण न होते तो लंका के बहुत से भेद न खुलते और युद्ध लम्बा खिंच जाता।

हनुमान जी के इस महान कार्य को तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में सम्मिलित किया है। उन्हें एक सफल मंत्रणाकार बताया है जिनकी सलाह से सुग्रीव राजा बने और विभीषण को लंका का अधिपति बनाया गया। इससे हनुमान जी के तीक्ष्ण बुद्धि, दूरदृष्टा स्वभाव और कौशल का पता चलता है।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला नवीं चौपाई

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी के बचपन के एक प्रसंग को अभिव्यक्त किया गया है। इसमें कहा गया है कि हनुमान जी ने बचपन में पृथ्वी से एक युग अर्थात 12 सहस्र योजन दूर स्थित सूर्य को मीठा फल समझकर निगल लिया था। हनुमान जी के बाल्यावस्था की यह कथा अतिप्रचलित है। इसी के बाद इंद्र ने राहु के कहने पर मारुति पर वज्र से प्रहार किया, जिससे उनकी ठुड्ढी, हनु टूट गई। वह मूर्छित हो गए। पवनदेव को जब यह पता चला तो उन्होंने अपना प्रवाह रोक दिया। संपूर्ण सृष्टि में त्राहि त्राहि मच गई। तब सभी देवताओं के प्रयत्न से हनुमान जी को जाग्रत किया गया और उन्हें विशिष्ट शक्तियों से युक्त कर दिया गया। उनका नाम भी हनुमान तभी पड़ा।

इस चौपाई में तुलसीदास जी ने पृथ्वी से सूर्य की जो दूरी बताई है, वह विज्ञान की गणना के बहुत निकट है। तुलसीदास जी ने सूर्य को निगल लेने का वर्णन अन्यत्र भी किया है - बाल समय रवि भक्ष लियो तब तीनहू लोक भयो अंधियारो!

सूर्य को निगल लेने वाले प्रसंग पर अव्यावहारिकता का प्रसंग उठाया जाता है किंतु यह सहज हो जाता है जब यह जान लिया जाए कि सूर्य और हनुमान दोनों ही रुद्र के अंश हैं। वाल्मीकि रामायण में जांबवान द्वारा कहलाया गया है कि हनुमान जी ने बचपन में सूर्य को निगलने के लिए चार सौ योजन की एक छलांग लगा दी थी। यह समुद्र लांघने के लिए उनके बल का स्मरण था।

तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के बाल्यकाल का जो प्रसंग उठाया है वह बहुत गूढ़ है। किंचित लाक्षणिक भी। बचपन में ही खेल खेल में मारुति ने जो कर दिखाया, उसने उन्हें और भी बलवान तथा समृद्ध बनाया। श्री हनुमान चालीसा में उसका सुघड़ और काव्यात्मक उल्लेख है।

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सोमवार, 30 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : आठवीं चौपाई

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

भाग - 10
आठवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला
श्री हनुमान चालीसा शृंखला


श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में सूर्य पुत्र यम, धन-धान्य, समृद्धि के अधिपति कुबेर और दिग्पालों की बात है जो हनुमान जी के बारे में वर्णन करते रहते हैं। तुलसीदासजी भी हनुमान जी का यश गाते हैं किंतु साथ ही यह जोड़ते हैं कि जब सनक आदि मुनि, देवर्षि नारद, देवि सरस्वती, शेषनाग, यमराज, कुबेर, दिगपाल आदि हनुमान जी की बड़ाई करते रहते हैं तो कवि और विद्वान लोग इसे कहां तक कह सकेंगे अर्थात वह उनके समक्ष असमर्थ ही समझे जाएंगे।

यहां जिन महानुभावों का उल्लेख है, वह सूचक है कि हनुमान जी के यश और कार्यवृत्त से कोई अछूता नहीं है। ऐसा कोई नहीं है जो उन्हें और उनके प्रताप को न जानता हो। जानने भर से, परिचय मात्र से बहुत सी अड़चन दूर हो जाती हैं।

श्री हनुमान चालीसा अद्भुत है। यह मात्र कविता नहीं है, वंदना नहीं है; यह मनन योग्य कृति है। प्रस्तुत चौपाई की दूसरी अर्द्धाली में हनुमान जी के बल, बुद्धि और कौशल की चर्चा करते हुए महाराजा सुग्रीव पर किए गए उपकार की चर्चा है।

वानरराज सुग्रीव, सूर्य के पुत्र हैं। उनकी ग्रीवा (कंठ) बहुत सुंदर थी इसलिए वह सुग्रीव हैं। किष्किंधा में जब बालि ने सुग्रीव को निष्कासित कर दिया तो उनके साथ हनुमान और जांबवंत भी ऋष्यमूक पर्वत पर चले गए। वह सुरक्षित स्थान था क्योंकि बालि को मातंग ऋषि ने शाप दिया था कि वह ऋष्यमूक पर्वत पर नहीं जा सकेगा। मातंग ऋषि के आश्रम में ही सुग्रीव की भेंट भगवान श्रीराम से हुई। इस भेंट को हनुमान जी ने संयोजित किया था।

यहां यह उल्लिखित करना आवश्यक है कि ऐसा नहीं था कि बालि का शासन बुरा था। वह सुग्रीव के कृत्य से आहत था, इसलिए उसने सुग्रीव को राज्य से निष्कासित कर दिया और रूमा, सुग्रीव की पत्नी को अपने अधिकार में रख लिया था। यह अनाचार का एक उदाहरण है।

हनुमान जी की मंत्रणा ने दो ऐसे लोगों को मिलाया, संयोगवश जिनकी पत्नी का हरण हो गया था। और दोनों वनवास कर रहे थे।हनुमान जी का यह उपकार सुग्रीव पर रहा और यह एक निर्णायक विषय था। बालि जैसे महाबली को मारना संभव नहीं था, श्रीराम ने यह किया और सुग्रीव को पुनः किष्किंधा का शासक बनाया। सुग्रीव ने बालि के पुत्र अंगद को युवराज बनाया।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : आठवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला : आठवीं चौपाई

हनुमान चालीसा की इस चौपाई में विशेष रूप से हनुमान जी के यश और वृत्त की चर्चा की गई है। श्री हनुमान जी हरेक भांति प्रशंसनीय हैं।

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रविवार, 29 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : सातवीं चौपाई

सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।

भाग - 9
सातवीं चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला
श्री हनुमान चालीसा शृंखला

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की वंदना करते हुए तुलसीदास जी ने कहा है कि हनुमान जी के यश का गान हजारों मुख करते हैं। अर्थात असंख्य लोग हनुमान जी के प्रति श्रद्धा और पूज्य भाव रखते हैं। यहां "यश गावैं" पद अति विशिष्ट है। यशो गान तब होगा, जब आदर और श्रद्धा की मात्रा अधिक होगी। हजारों लोग हनुमान जी की प्रशंसा करते रहते हैं, यह कहकर श्रीपति भगवान राम, हनुमानजी को अपने गले से लगा लेते हैं। भगवान राम को याद करते हुए उन्हें श्रीपति कहा गया है। श्री का सामान्य अर्थ लक्ष्मी है लेकिन लाक्षणिक अर्थ में धन, धान्य, समृद्धि, शोभा और ऐश्वर्य! भगवान श्रीराम इस सबके भी स्वामी हैं।

श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी की लोकप्रियता का बखान है और इस लोकप्रियता का एक लाभ है, भगवान श्रीराम का सानिध्य!

इस चौपाई में हनुमान जी का यशोगान करने के क्रम में उन सभी मुनियों, देवताओं को याद किया गया है जो वाणी के हस्ताक्षर हैं अर्थात जिनकी वाणी में तेज और अर्थ है तथा जिनको त्रिकाल का ज्ञान है। इसमें ब्रह्मा के पुत्र सनकादि का उल्लेख है। परमपिता ब्रह्मा के चार पुत्र हैं - सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार। यह सब मुनि मंत्रद्रष्टा हैं। इन मुनियों के साथ साथ देवर्षि नारद, साक्षात् सरस्वती और अहीसा शेषनाग जी, जो अहि अर्थात सर्पों के प्रधान हैं, भी हनुमान जी के गुणों की प्रशंसा करते हैं।

तुलसीदास जी ने ब्रह्मा जी के चार पुत्र, सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार का उल्लेख जिस प्रकार एक शब्द में कर दिया है, वह उनकी सामासिक पद प्रयोग की क्षमता का परिचायक है। अतः यह कहा जा सकता है कि श्री हनुमान चालीसा हनुमान जी का कवित्वपूर्ण आख्यान है।

इसके बाद वाली चौपाई में यशोगान का यह क्रम पूरा होता है जहां कहा गया है कि यह सब लोग भी हनुमान जी के गुणों का संपूर्ण व्याख्यान नहीं कर पाते हैं।

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शनिवार, 28 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला :छठी चौपाई

लाय संजीवन लखन जियाए।
श्री रघुवीर हरषि उर लाए।।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला :छठी चौपाई

छठी चौपाई
भाग - 8
श्री हनुमान चालीसा शृंखला

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी के सर्वाधिक बड़े कामों में से एक संजीवनी बूटी लाने को रेखांकित किया गया है। मेघनाद से युद्ध के क्रम में शेषावतार लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है। हनुमान जी ने लंका प्रवेश के क्रम में ही "मंदिर मंदिर प्रतिकर सोधा" करके नगर की संरचना का ज्ञान कर लिया था। वह विभीषण के कहने पर सुषेण वैद्य को ले आते हैं। उनके निर्देश पर संजीवनी लाना होता है।

संजीवनी कहां है? इस विषय पर विद्वान एकमत हैं कि संजीवनी बूटी द्रोणगिरी पर्वत पर थी। यह वर्तमान उत्तराखंड में है। अर्धरात्रि के समय हनुमान जी इस वनस्पति को पहचान नहीं पा रहे थे। तब उन्होंने द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उखाड़ लिया था और इस हिस्से को लंका ले गए थे। इस विशेष उपक्रम से लक्ष्मण जी की मूर्छा भंग हुई और एक बड़ा संकट टल गया।

भगवान श्रीराम लक्ष्मण के शक्ति बाण लगने से बहुत निराश और व्यथित हो गए थे। तुलसीदास जी ने उनके विलाप का मार्मिक वर्णन कवितावली में किया है। लक्ष्मण के मूर्छित होने पर वह स्वयं के पुरुषार्थ के थकने की व्यथा बताते हैं - मेरो सब पुरुषारथ थाको! इसलिए जब हनुमान जी के प्रयास से लक्ष्मण उठ बैठे तो रघुवीर भगवान श्रीराम ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया।

इस चौपाई में तुलसीदास जी ने हनुमान और श्रीराम के एकत्व को निरूपित किया है। सीता जी का पता लगाना, लंका दहन के बाद संजीवनी बूटी लाना क्रमशः अत्यधिक महत्व के काम हैं। यह सब हनुमान चालीसा में अभिव्यक्त हुआ है। इस अभिव्यक्ति का उद्देश्य हनुमान जी की महानता प्रदर्शित करना है।

हनुमान जी के योगदान से प्रसन्न होकर भगवान श्रीराम ने उनकी बहुत प्रशंसा की। इस चौपाई में आता है कि हनुमान जी की भूरि भूरि प्रशंसा भगवान श्रीराम ने की और उन्हें भरत समान भाई माना। अव्वल तो भगवत कृपा मिलना कठिन है, यदि मिल जाए तो भगवान का सानिध्य मिलना दुर्लभ। हनुमान जी की विशिष्टता यह है कि उन्हें भगवान श्रीराम ने भरत समान भाई माना।

भरत समान ही क्यों? तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में भगवान श्रीराम की भरत के प्रति भावना का कुछ परिचय दिया है। जब लक्ष्मण उद्धत होते हैं कि भरत सैन्य बल समेत वन क्षेत्र में भी आ गए हैं तो श्रीराम उन्हें समझाते हैं -
भरतहि होइ न राजमद, बिधि हरि हर पद पाई!
(भरत को कभी राज सत्ता का अहंकार नहीं हो सकता, चाहे उन्हें त्रिदेवों का पद भी क्यों न मिल जाए।) इस आलोक में देखें तो हनुमान जी को भरत समान भाई कहना बहुत बड़ा सम्मान है। हनुमान जी को मिलने वाला यह सम्मान शैव और वैष्णव मतानुयायी लोगों के मध्य आपसी सौहार्द और प्रेम की भी सूचना देता है।

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शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पांचवीं चौपाई

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र  के  काज  संवारे।।

pilua mahaveer


पांचवीं चौपाई।
भाग - सात।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के दो रूप, सूक्ष्म और विकट की चर्चा है। सिद्धियों के प्रभाव से हनुमान जी अपना रूप मनचाहा धर सकते हैं। जब वह सीताजी का पता लगाने के क्रम में लंका में पहुंचे तो सुरक्षा कारणों से वह सीता जी के पास सूक्ष्म रूप में पहुंचे। इससे पहले वह मसक समान रूप धारण कर चुके थे, जब लंकिनी से साक्षात् हुआ था। वहीं उन्होंने सुरसा के निकट अपना रूप विस्तार किया था।

सूक्ष्म रूप देखकर श्री जानकी जी को एक बार संदेह भी हुआ तब हनुमान जी ने अपना "भूधराकार शरीर" दिखाया। फिर तो उन्हें आशीर्वाद मिला, आठ सिद्धि और नौ निधि प्रदान करने वाले स्वामी का। हनुमान जी का एक विकट रूप लंका में दिखा जब रावण ने "अंग भंग करि पठियऊ बंदर" का आदेश दिया तो हनुमान जी ने अपना रूप विस्तार किया। उनकी पूंछ में लगाई गई आग ने समूची लंका को जला दिया। इस एक कदम से लंका के निशाचरों में जो भय व्याप्त हुआ, वह कभी गया ही नहीं। स्वयं रावण भी मानता था कि वानरों में हनुमान बलशाली हैं।आशय यह कि हनुमान जी आवश्यकता अनुरूप विविध रूप धारण कर कार्यों में सफल होते हैं।



इस चौपाई में उनके भीम रूप धारण कर असुरों का संहार करने की चर्चा है। भीम रूप अर्थात विशाल स्वरूप में। भीम का अर्थ विशाल, बड़ा है। हनुमान जी लंका में प्रवेश के साथ ही असुरों का मर्दन आरम्भ कर देते हैं। "मुठिका एक महाकपि हनी।" से लेकर अक्षय कुमार के संहार तक वह लंका में भय का पर्याय बन चुके हैं। युद्ध में तो वह अपने मुष्टिका प्रहार से रावण तक को मूर्छित कर देते हैं।

हनुमान जी ने विविध स्वरूप में आकर कौतुक नहीं किया और न ही धाक जमाने के लिए चमत्कार। उनका एक ही उद्देश्य है, भगवान श्रीरामचन्द्र जी का कार्य संवारना।और भगवान श्रीराम का काम क्या है? असुरों का संहार कर धर्म की प्रतिष्ठा करना। धर्म की प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक है कि आसुरी शक्तियों पर नियंत्रण हो, उनका उन्मूलन हो। हनुमान जी महाराज इस कार्य में भगवान श्रीराम के सबसे बड़े सहायक हैं। इस चौपाई में हनुमान जी के इस योगदान को रेखांकित कर भगवान श्रीराम की वंदना भी कर ली गई है। वस्तुतः भगवान श्रीराम का अवतार ही धर्म की संस्थापना के निमित्त हुआ था। हनुमान जी इस महत् कार्य के सबसे बड़े सहयोगी हैं।

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गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : चौथी चौपाई

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।


चौथी चौपाई ।
भाग - छह।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

पंचनदा में हनुमान जी


श्रीहनुमान चालीसा की चौथी चौपाई में हनुमान जी को विद्यावान, गुणी और अत्यन्त चतुर प्रकृति का बताया गया है। हनुमान जी विद्यावान हैं। वह विद्या के जानकार तो हैं ही, नियामक भी हैं। भारतीय सनातन परंपरा में विद्या और अविद्या बहुत गूढ़ विषय हैं। विद्या का मूल अर्थ है, सत्य का ज्ञान, परमार्थ तत्व का ज्ञान या आत्मज्ञान। इसके दो रूप हैं - परा और अपरा विद्या।

हनुमान जी गुणी हैं और अत्यन्त चतुर। विद्या और गुण की उपस्थिति से यह चातुर्य आ ही जाता है। ऐसे अनेक अवसर रामायण में आए हैं जब हनुमान जी ने अपनी चतुराई से सफलता प्राप्त की है।

हनुमान जी के लिए एक अर्द्धाली में यह कहकर मान दिया गया है कि वह भगवान श्रीराम का काम करने के लिए आतुर हैं। आतुर में त्वरा है, शीघ्रता है और इससे काम शीघ्र ही संपन्न हो जाता है। इस प्रकार हनुमान जी की उपस्थिति से ही काम पूरा होने की संभावना शत प्रतिशत हो जाती है।

विद्यावान गुणी और अत्यन्त चतुर हनुमान जी को रसज्ञ, रसिया कहा गया है जो भगवान श्रीराम के चरित्र के गुणगान से आनंदित होता है। वह प्रभु श्रीराम के चरित्र का बखान सुनने के सदा आकांक्षी हैं। यह उनकी सर्वाधिक अभिरुचि का क्षेत्र है। रसिया वह है जो तत्त्व ज्ञान रखता है और उसमें आनंद का अनुभव करता है। इस जीवन का सबसे मूल्यवान तत्त्व रामकथा में है।

हनुमान जी राम कथा सुनने के रसिया हैं और उनके मन मस्तिष्क में हमेशा श्रीराम, उनके अनुज शेषावतार लक्ष्मण और साक्षात् जगदम्बा सीता हैं। यहां यह बताने का प्रयास है कि हनुमान जी भगवान श्रीराम के अनन्य उपासक हैं। यह उपासना श्रीराम, लक्ष्मण और श्री जानकी जी के सानिध्य में है।

तुलसीदास जी ने अपने श्रेष्ठ कवित्व का परिचय यहां दिया है। वह हनुमान जी की अनन्य भक्ति का परिचय देने के लिए ऐसे पद प्रयोग करते हैं।

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बुधवार, 25 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : तीसरी चौपाई

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे।
कांधे   मूंज   जनेऊ   साजे।।
संकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन।।

तीसरी चौपाई
श्री हनुमान चालीसा शृंखला
भाग - 5


श्री हनुमान चालीसा की तीसरी चौपाई में हनुमान जी के स्वरूप का वर्णन है। इसमें कहा गया है कि हनुमान जी के हाथ में वज्र रहता है। यह वज्र गदा रूप में है। जो विशिष्टता वज्र की है अर्थात जो शत्रुओं का नाश करने वाला कठोर धातु से निर्मित है, वह सदैव हनुमान जी के हाथ में रहता है। इसका आशय है कि वह सदैव युद्ध के लिए सन्नद्ध रहते हैं। उनके दूसरे हाथ में ध्वजा है। यह ध्वजा विजय का चिह्न है। यह परिचायक है कि हनुमान जी विजय का प्रतीक हैं। वह जहां हैं, वहीं विजय है।

हनुमान जी यज्ञोपवीत धारण करने वाले द्विज हैं। उन्होंने मूंज का जनेऊ अपने कंधे पर रखा हुआ है। यह जनेऊ उनके पवित्र स्वरूप का परिचायक है। गदा, ध्वज और जनेऊ! यह उनके बल, पराक्रम और पवित्रता के सूचक हैं।
ध्वजा उनकी विजयी उपस्थिति का सूचक है, वज्र शक्ति का और जनेऊ धर्म का।

श्री हनुमान चालीसा में इस चौपाई के दूसरी अर्द्धाली में हनुमान जी को भगवान शिव का स्वरूप (सुवन) कहा गया है। हनुमान जी के पिता महाबलशाली कपि केसरी हैं। इसलिए उन्हें केसरीनंदन कहा गया है। केसरी देवताओं के गुरु बृहस्पति के पुत्र थे। उनके छह पुत्र हुए - हनुमान, मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान।
इनमें हनुमान जी सबसे बड़े थे जिनको महान तेजस्वी, महाप्रतापी कहकर समस्त संसार के लिए वंदनीय बताया गया है।

हनुमान जी एकादश रुद्र हैं। यह भगवान शिव का एक स्वरूप है। इस चौपाई के "सुवन" शब्द का अर्थ कोई कोई पुष्प और कोई "स्वयं" भगवान शिव लेता है। लेकिन यह बात समझना चाहिए कि हनुमान जी स्वयं महादेव ही हैं। तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में सभी अध्यायों (काण्ड) के आरंभ में भगवान शिव की स्तुति की है किंतु सुंदरकांड में हनुमान जी की ही वंदना है क्योंकि वह स्वयं ही भगवान शिव हैं।

हनुमान जी के व्यक्तित्व का तेज और प्रताप ऐसा है कि वह समस्त संसार में पूजनीय हैं, वंदनीय हैं।

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मंगलवार, 24 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला: दूसरी चौपाई

महावीर    विक्रम   बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला
श्री हनुमान जी 🙏 


दूसरी चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

श्री हनुमान चालीसा की दूसरी चौपाई में हनुमान जी के तीन और विशेषण आए हैं। यह विशेषण उनके पर्याय ही हो गए हैं। इस दूसरी चौपाई की दूसरी अर्द्धाली में उनके चरित्र की एक विशेषता बताई गई है।
हनुमान जी को महावीर कहा गया है। महा का अर्थ विशाल/बड़ा है। वह बहुत बड़े वीर हैं। वीरता के समस्त लक्षण हनुमान जी में मिलते हैं। धैर्य, शील, शौर्य और शक्ति और विनम्रता; हनुमान जी का चरित्र इस सबसे परिपूर्ण है।
वह विक्रम हैं। विक्रम का अर्थ शक्ति है, विशेष क्रम वाला है। वह स्वयं शक्ति स्वरूप हैं। उनका एक अन्य नाम बजरंगी है। वज्र के समान अंग वाले हनुमान जी को बजरंगी कहा गया है। सबको पता है कि वज्र देवराज इन्द्र का शस्त्र है, जो अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है। इसी वज्र की सहायता से वृत्रासुर का वध हुआ था और यह वज्र महर्षि दधीचि की अस्थियों से बना था।

हनुमान जी को कुमति अर्थात दुर्बुद्धि का निवारण करने वाला तथा सुमति यानि अच्छी बुद्धि, सद्बुद्धि का साथी बताया गया है। तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में एक स्थान पर लिखा है कि जहां सुबुद्धि है, वहां सम्पन्नता है और जहां दुर्बुद्धि है वहां विविध तरीके की विपत्तियां - 

जहां सुमति तहां संपति नाना।
जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना।।

इस प्रकार #हनुमानजी संपति और संपन्नता के स्वामी हैं तथा विपत्ति के निवारण कर्ता।

इस चौपाई की दूसरी अर्द्धाली में हनुमान जी के रूप का वर्णन है। उन्हें कंचन अर्थात सोने के समान रंग वाला बताया गया है। यह पीताभ होता है। कई स्थान पर हनुमान जी की देह लाल रंग की बताई गई है - लाल देह लाली लसे। यहां चालीसा में हनुमान जी को कंचन वर्ण का और सुंदर वेश में रहने वाला कहा गया है। हनुमान जी अपने को सदैव सुव्यवस्थित रखने वाले (फॉर्मल ड्रेस में) हैं, इसलिए उन्हें सुवेश अर्थात सुंदर वेश वाला कहा गया है। उनके कानों में कुण्डल है और उनके बाल घुंघराले हैं। कुण्डल कान में धारण करने वाला एक आभूषण है जिसे कान में छिद्र बनाकर पहनते हैं। यह कान में लटका रहता है।

कुंचित केश हनुमान जी की एक और पहचान है। घुंघराले बाल अतिरिक्त शोभाकारी होते हैं।
चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के रूप वर्णन के साथ साथ उनके सुरुचिपूर्ण स्वभाव का भी परिचय दिया गया है। अपने व्यक्तित्व के अनुरूप वस्त्र और आभूषण धारण करना व्यक्ति के आंतरिक और बाह्य सौंदर्य में वृद्धि करता है।

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भाग - 4


सोमवार, 23 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहली चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहूं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनी पुत्र पवन सुत नामा।।


श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहली चौपाई 

पहली चौपाई।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला।


हनुमान चालीसा में जो चालीस की संख्या है, वह चालीस पंक्तियों के लिए है। हनुमान जी के स्वरूप और माहात्म्य का वर्णन चालीस पंक्तियों में किया गया है। एक पंक्ति में दो चरण हैं। चार चरण से एक छंद बनता है। हनुमान चालीसा में चौपाई छंद है।  #दोहा की तरह #चौपाई भी एक मात्रिक छंद है। लेकिन यह सम छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा होती है। हनुमान जी की वंदना इसी छंद में चलती है।


इस पहली चौपाई में हनुमान जी की जय कहते हुए उन्हें ज्ञान और गुण का समुद्र कहा गया है। अर्थात् हनुमान जी का व्यक्तित्व ज्ञान और गुण का ही रूप है। हनुमान जी ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं।श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में तुलसीदास जी ने "ज्ञानिनाम्अग्रगण्यम" कहकर उनकी वंदना की है। चौपाई के दूसरे चरण में उन्हें कपीश अर्थात कपियों का इष्ट कहा गया है और तीनों लोक को उजागर करने वाला। तीन लोक अर्थात भूलोक, पाताललोक और स्वर्गलोक। यह तीनों लोक, तीन प्रकार के प्राणियों का स्थान माना गया है। भूलोक मानव का, पाताल लोक नाग तथा दैत्यों का और स्वर्गलोक देवताओं का निवास स्थान है। हनुमान जी की महिमा इन सबमें व्याप्त है और वह इन सबको प्रकाशित करने वाले हैं।


#श्रीहनुमानचालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी को रामदूत कहा गया है और अतुलनीय बल का पवित्र स्थान (धाम) बताया गया है। उन्हें उनकी मां अंजनी के साथ जोड़कर संबोधित किया गया है और फिर उनके पिता पवन से भी।


हनुमान जी की उपाधि "रामदूत" है। श्री जानकी जी का पता लगाने के लिए भगवान श्रीराम ने उन्हें अधिकृत किया। जब वह लंका पहुंचे तो सीता जी को उन्होंने अपना परिचय रामदूत कहकर ही दिया। इस विरुद को वह अपने नाम से अभिन्न रूप से जोड़ते हैं। श्री जानकी जी का स्नेह इसके बाद उन्हें प्राप्त हुआ और यह आशीर्वाद भी कि वह अष्ट सिद्धि नौ निधि के प्रदाता भी होंगे।


हनुमान जी अतुलित बल वाले हैं। सुंदरकांड की वंदना से इसकी पुष्टि होती है - अतुलित बल धामं, हेम शैलाभ देहं! यहां भी उन्हें अतुलनीय बल का पवित्र स्थान कहा गया है अर्थात जहां से हम बल प्राप्त भी कर सकते हैं।

हनुमान जी को उनकी माता अंजनी का पुत्र कहा गया है। यह सूचक है कि सनातन संस्कृति में पुत्र की एक पहचान उसकी मां से है। यह मातृ शक्ति के समाज में महत्वपूर्ण स्थान का द्योतक है। बालक की पहचान उसके पिता से ही नहीं है, अपितु उसकी मां से भी है।


हनुमान जी पवनपुत्र हैं। जिस तरह वायु की व्याप्ति सर्वत्र है, हनुमान जी भी उसी गति और प्रभाव से विद्यमान हैं। असंभव कार्य करने, क्षण मात्र में, संकल्प करते ही कर लेने का जो गुण और कौशल हनुमान जी में है, वह अपने पिता के ही प्रभाव से।


यह चौपाई हनुमान जी का परिचय कराती है और इस परिचय में उनका उज्ज्वल चरित्र सन्निहित है।


भाग -3


#हनुमानचालीसा_व्याख्या_सहित

रविवार, 22 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दूसरा दोहा

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।

बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।



श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
दूसरा दोहा।

श्रीहनुमानचालीसा के इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने अपने विनय का परिचय देते हुए स्वयं को बुद्धिहीन माना है और पवन कुमार अर्थात हनुमान जी का स्मरण किया है। वह याचना करते हैं कि हनुमान जी उन्हें बल, बुद्धि और विद्या का दान करें। साथ ही समस्त क्लेश और विकार का हरण कर लें।

वह कहते हैं कि स्वयं को बुद्धिहीन समझकर मैं पवनकुमार हनुमान जी का स्मरण कर रहा हूं। वह मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें तथा मुझमें निहित समस्त क्लेश और विकार का हरण कर लें। यहां स्वयं को बुद्धिहीन कहना विनयशीलता का परिचायक है। वह हनुमान जी से बल बुद्धि और विद्या तीनों की मांग करते हैं। इसमें अंतर्निहित है कि बुद्धि ही बल और विद्या को अर्जित करने वाली है। चूंकि वह बुद्धि में हीन अर्थात नीचे हैं, इसलिए बल और बुद्धि भी कम है। इसके साथ ही इसका दुरुपयोग करने वाली क्लेश वृत्ति अर्थात झगड़ालू स्वभाव तथा दुर्गुण भरने वाले विकार को दूर करना भी आवश्यक है। चूंकि यह सब कहीं अन्तस्थ होते हैं इसलिए इन्हें बलात् ले लेने की प्रार्थना की गई है।

#हनुमानचालीसा के पहले दोहे में श्री गुरु जी की वंदना के बाद रघुवीर श्रीराम को प्रणाम किया था। दूसरे दोहे में हनुमान जी को पवन कुमार कहकर स्मरण करने की बात की गई है। सुमिरों शब्द में बार बार नाम लेने की भावना निहित है।

इस शृंखला में हम बजरंग बली हनुमान जी का स्मरण कर उनसे प्रार्थना कर रहे हैं कि वह हमें बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें।

#Hanumanchalisa
#Hanumanji #दोहा

भाग - 2

शनिवार, 21 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहला दोहा


श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउं रघुबर बिमल जस, जो दायक फल चारि।। 


श्री हनुमान चालीसा शृंखला



परिचय-

#श्रीहनुमानचालीसा में कुल तीन दोहे और बीस चौपाइयां हैं। बीस चौपैयाँ चालीस पंक्तियों में हैं, इसलिए यह चालीसा है। साहित्य में छंदों की संख्या के आधार पर कई ग्रंथों का चलन मिलता है। श्री हनुमान चालीसा की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की। यह एक स्वतंत्र पुस्तक है। यह सबसे छोटा ग्रन्थ है। दोहा और चौपाइयों में निबद्ध यह रचना हनुमान जी के चरित्र का वर्णन करने वाली है। 


व्याख्या- 

इस चालीसा का पहला दोहा श्रीगुरूजी की वंदना करता है। यह दोहा #श्रीरामचरितमानस के अयोध्या काण्ड में भी है। इस दोहे में तुलसीदास जी "परम श्रद्धेय श्री गुरुजी के चरणों में अपना शीश नवाते हैं। वह कहते हैं कि श्री गुरुजी के कमल रूपी चरण के रज अर्थात धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को साफ कर भगवान श्रीराम के निर्मल यश का वर्णन करता हूं। वह श्रीराम जी, जिनके यश का वर्णन भी चारो प्रकार के फल का प्रदाता है। 

चार प्रकार के फल का आशय है पुरुषार्थ चतुष्टय। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को चार फल कहा गया है जिसे प्राप्त करना मानव जीवन का चरम लक्ष्य है। दोहे में "रघुबर" शब्द रघुकुल के परम प्रतापी राजा भगवान श्रीराम के लिए प्रयुक्त हुआ है। उनका चरित्र और व्यवहार ऐसा है जिससे उनके संबंध में की गई चर्चा विमल यश कही गई है। विमल अर्थात् किसी भी प्रकार के दोष दूषण से मुक्त। भगवान श्रीराम का चरित्र ऐसा ही है। 

श्रीगुरू के चरण कमल के धूल से मन रूपी दर्पण को साफ करना!  ऐसा कलाप तुलसीदास जी ने बताया है। धूल से दर्पण साफ करना एक विशेष प्रविधि है। जब तैल आदि के धब्बे दर्पण पर पड़ जाते हैं तो उन्हें हटाने के लिए धूल की सहायता ली जाती है। धूल, सामान्यतया गंदा करती है किंतु दर्पण के मामले में वही स्वच्छ करने वाला उपादान है। श्रीगुरू के चरणों की धूल भी ऐसी उपयोगी है जो मन पर पड़े हुए मैल को हटा देती है। 

तुलसीदास जी महान कवि हैं। #श्रीहनुमानचालीसा के इस प्रथम वंदना वाले दोहे में उन्होंने विशिष्ट वर्णन पद्धति का आश्रय लिया है।  

इस चालीसा का आरंभ दोहा छंद से हुआ है। #दोहा एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण बराबर होते हैं और मात्राएं 13-13 होती हैं। दूसरे और चौथे चरण भी समान मात्रा वाले होते हैं। यहां 11-11 मात्रा होती है। अर्द्धसम कहने का आशय है आधा समान। मात्रिक का अर्थ है, जिसमें मात्राओं की गणना का ध्यान रखा जाता है। 

भाग - १ 


#एकधागा 

सोमवार, 16 दिसंबर 2024

राजकपूर के दस गीत

राज कपूर अभिनीत/निर्देशित फिल्मों के दस गीत। #एक_धागा।

इन गीतों में उनका समूचा आभामंडल है। 


गीत - आवारा हूं 

फिल्म - आवारा

वर्ष - 1951

आवारा हूं


गीत - प्यार हुआ, इकरार हुआ

फिल्म - श्री 420

वर्ष - 1955

प्यार हुआ, इकरार हुआ




गीत - जागो मोहन प्यारे जागो

फिल्म - जागते रहो 

वर्ष - 1956

जागो मोहन प्यारे


गीत - संगम होगा या नहीं 

फिल्म - संगम

वर्ष - 1964

संगम होगा कि नहीं




गीत - सजनवाँ बैरी हो गए हमार

फिल्म - तीसरी कसम 

वर्ष - 1966

सजनवां बैरी हो गए हमार


गीत - मोरे अंग लग जा बालमा

फिल्म - मेरा नाम जोकर 

वर्ष - 1970

मोरे अंग लग जा बालमा




गीत -हम तुम एक कमरे में बंद हों 

फिल्म - बॉबी

वर्ष -1973

हम तुम एक कमरे में बंद हों


गीत - सत्यम शिवम सुंदरम 

फिल्म - सत्यम शिवम सुंदरम 

वर्ष -1978

सत्यम शिवम सुंदरम




गीत - भंवरे ने खिलाया फूल

फिल्म - प्रेमरोग

वर्ष -1982

भंवरे ने खिलाया फूल



गीत - तुझे बुलाएं ये मेरी बाहें 

फिल्म - राम तेरी गंगा मैली

वर्ष -1985 

तुझे बुलाएं ये मेरी बाहें




दस गीत यहां पूरे होते हैं। अन्य महत्वपूर्ण गीतों का लिंक आप साझा कर सकते हैं।







रविवार, 15 दिसंबर 2024

राजकपूर - 100 साल : एक धागा

राजकपूर - 100 साल : एक धागा

मैंने सिनेमा हॉल में #राजकपूर की बनाई पहली फिल्म "राम तेरी गंगा मैली" देखी। प्रयागराज के एक सिनेमा हॉल में लगी थी और मौसी के बेटे आए थे किसी काम से। तब मैं बी ए प्रथम वर्ष का छात्र था। मैंने राजकपूर की ख्याति सुनी थी। मंदाकिनी से परिचित था। फिल्म का गीत सबको प्रिय लगा था क्योंकि रवींद्र जैन को पारंपरिक धुनों पर शब्द सजाना आता था।

राम तेरी गंगा मैली में जब मंदाकिनी स्नान करती हैं तो वहां राजकपूर का उद्देश्य उनकी निर्मलता और पवित्रता का संज्ञान कराना था। इसलिए मंदाकिनी एकवसना होकर स्नान कर रही थीं - तू जिसकी खोज में आया है! बाद में फिल्म में गंगा अपने तरीके से बहती हैं और काशी, कोलकाता सब आता है। मुझे काशी को इस तरह ले आना रुचा नहीं लेकिन राजकपूर यह करते थे।

मंदाकिनी
Mandakini : Ram Teri Ganga Maili












    




हम लोगों ने दत्त चित्त होकर फिल्म देखी। बाहर निकलकर दोनों ही बुखार में थे।
राजकपूर यह बुखार ले आने वाले फिल्मकार थे।

राम तेरी गंगा मैली देखने से पहले मैं बॉबी देख चुका था। डिंपल कपाड़िया उस फिल्म में बहुत आकर्षक लगी थीं। वह उनकी पहली ही फिल्म थी और झूठ बोले कौवा काटे से वह छा गईं। जब बॉबी का गीत बजा, हम तुम एक कमरे में बंद हों तो वह भी खयालों में ले जाने वाले वाला गीत बन गया था।


बॉबी में वर्गीय संघर्ष था और इस वर्ग भेद को नए प्रेमी ही समाप्त कर सकते हैं। राजकपूर इस फिल्म के साथ बहुत सी कहानियां लेकर आए थे। उन्हें सनसनी बनाना आता था। चित्रहार, अखबारों के पन्ने और फिल्मी कलियां से होते हुए यह सब छनकर पहुंचता था।
फिल्म से वर्ग संघर्ष और चेतना तो क्या ही बनी, राज कपूर की छाप अवश्य बनी थी।
#राजकपूर100

इसी क्रम में कभी सत्यम शिवम सुंदरम का उल्लेख हुआ और वहां जीनत अमान थीं। स्त्री विमर्श करती हुई। रूपा। राज कपूर पात्र चुनकर ले आते थे। उनका उद्देश्य समाजवादी, साम्यवादी राज्य की स्थापना था। वह लाल टोपी रूसी धारण करने वाले फिल्मकार थे तो उन्हें समर्थन भी खूब मिलता था।







भारतीय समाज किंचित रूढ़िवादी हो चला समाज था जहां यह सब परम गोपनीय था तो राज कपूर वर्ग और जाति को तोड़ते हुए एक बंधे बंधाए सूत्र पर काम कर रहे थे। सत्यम शिवम सुंदरम ने इस सूत्र को सफल सिद्ध किया।

राजकपूर शो मैन बन चुके थे। उनका परिवार प्रतिष्ठित परिवार था और फिल्मी दुनिया में वही एक घराना था जो हिंदू था, वरना फिल्मों में ऐसे ऐसे लोग भर गए थे जो मुगले आजम, यहूदी और रज़िया सुल्तान बनाने और इतिहास की निर्मिति में जुटे हुए थे। इसका लाभ #राजकपूर को मिला।

राज कपूर को यह सूत्र कहां से मिला था, यह तो शोधकर्ता बताएंगे लेकिन मैंने यह देखा कि जागते रहो से लेकर संगम, मेरा नाम जोकर तक आते आते राज कपूर ने इसे सफलता की गारंटी के कसौटी पर अच्छी तरह कस लिया था। मेरा नाम जोकर में तो वह बहुविध यह ले आए। अलग अलग रूपाओं को लेकर उतरे।

जो राजकपूर श्री 420, आवारा आदि में साम्यवादी दिखाई देते हैं, वह एक झीना परदा था। असल चीज कुछ और ही थी।


तो राजकपूर ने जो दृश्य होना चाहिए था, उसे परिदृश्य बना दिया और परिदृश्य को मुख्य दृश्य।

उन्होंने दुनिया को एक सर्कस मान लिया और स्वयं एक जोकर बन गए।

#Rajkapoor


राज कपूर ने कुछ लोगों को लेकर एक दल बनाया और उन्हें अपने दल में सम्मिलित किया। लता मंगेशकर, मुकेश, शंकर जयकिशन, शैलेन्द्र, रवींद्र जैन आदि को लेकर उनके अपने आग्रह थे। उनकी टीम बनती थी।

जहां तक अभिनय का प्रश्न है, राज कपूर ने जहां स्वयं की छूट ली और खुद को निर्देशित किया वहां वह शुद्ध रूप से चार्ली चैपलिन के अनुकर्ता भर हैं। मेरा नाम जोकर में यह चरित्र सबसे अधिक मुखर होता है। अन्यत्र भी वह उसी मशीनीकृत अंदाज में जाने का प्रयास करते दिखते हैं, हाव भाव करते हुए।

जब वह तीसरी कसम में हीरामन की भूमिका में आए थे तो उनको एक गुणी अभिनेता के रूप में देखा जा सकता है। उनमें अभिनय की अपार संभावना थी लेकिन वह एक टैबू बनकर रह गए।




आने वाले समय में राज कपूर एक महान अभिनेता के रूप में समादृत होते रहेंगे। उन्होंने सिनेमा में सफल होना सिखाया। शो ऑफ करना सिखाया। अपने लोगों के साथ खड़ा रहकर एक मिसाल दी। वह एक ध्रुव थे। जो काम पृथ्वीराज कपूर ने कर दिया था, राजकपूर ने उसे आगे बढ़ाया।

वह सजग फिल्मकार थे। अपनी रुचि और दृष्टि में प्रखर। वह अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए लोगों को मनाना जानते थे। उन्होंने वह सब प्राप्त किया जो वह अपेक्षा करते थे।

आज उनके जीवन का 100वाँ वर्ष पूर्ण हुआ। राज कपूर को देश अपने तरीके से याद कर रहा है।

श्रद्धा के दो फूल मेरी तरफ से भी।


बुधवार, 11 दिसंबर 2024

राम रसायन तुम्हरे पासा।

राम  रसायन  तुम्हरे  पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा।।

भाग - 34
चौपाई - 32

इस चौपाई में हनुमान जी को सदैव भगवान श्रीराम के निकट रहने वाले सेवक के रूप में बताया गया है जिसके पास राम रसायन है।



राम रसायन क्या है?
सामान्यतया रसायन का अर्थ ओषधि से लिया जाता है। कहा जाता है कि राम नाम एक ओषधि है जो हर तरह के दुःख और कष्ट से मुक्त करने में सक्षम है। किंतु यह राम रसायन का सरलीकरण ही है। राम रसायन कष्ट में पड़े और दुःखी जन के लिए ओषधि है लेकिन यह नाम सर्वजन के लिए आनंददायी है इसलिए ओषधि कहना इसका क्षेत्र संकोच करना है।
रसायन रस का आनंद है। रस की व्याख्या करते हुए तैत्तिरीयोपनिषद् में कहा गया है - रसो वै स:।
रसं ह्येवायं लब्ध्वानन्दी भवति।
अर्थात् वह रस का स्वरूप है। जो इस रस को पा लेता है वही आनन्दमय बन जाता है। सः यहाँ स्वयम्भू सर्जक के लिए प्रयोग किया गया है और रस उनकी सुन्दर रचना से मिला आनन्द है। जब प्राणी इस आनन्द को, इस रस को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं आनन्दमय बन जाता है।

अथर्ववेद में आता है - "श्रीरामएवरसोवैसः।यस्यदासरसोवैपादः। यस्य शान्तरसो वै शिरः। वात्सल्यः प्राणः। शृङ्गारो बाहू। संख्यात्मा।" अर्थात् वह रसो वै सः ही एकमात्र #श्रीराम हैं। जिसका दास्य रस है उसके पैर हैं, शांत रस है सिर है, वात्सल्य रस है प्राण है, श्रृंगार रस है भुजा है और सख्य रस है आत्मा।

अतः स्पष्ट है कि रसायन और उसमें भी राम रसायन अतिविशिष्ट तत्त्व है। श्री हनुमान जी के पास यह है। हनुमान चालीसा इसे विशेष रूप से उल्लिखित करता है।

आइए, हम हनुमान जी महाराज का वंदन करें। हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें।
#जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की
#हनुमानचालीसा_व्याख्या_सहित #HANUMAN #बत्तीसवीं_चौपाई #चौपाई
#श्री_हनुमान_चालीसा #जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की
#हनुमानचालीसा_शृंखला

चौंतीसवां भाग, हनुमान चालीसा

अष्ट सिद्धियां वे सिद्धियाँ हैं, जिन्हें प्राप्त कर व्यक्ति किसी भी रूप और देह में वास करने में सक्षम हो सकता है। वह सूक्ष्मता की सीमा पार कर सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा जितना चाहे विशालकाय हो सकता है।

१. अणिमा : अष्ट सिद्धियों में सबसे पहली सिद्धि अणिमा हैं, जिसका अर्थ देह को एक अणु के समान सूक्ष्म करने की शक्ति से है। जिस प्रकार हम अपने नग्न आंखों एक अणु को नहीं देख सकते, उसी तरह अणिमा सिद्धि प्राप्त करने के पश्चात दुसरा कोई व्यक्ति सिद्धि प्राप्त करने वाले को नहीं देख सकता हैं। साधक जब चाहे एक अणु के बराबर का सूक्ष्म देह धारण करने में सक्षम होता हैं।

२. महिमा : अणिमा के ठीक विपरीत प्रकार की सिद्धि हैं महिमा, साधक जब चाहे अपने शरीर को असीमित विशालता करने में सक्षम होता हैं, वह अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकता हैं।

३. गरिमा : इस सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात साधक अपने शरीर के भार को असीमित तरीके से बढ़ा सकता हैं। साधक का आकार तो सीमित ही रहता हैं, परन्तु उसके शरीर का भार इतना बढ़ जाता हैं कि उसे कोई शक्ति हिला नहीं सकती हैं।

४. लघिमा : साधक का शरीर इतना हल्का हो सकता है कि वह पवन से भी तेज गति से उड़ सकता हैं। उसके शरीर का भार ना के बराबर हो जाता हैं।

५. प्राप्ति : साधक बिना किसी रोक-टोक के किसी भी स्थान पर, कहीं भी जा सकता हैं। अपनी इच्छानुसार अन्य मनुष्यों के सनमुख अदृश्य होकर, साधक जहाँ जाना चाहें वही जा सकता हैं तथा उसे कोई देख नहीं सकता हैं।

६. पराक्रम्य : साधक किसी के मन की बात को बहुत सरलता से समझ सकता हैं, फिर सामने वाला व्यक्ति अपने मन की बात की अभिव्यक्ति करें या नहीं।

७. इसित्व : यह भगवान की उपाधि हैं, यह सिद्धि प्राप्त करने से पश्चात साधक स्वयं ईश्वर स्वरूप हो जाता हैं, वह दुनिया पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता हैं।

८. वसित्व : वसित्व प्राप्त करने के पश्चात साधक किसी भी व्यक्ति को अपना दास बनाकर रख सकता हैं। वह जिसे चाहें अपने वश में कर सकता हैं या किसी की भी पराजय का कारण बन सकता हैं।

नौ निधियां हमारे ग्रंथो में नव निधियों के बारे काफी कुछ कहा गया है। पुरातन काल से यह माना जाता हैं की धन के बिना जीवन के किसी भी आयाम को सार्थक रूप देना सम्भव नही है। इसलिए धन यानि लक्ष्मी को धर्म के बाद दूसरा स्थान दिया गया है। हर व्यक्ति के थोड़ा सा निष्ठापूर्ण परिश्रम करने से, साधना करने से कुछ न कुछ निधियां उसे प्राप्त हो जाती हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को "श्री" संपन्न होना ही चाहिए जिसके लिए हर व्यक्ति प्रयत्नशील भी रहता है। तो क्या हैं ये नव निधियां। नव निधियां- पद्म निधि, महापद्म निधि, नील निधि, मुकुंद निधि, नन्द निधि, मकर निधि, कच्छप निधि, शंख निधि, खर्व निधि। नौ निधियों में केवल खर्व निधि को छोड़कर शेष आठ निधियां पद्मिनी नामक विद्या के सिद्ध होने पर प्राप्त हो जाती हैं परन्तु इन्हे प्राप्त करना भी काफी दुष्कर है। पद्म निधि-यह सात्विक प्रकार की होती है। जिसका उपयोग साधक के परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है।

पद्म निधि

यह सात्विक प्रकार की होती है। जिसका उपयोग साधक के परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है।

महापद्म निधि

महापद्म निधि-यह भी सात्विक प्रकार की निधि है। इसका प्रभाव सात पीढ़ियों के बाद नहीं रहता।

नील निधि

नील निधि-यह सत्व व राज गुण दोनों से मिश्रित होती है। जो व्यक्ति को केवल व्यापार हेतु ही प्राप्त होती है।

मुकुंद निधि

मुकुंद निधि-राजसी स्वभाव वाली निधि जिससे साधक का मन भोग इत्यादि में ही लगा रहता है। एक पीढ़ी बाद नष्ट हो जाती है।

नन्द निधि

नन्द निधि-यह रजो व तमो गुण वाली निधि होती है जो साधक को लम्बी आयु व निरंतर तरक्की प्रदान करती है।

मकर निधिं

मकर निधिं-यह तामसी निधि है जो साधक को अस्त्र-शास्त्र से सम्पन्नता प्रदान करती है परन्तु उसकी मौत भी इसी कारण होती है। कच्छप निधि

कच्छप निधि-इसका साधक अपनी सम्पति को छुपा के रखता है ना तो स्वयं उसका उपयोग करता है ना करने देता है।

शंख निधि

शंख निधि-इस निधि को प्राप्त व्यक्ति स्वयं तो धन कमाता हैं परन्तु उसके परिवार वाले गरीबी में जीते हैं वह स्वयं पर ही अपनी सम्पति का उपयोग करता है।

खर्व निधि

खर्व निधि-इस निधि को प्राप्त व्यक्ति विकलांग व घमंडी होता हैं जो समय आने पर लूट के चल देता है।

मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

एक सुलझा आदमी


बहुत लोग पूछंते हैं कि मेरी दृष्टि इतनी साफ कैसे हो गयी है और मेरा व्यक्तित्व ऐसा सरल कैसे हो गया हैं। बात यह है कि बहुत साल पहले ही मैंने अपने-आपसे कुछ सीधे सवाल किये थे । तब मेरी अंतरात्मा बहुत निर्मल थी-शेव के पहले के कांच जैसी । कुछ लोगों की अंतरात्मा बुढापे तक वैसी ही रहती है, जैसी पैदा होते वक्त । वे बचपन में अगर बाप का माल निसंकोच खाते हैं, तो सारी उम्र दुनिया भर को बाप समझ-कर उसका माल निसंकोच मुफ्त खाया करते हैं । मेरी निर्मल आत्मा से सीधे सवालों के सीधे जबाब आ गये थे, जैसे बटन दबाने से पंखा चलने लगे । जिन सवालों के जवाब तकलीफ दें उन्हें टालने से आदमी सुखी रहता है । मैंने हमेशा सुखी रहने की कोशिश की है । मैंने इन सवालों के सिवा कोई सवाल नहीं किया और न अपने जवाब बदले । मेरी सुलझी  हुई दृष्टि, मेरे आत्मविश्वास और मेरे सूख का यही रहस्य है । 'दूसरों को सुख का रास्ता बताने के लिए मैं वे प्रश्न और उनके उत्तर नीचे देता हूँ-

 

तुम किस देश के निवासी हो ?

- भारत के

 

-संसार में सबसे प्राचीन संस्कृति किस देश की है

-भारत की

 

-तुम किस जाति के हो ?

-आर्य-

 

विश्व में सबसे प्राचीन जाति कौन ?

-आर्य

 

-और सबसे श्रेष्ठ ?

-आर्य

 

-क्या तुमने खून की परीक्षा करायी है ?

- हां उसमें सौ प्रतिशत आर्य-सेल हैं

 

- देवता भगवन से क्या प्रार्थना करते है ?

- कि हमें पुण्यभूमि भारत में जनम दो

 

- बाकी भूमि कैसी हैं ?

-पाप भूमि हें

 

-देवता कहीं और तो जन्म नहीं लेते

-कतई नहीं । वे मुझे बताकर जन्म लेते हैं

 

-क्या देवताओं के पास राजनीतिक नक्शा है

-हाँ, देवताओं के पास 'ऑक्सफ़ोर्ड वर्ल्ड एटलस' है

 

-क्या उन्हें पाकिस्तान बनने की खबर है

-उन्हें सब मालूम है । वे "बाउण्डरी कमीशन' की रेखा को मानते हैं

 

-ज्ञान -विज्ञान किसके पास है ?

-सिर्फ आर्यो के पास

 

-यानी तुम्हारे पास है ?

-नहीं, हमारे पूर्वज आर्यों के पास

 

- उसके बाहर कहीं ज्ञान-विज्ञान तो नहीं है ?

- कहीं नहीं-

 

इन हजारों सालों मनुष्य-जाति ने कोई उपलब्धि की?

- कोई नहीं । सारी उपलब्धियाँ हमारे यहां हो चुकी थीं ।

 

-क्या अब हमें कुछ सीखने की जरूरत है ?

-कतई नहीं । हमारे पूर्वज तो विश्व के गुरु थे

 

-संसार में महान् कौन ?

- हम, हम, हम हम, हम

 

मेरा ह्रदय गदगद हो गया । अश्रुपात होने लगा । मैंने आँखें बन्द कर ली  तो भीतर से स्वर निकलने लगे" "अहा ! वाह ! कैसा सुख है इसी समय मेरा एक परिचित वहाँ आ गया । बोला क्या आँखें आ गयी हैं  ? कोई दवा डाल रखी है? मैंने कहा -अंजन लग गया है । पर बाहर की आँखों में नहीं , भीतर की आँखों में , नयी दृष्टि मिल गयी है । बड़ा संतोष है । अब सब सहज हो गया है । इतिहास सामने आ गया । जीवन के रहस्य खुल गये । न मन में कोई सवाल उठता, न कोई शंका पैदा होती । जितना जानने योग्य था, जाना जा चुका । सब हमारी जाति जान चुकी। अब न कुछ जानने लायक बचा, न करने लायक ।

 

मैंने वे सवाल और जवाब बताये । उसने कहा - ठीक है । मैं समझ गया आत्मविश्वास धन का होता हैं, विद्या का भी और बल का भी, पर सबसे बडा आत्मविश्वास नासमझी का होता है । इसे मैंने अपनी प्रशंसा समझा और अपने विश्वासो मेँ और पक्का हो गया । मैं अपने विचार खुलकर प्रकट करने लगा और लोगों को वे दिलचस्प मालूम हुए. लोग मुझे सुनने के लिए तड़पने लगे और इंजीनियरों से लेकर दार्शनिको तक के बीच मुझे बुलाया जाने लगा .

 

एक दिन डाक्टरों की सभा में मैंने कहा-पश्चिम गर्व करता है कि उसने पेनिसिलीन की खोज करके मनुष्य की आयु बढा दी है । उसे नहीं मालूम कि पेनिसिलीन दुसरे विश्वयुद्ध के समय नहीं, महाभारत-युद्ध के समय हमारे यहाँ खोज लिया गया था । मित्रों ! कल्पना कीजिए…भीष्म-पितामह, ऊर्ध्वरेता, अखण्ड ब्रह्मचारी भीष्म, शऊर-शैया पर पड़े हैं । सारा शरीर घावों से क्षत-विक्षत हो गया है । वे सूर्य की गति देख रहे हैं । सूर्य उत्तरायण हो, तो वे प्राण त्यायें । वे पूरे इक्यावन दिन जीवित और फिर भी घावों से नहीं मरे; इच्छा से प्राणों का त्याग किया । में पश्चिमी वैज्ञानिकों से पूछता हूँ कि उनके घाव 'सेप्टिक' क्यों नहीं हुए ? पेनिसिलीन के कारण । उन्हें पेनिसिलीन दिया गया था । भारत ने दस हजार साल पहले जो पेनिसिलीन विश्व को दिया था, वही अब पश्चिम हमें इस_तरहृ लौटा रहा है, जैसे वह उसी की खोज हो । मित्रों ! भूलिए मत कि भारत विश्व का गुरु है । हमें कोई कुछ नहीं सिखा सकता इस पर खूब जोर से तालियाँ बजीं और सब मान गये कि हमें कोई कुछ नहीं सिखा सकता .

 

हाल ही में भारत -पाक -युद्ध के दौर में टेंक-भेदी तोप की बडी चर्चा थी । मैँ सुनता था और हँसता था । आखिर एक दिन एक सभा में मैंने कह दिया जो लोग टेंक-भेदी तोप की तारीफ करते हैं  वे भूल जाते हैं कि टेक तो आज बने हें, पर टेंक-भेदी तोपें तो  हमारे यहाँ त्रेता युग में बनती थीं । भाइयो, कल्पना कीजिए उस दृश्य की-…~ राम सुग्रीव से कह रहे हैं कि मैं वालि को मारूँगा । सुग्रीव सन्देह प्रकट करता है कहता है-बालि महाबलशाली है । मुझे विश्वास नहीं होता कि आप उसे मार सकेंगे तब क्या होता है कि मर्यादा-पुरुपोत्तम धनुष उठाते हें, बाण का सन्धान करते हें और ताड़ के वृक्षों की एक कतार पर छोड़ देते है ॰। बाण एक के बाद एक सात ताडों को छेदकंर निकल जाता है । सुग्रीव चकित है, वन के पशु-पक्षी, खग-मृग और लता-वल्लरी चकित हैं । सज्जनौ, जो एक बाण से सात ताड़ छेद डालते थे, उनपे पास मोटे से मोटे टेंक कौ छेदने की तोप क्या नंहीं होगी ? भूलिए मत, हम विश्व के गुरु रहे हैं और कोई हमें कुछ नहीं सिखा सकता।

खूब तालियाँ पिटी और सब मान गये कि कोई हमेँ कुछ नहीं सिखा सकता

 

एक दिन मनोविज्ञान पर एक परिचर्चा आयोजित थी । प्रोफेसर लम्बे लम्बे भाषण दे रहे थे । जब सहन नहीं हुआ, तो मैं भी बोलने पहुँच गया कहा-साइक्लोजी - ! मनोविज्ञान-हुँह ! लोग कहते हैं कि साइक्लोजी आधुनिक "बिज्ञान है । में पूछता हूँ, क्या प्राचीन भारत में साइकाँलोजी नहीं थी ?अवश्य थी । अहा, उस दृश्य की कल्पना कीजिए- सूना वन-प्रदेश है । स्वच्छ आकाश और धरती  पर ऋषि और उनकी पत्नी बैठे हैं । चाँदनी फैली हुई है । मन्द-मन्द सुगन्ध मय समीर बह रहा है । ऐसे में ऋषि और उनकी पत्नी के हृदय में क्या भावनाए उठ रही होंगी ? बस, यही तो साइकाँलौजी है । हमारे देश में यह हजारों वर्ष से है और कहते हैं कि यह आधुनिक विज्ञान हैं । वे भूलते हैं, कोई हमें कुछ नहीं सिखा सकता।

लोगों ने तालियाँ पीटों और मान गए कि हमें कोई कुछ नहीं सिखा सकता

 

एक बार विदेश से वनैई बाँटनिस्ट' (वनस्पति वैज्ञानिक) आया । उनका एक जगह भाषण होना था । मुझे बताया गया कि यह 'फॉसिल' का विशेषज्ञ है, यानी चट्टानों के बीच दवे हुए पौधे या जन्तु के पाषाणरूप हो जाने का । मैंने उसका भाषण सुना और मेरे भीतर हलचल होने लगी। वह पश्चिम के वैज्ञानिकों के नाम ही लेता रहा और विदेशों के 'फरेंसिल' दिखाता रहा । उसके बाद बोलने को खडा हों गया । मैंने कहा-आज हमने एक महान् 'बाँटनी' का भाषण सुना । (बाद में मुझे बताया गया कि वह बाँटनिस्ट कहलाता ।) उन्होंने हमेँ बताया  कि 'फाँसिल' कैसे होते हैं । मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या प्राचीन भारत मेँ 'बाँटनी' नहीं थे  ? अवश्य थे हम उन्हें भूलते जा रहे हैं । भगवान् रामचन्द्र एक महान् 'बाँटनी' थे और अहिल्या एक 'फासिल ' थी । महान् बाँटनी रामचन्द्र ने अहिल्या फासिल का पता लगाया। वे आज के इन बाँटनियों से ज्यादा योग्य थे। ये लोग तो फरेंसिल का सिर्फ पता लगाते हैं और उसकी जांच करते हैं । महान् बाँटनी राम ने "फरेंसिल" अहिल्या को फिर से स्त्री  बना दिया । ऐसे-ऐसे चमत्कारी बाँटनी हमारे यहाँ हो गये हैं । हम विश्व के गुरु रहे हैं । हमें कोई कूछ नहीं सिखा सकता।

इस पर भी खूब तालियाँ पिटी और विदेशी विशेषज्ञ तक मान गए कि हमें कोई कुछ नहीं सिखा सकता

 

एक दिन मैं ऐसी जगह पहुँच गया, जहाँ दो पहलवान किस्म के आदमी भाषण देने वाले थे । बताया गया कि वे विदेशों में शरीर-सौष्ठव की शिक्षा लेकर आये हैं बताने वाले हें कि शरीर को किस प्रकार पुष्ट बनाया जा सकता है। मैं उनकी बाते सुनता रहा । में बोला-शरीर तो हमारे पूर्वज बनाते थे । हमारे पास न शरीर है, न उसे हम बना सकते हैं । में आप से पूछता हुँ कि आपने भगवान् राम और कृष्ण की इतनी तसवीरें देखी' । क्या ऐसी भी कोई तसवीर हैं जिसमें वे पूरे कपडे पहने हो ? किसी भी कैलेण्डर पर आपको  ऐसी तसवीर नहीं मिलेगी जिसमेँ कमर से ऊपर कपड़ा पहने हों । यह हिस्सा  वे उघाड़ा रखते थे । क्यों ? इसलिए कि उन्होंने शरीर बनाया था और उसे दिखाना चाहतें थे । पर आप लोग कोट और पेंट पहने हुए बैठे हैं । ठीक हैं, आपके पास दिखाने को क्या है ? और ये पश्चिम के सीखे हुए लोग आपको वह क्या सिखा सकते हैं, जो राम और कृष्ण एक तसवीर से सीखा गए।

लोगो ने तालियां पीटी और सब मान गये कि कोई हमें अब कुछ नहीं सिखा सकता |

 

मेरी दृष्टि ऐसी साफ और सुलझी हुई हो गयी है कि मेरी बात तर्क से परे होती है उस पर विश्वास करना पड़ता है । जहां मैँ एक बार भाषण दे देता हूँ, वहाँ के लोग एकदम मान जाते    है कि हमें कोई कुछ नहीं सीखा सकता। मुझे मालुम लोगो ने मेरी बाते सुनकर कुछ भी    सीखना बंद कर दिया है ।  -  हरिशंकर परसाई

झाँसी वाली रानी : सुभद्रा कुमारी चौहान

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी 

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी 

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी


चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी


कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी, 

लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी, 

नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी, 

बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।


वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार, 

देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार, 

नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार, 

सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़। 


महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ 


हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में


हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में, 

ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में, 

राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में, 

सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।


चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,


उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई, 

किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई, 

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई, 

रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।


निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया


बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया, 

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया, 

फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया, 

लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया। 


अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥



अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया, 

व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया, 

डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया, 

राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया। 


रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥ 


छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात


छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात, 

कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात, 

उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात? 

जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात। 


बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार


रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार, 

उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार, 

सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार, 

'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'। 


यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान


कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान, 

वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान, 

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान, 

बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान। 


हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी


महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी, 

यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी, 

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी, 

मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी, 


जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम


इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम, 

नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम, 

अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम, 

भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम। 


लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी


इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में


इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में, 

जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में, 

लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में, 

रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में। 


ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥


रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार


रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार, 

घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार, 

यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार, 

विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार। 


अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, 

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, 

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : चौदहवीं चौपाई

सब  पर   राम  तपस्वी  राजा। तिनके काज सकल तुम साजा।। और  मनोरथ  जो  कोइ लावै। सोई अमित जीवन फल पावै॥ भाग - 16 चौदहवीं चौपाई श्री हनुमान ...

आपने जब देखा, तब की संख्या.