मंगलवार, 5 मार्च 2024

योजन : मानस शब्द संस्कृति

योजन : मानस शब्द संस्कृति 


जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।

कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा ॥

सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।

तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥


भारतीय #संस्कृति में दूरी मापने की एक इकाई #योजन थी। यह चार कोस के बराबर थी। #कोस भी दूरी मापने की इकाई थी। आधुनिक मापन प्रणाली का 3 किमी, 1 कोस के बराबर है। आज भी यह पारंपरिक इकाइयां प्रचलन में हैं।


हनुमान जी के मार्ग में आई सुरसा ने अपना मुंह बड़ा किया। योजन भर बड़ा किया। हनुमान ने अपना दुगुना विस्तार किया। सुरसा ने बढ़ाकर 16 योजन तक घेर लिया। हनुमान जी ने तब आकार 32 योजन का कर लिया।
सुंदरकांड का रोचक प्रसंग।

#मानस_शब्द


कोई टिप्पणी नहीं:

सद्य: आलोकित!

आर्तिहर : मानस शब्द संस्कृति

करहिं आरती आरतिहर कें। रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें।। आर्तिहर : मानस शब्द संस्कृति  जब भगवान श्रीराम अयोध्या जी लौटे तो सबसे प्रेमपूर्वक मिल...

आपने जब देखा, तब की संख्या.