सब देवन को दरबार जुरयो तहँ पिंगल छंद बनाय कै गायो
जब काहू ते अर्थ कह्यो न गयो तब नारद एक प्रसंग चलायो,
मृतलोक में है नर एक गुनी कवि गंग को नाम सभा में बतायो।
सुनि चाह भई परमेसर को तब गंग को लेन गनेस पठायो।।
गुरुवार, 11 जनवरी 2024
गंग की चर्चित कविता
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इटावा,
गंग,
रीतिकालीन कवि
गाज़ीपुर का हूँ। बंगाल में पला-बढ़ा। गंगा किनारे का वासी।
उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से। राही मासूम रज़ा पर डी.फिल.।
विभिन्न पुस्तकों और पत्र पत्रिकाओं में शोध पत्र और आलेख। एक पुस्तक "हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों के बहाने राही के उपन्यास" लोकभारती प्रकाशन से। दूरदर्शन पर चार बार साक्षात्कार और आकाशवाणी से एक दर्जन से अधिक वार्ता प्रसारित। ललित निबंध में रुचि।
संप्रति- असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी, राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटावा, उत्तर प्रदेश।
मोबाइल- 9838952426
E-mail- royramakantrk@gmail.com
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