सोमवार, 18 मार्च 2024

सायुज्य मुक्ति : मानस शब्द संस्कृति

 

सायुज्य मुक्ति : मानस शब्द संस्कृति 

जे रामेश्वर दरसनु करिहहिं।
ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं।।
जो गंगाजलु आनि चढ़ाइहि।
सो सायुज्य मुक्ति नर पाइहि।।

वैष्णव #संस्कृति में भक्त, आराध्य के लोक में पांच तरह से रहता है।जब वह इष्ट के विग्रह का अंग बन जाता है तब #सायुज्य_मुक्ति कही जाती है। भगवान के लोक में कुछ भी बनकर रहना सालोक्य मुक्ति है। सार्ष्टि में भगवान के समान ऐश्वर्य मिलता है। सारूप्य में समान रूप और सामीप्य मुक्ति में वस्त्राभूषण आदि बनने का अवसर मिलता है।

भारतीय परंपरा में कहा गया है कि विद्या वह है जो मुक्त करती है। सा विद्या या विमुक्तये।

श्रीरामचंद्र जी ने रामेश्वरम में लिंग स्थापना के बाद यह कहा है कि जो इसका दर्शन करेगा, वह वैष्णव लोक में जाएगा।

#मानस_शब्द


गुरुवार, 14 मार्च 2024

कटक : मानस शब्द संस्कृति

 

कटक : मानस शब्द संस्कृति 

पूंछिहु नाथ राम कटिकाई।
बदन कोटि सत बरनि न जाई।।

रावण ने अपने दूतों से राम की #कटक यानी सेना के विषय में पूछा। दूत जान बचाकर आए थे। उन्होंने जो वर्णन किया, वह अद्भुत है। एक कहता है कि जिसने नगर जलाया था और आपके बेटे को मारा था, वह इसमें सबसे कम बलशाली था। वह सबका नाम बताते हैं।

यह समूचा प्रसंग अद्भुत है। दूतों को वानरों ने बहुत मारा था। उनका नाक कान काटना चाहते थे, लेकिन वह राम की सौगंध देकर बच आए थे। उनके मन में वानर सेना का आतंक जम गया था। ऐसे लोग पक्ष को भी हतोत्साहित कर देते हैं।

तुलसीदास जी इस मानसिकता को बहुत अच्छी तरह समझते हैं।

#मानस_शब्द #संस्कृति

बुधवार, 13 मार्च 2024

लंकेश : मानस शब्द संस्कृति

 

लंकेश : मानस शब्द संस्कृति 

कहु लंकेस सहित परिवारा।
कुसल कुठाहर वास तुम्हारा।।
खल मंडली बसहु दिन राती।
सखा धरम निबहइ केहि भांती।।

लंका से निष्कासित होकर जब विभीषण श्रीराम के शरणागत हुए तो भक्तों का भय हरने वाले प्रभु ने उन्हें #लंकेश कहकर संबोधित किया। यह उपाधि यद्यपि रावण की है लेकिन श्रीराम ने विभीषण को लंका का राजा कहकर सहज ही अपना मंतव्य प्रकट कर दिया। परिवार का कुशल क्षेम जानने से पहले ही उन्होंने विभीषण को राजा घोषित कर दिया।
यह संकेतक है कि सामर्थ्यवान व्यक्ति सहज ही आगंतुक की इच्छा के अनुरूप अनुग्रह कर देता है। यही उचित मार्ग है।

#मानस_शब्द #संस्कृति

मंगलवार, 12 मार्च 2024

कालरात्रि : मानस शब्द संस्कृति

कालराति निसिचर कुल केरी।
तेहि सीता पर प्रीति घनेरी।।

मां दुर्गा की उपासना की नवरात्रि में सातवीं रात #कालरात्रि की है। वह रात की नियंता देवी हैं। रंग काला है। वह त्रिनेत्रधारी, रौद्र रुप में हैं। शुभफल दायक हैं। राक्षस, असुर आदि की विनाशक हैं।

कालरात्रि : मानस शब्द संस्कृति 

विभीषण लंकेश को समझाते हुए कह रहे हैं कि सीताजी भी निशिचर कुल के लिए कालरात्रि ही हैं। ऐसी वैदेही पर आपका ऐसा प्रेम है। विभीषण कहना चाहते हैं कि यह वस्तुत: आत्मघाती है। इसलिए आप - 

तात चरन गहि मांगउं राखहु मोर दुलार।
सीता देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हार।।

#मानस_शब्द #संस्कृति


महादुर्गा की सप्तम रात्रि की देवी

 

रविवार, 10 मार्च 2024

सहिदानी : मानस शब्द संस्कृति

 
 
            सहिदानी : मानस शब्द संस्कृति 


यह मुद्रिका मातु मैं आनी।
दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी।।

कोई ऐसा निशान, चिह्न, वस्तु जो किसी विशेष की स्मृति कराए, वह #सहिदानी है। हम इसके लिए स्मृति चिह्न, स्मारक, मोमेंटो आदि शब्द प्रयोग करते हैं। तुलसीदास जी ने कितना सुंदर और प्यारा #मानस_शब्द रखा है। हम इसका उपयोग करें। अपने व्यवहार में उतारें।

हनुमान जी ने सीता को सब कहानी सुनाने के बाद #सहिदानी में #मुद्रिका दी। यह मुद्रिका श्रीराम ने चलते समय दिया था। बदले में #चूड़ामणि प्रदान की वैदेही ने।

#संस्कृति


शनिवार, 9 मार्च 2024

जातुधान : मानस शब्द संस्कृति

सपनें बानर लंका जारी।

जातुधान सेना सब मारी।।

जातुधान : मानस शब्द संस्कृति 


वह लोग जो यज्ञादि कार्यों में विघ्न डालते, अनाचार और दुराचार करते, दुष्ट वृत्ति के थे #यातुधान कहे जाते हैं। सामान्यतः राक्षस, प्रेत, असुर आदि इस कोटि में परिगणित होते हैं। त्रिजटा ने स्वप्न देखा कि कोई बंदर आएगा और लंका जला डालेगा,  जातुधानों का संहार करेगा।

कवितावली में तुलसीदास जी ने अपनी कविता में जातुधान शब्द का बहुत प्रयोग किया है।


बालधी बिसाल बिकराल ज्वाल-जाल मानौं,
लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है ।
कैधौं ब्योमबीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
बीररस बीर तरवारि सी उघारी है ।।
तुलसी सुरेस चाप, कैधौं दामिनी कलाप,
कैंधौं चली मेरु तें कृसानु-सरि भारी है ।
देखे जातुधान जातुधानी अकुलानी कहैं,
“कानन उजायौ अब नगर प्रजारी है ।।


हाट, बाट, कोट, ओट, अट्टनि, अगार पौरि,

खोरि खोरि दौरि दौरि दीन्ही अति आगि है।

आरत पुकारत , संभारत न कोऊ काहू,

ब्याकुल जहाँ सो तहाँ लोग चले भागि हैं ।।

बालधी फिरावै बार बार झहरावै, झरैं

बूंदिया सी लंक पघिलाई पाग पागि है।

तुलसी बिलोकि अकुलानी जातुधानी कहैं
"चित्रहू के कपि सों निसाचर न लागिहैं"।।

#मानस_शब्द #संस्कृति

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

मुष्टिका : मानस शब्द संस्कृति

मुठिका एक महा कपि हनी।

रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।। 



लंका में रात्रि के समय सूक्ष्म रूप में हनुमान जी घुसे तो लंकिनी ने देख लिया। रोकने पर उन्होंने #मुष्टिका प्रहार किया। हाथ की उंगलियों को कस देने से बनता है। बल प्रयोगकर आघात करने से संहारक हो जाता है।

क्या आपने कभी इससे आघात किया है?


#मानस_शब्द #संस्कृति

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दूसरा दोहा

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।। श्री हनुमान चालीसा शृंखला। दूसरा दोहा। श्रीहनुमानचा...

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