मंगलवार, 23 जनवरी 2024

बालतोड़: मानस शब्द संस्कृति

बालतोड़

 

दलकि उठेउ सुनि हृदय कठोरू।
जनि छुइ गयउ पाक बरतोरू।।

ऐसा फोड़ा जो रोमकूप के उखड़ जाने से हो जाए। इस फोड़े का सिरा बहुमुखी हो जाता है। इसमें कई खील होते हैं। यह बहुत कष्टदायक होता है। महाराजा दशरथ द्वारा राम को युवराज बनाने की बात पर कैकेई का हृदय #बालतोड़ छू जाने जैसा दलक गया।

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रविवार, 21 जनवरी 2024

कोप भवन: मानस शब्द संस्कृति

श्रीरामचरितमानस अयोध्याकांड २.२५


कोपभवन सुनि सकुचेउ राऊ।

भय बस अगहुड़ परइ न पाऊ।।

घर का एक कक्ष जिसमें कोई क्षुब्ध होकर रहने लगे, वह #कोपभवन है। बड़े घरों में यह व्यवस्था भी रहती होगी। राजा अपने प्रजाजन का समाचार विविध तरीके से लेता था। यह कक्ष कोप बताने के निमित्त था। कैकेयी को वहां जान कर राजा सहम गए।

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शनिवार, 20 जनवरी 2024

ठकुरसुहाती: मानस शब्द संस्कृति

हमहुं कहबि अब ठकुरसोहाती। 
नाहिं त मौन रहब दिनु राती।। 

अपने स्वामी/ठाकुर को प्रिय लगने वाली बातें करना #ठकुरसुहाती है। सभा में ऐसे लोग विशेष कृपा पात्र होते हैं जो यह कर पाते हैं। इसे मुंहदेखी बातें करना भी कहते हैं। जैसा मुंह/मूड, वैसी बात। चापलूसी, झूठी प्रशंसा इसके लक्षण हैं।

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शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

षोडशोपचार : मानस शब्द संस्कृति

 गुरु आगमनु सुनत रघुनाथा।

द्वार आइ पद नायउ माथा।।

सादर अरघ देइ घर आने।
सोरह भांति पूजि सनमाने।।

वैदिक रीति से पूजन की एक पद्धति षोडशोपचार कही जाती है जिसमें १६ अंग हैं। इसमें आवाहनम्, आसनम, पाद्यम, अर्घ्यम, आचमनीयम, स्नानम, यज्ञोपवीतम, वस्त्रम, अक्षता:, पुष्पाणि, धूपम, दीपम, नैवेद्य, दक्षिणा, पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा १६ उपचार हैं। प्रदक्षिणा अर्थात इष्ट का चक्कर लगा करके यह उपचार पूर्ण होता है।

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षोडशोपचार


शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

चतुरसम : संस्कृति का एक शब्द

मंगलमय निज निज भवन, लोगन्ह रचे बनाइ।

बीथीं सींचीं  चतुरसम  चौकें  चारु  पुराइ।


आजकल गलियों को सज्जित करने के लिए चूना गिराया जाता है। पुराने जमाने में चन्दन, केशर, कस्तूरी और कपूर को समान मात्रा में मिलाकर एक सुगंधित द्रव बनाया जाता था, जिसे #चतुरसम कहा जाता है। भगवान श्रीराम का बारात लेकर जब महाराजा दशरथ निकले तो गलियों को चतुरसम से अभिसिंचित किया गया।
यह भारतीय #संस्कृति की श्रेष्ठता का परिचायक भी है।

#शब्द

चतुरसम


गुरुवार, 11 जनवरी 2024

गंग की चर्चित कविता

सब देवन को दरबार जुरयो तहँ पिंगल छंद बनाय कै गायो
जब काहू ते अर्थ कह्यो न गयो तब नारद एक प्रसंग चलायो,
मृतलोक में है नर एक गुनी कवि गंग को नाम सभा में बतायो।
सुनि चाह भई परमेसर को तब गंग को लेन गनेस पठायो।।

गुरुवार, 21 दिसंबर 2023

दूधनाथ सिंह की डायरी के एक पन्ने से -


कुछ लेखकों के बारे में-

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कबीर           प्रतिभाशाली

तुलसीदास     प्रतिभाशाली सचेत

भारतेंदु           प्रतिभाशाली अराजक

प्रसाद।           परिश्रमी

निराला           प्रतिभाशाली

पन्त               प्रतिभाशाली बेचैन

महादेवी           प्रतिभाशाली अवसादग्रस्त

यशपाल         कलमघिस्सु

अज्ञेय             अर्जित-अवकाश

बच्चन             कलमबाज

दिनकर।        शब्दाभिमानी

शमशेर          प्रतिभा रोमान

राम विलास शर्मा      प्रतिभा परिश्रम की पाल्थी

रामचंद्र शुक्ल      प्रतिभाशाली

प्रेमचंद               प्रतिभासम्पन्न

जैनेन्द्र               हठयोगी

रेणु                   प्रतिभाशाली

ज्ञानरंजन            प्रतिभाशाली उच्चछिन्न

रवीन्द्र कालिया    वाचाल

उदय प्रकाश       अंतर्राष्ट्रीय छि: छी:

मार्कण्डेय           कुछ नही

कमलेश्वर            भुस्स

राजेंद्र यादव।       मिहनती

मन्नू भंडारी           ईमानदार और मोहक

मोहन राकेश          प्रतिभासम्पन्न

धर्मवीर भारती      रियल रोमैंटिक

फैज                    प्रतिभाशाली

नागार्जुन              दोआब

त्रिलोचन               न कुछ का सबकुछ

नामवर सिंह               नायक

हजारी प्रसाद द्विवेदी     प्रतिभाशाली-उन्मुक्त

मुक्तिबोध               प्रतिभाशाली-राउंड टेबिल

मलयज                 धुंध

भैरव प्रसाद गुप्त     हठवादी

कृष्णा सोबती          मर्दवादी

ग़ालिब                प्रतिभाशाली-अनंत बार सबकुछ

मीर।                    सुहाना कवि

इक़बाल                इस्लामी कवि

शेक्सपियर           सब कुछ

ओसामू दज़ाई         आत्महत्यारा

टालस्टाय            सबकुछ

दास्तोवेस्की          आत्मा का घनत्व

गोर्की                     सोचता हुआ

रवीन्द्र नाथ ठाकुर        सब कुछ

मायकोवस्की            उत्तेजित

पास्तरनाक               प्रतिभाशाली

एवेतुशांको                ठठेरा

वोज्नेसेन्सकी             प्रतिभावान

मैथिलिशरण गुप्त       ठेठ हिंदी का ठाठ

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दूसरा दोहा

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।। श्री हनुमान चालीसा शृंखला। दूसरा दोहा। श्रीहनुमानचा...

आपने जब देखा, तब की संख्या.