कल यानि ३० अप्रैल,२०१० को महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद
विस्तार केंद्र पर कथाकारनीलम शंकरके कहानी संग्रह "सरकती रेत" पर पुस्तक चर्चा आयोजित है।
वर्धा विश्वविद्यालय के कुलपतिमाननीय विभूति नारायण राय, कहानीकार,उपन्यासकार
और आलोचक दूधनाथ सिंह, कवि
बद्रीनारायण जैसे लोगों के बीच मैं भी चर्चा करूँगा। यह पहली बार होगा कि मैं किसी
बड़े मंच से किसी पुस्तक पर चर्चा करता नज़र आऊंगा।
सरकती रेत
मैं इस होने वाली परिचर्चा से बहुत रोमांचित हूँ और थोडा नर्वस भी।
मैं जानता हूँ कि यह परिचर्चा मेरे लिए बहुत मायने रखेगी। नीलम शंकरकी कहानी
में मध्यवर्ग का जो चित्रांकन है, मैं उसपर बात करूँगा। मैं चाहूँगा बात करना कि
उनकी कहानी में स्त्री का कैसा चित्रण है।
मैं कल जब चर्चा करके आऊंगा तो आपको विस्तार से इसके बारे में
बताऊंगा। मैं जानता हूँ कि यह बहुत चुनौतीपूर्ण है क्योंकि कोई भी टिप्पणी मुझे आधार रूप में रखना है। मेरे लिए ये
करना संभव होगा? देखेंगे, लाजिम है के हम भी देखेंगे.....
फ़ैज़ अहमद फैज,उन
गिने चुने शायरों में हैं जिन्होंने अपनी नज़्मों और शायरी में शोषितों और दलितों की आवाज़
पुरजोर तरीके से उठाई है। हालांकि अपनी कविताओं में वह कट्टर धार्मिक व्यक्ति की तरह व्यवहार करते प्रतीत
होते हैं। जनरल अयूब खान की तानाशाही के
खिलाफ आवाज़ बुलंदकरती ये नज़्म.....
हम देखेंगे
लाजिम है की हम भी देखेंगे।
वो दिन के जिसका वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिख्खा है
जब जुल्म-ओ-सितम के कोहें-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएंगे
हम महकूमों के पांव तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हिकम के सर ऊपर जब बिजली कड़कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-खुदा के काबे सेसब बुत उठवाये
जाएंगे
हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरममसनद पे
बिठाये जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे सब तख्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो गायब भी है हाज़िर भी
जो मंजर भी है नाज़िर भी
उठ्ठेगा अनल-हक का नाराजो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज करेगी ख़ल्क-ए-ख़ुदाजो मैं भी हूँ और तुम भी हो।
इससे पहले कि मैं आपसे घर से
लौट कर आने की बात करूँ; आज की एक छोटी लेकिनमहत्त्वपूर्ण
बात आपसे साझा करना चाहता हूँ। आज गणतन्त्र दिवस है, लोकतंत्र का
उत्सव पर्व! और आज ही मुझे मौकामिला कि मैं रक्तदान
करूँ।
हालांकि मुझे थोड़ी सी हिचकिचाहट हुई।अरे नहीं! इसलिए नहीं कि मैं डरा, बल्कि इसलिए कि कल
मेरी एक परीक्षा हैऔर मुझे कल ही २ दिन के लिए दिल्ली
भी जाना है।वहां भी एक परीक्षा है और फिर वापस ३१ जनवरी
को इलाहाबाद में।तो मैं डरा।लेकिनचूँकियहएक
अच्छा मौका था कि इस दिन एक ऐसा काम हो जो यादगार हो, जिसमें दूसरे व्यक्ति का हित हो, निःस्वार्थ हो तो मैंने किया।और ये भी कि मैं बिलकुल ठीक हूँ।
मेरा अपना घर. मेरा घर जिस सुन्दर से गाँव में है उसका नाम है- चौरंगीचक।
यह गाँव गाजीपुर जनपद में है।
जब आप बनारस से बिहार की लिए निकलते हैं और सीधा रास्ता चुनते हैं तो आपको
तकरीबन ८० किलोमीटर के बाद ये जनपद मिलेगा। गाजीपुर जिन कुछ चीजों के लिए देश भर
में जाना जाता है उनमें एक तो है अफीम फैक्ट्री।
जिन साहित्यकारोंने यहाँ की धरती पर
जन्म लिया और साहित्य की दुनिया में प्रतिष्ठित हुए, उनमें
एक नाम हैआचार्य कुबेरनाथ
रायका। वह हिन्दी के शीर्षस्थ निबंधकार
हैं। उपन्यास और शायरी तथा फिल्मी पटकथा लेखन के क्षेत्र में ख्याति अर्जित करने
वाले एक अन्य साहित्यकार का नाम हैराही मासूम रज़ा।
अरे! राही मासूम रज़ा का नाम नहीं जानते? आधा
गाँव नहीं पढ़ा क्या? ‘टोपी शुक्ला’? महाभारत तो देखा होगा? अरे वही जिसे बी. आर.
चोपड़ा ने निर्देशित किया था।तब तो आपको जरुर पता होगा
कि उसके संवाद राही मासूम रज़ा ने ही लिखे थे। यदि आपने दूरदर्शन पर नीम का पेड़
धारावाहिक देखा है तो आपके लिए ये नाम अनजाना नहीं होगा। खैर, अभी बस इतना ही राही मासूम रज़ा के बारे में।
हमारा गाजीपुर, गवर्नर जनरल कार्नवालिस की
अंतिम साँसे गिनते देख कर बहुत ही खुश हुआ था।स्वाधीनता
संग्राम में अष्टशहीदों के बलिदान से गौरवान्वित हुआ। सन १९६५ के भारत-पाकिस्तान
युद्ध के अमर शहीद परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद से आप परिचित हैं। उनके नाम पर
गंगा नदी पर सेतु है।
तो कुछ अपने गाँव के बारे में! जिला मुख्यालय से बलिया की तरफ कोई १३
किलोमीटर की दूरी पर शाहबाजकुली मिलेगा। यहाँ १९०२ में ही रेल का स्टेशन बन गया
था। गाजीपुर सेसड़क मार्ग से भी जाया जा सकता है।शाहबाजकुलीगंगा नदी के तट पर ही है। वहाँ से
कोई एक किलोमीटर दूर, चारो तरफ से प्राकृतिक सुषमा से
घिरा हुआ मेरा गाँव है- चौरंगीचक।
मैं जब भी अपने इस गाँव की बात करता हूँ, मुझे
भवभूति की लिखी और राम द्वारा कही उक्ति याद आती है- जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि
गरीयसी।
कल जब मैं अपने गाँव जाऊंगा तो मेरे जिम्मे कई काम होंगे। मैं घर से लौट
कर जब आऊंगा तो आपको बताऊंगा की मेरे गाँव में इस कड़कड़ाती ठण्ड से लड़ने के लिए लोग
क्या कर रहे हैं। मैं पक्का जानता हूँ कि वहां मुझे गन्ने का रस, मटर की घुघुनी और अलाव में भुना हुआ आलू खाने को मिलेगा।