सोमवार, 4 मार्च 2024

गीध - दृष्टि : मानस शब्द संस्कृति

 

गीध - दृष्टि : मानस शब्द संस्कृति 


मैं देखउं तुम्ह नाहीं, गीधहि दृष्टि अपार।
बूढ़ भयउं न त करतेउं कछुक सहाय तुम्हार।।

प्रयोग के आधार पर शब्दों के अर्थ में विस्तार और संकोच होता रहता है। अपार अर्थात दूर तक देखने की क्षमता वाली #गीध_दृष्टि कालांतर में स्वार्थलोलुप और निकृष्ट मानी गई। गीधराज संपाती ने अपनी दृष्टि की सहायता से वानरों को रावण का ठिकाना बताया। उन्होंने अपनी असमर्थता भी जताई कि वह वृद्ध न होते तो अवश्य सहायता करते।

#मानस_शब्द #संस्कृति


रविवार, 3 मार्च 2024

निराई : मानस शब्द संस्कृति

#मानस शब्द संस्कृति 

निराई : मानस शब्द संस्कृति 

कृषी निरावहिं चतुर किसाना।
जिमी बुध तजहिं मोह मद माना।।

बरसात होने पर कृषक खेतों से खर पतवार आदि उखाड़कर फेंकता है। फसल से इस अनावश्यक घास आदि को निकालना #निराई कही जाती है। इससे फसल को उचित पोषण मिलता है। #श्रीरामचरितमानस में इस कृषिकर्म की तुलना विद्वानों से की गई है जो मोह, मद, मान आदि त्याग देते हैं।

तुलसीदासजी ने किष्किंधाकांड में वर्षा ऋतु पर कवित्व दृष्टि रखी है। यहां उनकी उपमा और रूपक की छटा देखी जा सकती है।

              निराई : मानस शब्द संस्कृति 


#मानस_शब्द #संस्कृति


शनिवार, 2 मार्च 2024

षट बिकार : मानस शब्द संस्कृति

 

षट बिकार : मानस शब्द संस्कृति 

षट बिकार जित अनघ अकामा।
अचल अकिंचन सुचि सुखधामा।।

तुलसीदास ने भगवान श्रीराम के मुख से संतों के जो लक्षण बताए हैं, उसमें उन्हें छ: प्रकार के विकार को जीता हुआ कहा है। यह #षट_विकार हैं- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर (द्वेष भावना)। विकार वह हैं जो हमें भ्रष्ट करते हैं, मोह माया में लपेटते हैं।

संत व्यक्ति पापरहित, कामनारहित, निश्चल और अकिंचन होता है। उन्होंने विस्तार से संतों की प्रकृति के बारे में बताया है।

इससे पहले लक्ष्मण को वह बताते हैं -

लोभ के इच्छा दंभ बल, काम कें केवल नारि।
क्रोध के परुष बचन बल, मुनिबर कहहिं बिचारि।।

अर्थात लोभ के पास दंभ और इच्छा का बल है, काम के पास नारी का, क्रोध की क्षमता कठोर वचन हैं; ऐसा मुनियों ने विचार करने के बाद बताया है।

#मानस_शब्द #संस्कृति

शुक्रवार, 1 मार्च 2024

शास्त्र : मानस शब्द संस्कृति

 सास्त्र सुचिंतित पुनि पुनि देखिअ।


सास्त्र : मानस शब्द संस्कृति 

किसी विषय का वैज्ञानिक तरीके से संयोजित ज्ञान #शास्त्र है। यह जनहितकारी और विधिवत ज्ञान है। वेद, पुराण, स्मृति, रामायण आदि शास्त्र हैं।
तुलसीदास जी का कहना है कि इसे समय समय पर देखते रहना चाहिए। इस तरह यह नया होता रहता है। यह कितनी उपयोगी बात है। जिन ग्रंथों को शास्त्र का दर्जा मिल गया है, वह पढ़ते रहना चाहिए। हमेशा नए और अनुकूल व्याख्याएं मिलती हैं।


#मानस_शब्द #संस्कृति

गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

आमिष : मानस शब्द संस्कृति


आमिष : मानस शब्द संस्कृति

गीध अधम खग आमिष भोगी।
गति दीन्ही जो जाचत जोगी।।

गीधराज जटायु अधम पक्षी था। मांसाहारी था। जिनका आहार प्रत्यक्ष जीव हैं, वह #आमिष भोगी कहे जाते हैं। आमिष का अर्थ है मांस। सीता की रक्षा के निमित्त प्राण दांव पर लगाकर उन्होंने मुक्ति पाई। अधम होते हुए भी एक पुण्य कार्य करते ही उनकी गति ऐसी हुई जिसकी कामना योगी गण करते रहते हैं।

गीध अधम खग आमिष भोगी।


ध्यान देने की बात है कि श्रीराम जटायु से मिल चुके थे। "गीधराज से भेंट भई, बहु बिधि प्रीति बढ़ाई!" श्रीराम सबके आराध्य हैं। सबके मित्र हैं। खग, मृग, चर, अचर सबके।

#मानस_शब्द #संस्कृति


बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

पूर्णकाम : मानस शब्द संस्कृति

 

पूर्णकाम: मानस शब्द संस्कृति 

पूरनकाम राम सुख रासी।
मनुज चरित कर अज अबिनासी।।

जो सब कुछ पा चुके हैं, जिनकी समस्त कामनाएं पूर्ण हो गई हैं, वे श्रीराम सुख की राशि हैं। यह दुर्लभ स्थिति है।

नागार्जुन की बहुत प्रसिद्ध कविता है, उन्हें प्रणाम। इस कविता में उन्होंने लिखा -
"जो नहीं हो सके #पूर्णकाम
उन्हें प्रणाम।"

यह कविता सामान्य जन का अभिवादन करती है इसलिए प्रगतिवादी मानी जाती है। आधुनिक युग ने यह बोध दिया है कि पूर्णकाम होना मनुष्य की असफलता नहीं है। उसकी नियति है और यह स्वीकार कर लेने के बाद कोई हीन भावना नहीं रहती।
तुलसीदास जी श्रीराम को सदैव पूर्णकाम, सुख सागर, भक्त वत्सल, प्रणतपाल आदि कहते रहते हैं। यह ईश्वर की विशेषता है। श्रीराम जो अजन्मा और अविनाशी हैं, वह मनुष्य का अवतार लेकर लीला कर रहे हैं, #मर्यादा की स्थापना कर रहे हैं।

#मानस_शब्द #संस्कृति


मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

श्रीफल : मानस शब्द संस्कृति

श्रीफल : मानस शब्द संस्कृति

 

श्रीफल कनक कदलि हरषाहीं।

श्रीराम सीता वियोग में पेड़ों को हरा भरा देखकर दुखी हैं। इस क्रम में उनकी दृष्टि बिल्व फल पर पड़ती है। तुलसीदास ने इसे #श्रीफल कहा है। इस वृक्ष की तीन पत्तियां त्रिदेव की प्रतिनिधि हैं। पत्ते शिवजी को प्रिय हैं। पवित्र वृक्ष है।
मैंने महाराष्ट्र में नारियल को श्रीफल कहते सुना है। लेकिन मुझे सदैव से यह असंगत लगता है।

#मानस_शब्द #संस्कृति

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : तेरहवीं चौपाई

नासै   रोग   हरै  सब  पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥ संकट   तें  हनुमान  छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥ भाग - 15 तेरहवीं चौपाई श्री ह...

आपने जब देखा, तब की संख्या.