सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

नन्दिग्राम : मानस शब्द संस्कृति

नंदीग्राम : मानस शब्द संस्कृति 


नंदिगावँ करि परन कुटीरा।

कीन्ह निवास धरम धुर धीरा।।


#चित्रकूट से #चरणपीठ लेकर भरत जब लौटे तो उन्होंने नियमपूर्वक रहने का निश्चय किया। इस निमित्त उन्होंने जहां अपनी #पर्णकुटी बनाई, उस स्थान का नाम #नन्दिग्राम था। विगतवर्षों में बंगाल के इस गांव की चर्चा है।


#मानस_शब्द #संस्कृति

रविवार, 18 फ़रवरी 2024

चरणपीठ अथवा खड़ाऊं : मानस शब्द संस्कृति

 

चरणपीठ अथवा खड़ाऊं 

चरनपीठ करुनानिधान के।

जनु जुग जामिक प्रजा प्रान के।।

जो #चरणपीठ अर्थात #खड़ाऊं श्रीराम ने भरत को दिए वह जैसे समस्त प्रजाजन के लिए पहरेदार थे। पांव की सुरक्षा के लिए पहना जाने वाला एक विशेष प्रकार की पनही, चप्पल #खड़ाऊं है। यह लकड़ी का बनता है। सुपरिचित है।

#मानस_शब्द #संस्कृति


शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

दुघड़िया: मानस शब्द संस्कृति

 

दुघड़िया: मानस शब्द संस्कृति 

दुघरी साधि चले ततकाला।

किए बिश्राम न मग महिपाला।।

राजा जनक को जब भरत के सपरिवार चित्रकूट जाने का समाचार मिला तो उन्होंने #दुघड़िया मुहूर्त शोधकर यात्रा शुरू कर दी।
यहां मैं फंस गया हूं। सुधीजन बताएं कि यह कैसा मुहूर्त है? पञ्चांग में चौघड़िया मुहूर्त के बारे में तो है, इसके नहीं।

#मानस_शब्द #संस्कृति


ईति भीति : मानस शब्द संस्कृति 

ईति भीति जनु प्रजा दुखारी।

त्रिविध ताप पीड़ित ग्रह मारी।।


तुलसीदास जी ने बताया है कि #ईति_भीति से प्रजा दु:खी हो जाती है! अतिवृष्टि, अनावृष्टि, चूहों का उत्पात, टिड्डियों का हमला, तोतों की अधिकता और दूसरे राजा का आक्रमण- खेतों को क्षति पहुंचाने वाले छ: उपद्रव ईति हैं। तीनों ताप, आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक; क्रूर ग्रहों का दोष और महामारियों से पीड़ित प्रजा। दुःख के कई प्रकारों का उल्लेख है।

इनका भय दु:खद है।


#मानस_शब्द #संस्कृति


शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2024

वल्कल : मानस शब्द संस्कृति

 

वल्कल : मानस शब्द संस्कृति

बलकल बसन जटिल तनु स्यामा।

जनु मुनिबेष कीन्ह रति कामा।।


श्रीराम का वस्त्र उनका #वल्कल है, सिर पर जटा है और श्यामल देह (जैसा भरत ने देखा)। ऐसा प्रतीत होता है कि कामदेव और रति ने मुनिवेश धारण किया है।

त्वचा का दूसरा नाम वल्कल है। इसका अपभ्रंश है बोकला। छिलका।

श्रीराम वनवासी हैं तो उनकी त्वचा ही उनका वस्त्र हो गई है। यह स्वाभाविक ही है। सिर पर बरगद के दूध से जो केश बांधा था, वह जटा अब जटिल हो गई है। लट सुलझने योग्य नहीं। शरीर तो पहले ही कृष्ण वर्ण का था; कठिन जीवन व्यतीत करने पर यह और भी श्यामल हो गया है।

#मानस_शब्द #संस्कृति

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

वानप्रस्थ : : मानस शब्द संस्कृति

 

वानप्रस्थ : मानस शब्द संस्कृति 

मिलहिं किरात कोल बनवासी।
बैखानस बटु जती उदासी।।

सनातन #संस्कृति में चार आश्रम निर्धारित हैं। जीवन के उत्तर पक्ष में गृहस्थ जीवन के बाद #वानप्रस्थ की व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति जंगल में रहकर अपने जीवन के अनुभव परिपक्व करता, संजोता है।

भरत को मार्ग में कोल, किरात, भील, वनवासी, वानप्रस्थ आश्रम में रहने वाले लोग, व्रत धारी, छोटे छोटे बटुक आदि मिलते हैं।

बाहरी आक्रांताओं ने भारत की सामाजिक व्यवस्था नष्ट भ्रष्ट कर दी। ऐसी अव्यवस्था कर दी कि यह सब विलुप्त हो गया।

#मानस_शब्द


सोमवार, 12 फ़रवरी 2024

कर्मनाशा : मानस शब्द संस्कृति

 

कर्मनाशा : मानस शब्द संस्कृति

करमनास जलु सुरसरि परई।
तेहि को कहहु सीस नहिं धरई।।

उत्तर प्रदेश और बिहार की विभाजक, एक शापित नदी जिसे त्रिशंकु के लार से निकला हुआ बताया जाता है, #कर्मनाशा नाम से विख्यात है। गंगा की इस सहायक नदी में भयानक बाढ़ आती है। इस नदी का स्पर्श, स्नान वर्जित है।

#श्रीरामचरितमानस के अयोध्याकांड में कहा गया है कि #कर्मनाशा का जल गंगा में मिलने पर पवित्र हो जाता है। राम का नाम गंगा की तरह ही है। यह नाम उल्टा जपकर बाल्मिकी जी ब्रह्म के समान हो गए।
#संस्कृति

शिव प्रसाद सिंह रचित कहानी "कर्मनाशा की हार" हिंदी की चर्चित कहानियों में है।
#मानस_शब्द #संस्कृति

रविवार, 11 फ़रवरी 2024

शिविका : मानस शब्द संस्कृति

शिविका : मानस शब्द संस्कृति 

 

सिबिका सुभग न जाहिं बखानी।
चढ़ि चढ़ि चलत भईं सब रानी॥

सुकुमार, अक्षम, रोगी, वयोवृद्ध और दूल्हा-दुल्हन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए कुटियानुमा बनाई गई पालकी #शिविका कही जाती है। इसमें आगे और पीछे एक बांस नुमा लकड़ी निकली रहती है जिसे कंधे पर रखकर कहार ले जाते हैं।
#मानस_शब्द #संस्कृति

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : ग्यारहवीं चौपाई

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।। सब सुख लहे तुम्हारी सरना। तुम रक्छक काहू को डरना।। भाग - 13 ग्यारहवीं चौपाई। श्री हनुम...

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