बाबुल मोरा, नैहर छूटो रे जाए!
वाजिद अली शाह ने संगीत और नृत्य के क्षेत्र में बहुत मौलिक योगदान किया। वह दरबार में भी नाचता रहता था और खयालों में तल्लीन रहता था। कहते हैं कि जब अंग्रेजों का आक्रमण हुआ तो वाजिद अली ने उत्तराधिकार और तलाक के झगड़े से बचने के लिए अपनी बेगमों को तलाक देना शुरू किया। इन्हीं में, हजरत महल भी थीं। हजरत महल मशहूर रक्कासा थी। बिरजिस कादिर उसका बेटा था। वाजिद अली शाह ने हजरत महल को तलाक दे दिया था। उसने अपनी नौ बेगमों में से छह को तलाक दे दिया था। जब अंग्रेज आए तो दरबार के सभी कारिंदे भाग गए। नहीं भागा तो वाजिद अली। जब सिपाहियों ने उसे पकड़ा तो वह अपने तख्त पर बैठा हुआ था। उसके एक पैर में जूता था और दूसरे पैर का जमीन पर रखा हुआ। सिपाहियों ने पूछा कि तुम क्यों नहीं भागे तो उसने कहा, "कमबख्त जूता पहनाने वाला भाग गया है। मैं बिना जूते के कैसे जाता!" सिपाहियों ने उसे घसीटकर कारागार में बंद किया।
उत्तराधिकार की लड़ाई में हजरत महल बीस पड़ी और उसने अवध का कामकाज संभाल लिया। अंग्रेजों ने तलाकशुदा बेगम और उसके बेटे को उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया और अवध को हड़प लिया। १८५७ की क्रांति के समय हजरत महल ने अवध को बचाने के लिए संघर्ष किया लेकिन अंग्रेजों ने उसे मिटा दिया।
वाजिद अली शाह ने कई ठुमरियां रची। वह उन दुर्लभ कला प्रेमियों में था, जिन्होंने जोकरई के स्तर तक पहुंचकर, मुल्लों की आपत्ति को दरकिनार कर नृत्य और संगीत को प्रश्रय दिया। जब अंग्रेज उसे कैद कर ले जा रहे थे तो वह गा रहा था,
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Badhiya
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