Bharatiya Jnanpith की
पत्रिका #नयाज्ञानोदय
के दिसम्बर, १३
अंक में Uma
Shankar Choudhary की लम्बी कहानी 'कहीं
कुछ हुआ है, इसकी खबर किसी को न थी' के
विषय में दो-तीन बातें कहे बिना नहीं रहा जाता.
एक तो यह कि इस लम्बी कहानी में कहन का
उनका दिलचस्प अंदाज ही उल्लेखनीय है. दूसरा, कहानी
में वासुकी बाबू इतनी बार
लिखा गया है कि गिनने और आंकड़ा बनाने का मन कर रहा है और तीसरा, सबसे महत्त्वपूर्ण
कि कहानी एक सच्ची-झूठी गप्प या
घटना पर आधारित है. कार (मेरे सुने में शायद बाइक) चोरी होने, कुछ घंटों
बाद उसे लौटाने, मल्टीप्लेक्स के टिकिट रखने, सभी
घर वालों के फिल्म देखने
जाने और तदन्तर चोरी हो जाने की ऐसी ही घटना बीते कुछ माह पहले इलाहाबाद
में सुनाई पड़ी थी, जिसे
कहानी में कानपुर कह दिया गया है. कहानी के
उठान तक तो बहुत बढ़िया समां बंधा था लेकिन जब यह अंतिम परिणति को पहुँचा, उस
सच्ची घटना से जुड़कर अचानक भरभरा गया. जाहिर है, मेरे
समूचे रोमांच की वाट लग गयी.
हुआ
क्या? शास्त्रीय दृष्टि से सोचता हूँ तो कह सकता
हूँ कि कहानी चमत्कार और घटना के कुचक्र में फँस गयी. इस तरह उसने सहजता
खो दी और जब सहजता खो चुकी तो वह चमत्कार मात्र रह गयी. कहानी कहाँ रही? आधी
बात यह भी कि कहानी में सुनहरी नामक गिलहरी का आना बिला-वजह है. वह
क्यों है? मुझे नहीं मालूम..
दिसम्बर का पूरा अंक श्रद्धांजलि अंक कहा जा सकता
है. दरअसल नवम्बर महीने में साहित्य की जितनी क्षति काल के हाथों हुई है, उसे
देखते हे नया ज्ञानोदय के इस प्रयास को उचित कहा जा सकता है ǀ
शेष अगले अंक पर.
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