मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

फ़ैज़ अहमद फैज़ की एक नज़्म....

          आज फैज़ की एक नज़्म आपके लिए लेकर आया हूँ।

          फ़ैज़ अहमद फैज, उन गिने चुने शायरों में हैं जिन्होंने अपनी नज़्मों और शायरी में शोषितों और दलितों की आवाज़ पुरजोर तरीके से उठाई है। हालांकि अपनी कविताओं में वह कट्टर धार्मिक व्यक्ति की तरह व्यवहार करते प्रतीत होते हैं। जनरल अयूब खान की तानाशाही के खिलाफ आवाज़ बुलंद करती ये नज़्म.....

          हम देखेंगे

          लाजिम है की हम भी देखेंगे


                    वो दिन के जिसका वादा है

                    जो लौह-ए-अजल में लिख्खा है

                    जब जुल्म-ओ-सितम के कोहें-ए-गरां

                    रुई की तरह उड़ जाएंगे

                    हम महकूमों के पांव तले

                    जब धरती धड़-धड़ धड़केगी

                    और अहल-ए-हिकम के सर ऊपर जब बिजली कड़कड़ कड़केगी

                    जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से सब बुत उठवाये जाएंगे

                    हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरम मसनद पे बिठाये जाएँगे

                    सब ताज उछाले जाएँगे सब तख्त गिराए जाएँगे

                   

          बस नाम रहेगा अल्लाह का

          जो गायब भी है हाज़िर भी

          जो मंजर भी है नाज़िर भी

          उठ्ठेगा अनल-हक का नाराजो मैं भी हूँ और तुम भी हो

          और राज करेगी ख़ल्क-ए-ख़ुदाजो मैं भी हूँ और तुम भी हो

          हम देखेंगे

          लाजिम है की हम भी देखेंगे

          हम देखेंगे

          लाजिम है की हम भी देखेंगे

 

कोक स्टूडियो की यह शानदार प्रस्तुति देखिए।

https://youtu.be/unOqa2tnzSM

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

एक छोटी सी बात : रक्तदान की

          इससे पहले कि मैं आपसे घर से लौट कर आने की बात करूँ; आज की एक छोटी लेकिन महत्त्वपूर्ण बात आपसे साझा करना चाहता हूँ। आज गणतन्त्र दिवस है, लोकतंत्र का उत्सव पर्व! और आज ही मुझे मौका मिला कि मैं रक्तदान करूँ। 

          हालांकि मुझे थोड़ी सी हिचकिचाहट हुई। अरे नहीं! इसलिए नहीं कि मैं डरा, बल्कि इसलिए कि कल मेरी एक परीक्षा है और मुझे कल ही २ दिन के लिए दिल्ली भी जाना है। वहां भी एक परीक्षा है और फिर वापस ३१ जनवरी को इलाहाबाद में। तो मैं डरा। लेकिन चूँकि यह एक अच्छा मौका था कि इस दिन एक ऐसा काम हो जो यादगार हो, जिसमें दूसरे व्यक्ति का हित हो, निःस्वार्थ हो तो मैंने किया। और ये भी कि मैं बिलकुल ठीक हूँ।

          बाकी की बातें ३१ के बाद.....


मंगलवार, 12 जनवरी 2010

मेरे गांव को जानिए.....

          कल गाँव जा रहा हूँ।

          मेरा अपना घर. मेरा घर जिस सुन्दर से गाँव में है उसका नाम है- चौरंगीचक। यह गाँव गाजीपुर जनपद में है।

          जब आप बनारस से बिहार की लिए निकलते हैं और सीधा रास्ता चुनते हैं तो आपको तकरीबन ८० किलोमीटर के बाद ये जनपद मिलेगा। गाजीपुर जिन कुछ चीजों के लिए देश भर में जाना जाता है उनमें एक तो है अफीम फैक्ट्री।

          जिन साहित्यकारों  ने यहाँ की धरती पर जन्म लिया और साहित्य की दुनिया में प्रतिष्ठित हुएउनमें एक नाम है आचार्य कुबेरनाथ राय का। वह हिन्दी के शीर्षस्थ निबंधकार हैं। उपन्यास और शायरी तथा फिल्मी पटकथा लेखन के क्षेत्र में ख्याति अर्जित करने वाले एक अन्य साहित्यकार का नाम है राही मासूम रज़ा

          अरे! राही मासूम रज़ा का नाम नहीं जानतेआधा गाँव नहीं पढ़ा क्या? ‘टोपी शुक्ला’?  महाभारत तो देखा होगाअरे वही जिसे बी. आर. चोपड़ा ने निर्देशित किया था। तब तो आपको जरुर पता होगा कि उसके संवाद राही मासूम रज़ा ने ही लिखे थे। यदि आपने दूरदर्शन पर नीम का पेड़ धारावाहिक देखा है तो आपके लिए ये नाम अनजाना नहीं होगा। खैरअभी बस इतना ही राही मासूम रज़ा के बारे में।

          हमारा गाजीपुरगवर्नर जनरल कार्नवालिस की अंतिम साँसे गिनते देख कर बहुत ही खुश हुआ था। स्वाधीनता संग्राम में अष्टशहीदों के बलिदान से गौरवान्वित हुआ। सन १९६५ के भारत-पाकिस्तान युद्ध के अमर शहीद परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद से आप परिचित हैं। उनके नाम पर गंगा नदी पर सेतु है।

          तो कुछ अपने गाँव के बारे में! जिला मुख्यालय से बलिया की तरफ कोई १३ किलोमीटर की दूरी पर शाहबाजकुली मिलेगा। यहाँ १९०२ में ही रेल का स्टेशन बन गया था। गाजीपुर से सड़क मार्ग से भी जाया जा सकता है। शाहबाजकुली गंगा नदी के तट पर ही है। वहाँ से कोई एक किलोमीटर दूरचारो तरफ से प्राकृतिक सुषमा से घिरा हुआ मेरा गाँव है- चौरंगीचक।

          मैं जब भी अपने इस गाँव की बात करता हूँमुझे भवभूति की लिखी और राम द्वारा कही उक्ति याद आती है- जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

          कल जब मैं अपने गाँव जाऊंगा तो मेरे जिम्मे कई काम होंगे। मैं घर से लौट कर जब आऊंगा तो आपको बताऊंगा की मेरे गाँव में इस कड़कड़ाती ठण्ड से लड़ने के लिए लोग क्या कर रहे हैं। मैं पक्का जानता हूँ कि वहां मुझे गन्ने का रसमटर की घुघुनी और अलाव में भुना हुआ आलू खाने को मिलेगा।

शनिवार, 2 जनवरी 2010

कथावार्ता की पहली पोस्ट

नया साल २००९ की हार्दिक बधाइयाँ।

नव वर्ष के सुअवसर पर प्रस्तुत है प्रसिद्ध कवि हरीशचन्द्र पाण्डेय की कविता-

 

झाड़ियों के उलझाव से

बाहर निकलने की कोशिश में

बैलों के गले में बँधी घंटियाँ बोल उठीं

नया साल मुबारक हो

 

बिगड़ी गाड़ी को

बड़ी देर से ठीक करने में जुटा मैकेनिक

गाड़ी के नीचे से उतान स्वरों में ही बोला

नया साल मुबारक हो

 

बरसों से मंगली लड़का ढूँढ़ते-ढूँढ़ते परेशान माँ-बाप को देख

नींबू के पत्ते की नोक पर ठिठकी

जनवरी की ओस ने कहा

नया साल मुबारक हो

 

कल बुलडोजर की आसानी के लिए

आज घर को चिह्नित करते कर्मचारी को देख

घर का छोटा बच्चा दूर से ही बोला पंचम में

नया साल मुबारक हो अंकल

नया साल मुबारक हो...


- कथावार्ता की प्रस्तुति!

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहला दोहा

श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जस, जो दायक फल चारि।।  श्री हनुमान चालीसा शृंखला परिचय- #श्रीहनुमानचालीसा में ...

आपने जब देखा, तब की संख्या.