मंगलवार, 24 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला: दूसरी चौपाई

महावीर    विक्रम   बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला
श्री हनुमान जी 🙏 


दूसरी चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

श्री हनुमान चालीसा की दूसरी चौपाई में हनुमान जी के तीन और विशेषण आए हैं। यह विशेषण उनके पर्याय ही हो गए हैं। इस दूसरी चौपाई की दूसरी अर्द्धाली में उनके चरित्र की एक विशेषता बताई गई है।
हनुमान जी को महावीर कहा गया है। महा का अर्थ विशाल/बड़ा है। वह बहुत बड़े वीर हैं। वीरता के समस्त लक्षण हनुमान जी में मिलते हैं। धैर्य, शील, शौर्य और शक्ति और विनम्रता; हनुमान जी का चरित्र इस सबसे परिपूर्ण है।
वह विक्रम हैं। विक्रम का अर्थ शक्ति है, विशेष क्रम वाला है। वह स्वयं शक्ति स्वरूप हैं। उनका एक अन्य नाम बजरंगी है। वज्र के समान अंग वाले हनुमान जी को बजरंगी कहा गया है। सबको पता है कि वज्र देवराज इन्द्र का शस्त्र है, जो अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है। इसी वज्र की सहायता से वृत्रासुर का वध हुआ था और यह वज्र महर्षि दधीचि की अस्थियों से बना था।

हनुमान जी को कुमति अर्थात दुर्बुद्धि का निवारण करने वाला तथा सुमति यानि अच्छी बुद्धि, सद्बुद्धि का साथी बताया गया है। तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में एक स्थान पर लिखा है कि जहां सुबुद्धि है, वहां सम्पन्नता है और जहां दुर्बुद्धि है वहां विविध तरीके की विपत्तियां - 

जहां सुमति तहां संपति नाना।
जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना।।

इस प्रकार #हनुमानजी संपति और संपन्नता के स्वामी हैं तथा विपत्ति के निवारण कर्ता।

इस चौपाई की दूसरी अर्द्धाली में हनुमान जी के रूप का वर्णन है। उन्हें कंचन अर्थात सोने के समान रंग वाला बताया गया है। यह पीताभ होता है। कई स्थान पर हनुमान जी की देह लाल रंग की बताई गई है - लाल देह लाली लसे। यहां चालीसा में हनुमान जी को कंचन वर्ण का और सुंदर वेश में रहने वाला कहा गया है। हनुमान जी अपने को सदैव सुव्यवस्थित रखने वाले (फॉर्मल ड्रेस में) हैं, इसलिए उन्हें सुवेश अर्थात सुंदर वेश वाला कहा गया है। उनके कानों में कुण्डल है और उनके बाल घुंघराले हैं। कुण्डल कान में धारण करने वाला एक आभूषण है जिसे कान में छिद्र बनाकर पहनते हैं। यह कान में लटका रहता है।

कुंचित केश हनुमान जी की एक और पहचान है। घुंघराले बाल अतिरिक्त शोभाकारी होते हैं।
चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के रूप वर्णन के साथ साथ उनके सुरुचिपूर्ण स्वभाव का भी परिचय दिया गया है। अपने व्यक्तित्व के अनुरूप वस्त्र और आभूषण धारण करना व्यक्ति के आंतरिक और बाह्य सौंदर्य में वृद्धि करता है।

#हनुमानचालीसा_व्याख्या_सहित #HanuMan #चौथी_चौपाई #चौपाई #श्री_हनुमान_चालीसा

भाग - 4


सोमवार, 23 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहली चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहूं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनी पुत्र पवन सुत नामा।।


श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहली चौपाई 

पहली चौपाई।

श्री हनुमान चालीसा शृंखला।


हनुमान चालीसा में जो चालीस की संख्या है, वह चालीस पंक्तियों के लिए है। हनुमान जी के स्वरूप और माहात्म्य का वर्णन चालीस पंक्तियों में किया गया है। एक पंक्ति में दो चरण हैं। चार चरण से एक छंद बनता है। हनुमान चालीसा में चौपाई छंद है।  #दोहा की तरह #चौपाई भी एक मात्रिक छंद है। लेकिन यह सम छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा होती है। हनुमान जी की वंदना इसी छंद में चलती है।


इस पहली चौपाई में हनुमान जी की जय कहते हुए उन्हें ज्ञान और गुण का समुद्र कहा गया है। अर्थात् हनुमान जी का व्यक्तित्व ज्ञान और गुण का ही रूप है। हनुमान जी ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं।श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड में तुलसीदास जी ने "ज्ञानिनाम्अग्रगण्यम" कहकर उनकी वंदना की है। चौपाई के दूसरे चरण में उन्हें कपीश अर्थात कपियों का इष्ट कहा गया है और तीनों लोक को उजागर करने वाला। तीन लोक अर्थात भूलोक, पाताललोक और स्वर्गलोक। यह तीनों लोक, तीन प्रकार के प्राणियों का स्थान माना गया है। भूलोक मानव का, पाताल लोक नाग तथा दैत्यों का और स्वर्गलोक देवताओं का निवास स्थान है। हनुमान जी की महिमा इन सबमें व्याप्त है और वह इन सबको प्रकाशित करने वाले हैं।


#श्रीहनुमानचालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी को रामदूत कहा गया है और अतुलनीय बल का पवित्र स्थान (धाम) बताया गया है। उन्हें उनकी मां अंजनी के साथ जोड़कर संबोधित किया गया है और फिर उनके पिता पवन से भी।


हनुमान जी की उपाधि "रामदूत" है। श्री जानकी जी का पता लगाने के लिए भगवान श्रीराम ने उन्हें अधिकृत किया। जब वह लंका पहुंचे तो सीता जी को उन्होंने अपना परिचय रामदूत कहकर ही दिया। इस विरुद को वह अपने नाम से अभिन्न रूप से जोड़ते हैं। श्री जानकी जी का स्नेह इसके बाद उन्हें प्राप्त हुआ और यह आशीर्वाद भी कि वह अष्ट सिद्धि नौ निधि के प्रदाता भी होंगे।


हनुमान जी अतुलित बल वाले हैं। सुंदरकांड की वंदना से इसकी पुष्टि होती है - अतुलित बल धामं, हेम शैलाभ देहं! यहां भी उन्हें अतुलनीय बल का पवित्र स्थान कहा गया है अर्थात जहां से हम बल प्राप्त भी कर सकते हैं।

हनुमान जी को उनकी माता अंजनी का पुत्र कहा गया है। यह सूचक है कि सनातन संस्कृति में पुत्र की एक पहचान उसकी मां से है। यह मातृ शक्ति के समाज में महत्वपूर्ण स्थान का द्योतक है। बालक की पहचान उसके पिता से ही नहीं है, अपितु उसकी मां से भी है।


हनुमान जी पवनपुत्र हैं। जिस तरह वायु की व्याप्ति सर्वत्र है, हनुमान जी भी उसी गति और प्रभाव से विद्यमान हैं। असंभव कार्य करने, क्षण मात्र में, संकल्प करते ही कर लेने का जो गुण और कौशल हनुमान जी में है, वह अपने पिता के ही प्रभाव से।


यह चौपाई हनुमान जी का परिचय कराती है और इस परिचय में उनका उज्ज्वल चरित्र सन्निहित है।


भाग -3


#हनुमानचालीसा_व्याख्या_सहित

रविवार, 22 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दूसरा दोहा

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।

बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।



श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
दूसरा दोहा।

श्रीहनुमानचालीसा के इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास ने अपने विनय का परिचय देते हुए स्वयं को बुद्धिहीन माना है और पवन कुमार अर्थात हनुमान जी का स्मरण किया है। वह याचना करते हैं कि हनुमान जी उन्हें बल, बुद्धि और विद्या का दान करें। साथ ही समस्त क्लेश और विकार का हरण कर लें।

वह कहते हैं कि स्वयं को बुद्धिहीन समझकर मैं पवनकुमार हनुमान जी का स्मरण कर रहा हूं। वह मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें तथा मुझमें निहित समस्त क्लेश और विकार का हरण कर लें। यहां स्वयं को बुद्धिहीन कहना विनयशीलता का परिचायक है। वह हनुमान जी से बल बुद्धि और विद्या तीनों की मांग करते हैं। इसमें अंतर्निहित है कि बुद्धि ही बल और विद्या को अर्जित करने वाली है। चूंकि वह बुद्धि में हीन अर्थात नीचे हैं, इसलिए बल और बुद्धि भी कम है। इसके साथ ही इसका दुरुपयोग करने वाली क्लेश वृत्ति अर्थात झगड़ालू स्वभाव तथा दुर्गुण भरने वाले विकार को दूर करना भी आवश्यक है। चूंकि यह सब कहीं अन्तस्थ होते हैं इसलिए इन्हें बलात् ले लेने की प्रार्थना की गई है।

#हनुमानचालीसा के पहले दोहे में श्री गुरु जी की वंदना के बाद रघुवीर श्रीराम को प्रणाम किया था। दूसरे दोहे में हनुमान जी को पवन कुमार कहकर स्मरण करने की बात की गई है। सुमिरों शब्द में बार बार नाम लेने की भावना निहित है।

इस शृंखला में हम बजरंग बली हनुमान जी का स्मरण कर उनसे प्रार्थना कर रहे हैं कि वह हमें बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें।

#Hanumanchalisa
#Hanumanji #दोहा

भाग - 2

शनिवार, 21 दिसंबर 2024

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : पहला दोहा


श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउं रघुबर बिमल जस, जो दायक फल चारि।। 


श्री हनुमान चालीसा शृंखला



परिचय-

#श्रीहनुमानचालीसा में कुल तीन दोहे और बीस चौपाइयां हैं। बीस चौपैयाँ चालीस पंक्तियों में हैं, इसलिए यह चालीसा है। साहित्य में छंदों की संख्या के आधार पर कई ग्रंथों का चलन मिलता है। श्री हनुमान चालीसा की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की। यह एक स्वतंत्र पुस्तक है। यह सबसे छोटा ग्रन्थ है। दोहा और चौपाइयों में निबद्ध यह रचना हनुमान जी के चरित्र का वर्णन करने वाली है। 


व्याख्या- 

इस चालीसा का पहला दोहा श्रीगुरूजी की वंदना करता है। यह दोहा #श्रीरामचरितमानस के अयोध्या काण्ड में भी है। इस दोहे में तुलसीदास जी "परम श्रद्धेय श्री गुरुजी के चरणों में अपना शीश नवाते हैं। वह कहते हैं कि श्री गुरुजी के कमल रूपी चरण के रज अर्थात धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को साफ कर भगवान श्रीराम के निर्मल यश का वर्णन करता हूं। वह श्रीराम जी, जिनके यश का वर्णन भी चारो प्रकार के फल का प्रदाता है। 

चार प्रकार के फल का आशय है पुरुषार्थ चतुष्टय। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को चार फल कहा गया है जिसे प्राप्त करना मानव जीवन का चरम लक्ष्य है। दोहे में "रघुबर" शब्द रघुकुल के परम प्रतापी राजा भगवान श्रीराम के लिए प्रयुक्त हुआ है। उनका चरित्र और व्यवहार ऐसा है जिससे उनके संबंध में की गई चर्चा विमल यश कही गई है। विमल अर्थात् किसी भी प्रकार के दोष दूषण से मुक्त। भगवान श्रीराम का चरित्र ऐसा ही है। 

श्रीगुरू के चरण कमल के धूल से मन रूपी दर्पण को साफ करना!  ऐसा कलाप तुलसीदास जी ने बताया है। धूल से दर्पण साफ करना एक विशेष प्रविधि है। जब तैल आदि के धब्बे दर्पण पर पड़ जाते हैं तो उन्हें हटाने के लिए धूल की सहायता ली जाती है। धूल, सामान्यतया गंदा करती है किंतु दर्पण के मामले में वही स्वच्छ करने वाला उपादान है। श्रीगुरू के चरणों की धूल भी ऐसी उपयोगी है जो मन पर पड़े हुए मैल को हटा देती है। 

तुलसीदास जी महान कवि हैं। #श्रीहनुमानचालीसा के इस प्रथम वंदना वाले दोहे में उन्होंने विशिष्ट वर्णन पद्धति का आश्रय लिया है।  

इस चालीसा का आरंभ दोहा छंद से हुआ है। #दोहा एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण बराबर होते हैं और मात्राएं 13-13 होती हैं। दूसरे और चौथे चरण भी समान मात्रा वाले होते हैं। यहां 11-11 मात्रा होती है। अर्द्धसम कहने का आशय है आधा समान। मात्रिक का अर्थ है, जिसमें मात्राओं की गणना का ध्यान रखा जाता है। 

भाग - १ 


#एकधागा 

सोमवार, 16 दिसंबर 2024

राजकपूर के दस गीत

राज कपूर अभिनीत/निर्देशित फिल्मों के दस गीत। #एक_धागा।

इन गीतों में उनका समूचा आभामंडल है। 


गीत - आवारा हूं 

फिल्म - आवारा

वर्ष - 1951

आवारा हूं


गीत - प्यार हुआ, इकरार हुआ

फिल्म - श्री 420

वर्ष - 1955

प्यार हुआ, इकरार हुआ




गीत - जागो मोहन प्यारे जागो

फिल्म - जागते रहो 

वर्ष - 1956

जागो मोहन प्यारे


गीत - संगम होगा या नहीं 

फिल्म - संगम

वर्ष - 1964

संगम होगा कि नहीं




गीत - सजनवाँ बैरी हो गए हमार

फिल्म - तीसरी कसम 

वर्ष - 1966

सजनवां बैरी हो गए हमार


गीत - मोरे अंग लग जा बालमा

फिल्म - मेरा नाम जोकर 

वर्ष - 1970

मोरे अंग लग जा बालमा




गीत -हम तुम एक कमरे में बंद हों 

फिल्म - बॉबी

वर्ष -1973

हम तुम एक कमरे में बंद हों


गीत - सत्यम शिवम सुंदरम 

फिल्म - सत्यम शिवम सुंदरम 

वर्ष -1978

सत्यम शिवम सुंदरम




गीत - भंवरे ने खिलाया फूल

फिल्म - प्रेमरोग

वर्ष -1982

भंवरे ने खिलाया फूल



गीत - तुझे बुलाएं ये मेरी बाहें 

फिल्म - राम तेरी गंगा मैली

वर्ष -1985 

तुझे बुलाएं ये मेरी बाहें




दस गीत यहां पूरे होते हैं। अन्य महत्वपूर्ण गीतों का लिंक आप साझा कर सकते हैं।







रविवार, 15 दिसंबर 2024

राजकपूर - 100 साल : एक धागा

राजकपूर - 100 साल : एक धागा

मैंने सिनेमा हॉल में #राजकपूर की बनाई पहली फिल्म "राम तेरी गंगा मैली" देखी। प्रयागराज के एक सिनेमा हॉल में लगी थी और मौसी के बेटे आए थे किसी काम से। तब मैं बी ए प्रथम वर्ष का छात्र था। मैंने राजकपूर की ख्याति सुनी थी। मंदाकिनी से परिचित था। फिल्म का गीत सबको प्रिय लगा था क्योंकि रवींद्र जैन को पारंपरिक धुनों पर शब्द सजाना आता था।

राम तेरी गंगा मैली में जब मंदाकिनी स्नान करती हैं तो वहां राजकपूर का उद्देश्य उनकी निर्मलता और पवित्रता का संज्ञान कराना था। इसलिए मंदाकिनी एकवसना होकर स्नान कर रही थीं - तू जिसकी खोज में आया है! बाद में फिल्म में गंगा अपने तरीके से बहती हैं और काशी, कोलकाता सब आता है। मुझे काशी को इस तरह ले आना रुचा नहीं लेकिन राजकपूर यह करते थे।

मंदाकिनी
Mandakini : Ram Teri Ganga Maili












    




हम लोगों ने दत्त चित्त होकर फिल्म देखी। बाहर निकलकर दोनों ही बुखार में थे।
राजकपूर यह बुखार ले आने वाले फिल्मकार थे।

राम तेरी गंगा मैली देखने से पहले मैं बॉबी देख चुका था। डिंपल कपाड़िया उस फिल्म में बहुत आकर्षक लगी थीं। वह उनकी पहली ही फिल्म थी और झूठ बोले कौवा काटे से वह छा गईं। जब बॉबी का गीत बजा, हम तुम एक कमरे में बंद हों तो वह भी खयालों में ले जाने वाले वाला गीत बन गया था।


बॉबी में वर्गीय संघर्ष था और इस वर्ग भेद को नए प्रेमी ही समाप्त कर सकते हैं। राजकपूर इस फिल्म के साथ बहुत सी कहानियां लेकर आए थे। उन्हें सनसनी बनाना आता था। चित्रहार, अखबारों के पन्ने और फिल्मी कलियां से होते हुए यह सब छनकर पहुंचता था।
फिल्म से वर्ग संघर्ष और चेतना तो क्या ही बनी, राज कपूर की छाप अवश्य बनी थी।
#राजकपूर100

इसी क्रम में कभी सत्यम शिवम सुंदरम का उल्लेख हुआ और वहां जीनत अमान थीं। स्त्री विमर्श करती हुई। रूपा। राज कपूर पात्र चुनकर ले आते थे। उनका उद्देश्य समाजवादी, साम्यवादी राज्य की स्थापना था। वह लाल टोपी रूसी धारण करने वाले फिल्मकार थे तो उन्हें समर्थन भी खूब मिलता था।







भारतीय समाज किंचित रूढ़िवादी हो चला समाज था जहां यह सब परम गोपनीय था तो राज कपूर वर्ग और जाति को तोड़ते हुए एक बंधे बंधाए सूत्र पर काम कर रहे थे। सत्यम शिवम सुंदरम ने इस सूत्र को सफल सिद्ध किया।

राजकपूर शो मैन बन चुके थे। उनका परिवार प्रतिष्ठित परिवार था और फिल्मी दुनिया में वही एक घराना था जो हिंदू था, वरना फिल्मों में ऐसे ऐसे लोग भर गए थे जो मुगले आजम, यहूदी और रज़िया सुल्तान बनाने और इतिहास की निर्मिति में जुटे हुए थे। इसका लाभ #राजकपूर को मिला।

राज कपूर को यह सूत्र कहां से मिला था, यह तो शोधकर्ता बताएंगे लेकिन मैंने यह देखा कि जागते रहो से लेकर संगम, मेरा नाम जोकर तक आते आते राज कपूर ने इसे सफलता की गारंटी के कसौटी पर अच्छी तरह कस लिया था। मेरा नाम जोकर में तो वह बहुविध यह ले आए। अलग अलग रूपाओं को लेकर उतरे।

जो राजकपूर श्री 420, आवारा आदि में साम्यवादी दिखाई देते हैं, वह एक झीना परदा था। असल चीज कुछ और ही थी।


तो राजकपूर ने जो दृश्य होना चाहिए था, उसे परिदृश्य बना दिया और परिदृश्य को मुख्य दृश्य।

उन्होंने दुनिया को एक सर्कस मान लिया और स्वयं एक जोकर बन गए।

#Rajkapoor


राज कपूर ने कुछ लोगों को लेकर एक दल बनाया और उन्हें अपने दल में सम्मिलित किया। लता मंगेशकर, मुकेश, शंकर जयकिशन, शैलेन्द्र, रवींद्र जैन आदि को लेकर उनके अपने आग्रह थे। उनकी टीम बनती थी।

जहां तक अभिनय का प्रश्न है, राज कपूर ने जहां स्वयं की छूट ली और खुद को निर्देशित किया वहां वह शुद्ध रूप से चार्ली चैपलिन के अनुकर्ता भर हैं। मेरा नाम जोकर में यह चरित्र सबसे अधिक मुखर होता है। अन्यत्र भी वह उसी मशीनीकृत अंदाज में जाने का प्रयास करते दिखते हैं, हाव भाव करते हुए।

जब वह तीसरी कसम में हीरामन की भूमिका में आए थे तो उनको एक गुणी अभिनेता के रूप में देखा जा सकता है। उनमें अभिनय की अपार संभावना थी लेकिन वह एक टैबू बनकर रह गए।




आने वाले समय में राज कपूर एक महान अभिनेता के रूप में समादृत होते रहेंगे। उन्होंने सिनेमा में सफल होना सिखाया। शो ऑफ करना सिखाया। अपने लोगों के साथ खड़ा रहकर एक मिसाल दी। वह एक ध्रुव थे। जो काम पृथ्वीराज कपूर ने कर दिया था, राजकपूर ने उसे आगे बढ़ाया।

वह सजग फिल्मकार थे। अपनी रुचि और दृष्टि में प्रखर। वह अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए लोगों को मनाना जानते थे। उन्होंने वह सब प्राप्त किया जो वह अपेक्षा करते थे।

आज उनके जीवन का 100वाँ वर्ष पूर्ण हुआ। राज कपूर को देश अपने तरीके से याद कर रहा है।

श्रद्धा के दो फूल मेरी तरफ से भी।


बुधवार, 11 दिसंबर 2024

राम रसायन तुम्हरे पासा।

राम  रसायन  तुम्हरे  पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा।।

भाग - 34
चौपाई - 32

इस चौपाई में हनुमान जी को सदैव भगवान श्रीराम के निकट रहने वाले सेवक के रूप में बताया गया है जिसके पास राम रसायन है।



राम रसायन क्या है?
सामान्यतया रसायन का अर्थ ओषधि से लिया जाता है। कहा जाता है कि राम नाम एक ओषधि है जो हर तरह के दुःख और कष्ट से मुक्त करने में सक्षम है। किंतु यह राम रसायन का सरलीकरण ही है। राम रसायन कष्ट में पड़े और दुःखी जन के लिए ओषधि है लेकिन यह नाम सर्वजन के लिए आनंददायी है इसलिए ओषधि कहना इसका क्षेत्र संकोच करना है।
रसायन रस का आनंद है। रस की व्याख्या करते हुए तैत्तिरीयोपनिषद् में कहा गया है - रसो वै स:।
रसं ह्येवायं लब्ध्वानन्दी भवति।
अर्थात् वह रस का स्वरूप है। जो इस रस को पा लेता है वही आनन्दमय बन जाता है। सः यहाँ स्वयम्भू सर्जक के लिए प्रयोग किया गया है और रस उनकी सुन्दर रचना से मिला आनन्द है। जब प्राणी इस आनन्द को, इस रस को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं आनन्दमय बन जाता है।

अथर्ववेद में आता है - "श्रीरामएवरसोवैसः।यस्यदासरसोवैपादः। यस्य शान्तरसो वै शिरः। वात्सल्यः प्राणः। शृङ्गारो बाहू। संख्यात्मा।" अर्थात् वह रसो वै सः ही एकमात्र #श्रीराम हैं। जिसका दास्य रस है उसके पैर हैं, शांत रस है सिर है, वात्सल्य रस है प्राण है, श्रृंगार रस है भुजा है और सख्य रस है आत्मा।

अतः स्पष्ट है कि रसायन और उसमें भी राम रसायन अतिविशिष्ट तत्त्व है। श्री हनुमान जी के पास यह है। हनुमान चालीसा इसे विशेष रूप से उल्लिखित करता है।

आइए, हम हनुमान जी महाराज का वंदन करें। हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें।
#जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की
#हनुमानचालीसा_व्याख्या_सहित #HANUMAN #बत्तीसवीं_चौपाई #चौपाई
#श्री_हनुमान_चालीसा #जय_श्री_राम_दूत_हनुमान_जी_की
#हनुमानचालीसा_शृंखला

चौंतीसवां भाग, हनुमान चालीसा

सद्य: आलोकित!

चारों जुग परताप तुम्हारा।

चारों  जुग  परताप  तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥ साधु सन्त के  तुम  रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे।। भाग- 17 पन्द्रहवीं चौपाई। श्री...

आपने जब देखा, तब की संख्या.