श्रीफल : मानस शब्द संस्कृति |
श्रीफल कनक कदलि हरषाहीं।
#मानस_शब्द #संस्कृति
श्रीफल : मानस शब्द संस्कृति |
श्रीफल कनक कदलि हरषाहीं।
#मानस_शब्द #संस्कृति
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कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः ।
उत्तिष्ठस्त्रेता भवति कृतं संपद्यते चरंश्चरैवेति ॥
[शयन की अवस्था कलियुग के समान है, जगकर सचेत होना द्वापर के समान है, उठ खड़ा होना त्रेता सदृश है और उद्यम में संलग्न एवं चलनशील होना कृतयुग/सत्ययुग के समान है । अतः तुम चलते ही रहो!]
उज्जैन |
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आस्ते भग आसीनस्योर्ध्वस्तिष्ठति तिष्ठतः ।
शेते निपद्यमानस्य चराति चरतो भगश्चरैवेति ॥
[जो मनुष्य बैठा रहता है उसका सौभाग्य भी रुका रहता है। जो उठ खड़ा होता है उसका सौभाग्य भी उसी प्रकार उठता है। जो शयनरत रहता है उसका सौभाग्य भी सो जाता है। और जो विचरण करता है उसका सौभाग्य भी चलने लगता है। अतः तुम चलते ही रहो!]
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ऐतरेय ब्राह्मण, तृतीय अध्याय
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Chintha Chettu is Tamarind tree in Telugu. Chintha is Tamarind and Chettu is tree.
now read the lesson.
Chintha Chettu
Chintha Chettu is a tamarind tree.
This famous tamarind tree is in Gwalior.
It grows over Tansen’s tomb.
Tansen was a great singer.
People in Gwalior say:
"Eat the leaves of this tamarind tree
And you’ll also sing like Tansen!"
म्लेच्छ : मानस शब्द संस्कृति |
गीधराज सुनि आरत बानी।
रघुकुल तिलक नारि पहिचानी।।
अधम निसाचर लीन्हें जाई।
जिमि मलेछ बस कपिला गाई।।
#मानस_शब्द #संस्कृति
लक्ष्मण रेखा : मानस शब्द संस्कृति |
बचन जब सीता बोला।
हरि प्रेरित लछमन मन डोला।।
बन दिसि देव सौंपि सब काहू।
चले जहां रावन ससि राहू।।
स्वर्णमृग के आर्तस्वर को सुनकर सीता जी ने लक्ष्मण को मर्म वचन कहे। लक्ष्मण सीता को "वन और दिशाओं को सौंपकर" श्रीराम की सुधि लेने गए।
यहां लोक में #लक्ष्मणरेखा की चर्चा मिलती है। वह रेखा जिसे लक्ष्मण खींच गए थे और कहा था कि इसे पार नहीं करना है। जिसे रावण पार नहीं कर सकता था।#श्रीरामचरितमानस में यह युक्ति अथवा पद नहीं है।
#मानस_शब्द #संस्कृति
पञ्चवटी : मानस शब्द संस्कृति |
पावन पंचवटी तेहि नाऊँ।।
दंडकारण्य में गोदावरी नदी तट पर पांच विशाल वट वृक्ष वाले स्थान का नाम #पञ्चवटी है। यहीं गीधराज जटायु से भेंट हुई। यहीं सूपनखा आई और फिर स्वर्णमृग, मारीच वध तथा सीता हरण हुआ। यह स्थान श्रीराम के जीवन में बड़े उतार चढ़ाव की भूमि है।
#मानस_शब्द #संस्कृति
ज्ञान : मानस शब्द संस्कृति |
ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं।
देख ब्रह्म समान सब माहीं।।
ज्ञान क्या है? दुनिया की सभी सभ्यताओं में इसके अभिलाषी हैं। #श्रीरामचरितमानस में कहा गया है कि #ज्ञान वह है जहां मान, दंभ, हिंसा, टेढापन आदि एक भी दोष न हो और जो सबमें समानरूप से ब्रह्म को देखता है।
श्रीमद्भागवतगीता में मनुष्य के 18 दोष गिनाए गए हैं। इन दोषों से मुक्त होना ही #ज्ञान है। जो भी इन दोषों से मुक्त हो जाता है, परमपद को प्राप्त हो जाता है। इस निमित्त इंद्रिय निग्रह के लिए कहा गया है। नित्य अध्यात्म की स्थिति को चुनना और तत्त्व को जानना होता है।
#संस्कृति
#मानस_शब्द #संस्कृति
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