-डॉ. कुलभूषण मौर्य
प्रवासी कथाकार उषा राजे सक्सेना यूनाइटेड
किंगडम में बसी भारतीय मूल की लेखिका हैं। वे अपने लेखन के माध्यम से प्रवासी
भारतीयों के अपने देश के साथ सम्बन्धों को पुख्ता करती हैं। प्रवास में, वाकिंग
पार्टनर, वह रात और अन्य कहानियाँ के माध्यम से वे अपने
देश भारत की सभ्यता, संस्कृति और भाषा के प्रति प्रेम
को उजागर करती हैं। साथ ही प्रवासी भारतीयों के मन में घर वापसी की उम्मीद को कायम
रखती हैं। उषा राजे सक्सेना की कहानी ‘ऑन्टोप्रेन्योर’ वर्तमान की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में रिश्तों की गर्माहट को बचाये रखने की
मर्मस्पर्शी गाथा है।
‘ऑन्टोप्रेन्योर’ का अर्थ है- वित्तीय जोखिम
उठाने वाला उद्यमी। उषा राजे की कहानी का यह शीर्षक कथा की मूल संवेदना को अपने
भीतर समेटे हुए है। कथा नायिका के लिए व्यंग्य के रूप में प्रयोग होने वाला ‘ऑन्टोप्रेन्योर’ शब्द उस समय एकदम सही साबित
होता है, जब वह अपने पति के लिए सचमुच वित्तीय जोखिम
उठाती है और अपनी सिंगापुर यात्रा को टाल देती है। वह ऑन्टोप्रेन्योर है, प्रोफेशनल है, किन्तु पारिवारिक रिश्तों को
निभाने में भी पीछे नहीं है।
‘ऑन्टोप्रेन्योर’ रो और तिश नामक दो किशोरों के
किशोरावस्था से युवावस्था में प्रवेश करने और अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को
प्राप्त करते हुए जीवन जीने की कथा है। रो और तिश की जान-पहचान बस से यात्रा करते
हुए होती है। दोनों की बात-चीत से पता चलता है कि रो का पूरा नाम रोहन बिसारिया है
और तिश का तुशारकन्या राय। यानी कि दोनों भारतीय मूल के हैं और साउथ लंदन के
स्ट्रेथम के एक ही इलाके में रहते भी हैं। जिस समय दोनों की प्रथम मुलाकात होती है, दोनों ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र थे। रो फ्रेंच लिटरेचर में बी.ए.
आनर्स कर रहा था तो तिश मीडिया और फैशन डिजाइनिंग में। दोनों की यह जान-पहचान
धीरे-धीरे चाहत में बदल जाती है। किन्तु रो अपने पिता के स्वास्थ्य के कारण
बात-चीत को आगे बढ़ाने से हिचकता है। रो अपनी घरेलू परेशानियों से घिरा है। पिता के
खराब स्वास्थ्य के कारण उसे माँ के साथ फार्मेसी की दुकान में हेल्प करनी पड़ती है।
रो और तिश दोनों ही अपने कैरियर को लेकर गम्भीर हैं। आर्ट और म्यूजिक के साथ
स्पोट्र्स में भी रो की गहरी दखल थी । तिश भी मीडिया और फैशन डिजायनिंग के साथ
पब्लिक स्पीकिंग में ए लेवल करती है। साथ ही हर गुरूवार को वह सालसा लैटिन अमेरिकन
नृत्य का प्रशिक्षण लेती है। शुक्रवार और शनिवार को हैरडस के एकाउंट डिपार्टमेंट
में काम करती है और रविवार को भारतीय विद्या भवन में कथक सीखती है। तिश अपने
व्यक्तित्व को निखारने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है और भविष्य को लेकर
महात्वाकांक्षी है।
रो की किशोरावस्था की जान-पहचान घर से दूर जाकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से
मास्टर डिग्री लेते हुए और घनिष्ठ होती है। वे एक दूसरे से प्रेम करने लगते हैं
किन्तु विवाह के नाम पर तिश तैयार नहीं होती क्योंकि वह अपना स्वयं का बिजनेस करना
चाहती है। यह बात वह रो से साफ-साफ कह देती है। मास्टर करने के बाद रो क्वींस
कॉलेज में कामर्स विभाग में अध्यापन करने लगता है और तिश नॉर्थ लंदन के टैलिस्मान
फैशन फर्म में काम करती है। वहाँ दोनों साथ ही रहते हैं। तिश अपना व्यापार स्थापित
करने के लिए भारत में मुंबई जैसे शहर को चुनती है और मुंबई चली जाती है। कुछ दिनों
के बाद रो भी मुंबई विश्वविद्यालय के कॉमर्स विभाग में फ्रेंच पढ़ाने लगता है।
दोनों मुंबई में साथ ही रहते हैं। रो के माता-पिता के दबाव के कारण दोनों विवाह के
बन्धन में इस वादे के साथ बँध जाते हैं कि ‘‘शादी के
बाद तुम मुझे ट्रेडिशनल पत्नी के रोल मॉडल में ढलने का दबाव नहीं डालोगे और साथ ही
मेरे व्यवसाय के मामले में टोका-टोकी नहीं करोगे।’’ रो
और तिश का दाम्पत्य जीवन कुछ दिन तो ठीक चलता है किन्तु जैसे-जैसे तिश अपने
व्यवसाय को बढ़ाती है, वह काम में उलझती जाती है। वह रो
को समय नहीं दे पाती। इससे रो की खिन्नता बढ़ती जाती है। वह अपने को छला हुआ महसूस
करता है । जब वह तिश से अपने माता-पिता को मुंबई बुलाने की बात करता है तो तिश मना
कर देती है, उल्टे उसे ही लंदन हो आने की सलाह देती है।
इससे रो के मन को ठेस पहुँचती है। वह गुस्से में यूनिवर्सिटी जाने के लिए निकलता
है। ड्राइवर को पिछली सीट पर बैठा कर खुद ड्राइव करता है। तेज रफ्तार के कारण गाड़ी
टकरा जाती है और रो गम्भीर रूप से घायल हो जाती है। व्यवसाय के सिलसिले में
सिंगापुर के लिए निकल रही तिश को जब एक्सिडेंट की सूचना मिलती है तो वह सिंगापुर की
यात्रा रद्द कर देती है। स्वयं की जगह अपनी असिस्टेंट को मीटिंग के लिए जाने को
कहकर वह अस्पताल पहुँचती है। रो की स्थिति ज्यादा गम्भीर न होने पर वह चैन की साँस
लेती है और रो के माता-पिता को मुंबई बुलाने के लिए फोन करती है। वह उनके बीजा से
लेकर टिकट तक का प्रबन्ध स्वयं करती है। इससे रो के माता-पिता के मन में तिश के
व्यक्तित्व के सम्बन्ध में जो अवधारणा थी, वह बदल जाती
है। साथ ही रो की सोच में भी परिवर्तन आता है। रो और उसके माता-पिता तिश को न केवल
एक सफल व्यवसायी के रूप में देखते हैं एक व्यवहार कुशल पत्नी के रूप में भी वह खरी
उतरती है। रो को यह बात समझ में आती है कि स्वयं के खालीपन को भरने के लिए तिश को
बन्धन में डालने की बजाय स्वयं को रचनात्मक रूप से सक्रिय करना चाहिए और वह अपने
लिए पेंटिंग क्लास शुरू करने की सोचता है।
‘ऑन्टोप्रेन्योर’ कहानी में मुख्य पात्र तिश है।
उषा राजे ने तिश को आज के परिवेश की स्त्री के रूप में रचा है। वह कथा की नायिका
है। तिश एक महत्वाकांक्षी लड़की है। अपनी पढ़ाई से लेकर कैरियर तक वह लक्ष्य
केन्द्रित है। अपने छात्र जीवन से ही वह अपने व्यक्तित्व को निखारने को लेकर तत्पर
है। तिश अपने भविष्य पर फोकस्ड एक मध्यमवर्गीय महत्वाकांक्षी लड़की है। जीवन के हर
क्षण का आनन्द लेते हुए वह आगे बढ़ती है। रो को लेकर वह प्रतिबद्ध तो है, किन्तु अपना स्वतन्त्र अस्तित्व खोना नहीं चाहती। वह विवाह के बन्धन में
इसलिए बँधना नहीं चाहती कि उसे घर की जिम्मेदारयिाँ उठानी पड़ेंगी। वह एक ऐसी
आधुनिक स्त्री के रूप में सामने आती है, जो जीवन के हर
क्षेत्र में सफल साबित होती हैं। अपने काम को लेकर वह गम्भीर है। ‘ऑन्टोप्रेन्योर’ उसके चरित्र के लिए सटीक बैठता
है। वह वित्तीय जोखिम उठाने वाली उद्यमी है, इसीलिए वह
सफल होती है। लेकिन वह रिश्तों को लेकर कहीं भी लापरवाह नजर नहीं आती। वह रो से
कहती है-‘‘मेरे जीवन में तुम्हारी अपनी जगह है। तुम मेरे लिए
महत्वपूर्ण हो, पर मेरे बिजनेस और महत्वाकांक्षाओं से
ऊपर नहीं।’’ वह रो से रुकावटें न डालने का वादा लेकर
उससे विवाह कर लेती है। रो के माता-पिता की नजर में भी वह व्यवहार कुशल और
प्रियदर्शिनी है। तिश को आरम्भ से ही व्यस्त जीवन पसन्द है। वह एक पल भी शान्त
नहीं बैठना चाहती। व्यस्त रहते हुए भी घर और परिवार को व्यवस्थित रखती है। उसके
चरित्र का सबसे उन्नत पहलू वहाँ सामने आता है, जब वह रो
के एक्सिडेंट में घायल होने पर सिंगापुर की अपनी महत्वपूर्ण मीटिंग कैंसिल कर देती
है और रो के माता-पिता को बिना किसी तकलीफ के मुंबई बुलाने का प्रबन्ध करती है।
यहाँ वह साबित कर देती कि व्यवसाय उसके लिए महत्वपूर्ण होते हुए भी पारिवारिक
रिश्तों की अहमियत उसके जीवन में कम नहीं है। वह अपने जीवन साथी के लिए उसकी
मुश्किलों में उसके साथ खड़ी है। वह अपने कार्य और पारिवारिक जीवन में संतुलन रखने
वाली संवेदनशील और सक्षम स्त्री है।
रो विदेश में पला-बढ़ा एक संतुलित जीवन जीने वाला युवक है। वह अपनी पढ़ाई को
लेकर गम्भीर है। साथ ही पारिवारिक जिम्मेदारी को समझने वाला है। पिता के खराब
स्वास्थ्य के कारण उसे पढ़ाई के साथ ही दुकान पर भी बैठना पड़ता है। वह मास्टर
डिग्री और पीएचडी करने के बाद अध्यापन करता है। इसके साथ ही वह भावनात्मक है। वह
छात्र जीवन से ही तिश से प्रेम करता है किन्तु अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के
कारण बता नहीं पाता। आर्थिक रूप से सक्षम हो जाने पर वह तिश के साथ के लिए ही
क्वींस कॉलेज छोड़कर मुंबई चला जाता है और तिश की हर शर्त को मानते हुए उससे विवाह
करता है। किन्तु उसके भीतर कुछ कमजोरियाँ हैं। तिश की व्यस्तता उसे परेशान करती
है। वह खिन्न रहता है और स्वयं को छला हुआ महसूस करता है। इतना ही नहीं वह क्रोधी
भी है। तिश के व्यवहार से वह अपमानित महसूस करता है और आत्मघाती कदम उठाता है। तिश
का गुस्सा गाड़ी के एक्सिलेटर पर निकालता है। फलस्वरूप् दुर्घटना का शिकार होता है।
किन्तु दुर्घटना के पश्चात वह पाश्चाताप करता है। रो का व्यक्तित्व से उस समय
पुरूष मानसिकता की गंध आती है, जब तिश अपने क्लाइंट के
साथ दिल्ली चली जाती है। तिश रो को ‘लेड बैक’ कहती है, जो दस वर्ष पूर्व जहाँ खड़ा था, वहीं आज भी है।
तिश के अलावा कहानी के पात्रों में रो के माता-पिता, रो का मित्र मनीष, शान्ताबाई, नईम आदि हैं। रो के माता-पिता शोभना और अभय भारतीय हैं, जो अच्छे भविष्य के लिए लंदन में रहते हैं। रिटायर होने के बाद वे
फार्मेसी की दुकान चलाते हैं। रो के माता-पिता लंदन के स्व़च्छन्द वातावरण में
रहते हुए भी रूढ़ियों और परम्पराओं से बँधे हैं। वे अपने बेटे रो का पारिवारिक जीवन
सुखी देखने की मंशा रखने वाले माता-पिता हैं। वे पूर्वाग्रह से मुक्त हैं। तिश को
लेकर जो उनके मन मे पूर्व धारणा बनी है, वह तिश की
व्यवहार कुशलता को देखकर बदल जाती है। मनीष भारतीय मूल का युवक है। वह अपने परिवार
की जिम्मेदारी को उठाने के लिए पढ़ाई के साथ ही पेट्रोल-पम्प पर कार्य भी करता है।
वह अपने मित्र के प्रेम को पुख्ता करने की कोशिश करता दिखाई देता है, जैसा कि सभी मित्र होते हैं। शान्ताबाई एक सुरुचिपूर्ण, कुशल, प्रशिक्षित, हाउसकीपर
है, जो अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझती है। नईम तिश
का ड्राइवर और मैसेन्जर है। शान्ताबाई और नईम दोनों भरोसेमन्द और जिम्मेदार हैं, जिनके ऊपर जिम्मेदारियाँ डालकर निश्चिन्त हुआ जा सकता है।
उषा राजे सक्सेना संवादों के माध्यम से कहानी को आगे बढ़ाती हैं। कहानी के
कथानक के अनुसार लम्बे और छोटे दोनों प्रकार के संवादों की रचना उन्होंने ‘ऑन्टोप्रेन्योर’ कहानी में की है। संवाद के
माध्यम से तिश, रो, उसके
माता-पिता और मनीष की जीवन स्थितियाँ, उनकी मनोदशा, भविष्य को लेकर उनके विचार उजागर होते हैं। एक संवाद देखिए-
रो ने तिश का मन टटोला तो जिश चकित-सी बोली- ‘‘रो
हम दोस्त हैं। एक दूसरे के लिए प्रतिबद्ध होते हुए भी स्वतन्त्र अस्तित्व रखते
हैं। शादी के बारे में मैंने कभीं सोचा ही नहीं।
‘‘ममा पापा शादी के लिए मुझ पर दबाव डाल रहे हैं। ज्यादा दिन उनको टालना
मुश्किल होगा, तिश।’’
‘‘रो हम दोस्त हैं और दोस्त ही रहेंगे। शादी हमारे संबंधों को संकुचित
करेगी। वे तुम्हारे ममा पापा हैं। उन्हें हैंडल करना तुम्हारा काम है।’’
आगे कुछ सोचकर उसने कहा, ‘‘मेरे कैरियर का मेरे जीवन
में अहम स्थान है रो। मैं घर की जिम्मेदारियाँ नहीं उठा सकती हूँ। शादी के बाद
तुम्हारी अपेक्षाएँ मुझसे बहुत बढ़ जायेंगीं। तुम जानते हो, मेरा कैरियर, मेरा व्यवसाय मेरे लिए महत्वपूर्ण
है।’’
‘‘और मैं, तुम्हारी जिन्दगी में क्या स्थान रखता
हूँ तिश।’’ रो ने ठंडी सांस लेते हुए पूछा।
‘‘मेरे जीवन में तुम्हारी अपनी जगह है। तुम मेरे लिए महत्वपूर्ण हो। पर मेरे
बिजनेस और महत्वाकांक्षाओं से ऊपर नहीं। तुम अभी जैसे हो, निश्चिन्त , केयर फ्री स्वभाव के, मुझे वैसे ही अच्छे लगते हो। शादी के बाद तुम मेरी चिंता करने का रोल ले
लोगे, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा।’’ उसने उसे बाहों में भर कर एक चुलबुलाता हुआ लम्बा चुंबन देते हुए कहा।
‘‘सच ?’’
‘‘हाँ, सच।’’ उसने
ईमानदारी से कहा।
यह संवाद रो और तिश के प्रेम को उजागर करने के साथ ही तिश के जीवन के
प्रति दृष्टिकोण को उजागर करती है। इस संवाद के माध्यम से तिश एक सशक्त और
संभावनाओं से भरी हुई आधुनिक युवती के रूप में सामने आती है। पूरी कहानी इस तरह के
संवादों से भरी है। संवाद विषय के अनुरूप कहानी को आगे बढ़ाने वाले हैं।
विदेशी पृष्ठभूमि पर रची गयी ‘ऑन्टोप्रेन्योर
की कहानी साउथ लंदन के स्ट्रेथम से होते हुए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ ही
क्वींस कॉलेज और नॉर्थ लंदन तक घूमती है। कहानी में रो और तिश की बात-चीत में
यूनाइटेड किंगडम के स्वच्छन्द परिवेश की झलक मिलती है। साथ ही यूनाइटेड किंगडम की
वेलफेयर एस्टेट की सुख-सुविधाओं का भी जिक्र हुआ है, जो
बृद्धजनों को जीने का सहारा देती है। कहानी का अन्त भारत में हुआ है। भारत को एक
उभरते हुए राष्ट्र के रूप में चित्रित किया गया है, जिसमें
भविष्य की अपार संभावनाएँ छिपी हैं। कहानी किशोरों और युवाओं के मनोभावों को
व्यक्त करती है।
‘ऑन्टोप्रेन्योर’ कहानी का शीर्षक ही अंग्रेजी
भाषा का है। पूरी कहानी में हिन्दी और अंग्रेजी के मिले-जुले शब्दों का प्रयोग
करके भाषा को बोलचाल की भाषा बनाया गया है। भाषा विषयानुकूल है। किशोरों और युवाओं
के आपसी संवाद में जिस तरह के अश्लील शब्दों का प्रयोग बढ़ा है, उषा राजे ने भाषा भी उसी के अनुकूल रखी है। ‘नितम्ब’ के लिए ‘बम’ जैसे
शब्दों का प्रयोग किशोर मानसिकता का ही परिचायक है। लंदन के परिवेश पर आधारित
कहानी में अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग अधिक हो, यह
स्वाभाविक ही है। कोई भी वाक्य बिना अंग्रेजी शब्दों के पूरा नहीं हुआ है।
कहीं-कहीं तो पूरा का पूरा वाक्य ही अंग्रेजी का है। कहानीकार ने नितम्ब के लिए ‘पिछवाड़ा’ और ‘चूतड़’ जैसे भदेस शब्दों का भी प्रयोग किया है। उषा राजे ने कहानी में वर्णनात्मक
और संवादात्मक दोनों शैलियो का कुशल निर्वाह किया है। संवादों की अधिकता कहानी को
कहीं भी उबाऊ नहीं होने देती।
‘ऑन्टोप्रेन्योर’ कहानी को उषा राजे ने एक
सार्थक दिशा देते हुए अपने उद्देश्य तक पहुँचाया है। तिश के माध्यम से उन्होंने एक
सशक्त स्त्री चरित्र को रचा है, जो स्त्री-विमर्श को
नया आयाम देती है। स्त्री-विमर्श में जहाँ इस बात की चर्चा होती रहती है कि स्त्री को कितनी स्वतन्त्रता और स्वच्छन्दता लेनी चाहिए, उसकी कार्य-शैली, पहनावा कैसा होना चाहिए, उसकी सेक्स लाइफ कैसी होनी चाहिए, उषा राजे तिश
के माध्यम से स्त्री की एक नई छवि पेश करती हैं। तिश एक ऐसी उद्यमी है जो अपने
रिश्तों को लेकर भी प्रतिबद्ध है। वह घर से लेकर बाहर तक सबकुछ व्यवस्थित रखती है।
वह ट्रेडिशनल पत्नी नहीं बनना चाहती, पारिवारिक बन्धनों
में नहीं बँधना चाहती किन्तु शारीरिक सम्बन्धों को लेकर स्वच्छन्दता भी नहीं
चाहती। वह जहाँ बिना बताये दिन्ली चली जाती है, वहीं रो
का एक्सिडेंट होने पर सिंगापुर की महत्वपूर्ण यात्रा भी स्थगित कर देती है। तिश के
रूप में उषा राजे वर्तमान के अन्ध आधुनिकतावादी दौर में संवेदनशील और सक्षम स्त्री
का चरित्र रचती हैं, जो एक व्यवहार-कुशल ऑन्टोप्रेन्योर
है। यह आधुनिक स्त्री का आदर्श स्वरूप हो सकता है।
भौतिकतावादी दौर में जहाँ भारत का युवा वर्ग विेदेश जाने के सपने देखता है, उषा राजे तिश और रो की भारत वापसी दिखाकर भारत को एक सशक्त राष्ट्र के रूप
में चित्रित करती हैं, जिसमें अपार संभावनाएँ निहित
हैं। तिश कहती है-‘‘इंडिया आज संभावनाओं से भरा एक ऐसा
शक्तिशाली देश बनकर उभरा है कि सारा संसार उसकी तरफ नजरें उठाए देख रहा है। पश्चिम
का ब्रेन ड्रेन भारत का ब्रेन गेन है।’’ यह कथन भारत की
आर्थिक शक्ति को प्रमाणित करता है। कहानी में पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति की ओर
आकर्षित हो रही युवा पीढ़़ी के लिए यह संदेश है कि भारत भी अपनी संस्कृति और नयी
सोच एवं आर्थिक गतिविधियों से विदेश में निवास करने वालों का ध्यान आकर्षित कर रहा
है। अमेरिका और इंग्लैण्ड जैसे देश भी भारत में आउट सोर्सिंग कर रहे हैं, इंवेस्टमेंट कर रहे हैं। कहानी में भारतीय युवाओं के लिए जो सबसे बड़ा
संदेश छिपा है, वह है- रो और तिश का पढ़ाई के प्रति
समर्पण। दोनों अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इतना ही नहीं
व्यक्तित्व के निखार के लिए अलग-अलग गतिविधियाँ करते हैं। तिश की जीवन शैली
अनुकरणीय हो सकती है। वह सबके बीच संतुलन बनाते हुए अपने आप को व्यस्त रखती है। रो
के मन में जो खिन्नता है, उसका कारण यही है कि वह खाली
है। नौकरी के अलावा उसने दूसरी रुचि नहीं विकसित की है। यदि हम अपने को व्यस्त
रखते हैं तो अनावश्यक तनाव और खिन्नता से अपने आप को बचा सकते हैं और आज के तनाव
भरे माहौल में भी स्वयं को प्रसन्न रख सकते हैं। हमें अपनी खुशी के लिए दूसरे की
ओर देखने की आवश्यकता नहीं होगी। इतना ही नहीं, कहानी
घर वापसी का स्वप्न देख रहे भारतीय मूल के निवासियों के मन में भी आशा पल्लवित
करती है।
डॉ कुलभूषण मौर्य |
(मूलतः आजमगढ़ के निवासी डॉ कुलभूषण मौर्य
युवा आलोचक और प्रतिभावान प्राध्यापक हैं। वह वर्तमान में के०
बी० झा महाविद्यालय, कटिहार में सहायक प्राध्यापक हैं। बनारस
हिन्दू विश्वविद्यालय और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त डॉ मौर्य
की एक पुस्तक "भारतीय स्वाधीनता आंदोलन और अमरकांत" नाम से प्रकाशित हो
चुकी है। कुलभूषण मौर्य समसामयिक विषयों और आधुनिककालीन साहित्यिक विमर्शों पर
लगातार लिखते रहते हैं। उनका संपर्क- मो. नं. 8004802485 है।
#कथावार्ता #Kathavarta1 पर उनका पहला लेख। इस लेख में उन्होंने उषा राजे सक्सेना की कहानी ऑन्टोप्रेन्योर पर आधुनिक स्त्री विमर्श और
वृत्ति के आलोक में देखने का प्रयास किया है। यह कहानी प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय
के पाठ्यक्रम में भी है, यह आलेख विद्यार्थियों के लिए
आवश्यक सामग्री बनेगी, यह विश्वास है।
ऑन्टोप्रेन्योर: उषा राजे सक्सेना की कहानी यहाँ क्लिक करके पढ़ी जा
सकती है -
सम्पादक।)
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achchha aalekh. gyanvardhak. #kathavarta ko shubhkamanayen
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