- सम्यक् शर्मा
सम्यक शर्मा कथावार्ता पर इससे पहले दिशाभेद के एक - दो और तीन सुललित निबंधों के साथ पदार्पण कर चुके हैं। दिशाभेद में उन्होंने अपने चिन्तन और शब्दक्रीड़ा से अपने इरादे स्पष्ट कर दिये थे। वह शब्दों से खेलते हैं और उनका बेहतरीन प्रयोग करते हैं। क्रिकेट उनका दूसरा प्यार है। पहले प्यार के बारे में हम बाद में बताएँगे।
'मनु'स्मृति में कहानी है, बचपन की मधुर स्मृतियाँ हैं और शब्दों के साथ गेंदबाजी-बल्लेबाजी और
कमेंट्री है। दो खण्ड में है। सम्यक के निबंधकार से कहानीकार की यात्रा का आनन्द
लें। - सम्पादक
भाग -१ 'चीतोदय'
ज्ञापन
नुमा :
इस कहानी के सभी पात्र एवं घटनाएँ वास्तविक हैं, जिनका हमसे पूरा-पूरा सम्बन्ध है। मने यह सत्य घटनाओं पर आधारित है। भई
आधारित क्या, सत्य ही है। अतः मुलाहिज़ा फ़रमाएँ...
डाबर आँवला चुपड़कर बाल काढ़ ही रहे थे मनु कि
बाहर चौखट पर खड़ी मम्मी ने पुकारा "सज लिया? कि अभी रह गयी है नैक और सजावट?
जल्दी चल, नहीं तो अकेले ही चली जाऊँगी।"
सायं साढ़े पाँच हो रहे थे, हाट के लिए निकलना था; फल, शाक आदि के क्रय हेतु। मम्मी के हड़काते ही
त्वरित बाल काढ़कर और पॉण्ड्स का पॉडर (आगरे में बॉडी टैल्क कोई नहीं कहता) छिड़ककर
सुगन्धित व सँवरे पाँच वर्षीय मनु चल दिए हाट को। अल्पवयस्क एवं शिष्ट थे इसलिए
मम्मी की अंगुली पकड़कर ही सैर किया करते थे।
सैयद तिराहे से अंदर ढलान की ओर मुड़ते ही दुकानें आरम्भ होती थीं। ढलान पर
थोड़ा सा उतरते ही एक फल वाले की ठेल पर पहुँचे। मम्मी की क्रय-क्रिया (पर्चेज़िंग)
आरम्भ हुई और मनु की पर्यवेक्षण-क्रिया (ऑब्सर्वेशन)। ठेल के सामने ही लुहार की दुकान थी (वर्कशॉप भी कोई नहीं
कहता), जहाँ वह लुहार हथौड़े से पीट-पीटकर किसी छड़ को नरक के
समान ऋजु (स्ट्रेट ऐज़ हैल!) किए दे रहा था। हथौड़े की ऐसा अद्भुत क्षमता देख मनु
वशीभूत हो गए, विचारने लगे, "यदि मैंने इस हथौड़े को बल्ला बनाकर बल्लेबाज़ी की, तो
क्या-क्या कर सकता हूँ।" हास्यास्पद यह कि माननीय मुंगेरीलाल ने इससे पहले
कभी गली-क्रिकेट भी नहीं खेली थी, किन्तु कल्पना वानखेड़े पर
दूधिया प्रकाश में एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय खेलने से नीचे की नहीं करते थे। खेलते
भी कैसे, गली होती आस-पास तब न, घर के
आगे तो दिल्ली से कलकत्ता जोड़ने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 2 बिछा दिया था प्रशासन ने। रक्तरंजित उन्नतिशील (ब्लडी प्रोग्रेसिव!)!
अस्तु! ...दर्शकों से खचाखच भरे वानखेड़े मैदान
पर ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध बल्लेबाजी करने उतर चुके हैं हथौड़ापाणि मनु। हाई कार्बन स्टील से निर्मित 10 से.मी. व्यास का वह लौह-बल्ला भारत को अंतिम गेंद पर जीतने हेतु चार रन
दिलाने में अति सक्षम है। बस कनेक्ट हो जाए एक बार। स्टांस लेते समय साढ़े तीन
फुटिये मनु चेते कि यदि यॉर्कर आ गई तो यह डेढ़ फुटिया हत्था धोखा ही दे जाएगा।
अतएव तुरंत ड्रैसिंग रूम की ओर संकेत कर उन्होंने दो फुटिया हत्था मँगवा लिया। आप
सोचिये कि मंगूस बल्ले की परिकल्पना के भी एक दशक पूर्व मनु क्या-क्या कल्पित कर
लेते थे! मनु मनु नहीं थे, वे स्वयं (के) कल्पतरु थे। वे
स्वयं से याचना कर जो माँगते थे, उसे तत्काल पा लेते थे,
कल्पनाओं में। जैसे वानखेड़े पर पदार्पण, हथौड़ा,
यॉर्करानुकूल लंबा हत्था इत्यादि-इत्यादि।
बहरहाल, युवा ब्रैट ली अंतिम गेंद फेंकने हेतु
बढ़ चले तथा सुन्दर एक्शन से अंदर की ओर रिवर्स होती यॉर्कर फेंकी। मनु ने प्रकाश
की गति से गेंद की लाइन एन्ड लेंथ परखी व ध्वनि की गति से डेढ़ कदम आगे बढ़ाए। अब वह
तथाप्रक्षिप्त यॉर्कर एक अक्षम लो फ़ुल-टॉस बन मनु के चरणों में थी। गेंद चरण-कमलों
को स्पर्श करती इससे पहले ही मनु की गदा ने उस पर प्रहार करके उसे गऊ-कॉर्नर की
दिशा में भेजा। बलाघात इतना क्रूर था कि वह एक छक्के में तो प्रतिफलित हुआ ही,
साथ ही उसने गेंद को अरब सागर में भेज उसे गेंद-योनि से मुक्त करा
दिया। अभागन पचास ओवरों से कष्ट ही पा रही थी! कल्पनाओं में ही सही मनु ने जो
चमत्कार किया वह भारत में अनगिनत पुरोधाओं के होते हुए भी अभूतपूर्व था। सचिन-फचिन
जो सामान्यतः 'मात्र' डेढ़ किलो का ही
बल्ला उठा पाते थे, वे क्या थे मनु के आगे, जिन्होंने साढ़े चार किलो के हथौड़े से छक्का जड़ ऑस्ट्रेलिया को नेस्तनाबूत
कर दिया? (वह बात और है कि मनु को यह भी ज्ञात न था कि
"साढ़े-चार" कितने होते हैं या "किलो" क्या होता है?)
ख़ैर जीत सुनिश्चित होते ही दर्शकों में उन्माद था और चहुँ दिशाओं में
चीत्कार। मनु भी मन में शौर्य व आँखों में गौरव लिए हथौड़ा हवा में लहराकर दर्शकों
का अभिवादन कर रहे थे। मनु अब मनु नहीं रहे थे, वे चीता हो
चले थे। जी हाँ, चीते का उदय अर्थात् चीतोदय हो चुका था।
चीता ज्यों ही दूसरे छोर पर स्तब्ध खड़े अपने साथी बल्लेबाज़ की ओर बढ़ा, त्यों ही उसके कंधे पर मम्मी का हाथ आया और कानों में उनका स्वर " चल
बेटा आगे, ले लिए फल।"
आगे के घटनाक्रम के लिए बने रहें, हाट अभी शेष है।
हथौड़े
के आगे जहाँ और भी है,
अभी
चीते के इम्तहाँ और भी हैं।
जारी......
सम्यक शर्मा (Samyak Sharma) |
(सम्यक शर्मा पर क्लिक करने पर ट्विटर पर पाये जाते हैं। उन्होंने अपने बारे में लिख भेजा है- ज्यों का त्यों उतार
रहा हूँ- "सम्यक् शर्मा।
आगरावासी। ब्रजभाषी। शहरी एवं ग्रामीण के बीच का हलुआ। दसवीं-बारहवीं आगरा से ही
करी। यांत्रिक अभियांत्रिकी में बी.टेक. ग़ाज़ियाबाद के अजय कुमार गर्ग इंजीनियरिंग
कॉलेज से करी। क्यों ही करी! क्रिकेट का आदी। फ़िज़िक्स और हिंदी से विशेष प्रेम।
गणित से लगाव। बस।" - सम्पादक)
3 टिप्पणियां:
आनंदित हो गया सर ☺🤗🥳
उत्तम 👍👍
Buddhu se Buddh tak ka safar kai baar, Ped ke neeche nahi ped ke fal khareedne se bhi ho jaate hai...bahut badhiya Samyak!
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