शनिवार, 29 मई 2021

पतंजलि का उत्पाद - मुल्तानी मिट्टी साबुन

कोरोना महामारी के भीषण दिनों में पतंजलि योगपीठ के बाबा रामदेव, एलोपैथ और आयुर्वेद के बहाने आईएमए (इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन) और कुछ बौद्धिक लोगों के निशाने पर हैं। महामारी के नियंत्रण में एलोपैथ ने सराहनीय भूमिका निभाई है, तथापि उसकी कार्यशैली और अल्टप्पू तरीके ने बहुत संदेह का वातावरण और आशंकाओं का घटाटोप बनाया है।

बाबा रामदेव और उनके योगपीठ ने आयुर्वेद, योगासन और जनता की जीवन शैली में अभूतपूर्व जगह बनाई है। उनका व्यापार भी बहुत तीव्र गति से फला-फूला है। यह सब बहुत सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, एलोपैथ के ठेकेदारों को नागवार गुजरा है। परिणामस्वरूप द्वंद्व बढ़ता जा रहा है। ऐसे में पतंजलि के ब्रांड तले एक साबुन पर हमने कभी अपना अनुभव साझा किया था, जो पठनीय है।

अब पतंजलि के उत्पादों में वह गुणवत्ता नहीं रही और कुछ हमारी अपेक्षाएं भी बढ़ गई हैं, किंतु चार वर्ष पहले तो यह नॉस्टेल्जिक लगता था।

पढ़िए!

बाबा रामदेव

बाबा रामदेव ने एक साबुन उतारा है, नहाने के लिए। मुल्तानी मिट्टी के नाम/रूप से। महंगा है। 35 कीमत है। आज तीसरे दिन इस्तेमाल किया। 'मन पवन की नौका' (यह पद आचार्य कुबेरनाथ राय ने अपने एक निबंध संग्रह के लिए प्रयुक्त किया है। इसी नाम से उनका एक निबंध भी है) पर आरूढ़ हुआ तो यह साबुन लेकर गया गंगा किनारे, जल्लापुर गाजीपुर जहाँ हम यदा कदा नहाने जाया करते थे। वहां गंगा किनारे की मिट्टी में लोटते थे, उसी को साबुन/उबटन की तरह प्रयोग में लाते थे। किसी बाजारू साबुन की जरूरत ही न पड़ती थी। यह साबुन कुछ वैसा ही है। कुछ कुछ वैसा जैसा हम पीठ खुझलाने या एड़ियाँ घिसने के लिए झावाँ का इस्तेमाल करते हैं। क्या सुखद अहसास है। आपका मन करता रहेगा कि साबुन घिसते रहें घिसते रहें। कुछ वैसा सुख जैसा हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अनामदास का पोथा में पीठ घिसने का वर्णन किया है।

फोम और शॉवर जेल के इस जमाने में ऐसी स्पृहा पालना वैसे तो गवाँर होना/दिखना है लेकिन इस सुख को पा लेना अपने आप में एक नेमत है। जिनका जीवन शहरों में रहते रहते बहुत सॉफिस्टिकेटेड हो गया है, त्वचा नरम मुलायम हो गयी है और तनिक खरोंच भी जिनको लालिमा से भर देती है उनको यह सुख शायद ही मिले लेकिन मैं जानता हूँ कि ऐसी नाजुकी बस कहने की होती है।

तो लाइए बाबा रामदेव के पतंजलि उत्पाद श्रृंखला की यह अद्भुत पेशकश, जो आपको मन पवन की नौका पर बिठाकर अपने ग्रामीण बचपन में ले जायेगी।

महीनों न नहाने वाले 'बामपंथी' साथियों के लिए यह और शानदार अनुभव देगा।




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सद्य: आलोकित!

सच्ची कला

 आचार्य कुबेरनाथ राय का निबंध "सच्ची कला"। यह निबंध उनके संग्रह पत्र मणिपुतुल के नाम से लिया गया है। सुनिए।

आपने जब देखा, तब की संख्या.