बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

कथावार्ता : दिशा भेद : ललित निबन्ध भाग-2

विरोधाभास

- सम्यक् शर्मा

दिशा भेद निबन्ध का पहला भाग- से आगे

अब जब दिशा भेद खुल चुका है तो आइए पारी को वहीं से आगे बढ़ाते हैं।

"ठीक ! उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम की पशोपेश बहुत हुई" यह सोचकर हम चिंतामुक्त होकर अधबैठे-अधलेटे से हो गए। आप समझ ही गए होंगे कि दोनों हाथ भी ग्रीवा (वही गरदन अपनी!) के पीछे ही थे तथा चिंतामुक्ति के भाव को और बल दे रहे थे। अब हमारे भीतर का नीलेश मिश्रा जाग उठा था और हम 'यादों का सफ़र' करते हुए सुप्तावस्था की ओर अग्रसर थे। कई यादें आयीं - गाँव की, नानी के घर की, कॉलेज की, स्कूल की, इत्यादि-इत्यादि।

बाल्यकाल से ही हम अग्रिम पंक्ति के खिलाड़ी थे। इससे पहले कि कोई हमें हॉकी अथवा फुटबॉल का पुरोधा समझ लेवे, बताये देते हैं कि बचपन में हमारी लंबाई सीमित होने के कारण हम स्कूल की प्रार्थना सभा (हाँ वही असैम्बली) में अपनी कक्षा की पंक्ति में सर्वप्रथम लगा करते थे। लंबाई के अनुसार लगने वाली इस कुप्रथा को आरंभिक 5-6 लड़के बड़ी गंभीरता से लिया करते थे। मसलन यदि हम एक-आध बार ऐसे ही कभी मित्रों के संग हँसी-ठट्ठा हेतु पंक्ति के मध्य में कहीं लग जाते थे तो वे 'नॉटी' सहपाठी हमें "ओये! जा आगे लग।" कहकर आगे पटेल दिया करते थे और हम रन-आउट हुए इंज़माम की भाँति मुंडी लटकाए यथास्थान आ जाते थे, आगे।

          जी नहीं अभी 'दिशा विषय' से विषयांतर नहीं हुआ है, प्रार्थना सभा की चर्चा इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि ये यह स्थापित करती है कि 'आगे' और 'पहले' समानार्थी हैं। पंक्ति में सबसे 'आगे' अर्थात् 'पहले' हम लगते (या कहें लगाये जाते) थे। इसी अनुसार व्यक्ति क्रमांक- 3 से आगे/पहले व्यक्ति क्रमांक- 2 लगता था। इसी सम्बन्ध को बल देने के लिए कुछ उदाहरण लेते हैं - 'पूर्वज' = पूर्व अर्थात् पहले जन्मा; 'अग्रज' = अग्र अर्थात् आगे जन्मा (बड़ा भाई)। आशय यह है कि 'आगे' जन्म लेने वाला आपसे 'पहले' जन्म लेता है।

          आइये अब कल्पना करें बाएँ से दाएँ की ओर खिंची एक ऐसी समय-रेखा (ऑल्सो कॉल्ड टाइमलाइन) जिसका पूर्वतम/बाएँतम सिरा वृहत्काय विस्फोट (द बिग बैंग! यस यू गॉट इट, डिडण्ट यू ?) है जबकि दूसरा सिरा भविष्य के गर्त में कहीं अज्ञात है। मध्य में कहीं आप हैं। तो जो आपसे पूर्व=पहले/अग्र=आगे जन्मे हैं वे इस रेखा पर आपके बाएँ दर्शाये जायेंगे और जो आपके पश्चात्=पीछे जन्मेंगे वे आपके दाएँ दर्शाये जायेंगे। स्पष्ट है कि बाएँ से दाएँ की ओर हम समय की दिशा में चल रहे हैं।

          प्रायः हम कहते हैं कि " 'पिछली' पीढ़ियाँ धन के अभाव में रहीं, कम से कम 'आगे' की पीढ़ियाँ तो समृद्ध बनें!" यानि कि हम पूर्वजों को 'पिछली/पीछे छूटी हुई' पीढ़ी और भविष्य में आने वाली पीढ़ी को 'अगली/आगे आने वाली' पीढ़ी कह देते हैं। इसी तर्क के अनुसार यदि हम समय रेखा देखें तो अपने दाएँ वाली को 'अगली' और बाएँ वाली को 'पिछली' पीढ़ी बोलेंगे!

          परंतु आप स्मरण करें तो पायेंगे कि सैंतालीस सेकण्ड ही 'पूर्व' यह घोषित करते हुए ही हमने समय-रेखा का काल्पनिक चित्रण करवाया था कि वहाँ आपके 'पश्चात्=पीछे/बाद' जन्म लेने वाले आपके दाएँ हैं आपसे 'पूर्व=पहले/अग्र=आगे' जन्म लेने वाले आपके बाएँ हैं।

          तो सामान्य भाषा में पूर्वजों को 'पिछली' (अर्थात् पीछे जन्म लेने वाली) और भविष्य की पीढ़ियों को 'अगली' (अर्थात् आगे जन्म लेने वाली) पीढ़ी कहना विरोधाभास नहीं ! घोर विरोधाभास है।

          आगे भी बहुत कुछ है विरोधाभास के हवाले से धुआँ पेलने को। और पेलेंगे भीइस रचना-त्रय (ट्रिलजी फोक्स!) के अन्तिम भाग हला'हलके द्वारा। तब तक के लिए कोरोना से 'सावधान रहें, सतर्क रहें'



          (सम्यक युवा हैं और बहुत सधा हुआसुविचारित लिखते हैं। किंचित संकोची हैं। दिशा-भेद पर उन्होंने यह ललित निबन्ध लिखा है। यह तीन भागों में है- तीनों स्वतन्त्र हैं परन्तु एक दूसरे से गहरे सम्बद्ध। यह दूसरा भाग विरोधाभास शीर्षक से है।

          सम्यक शर्मा  पर क्लिक करने पर ट्विटर पर पाये जाते हैं। उन्होंने अपने बारे में लिख भेजा है- ज्यों का त्यों उतार रहा हूँ- "सम्यक् शर्मा। आगरावासी। ब्रजभाषी। शहरी एवं ग्रामीण के बीच का हलुआ। दसवीं-बारहवीं आगरा से ही करी। यांत्रिक अभियांत्रिकी में बी.टेक. ग़ाज़ियाबाद के अजय कुमार गर्ग इंजीनियरिंग कॉलेज से करी। क्यों ही करी! क्रिकेट का आदी। फ़िज़िक्स और हिंदी से विशेष प्रेम। गणित से लगाव। बस।"- सम्पादक)

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

जब विषय प्रिय हो जाए तो जीवन शोध हो जाता है । सम्यक यहां इसे चरितार्थ करते हैं । इनके ट्विटर पर मेरा आना जाना लगा रहता है। आयु के आगे इनकी सोच है । एक सुलझा और साफ व्यक्तित्व और वैसी ही निर्मल भाषा। ट्रिलॉजी के अंतिम भाग की प्रतीक्षा रहेगी बंधु।

सम्यक् शर्मा ने कहा…

धन्यवाद बन्धु। आभार। 🙏

सद्य: आलोकित!

सच्ची कला

 आचार्य कुबेरनाथ राय का निबंध "सच्ची कला"। यह निबंध उनके संग्रह पत्र मणिपुतुल के नाम से लिया गया है। सुनिए।

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