-एगो हनुमान जी
थे.
-एगो हनुमान जी?
हनुमान जी त एकेगो न हैं?
-हाँ भाई, त हम कहाँ कह रहे कि दू गो. हमहूँ त कह रहे हैं कि एगो
हनुमान जी ...
-अच्छा, आगे कहिये.
-त दूनों जना
नहाये गईले..
-दूनों जाना???..
-हाँ भाई..तूँ
कहानी सुनबा की ना..
-सुनब. बाकी बिना
सर पैर क ना. अब दूनों जाना कहाँ से आ गईलें?
-अरे भाई, साथ में गणेशो जी न लाग गईले.
-त पहिले न कहे के
चाही.
-दिखे नहीं न थे.
-कैसे दिखे नहीं
थे? हेतना बड़ा सूंढ़, हतहत बड़ा पेट, आ दिखे ही नहीं??
-अरे भाई, भगवान जी क माया. कभी दिखें आ कभी अलोपित..
-अच्छा.. तब?
-तब तीनों जाना
नहा के निकलल लोग..
-तीनों जाना?
-हाँ भाई, गणेश जी क मूसवा
के भुला गईला का..
-हाँ.. जब गणेशे
जी ना लउकले, त मूसवा कईसे लौकाई.
-त चारों जाना
वापस लौटे लागल लोग.
-चारों जना?
अब ई चौथा कहाँ से?
-अरे, मूसवा क पीछे एगो बिलार न लाग गई.
-हैं..?
-त, दूनों जना एक जगह बैठ के सुस्ताये न लागल लोग..
-दूनों जना?
आ दू जना? बताईं? गणेश जी के मूसवा के मरवा दिहलीं का?
- अरे नहीं भाई!
मूसवा, बिलाई के लखेद न
लिया.
-???
-हाँ जी.
-देखिये, जबान संभाल के बात कीजिये.
-का हुआ?
-का हुआ? पूछते हैं. गणेश जी के मूस को कुत्ता कह रहे हैं और पूछते
हैं कि का हुआ?
- हम कहाँ कहे?
- ना कहे त का हुआ?
हमको बुझाई नहीं
देता है का? बिलाई को कौन लखेदता है? कुत्ते न!!
- ???
-हाँ, खबरदार, जो मूस को कुत्ता
कहा..
.
.
बहुत पहले सुनी
कहानी. स्मृति में कुछ इसी तरह रह गई है..
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