सोमवार, 19 अगस्त 2013

रामजी यादव की कहानी 'गाँव-गिरांव' पर एक त्वरित टिप्पणी



एक अच्छी कहानी बहुत कुछ कहने के व्यामोह में चौपट हो जाती है. कहानी की प्राथमिक शर्तों में यह शामिल है कि उसे सुगठित होना चाहिए और तारतम्यता भी. 'समकालीन सरोकार' का जुलाई, २०१३ अंक; मैं नरेन्द्र पुण्डरीक का अनुभव ' जुगाड़ और जुगाड़ का साहित्य' पढ़ने के लिए लाया था. उस पर बातें बाद में होंगी. कुछ बातें आचार्य उमाशंकर परमार सर ने कही भी थीं. बहरहाल, इस अंक में Ramji Yadav की कहानी "गाँव गिरांव" पढ़ते हुए लगा कि अगर इसे थोड़ा समेटते हुए लिखा जाता तो यह एक मास्टरपीस कहानी हो सकती थी. जियालाल गौतम और दिनकर की मित्रता  गाँव के बहुत सारे बदलाव को रेखांकित करती है. जियालाल गौतम का द्विज बनते जाना एक बड़ी सचाई है. और यही कारण है कि वे प्रधानी के चुनाव में  मातादीन को नहीं चुनते. कहानी में आंबेडकर जयंती और रविदास जयंती का प्रसंग कहानी का अधिक प्रसंग है. इसकी बातें किसी दूसरे प्रसंग में कही जा सकती थीं. इसी तरह डॉ के हाथों तथाकथित हत्या वाला प्रसंग भी.
बाकी. एक अच्छी कहानी के लिए उन्हें बधाई..

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