गुरुवार, 19 सितंबर 2024

आश्विन या क्वार मास

आश्विन या क्वार पंचांग का सातवां मास है। प्रखर। पितरों की स्मृति से इसका आरंभ होता है और प्रभु श्रीराम के पराक्रम तथा देवी दुर्गा के विविध रूपों से परिपूरित होकर सम्पन्न।

आश्विन मास 

बीता हुआ भाद्रपद बहुत सरस रहा। सावन से दुब्बर नहीं है भादो! यह विगत सप्ताह में प्रकट हुआ। खूब बरसात हुई। भाद्रपद मास भी कई पर्व त्योहार का मास रहा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, राधाष्टमी, गणेश चतुर्थी, तीज व्रत और त्रिमुहानी का मेला।

भाद्रपद मास कवियों को बहुत प्रिय है। विरह वेदना दिखाने के लिए भादो से उपयुक्त कोई अन्य मास नहीं - ई भर बादर, माह भादर, दहत सब अंग मोर! विद्यापति की नायिका कहती हैं। भादो की काली अंधेरी रात और "घन घमंड गरजत नभ घोरा" श्रीराम को भी डराने में सक्षम हैं। सूर की गोपियां "निसि दिन बरसत नैन हमारे!" कहकर अपना दुख व्यक्त करती हैं। भादो की काली डरावनी रात के बरसते हुए पानी में ही वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण को लेकर उफनती यमुना में उतर गए थे!

यह आश्विन मास पितरों को याद करने, उनके प्रति श्रद्धा निवेदित करने (श्राद्ध कर्म) और तर्पण करने से शुरू होता है। जिउतिया भी इसी बीच में पड़ेगा।

आश्विन मास का आकाश निरभ्र होता है। सूर्य का प्रकाश बहुत प्रखर होकर धरती पर पड़ता है और चानी चमक उठती है। जेठ बैशाख की तपती दुपहरी सह लेने वाले किसान क्वार के महीने में दोपहर को खेतों में जाने से बचते हैं। रातें, ओस वाली हो जाती हैं इसलिए वह रात को बाहर खुले आकाश में सोने से भी बचते हैं! धरती इस महीने धूप पाकर अगले कुछ महीने तक शीत के प्रभाव में रहेगी।

आश्विन अथवा क्वार के इस पवित्र मास का स्वागत कीजिए। पितरों को याद कर, शक्ति की मौलिक कल्पना करने का महीना है यह!

आइए शक्ति की आराधना करें!


या देवि सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता!

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः!


#क्वार #आश्विन #अश्विन #Ashvin #सातवांमहीना!

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

हीरा डोम की कविता अछूत

हीरा डोम की लिखी हुई कविता अछूत की शिकायत, जो सितम्बर 1914 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुई, इस भोजपुरी कविता को हिंदी दलित-साहित्य की पहली कविता माना जाता है।


हमनी के रात-दिन दुखवा भोगत बानी,

हमनी के सहेबे से मिनती सुनाइब।

हमनी के दुख भगवनओं न देखताजे,

हमनी के कबले कलेसवा उठाइब।

पदरी सहेब के कचहरी में जाइबिजां,

बेधरम होके रंगरेज बनि जाइब।

हाय राम! धरम न छोड़त बनत बाजे,

बे-धरम होके कैसे मुंखवा दिखाइब।।


खम्भवा के फारि पहलाद के बंचवले जां

ग्राह के मुंह से गजराज के बचवले।

धोती जुरजोधना कै भैया छोरत रहै,

परगट होकै तहां कपड़ा बढ़वले।

मरले रवनवां कै पलले भभिखना के,

कानी अंगुरी पै धर के पथरा उठवले।

कहंवा सुतल बाटे सुनत न वारे अब,

डोम जानि हमनी के छुए डेरइले।।


हमनी के राति दिन मेहनत करीले जां,

दुइगो रुपयवा दरमहा में पाइबि।

ठकुरे के सुख सेत घर में सुतल बानी,

हमनी के जोति जोति खेतिया कमाइबि।

हाकिमे के लसकरि उतरल बानी,

जेत उहओ बेगरिया में पकरल जाइबि।

मुंह बान्हि ऐसन नौकरिया करत बानी,

ई कुलि खबर सरकार के सुनाइबि।।


बमने के लेखे हम भिखिया न मांगव जां,

ठकुरे के लेखे नहिं लडरि चलाइबि।

सहुआ के लेखे नहि डांड़ी हम मारब जां,

अहिरा के लेखे नहिं गइया चोराइबि।

भंटऊ के लेखे न कबित्त हम जोरबा जां,

पगड़ी न बान्हि के कचहरी में जाइब।

अपने पसिनवा के पैसा कमाइब जां,

घर भर मिलि जुलि बांटि चोंटि खाइब।।


हड़वा मसुइया के देहियां है हमनी कै;

ओकारै कै देहियां बमनऊ के बानी।

ओकरा के घरे घरे पुजवा होखत बाजे

सगरै इलकवा भइलैं जजमानी।

हमनी के इतरा के निगिचे न जाइलेजां,

पांके में से भरि-भरि पिअतानी पानी।

पनहीं से पिटि पिटि हाथ गोड़ तुरि दैलैं,

हमनी के एतनी काही के हलकानी।।

हनुमान जी का मंत्र और विभीषण

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।

लंकेस्वर भए सब जग जाना।।


एक दूत के रूप में #हनुमानजी जब लंका में गए तो उन्होंने हर घर का सर्वेक्षण किया। "मंदिर मंदिर प्रतिकर सोधा। देखे जंहतंह अगनित जोधा।।" इसी सर्वेक्षण में उन्हें विभीषण के घर का पता मिला। दांतों के बीच जैसे जीभ रहती हो। विप्र रूप धारण कर वह उनसे मिले।

हनुमान जी को जो आठ सिद्धियां प्राप्त हैं - अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व, वशित्व। इसमें अणिमा, महिमा से रूप बदला जा सकता है। और प्रकाम्य से किसी के भी मन का भेद पाया जा सकता है। हनुमान जी ने इस सिद्धि की सहायता ली और लंका में एक ऐसा विश्वसनीय व्यक्ति खोजा, जो उनकी सहायता कर सकता था। वह विभीषण थे।

हनुमान चालीसा में आता है कि हनुमान जी का मंत्र विभीषण ने माना और लंकेश्वर हुए। बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि विभीषण उन चरित्रों में हैं, जिसे अमर होने का वरदान प्राप्त है।

जय श्री हनुमान जी!🙏 #Hanuman #हनुमानजी



शनिवार, 7 सितंबर 2024

रौद्र रूप और हनुमान जी

हनुमान जी का रौद्र रूप नहीं मिलता। वह कहीं भी क्रोधित नहीं होते। ऐसा कोई प्रसंग नहीं है जब वह विचलित होकर स्वयं उद्धत हुए हों, जैसा भगवान श्रीराम समुद्र का अनुनय विनय करने के बाद हो उठे थे या योगेश्वर श्रीकृष्ण महाभारत युद्ध में देवब्रत भीष्म के प्रति हो गए थे और रथचक्र धारण कर लिया था। भगवान परशुराम, बलराम आदि तो कदम कदम पर उद्धत हो जाते हैं, पृथ्वी से वीरों का संहार करने का संकल्प कर लेते हैं अथवा धरती को समुद्र में डुबो देने के लिए हल लेकर चल पड़ते हैं!


हनुमान जी का रौद्र रूप नहीं है। कठिनतम परिस्थितियों में भी वह धैर्य, जो वीरता का अनिवार्य लक्षण है, नहीं त्यागते। वह तो संहार के ही देवता हैं, साक्षात महादेव हैं। महादेव ने उमा के देह त्याग पर जो तांडव किया था, वह कितना भीषण था। हनुमान जी के समक्ष इतना उद्वेलनकारी क्षण नहीं आता। क्योंकि वह ज्ञानी भी हैं।

इसलिए जब उनकी ऐसी कूल छवियां आईं तो कलाकारों पर आक्षेप हुए कि यह उनकी प्रकृति के अनुसार नहीं है। परंतु सभ्यता संघर्ष के बीचोबीच अवस्थित, द्वंद्व झेल रहे सनातनी पक्ष को यह आवश्यक और युगानुकुल लगा। ऐसे चित्र बहुत लोकप्रिय हुए। यह हमारी आकांक्षा के अनुरूप ही है!


जय श्री हनुमान जी 🙏

#हनुमानजी #hanumanji

मंगलवार, 27 अगस्त 2024

जन्माष्टमी पर विशेष


 श्रीकृष्ण के जीवन में सबसे मधुर पक्ष उनका बचपन वाला है। अगर बचपन की कलाओं को, जिसमें चमत्कारी रूप अधिक दिखता है; अलगा दें तो उत्तरजीवन में कृष्ण बहुत बड़े कूटनीतिज्ञ समझ में आते हैं। महाभारत में वह सर्वोत्कृष्ट हैं। अर्जुन उनके स्वाभाविक मित्र हैं।


भारतीय मन जहाँ श्रीकृष्ण की बाललीला में रूचि लेता है, वहीं मित्रता के लिए सुदामा का द्वितीय पक्ष चुन लेता है। मुझे कृष्ण के साथ अर्जुन की मित्रता बहुत घनिष्ठ समझ में आती है। कृष्ण अपनी बहन सुभद्रा का विवाह भी उसके साथ करवाना सुनिश्चित करते हैं। हर कठिन क्षण में संबल बनते हैं! जीवन जितना जटिल है, उसमें श्रीकृष्ण जैसा मित्र होना ही दिग्विजयी बना देता है।


महाभारत में वह बिना युद्ध किए ही केन्द्र में हैं। अजातशत्रु हैं। कौरव पक्ष का कोई योद्धा कृष्ण का हन्ता बनने की नहीं सोचता। राजसूय यज्ञ में वह शिशुपाल का शिरोच्छेद कर अपनी क्षमता का परिचय दे चुके थे। सभा में किसी की हिम्मत न हुई थी कि उनके इस संहार पर प्रश्न खड़ा करे। इसीलिए जब वह दूत बनकर हस्तिनापुर जाते हैं तो कहने के सहज अधिकारी बन जाते हैं-

याचना नहीं, अब रण होगा,

जीवन-जय या कि मरण होगा।


जन्माष्टमी पर सबको श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

सोमवार, 19 अगस्त 2024

जगनिक और हिन्दू

परमाल रासो, (#आल्हा) के नैनागढ़ लड़ाई के खंड में जगनिक लिखते हैं - 


गया न कीन्हीं जिन कलियुग में, काशी घोड़ा दान न दीन।

हाँकि के बैरी जिन मारा न, नाहक जनम जगत में लीन।।

पूजा किन्हीं नहिं शंभू की, अक्षत चन्दन फूल चढाय।

फिरी गलमंदरी जिनबाजी ना, मुख ना बंब बंब गा छाय।।

भसम रमायो नहिं देही मा, कबहूं लीन सुमरनी हाथ।

सोचन लायक ते आरय हैं, जिन नहिं कबो नवायो माथ।।

(जिसने गया की यात्रा नहीं की, जिसने काशी में घोड़े का दान नहीं किया। जिसने अपने शत्रु को दौड़ाकर नहीं मारा, उसका जन्म व्यर्थ समझो। जिसने भगवान शिव की पूजा अक्षत, चंदन और पुष्प चढ़ाकर नहीं किया। जिसके गले से बम बम (भोले) की आवाज नहीं गूंजी, जिसने अपनी देह में भस्म नहीं रमाया, जिसने हाथ में सुमिरनी नहीं ली; वह आर्य सोचनीय हैं, जिन्होंने कभी इष्ट के समक्ष शीश नहीं झुकाया।)


जगनिक ने ऐसे आदर्श रखे हैं, जो एक हिंदू की पहचान है। आर्य की पहचान है। इसमें वैसे तो सब महत्त्व के हैं, पर हांक कर बैरी यानी शत्रु को मारना, भगवान शिव की पूजा और बम बम भोले का उद्घोष (आज सावन का अंतिम सोमवार और अंतिम दिन है, इसलिए विशेष रूप से उल्लेखनीय) तो बहुत विशेष है। मुझे जगनिक द्वारा भगवान श्रीराम के स्मरण का तरीका भी बहुत अच्छा लगा। वह कहते हैं कि जो भगवान शिव के पूज्य हैं और जो स्वयं भगवान शिव की पूजा करते हैं, ऐसे #श्रीराम की वंदना करता हूं।

-"को अस देवता रहें शंभू सम, जिनको पूज्यो राम उदार।"

दुर्भाग्यवश जगनिक को कुछ अधिक उल्लेखनीय छंदों के लिए ही याद किया जाता है जिसमें एक है -

बारह बरस ले कुक्कुर जीवे, और तेरह ले जिए सियार।

बरस अठारह क्षत्री जीवे, आगे जीवे को धिक्कार।।

श्रावण मास की अंतिम तिथि पर भगवान शिव के अनन्य उपासक #जगनिक को आप भी याद करें!🙏

रविवार, 18 अगस्त 2024

परीक्षा पद्धतियों के सरलीकरण से बढ़ती समस्याएँ

 

प्रेमचंद की चर्चित कहानी है- परीक्षा। इस कहानी में रियासत देवगढ़ के दीवान पद पर नियुक्ति के लिए परीक्षा का आयोजन होता है। चूँकि परीक्षार्थी दूर दूर से आये हुए, अपरिचित और उच्च शिक्षा प्राप्त युवा हैं, इसलिए उनकी परीक्षा के लिए सैद्धान्तिक और व्यावहारिक स्तर पर प्रकट और गुप्त परीक्षाएं चलती रहती हैं। एक दयालु और निःस्वार्थ चरित्र के व्यक्ति को इसके निमित्त चुन लिया जाता है। परिणाम की घोषणा करते हुए कहा जाता है- “जो व्यक्ति घायल होने पर भी एक गरीब किसान की गाड़ी को कीचड़ से बाहर निकालने में मदद करता है, वह दयालु और दृढ़ इच्छाशक्ति वाला होना चाहिए। ऐसा व्यक्ति कभी गरीबों पर अत्याचार नहीं करेगा। उसका दृढ़ संकल्प उसके हृदय को स्थिर रखेगा” यह कहानी साहित्य जगत में अपने आदर्श और चयन की प्रणाली के कारण बहुत प्रशंसित होती है।

चुनाव कैसे और कैसा हो? इस सम्बन्ध में बहुत माथापच्ची होती है। सुपात्र चुने जाएँ और चुनने की यह प्रणाली पारदर्शी हो तो तन्त्र में विश्वास बढ़ता है और योग्य व्यक्ति को उसकी अभिरुचि के अनुकूल काम मिलता है। इससे कार्यस्थल पर सुचारू व्यवस्था रहती है और लक्ष्य प्राप्ति सरल हो जाती है। देश में जब तक राजतन्त्र था, चुनाव और नियुक्तियां सर्वोच्च शक्तियों का विशेषाधिकार होती थीं यद्यपि उसपर धर्म का अदृश्य प्रभाव रहता था। इससे राजा के निरंकुश होने की संभावना कम होती थी और राजकाज सुचारू रूप से चलता था। जन की भागीदारी राज्य/शासन की सेवा भावना होती थी और यही उसका कर्त्तव्य था। परन्तु लोकतन्त्र की स्थापना ने चुनाव को जनतान्त्रिक बनाया और कहा कि योग्य व्यक्तियों को उचित अवसर दिया जाएगा कि वह भी तन्त्र में अपनी सहभागिता कर सके।

चुनाव की प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो सबको समान अवसर उपलब्ध कराए, समावेशी हो और भेदभाव से रहित भी। तभी निष्पक्षता के लक्ष्य को पाया जा सकता है। स्वस्थ स्पर्धा से ही यह संभव है। अच्छा और उपयुक्त, सुपात्र का चुनाव तभी हो सकेगा।

विगत दिनों में परीक्षाओं की प्रणाली जिस तेजी से बदलती गयी हैं, उसे देखते हुए बहुत चिन्ता होती है कि क्या इस स्पर्धा से वही प्राप्तियां हो रही हैं, जो अपेक्षित हैं? हम पहले कुछ ऐसे पाठ्यक्रमों में प्रवेश की परीक्षाओं की चर्चा करें, जिनको लेकर देश भर में भारी व्यग्रता रहती है। इसमें से एक परीक्षा है चिकित्सा के क्षेत्र में प्रवेश से जुडी हुई। इसे नीट कहा जा रहा है- नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट। यह भारत में मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रम में प्रवेश से सम्बन्धित है। इस बार यह परीक्षा पेपर लीक और शुचिता में संदेह के कारण चर्चा में है। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मांग की है कि इस परीक्षा का ढांचा पूर्ववत कर लिया जाए जिसमें राज्य और स्वायत्त संस्थान पृथक और स्वतंत्र परीक्षाएं कराते थे। पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम ने भी इसी तरह की मांग की है। हमें ज्ञात है कि सन २०१३ में देश भर में एक परीक्षा की व्यवस्था हुई जिसने AIPMT का स्थान लिया। इससे एकरूपता आई। परीक्षार्थियों को एक समान अवसर मिला। इस और इस तरह की प्रवेश परीक्षाओं की एक विशेष बात यह होती है कि इनमें परीक्षार्थी एक पाठ्यक्रम विशेष में प्रवेश लेता है जहाँ पाठ्यक्रम के साथ साथ व्यक्तित्व का भी प्रशिक्षण चलता रहता है। इसलिए मेडिकल की पढ़ाई कर रहा अभ्यर्थी शीघ्र ही अभ्यस्त हो जाता है और अपने कार्य व्यापार के प्रति निष्ठावान बनता है। इसलिए हम इस तरह की परीक्षा को प्रवेश परीक्षा मान कर उसकी प्रणाली के प्रति किंचित उदासीनता भी रख लेते हैं। किन्तु जिन परीक्षाओं के आधार पर शासन सत्ता में दायित्व मिलता है, उनके विषय में हमें किंचित ठहर कर विचार करना चाहिए।

प्रथम इम्पैक्ट पाक्षिक के सितम्बर, 24 अंक में प्रकाशित



हमारे देश में शासन-प्रशासन में पद की महत्ता देखकर परीक्षाएं सम्पन्न कराई जाती हैं और इन्हें आयोजित करने कराने वाली संवैधानिक संस्थान हैं। संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग इस क्रम में प्रमुख निकाय हैं। इसके अतिरिक्त बहुत से ऐसे विभाग हैं जो अपने और किसी संस्था-विशेष के लिए चुनाव की विविध प्रक्रिया अपनाते हैं।

प्रायः यह देखा जाता है कि जितना महत्त्व का पद है, उसमें चयन का मापदण्ड उसी के अनुरूप है। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं की एक विशेष गरिमा है और माना जाता है कि इस प्रणाली से योग्य व्यक्ति ही चुने जाते हैं। हालाँकि नौकरशाही में जैसी ‘राजा वाली व्यवस्था बन गयी है, वहां भी यह छटपटाहट है कि यह प्रणाली अक्षम है।

आज सामान्यतया चुनाव के लिए परीक्षाओं का चलन है। इन परीक्षाओं में मूल्यांकन एक बड़ी समस्या है क्योंकि प्रत्यक्ष चुनाव में कई कारक प्रभावित करने वाले निकल आते हैं। परीक्षा के क्रम में निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता प्रभावित हो जाती है। निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता के लिए परीक्षाओं में बहुविकल्पीय प्रश्न पूछने की व्यवस्था आई है। इसमें एक प्रश्न के चार संभावित उत्तर रहते हैं। सही उत्तर को चुनकर विकल्प के गोले को रंगना रहता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली में उत्तर जांचना बहुत आसान रहता है और अब तो इसे तकनीकी सहायता से जांच लेते हैं जिससे गड़बड़ी की आशंका बहुत कम रहती है। किन्तु वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली की बहुत सी न्यूनताएं हैं। इस प्रणाली से अभिव्यक्ति की क्षमता, बौद्धिक स्तर, बोध का स्तर और सही/गलत की पहचान का कोई आकलन नहीं हो पाता। लिखित परीक्षाओं में प्रश्नों का उत्तर निर्धारित शब्द सीमा में देना रहता है जिससे हम वाक्य विन्यास, शब्दों की वर्तनी आदि से जो मूल्यांकन कर लेते हैं, वह भी वस्तुनिष्ठ प्रणाली से सिरे से अनुपस्थित है। किसी भी व्यक्ति का सुलेख उसके व्यक्तित्व का एक परिचायक होता है। लिखित परीक्षाओं में उसके माध्यम से भी कई अनुमान लगा लिए जाते हैं। लेकिन चूँकि यह प्रणाली परीक्षकों के स्तर से प्रभावित होने लगी, परीक्षक सही मूल्यांकन करने के स्थान पर भेदभाव करने लगे, मूल्यांकन प्रक्रिया जटिल है, वस्तुनिष्ठ नहीं है अपितु परीक्षक के बोध से भी प्रभावित होती है, समय और संसाधन (अधिक मूल्यांकनकर्ता) की अपेक्षा रखती है तो सरलीकरण करते हुए इसे हटा ही दिया गया। लिखित परीक्षाओं में सांस्थानिक गड़बड़ी हो सकती है- अभी उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पी सी एस जे की परीक्षा में यह देखने में भी आया है- तो इसका समाधान निकाला गया है- वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली।

वस्तुतः वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली सरलीकरण का चरम है। इसमें कुछ निश्चित प्रश्न रहते हैं, जिनका सही उत्तर देकर सफलता पा ली जाती है। इसमें वैकल्पिक व्यवस्था रहती है तो हल करना भी बहुत आसान रहता है। इसलिए इस परीक्षा को अन्य बाह्य कारकों से प्रभावित कर लेते हैं। कोई सॉल्वर यदि परिस्थितियां अनुकूल हुईं तो इसका सही उत्तर पहुंचा देता है। इसमें तंत्र को धता बताते हुए या उसे भी सम्मिलित करते हुए जो नई दुर्व्यवस्था प्रविष्ट हुई है, वह है पेपर लीक। इसका अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है, इसलिए इसे करने वालों पर कड़ाई की बातें हो रही हैं। कड़ाई की इन चर्चाओं में यह महत्त्वपूर्ण तथ्य ओझल हो जा रही है कि सरलीकरण करते हुए हम “परीक्षा” ठीक से नहीं कर पा रहे हैं और जब परीक्षण ही सही नहीं हो पा रहा है तो सेवा की भावना वाले कार्मिक/सेवा प्रदाता कहाँ से मिलेंगे?

 

-           डॉ रमाकान्त राय

असिस्टेंट प्रोफ़ेसर,

पंचायत राज राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटावा

९८३८९५२४२६

royramakantrk@gmailcom

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दूसरा दोहा

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।। श्री हनुमान चालीसा शृंखला। दूसरा दोहा। श्रीहनुमानचा...

आपने जब देखा, तब की संख्या.