हनुमान जी का रौद्र रूप नहीं मिलता। वह कहीं भी क्रोधित नहीं होते। ऐसा कोई प्रसंग नहीं है जब वह विचलित होकर स्वयं उद्धत हुए हों, जैसा भगवान श्रीराम समुद्र का अनुनय विनय करने के बाद हो उठे थे या योगेश्वर श्रीकृष्ण महाभारत युद्ध में देवब्रत भीष्म के प्रति हो गए थे और रथचक्र धारण कर लिया था। भगवान परशुराम, बलराम आदि तो कदम कदम पर उद्धत हो जाते हैं, पृथ्वी से वीरों का संहार करने का संकल्प कर लेते हैं अथवा धरती को समुद्र में डुबो देने के लिए हल लेकर चल पड़ते हैं!
हनुमान जी का रौद्र रूप नहीं है। कठिनतम परिस्थितियों में भी वह धैर्य, जो वीरता का अनिवार्य लक्षण है, नहीं त्यागते। वह तो संहार के ही देवता हैं, साक्षात महादेव हैं। महादेव ने उमा के देह त्याग पर जो तांडव किया था, वह कितना भीषण था। हनुमान जी के समक्ष इतना उद्वेलनकारी क्षण नहीं आता। क्योंकि वह ज्ञानी भी हैं।
इसलिए जब उनकी ऐसी कूल छवियां आईं तो कलाकारों पर आक्षेप हुए कि यह उनकी प्रकृति के अनुसार नहीं है। परंतु सभ्यता संघर्ष के बीचोबीच अवस्थित, द्वंद्व झेल रहे सनातनी पक्ष को यह आवश्यक और युगानुकुल लगा। ऐसे चित्र बहुत लोकप्रिय हुए। यह हमारी आकांक्षा के अनुरूप ही है!
जय श्री हनुमान जी 🙏
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