बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

वानप्रस्थ : : मानस शब्द संस्कृति

 

वानप्रस्थ : मानस शब्द संस्कृति 

मिलहिं किरात कोल बनवासी।
बैखानस बटु जती उदासी।।

सनातन #संस्कृति में चार आश्रम निर्धारित हैं। जीवन के उत्तर पक्ष में गृहस्थ जीवन के बाद #वानप्रस्थ की व्यवस्था है जिसमें व्यक्ति जंगल में रहकर अपने जीवन के अनुभव परिपक्व करता, संजोता है।

भरत को मार्ग में कोल, किरात, भील, वनवासी, वानप्रस्थ आश्रम में रहने वाले लोग, व्रत धारी, छोटे छोटे बटुक आदि मिलते हैं।

बाहरी आक्रांताओं ने भारत की सामाजिक व्यवस्था नष्ट भ्रष्ट कर दी। ऐसी अव्यवस्था कर दी कि यह सब विलुप्त हो गया।

#मानस_शब्द


सोमवार, 12 फ़रवरी 2024

कर्मनाशा : मानस शब्द संस्कृति

 

कर्मनाशा : मानस शब्द संस्कृति

करमनास जलु सुरसरि परई।
तेहि को कहहु सीस नहिं धरई।।

उत्तर प्रदेश और बिहार की विभाजक, एक शापित नदी जिसे त्रिशंकु के लार से निकला हुआ बताया जाता है, #कर्मनाशा नाम से विख्यात है। गंगा की इस सहायक नदी में भयानक बाढ़ आती है। इस नदी का स्पर्श, स्नान वर्जित है।

#श्रीरामचरितमानस के अयोध्याकांड में कहा गया है कि #कर्मनाशा का जल गंगा में मिलने पर पवित्र हो जाता है। राम का नाम गंगा की तरह ही है। यह नाम उल्टा जपकर बाल्मिकी जी ब्रह्म के समान हो गए।
#संस्कृति

शिव प्रसाद सिंह रचित कहानी "कर्मनाशा की हार" हिंदी की चर्चित कहानियों में है।
#मानस_शब्द #संस्कृति

रविवार, 11 फ़रवरी 2024

शिविका : मानस शब्द संस्कृति

शिविका : मानस शब्द संस्कृति 

 

सिबिका सुभग न जाहिं बखानी।
चढ़ि चढ़ि चलत भईं सब रानी॥

सुकुमार, अक्षम, रोगी, वयोवृद्ध और दूल्हा-दुल्हन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए कुटियानुमा बनाई गई पालकी #शिविका कही जाती है। इसमें आगे और पीछे एक बांस नुमा लकड़ी निकली रहती है जिसे कंधे पर रखकर कहार ले जाते हैं।
#मानस_शब्द #संस्कृति

शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

ययाति : मानस शब्द संस्कृति

ययाति : मानस शब्द संस्कृति

 

तनय जजातिहि जौबनु दयऊ।
पितु अग्यां अघ अजसु न भयऊ।।

इक्ष्वाकुवंश में महाराजा नहुष के पुत्र #ययाति हुए। उनके जीवन से त्याग और भोग की प्रेरणादायी कहानी जुड़ी है। सुखोपभोग हेतु उन्होंने अपने पुत्र पुरु से से यौवन मांगा था और भोग करने के बाद "त्याग में सुख है", सिद्धांत प्रतिपादित किया। इस नाम से एक सिंड्रोम है जो वृद्धावस्था में यौवन की तीव्र कामना से संबंधित है।
ययाति की पत्नी राक्षसकुल के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी थीं। देवयानी की सखी शर्मिष्ठा ने भी ययाति से विवाह किया।
इस कहानी को केंद्र में रखकर मराठी के प्रसिद्ध नाटककार गिरीश कर्नाड ने ययाति नाम से एक नाटक लिखा है।

#मानस_शब्द #संस्कृति

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

कर्णधार : मानस शब्द संस्कृति

 

कर्णधार : मानस शब्द संस्कृति 

करनधार तुम अवध जहाजू।
चढ़ेउ सकल प्रिय पथिक समाजू।।
धीरजु धरिअ त पाइअ पारू।
नाहिं त बूड़िहि सब परिवारू।।

नौका/जहाज को पानी में यत्र तत्र के जाने के लिए जो चप्पू प्रयुक्त होता है, वह भी कर्ण है। उसे धारण करने वाला, नौका को दिशा देने वाला #कर्णधार। उसका ही दायित्व रहता है कि वह नौका को जहां चाहे ले जाए। पार उतारे या डुबोए, उसका कौशल है।

#मानस_शब्द #संस्कृति

प्रसंगवश कौशल्या कहती हैं कि राम के वियोग रूपी समुद्र में अयोध्या रूपी जहाज के कर्णधार राजा दशरथ हैं।

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024

बुलडोजर न्याय और पत्थरबाजी

बुलडोजर न्याय कोई न्याय नहीं है। यह खासा हिंसक है और दूरगामी प्रभाव डालता है। इसका समर्थन नहीं किया जा सकता। लेकिन पत्थरबाजी जैसे बर्बर और अमानुषिक कृत्य का कोई दूसरा इलाज भी नहीं है।


आइए पत्थरबाजी और बुलडोजर न्याय को समझने का प्रयास करते हैं।

#एक_धागा 

#बुलडोजर #पत्थरबाज


पत्थर आदिम मानव का अस्त्र था। मानव सभ्यता के इतिहास में नियंडरथल किस्मों ने पत्थर का बढ़िया उपयोग किया था। इतिहास और नृतत्त्वशास्त्र के विद्यार्थी अच्छी तरह जानते हैं कि पत्थरों का कैसा और कितना सुघड़ उपयोग आदिममानव ने किया था। फिर तांबे, कांसे और लोहे का युग आया।

सभ्यताएं प्रगति करती रहीं। उसके अस्त्र शस्त्र आधुनिक होते गए। आज हम मिसाइल और परमाणु बम के युग से भी संक्रमण कर रहे हैं। चीन ने जैविक अस्त्र का परीक्षण दुनिया भर में किया जिसे #COVID19 का नाम दिया गया। 

समाज आज पत्थरयुग से लगभग बाहर निकल आया है। लाठी मनुष्य का सहारा बना।


यदि आग्नेयास्त्रों को छोड़ दें तो अन्य सभी अस्त्रों में (और शस्त्र में भी) तकनीक काम करती है लेकिन पत्थर वाला पारंपरिक अस्त्र अभी भी उसी आदिम तरीके से चलाया जा रहा है। हालांकि दिल्ली में बीते दिनों हुए दंगे में #पत्थरबाजी करने के लिए गुलेल की तकनीक भी अपनाई गई थी। अस्तु,

अरब समाज में आज भी यह सबसे प्रमुख अस्त्र/शस्त्र है। मक्का में शैतान को पत्थर मारते हैं और यह एक बहुत प्रसिद्ध "फंक्शन" है, जिसमें दुनिया भर के मुसलमान एकत्रित होते हैं और पत्थर फेंकने की रस्म अदायगी करते हैं। शरिया वाले समाज में #संगसार करना न्याय का तरीका है।


कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को.. 

तथाकथित पापियों को संगसार करके सजा देना शरिया का हिस्सा है। तो जब किसी प्रदर्शन/दंगा/लूट आदि में पत्थर चलता है तो इसका केवल यह अर्थ नहीं है कि पत्थर सर्वसुलभ है, घातक है, पहचान छिपाता है इसलिए चलता है; बल्कि इसका एक सांस्कृतिक पक्ष है।


पत्थरबाजी करने में एक लाभ है कि आप कभी भी अस्त्र/शस्त्र हीन/युक्त हो सकते हैं। इसकी कोई विशेष तैयारी नहीं है। अभी खाली हाथ थे, अभी पत्थर युक्त हो गए। निशाने पर फेंका और हाथ झाड़कर मासूम बन गए। कोई सबूत नहीं बचा। विकासशील समाजों में पत्थर मिलने की संभावना बहुत अधिक रहती है।


अब यह सब जानते हैं कि हमारे देश में शरिया क़ानून व्यवस्था नहीं है। लेकिन दंगा, उपद्रव, सामूहिक हिंसा तो आम है। अभी कुछ साल पहले तक लाठी चलाने वाले लोगों का एक समूह यदि विपक्षी को सबक सिखाना रहता था तो धावा बोलता था और विपक्षी भी लाठियों से सुसज्जित होकर भिड़ता था।


लेकिन सामंती समाज के विघटन के बाद शत्रु अदृश्य हो गए। कोई किसी को कभी भी बिना बताए नुकसान पहुंचा सकता है। यदि आपको #आधा_गांव उपन्यास की याद हो तो उसमें फुन्नन मियां और कुंवरपाल सिंह एक दूसरे को सावधान कर लाठी चलाते हैं। यही तरीका था। बचने/प्रत्युत्तर के लिए स्पेस मिलता था।पूंजीवादी व्यवस्था ने नैतिकता नष्ट कर दी।


लेकिन हम पत्थरबाजी और दंगे की बात कर रहे थे।

आधुनिक प्रदर्शनों में दंगाई पत्थर का इसलिए भी प्रयोग करते हैं कि इससे लैस होना और मुक्त होना बहुत क्षिप्र गति से संभव है। जब तक फेंकते नहीं, यह हथियार नहीं है। अरब समाज में यह नैपकिन है।


पत्थर फेंकने का कोई प्रमाण नहीं रहता। यह दंगाइयों के लिए सबसे #आदर्श स्थिति है। मारो और भीड़ में छिप जाओ। यदि वीडियो न बने तो पता नहीं चल सकता कि वास्तव में पत्थर किसी को आहत करने के लिए चलाया गया है। वीडियो बने भी तो वह सिर्फ यह बता सकता है कि #पत्थर फेंका गया है।


इसलिए बीते दिनों में अराजकता वादी समूहों ने #पत्थरबाजी को एक फेवरेट टूल की तरह अपनाया है। पत्थरबाजी में और वह भी समूह द्वारा की गई पत्थरबाजी में अनुशासन का अभाव होता है इसलिए इसमें प्रहार और बचाव का कोई नियम नहीं है। सब अंधाधुंध है। यह सुरक्षाबलों के लिए चुनौती हो जाती है।


जब आपके हाथ बंधे हों, बचाव करना एकमात्र रास्ता हो तो पत्थरबाजी एक चक्रव्यूह है और आप अभिमन्यु हैं। जहां क्षत विक्षत होना ही अंतिम परिणति है। जहां क्रूरता है, अट्टहास है और नंगानाच।

सुरक्षा बलों को दंगाइयों का इसी तरह सामना करना पड़ता है। मारना नहीं है। संभव भी नहीं।


ऐसे में, पत्थरबाजी चुनकर दंगाइयों ने मौके का खूब फायदा उठाया है। बीते कुछ समय से इस वृत्ति ने म्लेच्छों में अपार लोकप्रियता हासिल कर ली है। शासन एक तो सॉफ्टकॉर्नर रखता था और फिर यह लूपहोल उसे नख दंत विहीन कर देता था।

अब शासन ने काट खोज ली है। यह उपाय है #बुल्डोजर तकनीक ने शासन के #बुलडोजर अभियान को अपेक्षाकृत न्यायशील बनाया है। दंगा, उपद्रव, अराजकता, बलात्कार, गंभीर अपराध में संलिप्तता का प्राथमिक साक्ष्य मिलते ही कार्रवाई के लिए अनुमति मिल जाती है।

चूंकि न्यायिक प्रणाली धीमी है और बहुत लंबी खिंच जाती है, इसलिए यह न्याय आया है।


शासन ने दंगाइयों, उपद्रवी और अराजक लोगों की संपत्ति नष्ट करने का एक तरह से संकल्प लिया है। न्याय होगा, पहले आपको इसका फल चखा दिया जाए। सम्पत्ति किसी भी व्यक्ति के शक्ति का आधार है। शासन आरोपी के अचल सम्पत्ति को ध्वस्त करती है और चल को जब्त। इससे उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है।


चूंकि शासन कोई कार्य द्वेषवश, विभेदकारी तरीके से और अन्याय करते हुए नहीं कर सकती तो इसके लिए उसने अवैध निर्माण और अतिक्रमण का एक ऐसा मार्ग चुना है जिसमें अपार संभावनाएं हैं। अवैध निर्माण बताना तो इतना आसान है कि इसकी कोई काट नहीं। न्यायालय भी इसके आगे विवश रहेगा।


#पत्थरबाजी में जितनी अराजकता और स्वच्छंदता है, #बुल्डोजर में भी वही है। शासन के हाथ यह विशिष्ट तरीका लगा है। इसमें अच्छी बात यह है कि #बुलडोजर_बाबा चलते हैं तो लोग प्रसन्न होते हैं क्योंकि यह आततायी, अत्याचारी, गुण्डा, माफिया आदि को पंगु करता है, लोगों को निर्भय बनाता है।


लोग मुझसे पूछते हैं कि यह न्याय कहां तक जाएगा? मुझे भस्मासुर की कथा याद आ जाती है। उसे वरदान मिला था कि वह जिसके सिर पर हाथ रख देगा, वह भस्म हो जाएगा। उसे वरदान का सदुपयोग करना था। उसकी तपस्या का यह फल मजेदार होना था किन्तु उसने बहकावे में आकर गलत पंगा ले लिया। भस्म हुआ।


तो #बुलडोजर शासन को प्राप्त एक अपरिमित शक्ति से युक्त वरदान है। शासन इसका वरदान की तरह प्रयोग करे तो वह सुशासन बनाए रखने में सहायक होगा। दुरुपयोग करेगा, जैसा महाराष्ट्र में कंगना राणावत के साथ किया तो भस्मासुरी अन्त होगा।


वरदान रूप में मैं बुलडोजर के साथ हूं और आप?


#कथा #वार्ता #कथावार्ता

कहानी : मानस शब्द संस्कृति

मानस शब्द संस्कृति: कहानी


कहहिं पुरातन कथा कहानी।
सुनहिं लखन सिय अति सुखु मानी।।

चित्रकूट में निवास करते हुए श्रीरामचंद्र जी वही करते और कहते हैं जो सीता और लक्ष्मण को सुख देने वाले हों। वह प्राचीन कथा और #कहानियां सुनाते हैं। आज जिसे #कहानी (Short story) कहते हैं, उसे पश्चिम से आयातित विधा माना जाता है।
कहानी में सबसे प्रमुख तत्त्व है "कहन"। यह कहने और सुनने के लिए थी। इसलिए भारत में इसकी लिखित परंपरा कम मिलती है। जब यूरोप की शॉर्ट स्टोरी अस्तित्व में आई तो उसकी देखा देखी #कहानी विधा का आरंभ हुआ। किशोरीलाल गोस्वामी की कहानी इंदुमती हिंदी की पहली कहानी मानी जाती है।

श्रीराम वनवास काल में "बड़ा" होने का दायित्व बहुत अच्छी तरह निभा रहे हैं। राजघराने के अभ्यस्त लक्ष्मण और सीता को नई परिस्थिति में जो रुचिकर लगे, सुख मिले, वह सब उपक्रम वह करते हैं। वह कथाएं सुनाते हैं। यह सब चरित्र को उज्ज्वल बनाने वाले वृत्त हैं। राम इसी नाते आदर्श हैं।

#मानस_शब्द #संस्कृति

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दूसरा दोहा

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।। श्री हनुमान चालीसा शृंखला। दूसरा दोहा। श्रीहनुमानचा...

आपने जब देखा, तब की संख्या.