करहिं आरती आरतिहर कें।
रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें।।
आर्तिहर : मानस शब्द संस्कृति |
करहिं आरती आरतिहर कें।
रघुकुल कमल बिपिन दिनकर कें।।
आर्तिहर : मानस शब्द संस्कृति |
आम फलते रहेंगे बागों में
रोज निकलेगी बात आमों की।
कड़ा पहरा है अबकी आमों पर
रस में डूबेंगे कैसे आमों की।।
कच्चा आम |
आम का साथ साथ आमों का
आम की बात बात आमों की।
आम तो आम है, कोई खास नहीं
कब लगेगी नुमाइश आमों की।
आम देखूं तो ललक उठती है
दिल में उठती है हूक आमों की।
आम देखा तो होंठ याद आए
याद आती गई हैं आमों की।
आम की फस्ल आम नहीं होती
कई कलमें लगेंगीं आमों की।
रसाल |
#चार_आम
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना।
बेद पुरान बिदित जगु जाना।।
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ।
यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।।
जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि।
उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।
जन्मभूमि : मानस शब्द संस्कृति |
पुष्पक विमान में बैठे हुए सूर्यवंशी राम, सीता को उन स्थलों से परिचित कराते लेकर आए जहां जिनसे वह परिचित न थीं। उन स्थानों पर रुके, जहां जाते समय विश्राम किया था। फिर पहुंचे अपनी #जन्मभूमि, अयोध्या जी। वह कपि समूह को दिखाने लगे।
वहां वह #जन्मभूमि के प्रति अपने प्रेम का बहुत रुचिर वर्णन करते हैं। बैकुंठ से अधिक महिमाशाली कहते हैं। बैकुंठ भी उन्हें उतना प्रिय नहीं, जितना अवधपुरी। अपने जन्म स्थान से यह प्रेम भारत और भारतीय जन की पहचान है।
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" को स्वर्णमयी लंका के तुलना में रखा है जबकि गोस्वामी जी ने बैकुंठ के।
#रामकथा मे आज श्रीराम अपनी #जन्मभूमि अयोध्या जी लौट आए। चौदह वर्ष का वनवास बहुत बड़ा था, कठिन था। श्रीरामचरितमानस की कथा भी इसी के साथ पूरी हुई। इसके बाद उत्तर कांड है और उत्तर कांड रामकथा का प्रसाद है। उसे प्राप्त किया जाएगा किंतु उससे पूर्व यह कहना है कि जैसे भगवान श्रीराम अपने घर लौटे, सब लौटें। जो आदर्श उन्होंने स्थापित किया, वह ध्येय हो। उन्होंने जो मर्यादा स्थापित की, वह हमारा आदर्श रहे। सब सुखी हों, नीरोग हों, चिंतामुक्त रहें।
अन्त में,
यहां यह भी कहने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं कि कई सौ साल की प्रतीक्षा के बाद रामलला का विग्रह अयोध्या जी में इस साल स्थापित हुआ है। इस महान परिघटना के बाद कल पहली श्रीरामनवमी है।
मैं इस पावन अवसर पर आप सबको "सियाराममय" जानकर प्रणाम करता हूं।
कहिए! जय श्री राम! 🚩
चलत बिमान कोलाहल होई।
जय रघुवीर कहई सब कोई।।
सिंहासन अति उच्च मनोहर।
श्री समेत प्रभु बैठे ता पर।।
श्री : मानस शब्द संस्कृति |
लंका से अयोध्या जी लौटने के लिए भगवान राम #श्री के साथ पुष्पक विमान में बैठे। जब भगवान राम, सीता के साथ हैं, तो #श्रीराम हैं। जब उद्घोष में जय श्री राम कहा जाता है तो यह सीता और राम का संयुक्त जयघोष होता है। यह आक्रामक नहीं है।
बीते दिनों में खटरागियों ने #जयश्रीराम और #जयसियाराम का लफड़ा खड़ा कर दिया था कि पहला आक्रामक है और हिंदू धर्म की भावना के अनुरूप नहीं है। वह वस्तुत: लोगों के मनोमष्तिष्क में एक अविश्वास, शक, संदेह और अश्रद्धा का भाव भर देना चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि जयघोष निर्द्वंद्व होकर न हो। वस्तुत: ऐसे लोग हिंदू धर्म और संस्कृति के ध्वंसक लोग हैं।
जय श्री राम!🚩
#मानस_शब्द #संस्कृति
आज #सतुआन है। हर वर्ष 14 अप्रैल को नवान्न के प्रति श्रद्धाभाव प्रकट करने का एक अन्य उत्सव हमारी #संस्कृति का ।सतुआन के दिन सत्तू खाया जाएगा। जौ और चने का मिश्रित। अमिया, पुदीना की चटनी, भरवां मिर्च और प्याज के साथ। सत्तू की लोई बना ली जाएगी और बाद में घोलकर हर कण उदरस्थ करेंगे। 🚩
आज #सतुआन है।
उत्तर भारतीयों का फास्ट फूड। इससे तेज कुछ नहीं। इससे आसान कुछ नहीं। नमक, पानी मिलाकर घोल बनाया। पी लिया। समय है तो सान कर लोई बना ली। कौर बनाकर खा लिया। साथ में प्याज, मिर्च, अचार हो तो सोने पर सुहागा। सबसे बड़ी विशिष्टता है कि यह आहार जंक फूड नहीं, पौष्टिक है।
बरगलाने वाले यदि चाहें तो सफल होकर रहते हैं। लोक में प्रचलित कहानी है। दो जने यात्रा में थे। एक की पोटली में सत्तू था, दूसरे के धान। दुपहर हुई। पेड़ की छाया में बैठे, तो दोनों ने पोटली खोली।
"क्या है पोटली में?"
"सत्तू!"
"अरे! सत्तू है लपेट्टू! कब सनबा, कब खइबा, कब जयबा?"
यात्री का मुंह लटक गया। उसने दूसरे से पूछा -
"आपकी पोटली में क्या है?"
"धान। बहुत आसान। कूटा, रीन्हा(पकाओ) खा।"
"??"
"!! बदलोगे?"
यात्री ने अदलाबदली कर ली। धान कूटने लगा, पकाकर खाने की तैयारी में जुट गया।
दूसरे ने सत्तू खाकर तब तक कई पड़ाव पार कर लिए।
श्री समीर शेखर सहस्रबुद्धे लोककथा का एक अन्य संस्करण प्रस्तुत करते हैं।
"एक कहानी है -
सत्तू मन मत्तू, जब घोला तब खाया ।
(Time consuming)
धान भई भले, कूट खाये चले।
(Quick food)
वस्तुत, जिसके पास सत्तू नही था तो वो सत्तू पाने कि जुगाड कर रहा था, उसको धान से नीचा बताते हुए ताकि सत्तू, धान से ट्रेड किया जा सके।"
श्री जंग बहादुर सिंह बताते हैं कि
"हमारे क्षेत्र में सत्तू संक्रांति के नाम से प्रचलित है, गुर सत्तू गृह देवता, ग्राम देवता,कुल देवता और मण्डल देवता को चढ़ा कर बच्चों को खिलाया जाता है जिसे छोहरी खिलाना कहते हैं, इसके बाद कच्चे आम की चटनी, नमक, प्याज अंचार के साथ खाया जाता है।"
प्रख्यात साहित्यकार डॉ कुश चतुर्वेदी स्मृतियों में डूब जाते हैं - "सतुआ, अमिया, गुड़,सुराही,पंखा आदि किसी को देने जाने की स्मृति यथावत है। पूज्य अम्मा इस दिन बासा भोजन अनिवार्य रूप से करने का आदेश देती थीं।आज भी अम्मा का देवलोक से आदेश मानकर हम लोग यथासंभव पालन का प्रयास अवश्य करते हैं।आपकी पोस्ट ने इस भाव को सबलता दे दी।"
सतुआन की संस्कृति बनी रहे। नवान्न के प्रति श्रद्धा बनी रहे।
बरषहिं सुमन देव मुनि बृंदा।
जय कृपाल जय जयति मुकुंदा।।
भगवान श्री विष्णु मुक्तिदाता हैं। स्वतंत्रता प्रदान करने वाले कृपालु हैं।
भगवान श्रीराम ने रावण को इकतीस बाण एक साथ मारे तो वह खण्ड खण्ड हो गया। देवताओं ने तब सुमनवृष्टि की और जयजयकार। वह भी #मुकुन्द हुए। विष्णु का नाम सार्थक हुआ।
मुकुंद : मानस शब्द संस्कृति |
#श्रीरामचरितमानस पाठ में आज रावण मुक्त हो गया। #मानस_शब्द #संस्कृति में यह शब्द आया तो मुझे सीधे आग में पकाए जाने वाले स्वादिष्ट व्यंजन मकुनी की याद हो आई। वैष्णव जन उसे मुकुंदी कहते हैं। सत्तू के पूरन से गदगदाई हुई। वह मुक्त होकर, मुक्ताकाश में बनती है और उदरस्थ करने वाले को मुक्त करती है।
जनि जल्पना करि सुजसु नासहि नीति सुनहि करहि छमा।
संसार महँ पूरुष त्रिबिध पाटल रसाल पनस समा॥रसाल : मानस शब्द संस्कृति |
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।। श्री हनुमान चालीसा शृंखला। दूसरा दोहा। श्रीहनुमानचा...