रविवार, 14 अप्रैल 2024

सतुआन : The Super Fast Food Festival

    आज #सतुआन है। हर वर्ष 14 अप्रैल को नवान्न के प्रति श्रद्धाभाव प्रकट करने का एक अन्य उत्सव हमारी #संस्कृति का ।सतुआन के दिन सत्तू खाया जाएगा। जौ और चने का मिश्रित। अमिया, पुदीना की चटनी, भरवां मिर्च और प्याज के साथ। सत्तू की लोई बना ली जाएगी और बाद में घोलकर हर कण उदरस्थ करेंगे। 🚩


आज #सतुआन है।

उत्तर भारतीयों का फास्ट फूड। इससे तेज कुछ नहीं। इससे आसान कुछ नहीं। नमक, पानी मिलाकर घोल बनाया। पी लिया। समय है तो सान कर लोई बना ली। कौर बनाकर खा लिया। साथ में प्याज, मिर्च, अचार हो तो सोने पर सुहागा। सबसे बड़ी विशिष्टता है कि यह आहार जंक फूड नहीं, पौष्टिक है।


बरगलाने वाले यदि चाहें तो सफल होकर रहते हैं। लोक में प्रचलित कहानी है। दो जने यात्रा में थे। एक की पोटली में सत्तू था, दूसरे के धान। दुपहर हुई। पेड़ की छाया में बैठे, तो दोनों ने पोटली खोली।

"क्या है पोटली में?"

"सत्तू!"

"अरे! सत्तू है लपेट्टू! कब सनबा, कब खइबा, कब जयबा?"

यात्री का मुंह लटक गया। उसने दूसरे से पूछा -

"आपकी पोटली में क्या है?"

"धान। बहुत आसान। कूटा, रीन्हा(पकाओ) खा।"

"??"

"!! बदलोगे?"

यात्री ने अदलाबदली कर ली। धान कूटने लगा, पकाकर खाने की तैयारी में जुट गया।

दूसरे ने सत्तू खाकर तब तक कई पड़ाव पार कर लिए।


श्री समीर शेखर सहस्रबुद्धे लोककथा का एक अन्य संस्करण प्रस्तुत करते हैं।

"एक कहानी है - 


सत्तू मन मत्तू, जब घोला तब खाया ।

(Time consuming) 

धान भई भले, कूट खाये चले।

(Quick food) 

वस्तुत, जिसके पास सत्तू नही था तो वो सत्तू पाने कि जुगाड कर रहा था, उसको धान से नीचा बताते हुए ताकि सत्तू, धान से ट्रेड किया जा सके।"


 श्री जंग बहादुर सिंह बताते हैं कि

"हमारे क्षेत्र में सत्तू संक्रांति के नाम से प्रचलित है, गुर सत्तू गृह देवता, ग्राम देवता,कुल देवता और मण्डल देवता को चढ़ा कर बच्चों को खिलाया जाता है जिसे छोहरी खिलाना कहते हैं, इसके बाद कच्चे आम की चटनी, नमक, प्याज अंचार के साथ खाया जाता है।"


प्रख्यात साहित्यकार डॉ कुश चतुर्वेदी स्मृतियों में डूब जाते हैं - "सतुआ, अमिया, गुड़,सुराही,पंखा आदि किसी को देने जाने की स्मृति यथावत है। पूज्य अम्मा इस दिन बासा भोजन अनिवार्य रूप से करने का आदेश देती थीं।आज भी अम्मा का देवलोक से आदेश मानकर हम लोग यथासंभव पालन का प्रयास अवश्य करते हैं।आपकी पोस्ट ने इस भाव को सबलता दे दी।"


सतुआन की संस्कृति बनी रहे। नवान्न के प्रति श्रद्धा बनी रहे।


एक्स पोस्ट : सतुआन


शनिवार, 13 अप्रैल 2024

मुकुंद : मानस शब्द संस्कृति

बरषहिं सुमन देव मुनि बृंदा।

जय कृपाल जय जयति मुकुंदा।।


भगवान श्री विष्णु मुक्तिदाता हैं। स्वतंत्रता प्रदान करने वाले कृपालु हैं।

भगवान श्रीराम ने रावण को इकतीस बाण एक साथ मारे तो वह खण्ड खण्ड हो गया। देवताओं ने तब सुमनवृष्टि की और जयजयकार। वह भी #मुकुन्द हुए। विष्णु का नाम सार्थक हुआ।

मुकुंद : मानस शब्द संस्कृति 

#श्रीरामचरितमानस पाठ में आज रावण मुक्त हो गया। #मानस_शब्द #संस्कृति में यह शब्द आया तो मुझे सीधे आग में पकाए जाने वाले स्वादिष्ट व्यंजन मकुनी की याद हो आई। वैष्णव जन उसे मुकुंदी कहते हैं। सत्तू के पूरन से गदगदाई हुई। वह मुक्त होकर, मुक्ताकाश में बनती है और उदरस्थ करने वाले को मुक्त करती है।

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

रसाल : मानस शब्द संस्कृति

जनि जल्पना करि सुजसु नासहि नीति सुनहि करहि छमा।

संसार महँ पूरुष त्रिबिध पाटल रसाल पनस समा॥
एक सुमनप्रद एक सुमन फल एक फलइ केवल लागहीं।
एक कहहिं कहहिं करहिं अपर एक करहिं कहत न बागहीं॥
रसाल : मानस शब्द संस्कृति 


श्रीराम-रावण संग्राम में प्रभु कहते हैं कि संसार में तीन प्रकार के पुरुष हैं- पाटल (गुलाब), #रसाल और पनस (कटहल) जैसे। इसमें रसाल यानी आम ऐसा है, जिसमें फूल और फल दोनों लगते हैं। ऐसे पुरुष जो कहते हैं और उसे करते भी हैं।
पाटल में केवल फूल लगता है, ऐसे पुरुष केवल कहने में विश्वास करते हैं।
पनस यानी कटहल में केवल फल लगता है, ऐसे पुरुष केवल करते हैं, कहने में भरोसा नहीं करते।
कहना न होगा कि इसमें #रसाल श्रेष्ठ है।
व्यक्तिगत स्तर पर मुझे यह फल प्रिय है। आपने #चार_आम की शृंखला न जानी तो क्या किया।

#मानस_शब्द #संस्कृति

सोमवार, 8 अप्रैल 2024

ग़ज़ल : राजीव राय क्यों इतरा रहे हैं!

बेल का शर्बत तो पिला रहे हैं,

कहंतरी में क्या हिला रहे हैं!


भुने हुए काजू रक्खे हैं प्लेट में

जुबान क्यों अपनी चला रहे हैं!


पूरा समाजवाद उतरा है फाटक में

राजीव राय क्यों इतरा रहे हैं!


जिसने उजाड़ दी मासूमों की दुनिया

कब्र पर पुष्प क्यों बिखरा रहे हैं!


मेन बात ये है कि कहता है गुड्डू

ये अशराफ सारे कहां जा रहे हैं!




प्रदोष : मानस शब्द संस्कृति

जातुधान प्रदोष बल पाई।

धाए करि दससीस दोहाई।।

प्रदोष : मानस शब्द संस्कृति 


पंचांग के अनुसार द्वादशी और त्रयोदशी की तिथि का संक्रमण काल (संध्या) #प्रदोष है। संध्या का अर्थ है दो काल का मिलन। प्रातःकालीन और सांयकालीन संध्या होती है। लंका युद्ध के प्रथम दिन प्रदोष काल का बल लेकर #जातुधान रावण का जयघोष कर पुनः आक्रमण करने लगे।

प्रदोष काल लगभग तीन घंटे का होता है। यह संध्या काल से डेढ़ घंटे पहले से शुरू होकर बाद के डेढ़ घंटे तक चलता है। इस अवधि में भगवान शिव की आराधना विशेष फल दाई रहती है।

#मानस_शब्द #संस्कृति

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

लबार: मानस शब्द संस्कृति

साँचेहु मैं लबार भुजबीहा।
जौं न उपारिअ तव दसजीहा॥
लबार: मानस शब्द संस्कृति 



सभा में ऊलजलूल और निरर्थक, हास्यजनक बात करनेवाले व्यक्ति को #लबार कहा जाता है। विदूषक।
अंगद की बातों से आहत होकर रावण ने उन्हें इसी संज्ञा से जोड़ दिया तब उन्होंने कहा कि हे बीस भुजाओं वाले रावण, यदि मैंने तुम्हारी दसों जीभ न उखाड़ ली तो मैं लबार हूं।

लबार अनावश्यक और असंगत हस्तक्षेप करने वाले लोग हैं। अधिक बोलने वाले और निरर्थक, मूर्खतापूर्ण बात करने वाले हैं।

#मानस_शब्द #संस्कृति

गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

गूलर फल : मानस शब्द संस्कृति

 

मानस शब्द संस्कृति 

गुलरि फल समान तव लंका।
बसहु मध्य तुम जंतु असंका।।

श्रीरामदूत अंगद और रावण में संवाद बहुत आक्रामक है। श्रीराम के मनुष्य कहने से क्रोधित अंगद रावण की धज्जियां उड़ा दे रहे हैं। कहते हैं कि तुम्हारी लंका #गूलर के फल की तरह है। गूलर के फल में कीड़े भरे रहते हैं। ऊपर से चिक्कन। सुंदर उपमा।

गूलर के फूल को लेकर बहुत से लोक विश्वास प्रचलित हैं। यह भी कि किसी को मिल जाए तो वह धन धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। लेकिन गूलर के फल के विषय में यह एक कटु सत्य है। यद्यपि उसका फल बहुत स्वादिष्ट होता है और अकाल के जमाने में ग्रामीणों का आहार होता था। गूलर और गोदा (बरगद और पाकड़ का फल) कठिन समय के आहार रहे हैं।

#मानस_शब्द #संस्कृति

सद्य: आलोकित!

हनुमान चालीसा: चौथी चौपाई

 कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।। चौथी चौपाई श्री हनुमान चालीसा की चौथी चौपाई में हनुमान जी के रूप का वर्णन है। उन्हें कंचन अ...

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