सब देवन को दरबार जुरयो तहँ पिंगल छंद बनाय कै गायो
जब काहू ते अर्थ कह्यो न गयो तब नारद एक प्रसंग चलायो,
मृतलोक में है नर एक गुनी कवि गंग को नाम सभा में बतायो।
सुनि चाह भई परमेसर को तब गंग को लेन गनेस पठायो।।
गुरुवार, 11 जनवरी 2024
गंग की चर्चित कविता
गुरुवार, 21 दिसंबर 2023
दूधनाथ सिंह की डायरी के एक पन्ने से -
कुछ लेखकों के बारे में-
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कबीर प्रतिभाशाली
तुलसीदास प्रतिभाशाली सचेत
भारतेंदु प्रतिभाशाली अराजक
प्रसाद। परिश्रमी
निराला प्रतिभाशाली
पन्त प्रतिभाशाली बेचैन
महादेवी प्रतिभाशाली अवसादग्रस्त
यशपाल कलमघिस्सु
अज्ञेय अर्जित-अवकाश
बच्चन कलमबाज
दिनकर। शब्दाभिमानी
शमशेर प्रतिभा रोमान
राम विलास शर्मा प्रतिभा परिश्रम की पाल्थी
रामचंद्र शुक्ल प्रतिभाशाली
प्रेमचंद प्रतिभासम्पन्न
जैनेन्द्र हठयोगी
रेणु प्रतिभाशाली
ज्ञानरंजन प्रतिभाशाली उच्चछिन्न
रवीन्द्र कालिया वाचाल
उदय प्रकाश अंतर्राष्ट्रीय छि: छी:
मार्कण्डेय कुछ नही
कमलेश्वर भुस्स
राजेंद्र यादव। मिहनती
मन्नू भंडारी ईमानदार और मोहक
मोहन राकेश प्रतिभासम्पन्न
धर्मवीर भारती रियल रोमैंटिक
फैज प्रतिभाशाली
नागार्जुन दोआब
त्रिलोचन न कुछ का सबकुछ
नामवर सिंह नायक
हजारी प्रसाद द्विवेदी प्रतिभाशाली-उन्मुक्त
मुक्तिबोध प्रतिभाशाली-राउंड टेबिल
मलयज धुंध
भैरव प्रसाद गुप्त हठवादी
कृष्णा सोबती मर्दवादी
ग़ालिब प्रतिभाशाली-अनंत बार सबकुछ
मीर। सुहाना कवि
इक़बाल इस्लामी कवि
शेक्सपियर सब कुछ
ओसामू दज़ाई आत्महत्यारा
टालस्टाय सबकुछ
दास्तोवेस्की आत्मा का घनत्व
गोर्की सोचता हुआ
रवीन्द्र नाथ ठाकुर सब कुछ
मायकोवस्की उत्तेजित
पास्तरनाक प्रतिभाशाली
एवेतुशांको ठठेरा
वोज्नेसेन्सकी प्रतिभावान
मैथिलिशरण गुप्त ठेठ हिंदी का ठाठ
रविवार, 3 दिसंबर 2023
त्रय ताप : शब्द चर्चा
"जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोई प्रभु प्रगट समुझु जियं रावन।।"
जिनका नाम ताप को नष्ट करने वाला है त्रिविध अर्थात दैहिक, दैविक और भौतिक ताप। इन्हें आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक ताप कहते हैं। दैहिक शरीर का ताप है, भौतिक अज्ञानता का और दैविक ईश्वर प्रदत्त। श्रीराम का नाम इनको नष्ट कर देता है।
त्रय ताप |
#संस्कृति #शब्द
शनिवार, 2 दिसंबर 2023
चूड़ामणि : शब्द चर्चा
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा॥
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ॥
चूड़ामणि |
श्रीराम जी की मुद्रिका के बदले में सीताजी ने एक चीन्हारी दी। सौभाग्य सूचक, परंपरा से प्राप्त। बताया जाता है कि इसमें घंटियां लगी होती हैं। जो #चूड़ामणि सीता ने हनुमान जी को दी, वह बहुत विशिष्ट थी। हमारी #संस्कृति में वसन और आभूषण की समृद्ध परम्परा है।
शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023
अमोघ : शब्द चर्चा
जिमी अमोघ रघुपति कर बाना।
एही भाँति चलेउ हनुमाना॥
रघुपति के बाण को #अमोघ कहा गया है। अमोघ का अर्थ है अचूक। अपने लक्ष्य का भेद करने वाला। विशेष
बात यह है कि अमोघ अस्त्र लक्ष्य के स्थान बदल लेने पर भी वेधने में सक्षम है।
भारतीय परंपरा में ऐसे संधानकर्ता रहे हैं। सूर्यवंशी अमोघ साधक हैं।
निमिष : शब्द चर्चा
जारा नगरु निमिष एक माहीं।
एक विभीषण कर गृह नाहीं।।
(हनुमान जी ने लंका नगरी को आधे क्षण में जला दिया। एकमात्र विभीषण का घर छोड़कर।) यह चौपाई रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड में है.
#निमिष का अर्थ है एक क्षण का आधा भाग। पलक झपकाने में जितना समय लगता है, उतना ही। यह समय नापने की भारतीय इकाई है। राजा निमि जनकपुरी के पहले राजा थे। इसी वंश में सीता जी का जन्म हुआ था।
रविवार, 26 नवंबर 2023
जब राम विवाह के उपरांत घर आए!
दोहा॥
श्री गुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि ॥
॥ चौपाई ॥
जब तें रामु ब्याहि घर आए ।
नित नव मंगल मोद बधाए ॥
भुवन चारिदस भूधर भारी ।
सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी ॥1॥
रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई ।
उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई ॥
मनिगन पुर नर नारि सुजाती ।
सुचि अमोल सुंदर सब भाँती ॥2॥
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती ।
जनु एतनिअ बिरंचि करतूती ॥
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी ।
रामचंद मुख चंदु निहारी ॥3॥
मुदित मातु सब सखीं सहेली ।
फलित बिलोकि मनोरथ बेली ॥
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ ।
प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ ॥4॥
[ श्री रामचरितमानस: अयोध्या काण्ड: मंगलाचरण]
(यह ध्यातव्य है कि श्रीरामचंद्र जी के विवाह के उपरांत के प्रकरण में तुलसीदास जी ने अयोध्याकांड का प्रारंभ किया है। इसमें जिस दोहे से आरंभ है, वह हनुमान चालीसा में भी आरंभिक दोहा है।
श्रीराम जी के विवाह के बाद अयोध्या में हर तरफ मंगल लक्षण दिखाई दिए। यह सुखद संकेत था।)
बुधवार, 22 नवंबर 2023
पनौती : शब्द विश्लेषण और अर्थ
देख रहा हूं कि आदरणीय सुरेश पंत और ॐ थानवी जी के #पनौती
संबंधी मान्यता को कोशीय अर्थ, प्रत्यय जोड़कर बनाया शब्द
आदि से जोड़कर व्याकरण सम्मत और शास्त्रीय बताने का प्रयास किया जा रहा है!
जबसे युवा नेता राहुल
गांधी ने प्रधानमंत्री के लिए इस शब्द का प्रयोग किया है, तब से
इस शब्द की व्युत्पत्ति और उद्गम स्रोत की खोज हो रही है। यह युवा नेता राहुल
गांधी के वक्तव्य को व्यवहारसम्मत बताने के निमित्त किया जा रहा है। बताया जाता है
कि इसमें औती प्रत्यय है और मूल शब्द पानी से नि:सृत पन है।
चूंकि हस्तक्षेप करने
वाले विद्वान और सम्मानित जन हैं, इसलिए उनकी बात आप्त वचन मानकर
स्वीकार कर ली जा रही है। यहां मैं आपसे थोड़ा रुककर विचार करने के लिए आमंत्रित
करता हूं।
कथा वार्ता विशेष |
पहले शब्द पर विचार कर
लें। यहां औती प्रत्यय बताया जा रहा है। कटौती, चुनौती आदि शब्द प्रमाण के रूप
में रखे जा रहे हैं। #पनौती भी ऐसा ही शब्द है। मूल शब्द
क्या है?
बताया गया है कि पानी
से "पन" बना है। और इससे बने शब्द हैं पनबिजली, पनचक्की
आदि। एक पत्रकार (?) ने पन को अवस्था बताया है और शब्द बताया
है बचपन। पनौती का लाक्षणिक अर्थ कठिनाई बता दिया है।
अब कोई पूछे कि बचपन
में पन मूल शब्द है अथवा प्रत्यय ही? प्रत्यय से प्रत्यय जोड़ देंगे?
अब बचता है पनबिजली, पनचक्की
का पन। यह उचित है और सम्मत भी। तो पनौती में पानी का पन और औती प्रत्यय ही ठीक
माना जाना चाहिए। हिंदी में प्रत्यय की विशेषता है कि यह शब्द के अंत में जुड़कर
उसके अर्थ को विशिष्ट बना देता है। उपसर्ग में अर्थ बदल देने की शक्ति है।
यह देखिए और तनिक विचार
कीजिए कि पनबिजली और पनचक्की में मूल शब्द पन नहीं है। क्रमश: बिजली और चक्की है।
अतएव, पनौती शब्द के व्युत्पत्तिपरक यह सब व्याख्याएं उचित और व्याकरण सम्मत
नहीं हैं। ऐसी कोई आवश्यकता भी नहीं है कि इस शब्द का उद्गम तत्सम में जाकर खोजा
जाए। यह लोक से विच्छिन्नता का परिचायक है।
यह सच है कि पनौती शब्द
अपशकुन और अंधविश्वास का वाहक है लेकिन इसकी व्युतपत्ति और कोशीय अर्थ पर वक्तव्य
देना ठीक नहीं प्रतीत होता। यह शब्द अवध परिक्षेत्र के जनमानस का है। लोग काम
बिगड़ने की स्थिति में किसी अनपेक्षित को पनौती कहते हैं। हम दूसरे पर आश्रित हैं।
जब मैं प्रयागराज में अध्ययनरत था तो वहां छात्रावासी जीवन में यह शब्द खूब प्रचलन में था और सहपाठियों को चिढ़ाने के लिए पनौती कहा जाता था। यह शब्द शब्दकोश में नहीं है। इसकी व्युतपत्ति की खोज करना रेत का घर बनाना है। हां, राहुल गांधी के औचित्य की मीमांसा की जानी चाहिए।
मंगलवार, 7 नवंबर 2023
आज हिमालय की चोटी से फिर हम ने ललकारा है
आज हिमालय की चोटी से
फिर हम ने ललकारा है
आज हिमालय की चोटी से
फिर हम ने ललकारा है
दूर हटो दूर हटो
दूर हटो ऐ दुनिया वालों
हिंदुस्तान हमारा है
दूर हटो ऐ दुनिया वालों
हिंदुस्तान हमारा है!
जहाँ हमारा ताज महल है और
क़ुतब मीनारा है
जहाँ हमारा ताज महल है और
क़ुतब मीनारा है
जहाँ हमारे मंदिर मस्जिद
सिखों का गुरुद्वारा है
जहाँ हमारे मंदिर मस्जिद
सिखों का गुरुद्वारा है
जहाँ हमारा ताज महल है और
क़ुतब मीनारा है
जहाँ हमारे मंदिर मस्जिद
सिखों का गुरुद्वारा है
इस धरती पर क़दम बढ़ाना
अत्याचार तुम्हारा है
अत्याचार तुम्हारा है
दूर हटो दूर हटो
दूर हटो ऐ दुनिया वालों
हिंदुस्तान हमारा है
दूर हटो ऐ दुनिया वालों
हिंदुस्तान हमारा है
आज हिमालय की चोटी से
फिर हम ने ललकारा है
आज हिमालय की चोटी से
फिर हम ने ललकारा है
दूर हटो दूर हटो
दूर हटो ऐ दुनिया वालों
हिंदुस्तान हमारा है
दूर हटो ऐ दुनिया वालों
हिंदुस्तान हमारा
शुरू हुआ है जंग तुम्हारा
जाग उठो हिन्दुस्तानी
तुम न किसी के आगे झुकना
जर्मन हो या जापानी
शुरू हुआ है जंग तुम्हारा
जाग उठो हिन्दुस्तानी
तुम न किसी के आगे झुकना
जर्मन हो या जापानी
आज सभी के लिए हमारा
यही क़ौमी नारा है
आज सभी के लिए हमारा
यही क़ौमी नारा है
दूर हटो दूर हटो
दूर हटो ऐ दुनिया वालों
हिंदुस्तान हमारा है
दूर हटो ऐ दुनिया वालों
हिंदुस्तान हमारा है.
शुक्रवार, 29 सितंबर 2023
प्रेमचंद की कहानी ठाकुर का कुआं
"ठाकुर का कुआँ " प्रेमचंद
जोखू ने लोटा मुँह से लगाया तो पानी में सख्त बदबू
आयी । गंगी से बोला- यह कैसा पानी है ? मारे बास के पिया नहीं
जाता । गला सूखा जा रहा है और तू सड़ा पानी पिलाये देती है !
गंगी प्रतिदिन शाम पानी भर लिया करती थी । कुआँ दूर
था, बार-बार जाना मुश्किल था । कल वह पानी लायी, तो उसमें बू बिलकुल न थी, आज पानी में बदबू कैसी !
लोटा नाक से लगाया, तो सचमुच बदबू थी । जरुर कोई जानवर कुएँ
में गिरकर मर गया होगा, मगर दूसरा पानी आवे कहाँ से?
ठाकुर के कुएँ पर कौन चढ़ने देगा ? दूर
से लोग डाँट बतायेंगे । साहू का कुआँ गाँव के उस सिरे पर है, परंतु वहाँ भी कौन पानी भरने देगा ? कोई तीसरा कुआँ
गाँव में है नहीं।
जोखू कई दिन से बीमार है। कुछ देर तक तो प्यास रोके
चुप पड़ा रहा, फिर बोला- अब तो मारे प्यास के रहा नहीं जाता । ला,
थोड़ा पानी नाक बंद करके पी लूँ ।
गंगी ने पानी न दिया । खराब पानी से बीमारी बढ़ जायगी
इतना जानती थी, परंतु यह न जानती थी कि पानी को उबाल देने से उसकी खराबी
जाती रहती हैं । बोली- यह पानी कैसे पियोगे ? न जाने कौन
जानवर मरा है। कुएँ से मैं दूसरा पानी लाये देती हूँ।
जोखू ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा- पानी कहाँ से
लायेगी ?
ठाकुर और साहू के दो कुएँ तो हैं। क्या एक लोटा पानी
न भरने देंगे?
‘हाथ-पाँव तुड़वा आयेगी और कुछ न होगा । बैठ चुपके से ।
ब्रह्म-देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाठी मारेगें, साहूजी एक के पाँच लेंगे । गरीबों का दर्द कौन समझता है ! हम तो मर भी
जाते है, तो कोई दुआर पर झाँकने नहीं आता, कंधा देना तो बड़ी बात है। ऐसे लोग कुएँ से पानी भरने देंगे ?’
इन शब्दों में कड़वा सत्य था । गंगी क्या जवाब देती, किन्तु
उसने वह बदबूदार पानी पीने को न दिया ।
2
रात के नौ बजे थे । थके-माँदे मजदूर तो सो चुके थे, ठाकुर
के दरवाजे पर दस-पाँच बेफिक्रे जमा थे। मैदानी बहादुरी का तो अब न जमाना रहा है,
न मौका। कानूनी बहादुरी की बातें हो रही थीं । कितनी होशियारी से
ठाकुर ने थानेदार को एक खास मुकदमे में रिश्वत दी और साफ निकल गये।कितनी अक्लमंदी
से एक मार्के के मुकदमे की नकल ले आये । नाजिर और मोहतमिम, सभी
कहते थे, नकल नहीं मिल सकती । कोई पचास माँगता, कोई सौ। यहाँ बेपैसे- कौड़ी नकल उड़ा दी । काम करने ढंग चाहिए ।
इसी समय गंगी कुएँ से पानी लेने पहुँची ।
कुप्पी की धुँधली रोशनी कुएँ पर आ रही थी । गंगी जगत
की आड़ में बैठी मौके का इंतजार करने लगी । इस कुएँ का पानी सारा गाँव पीता है ।
किसी के लिए रोका नहीं, सिर्फ ये बदनसीब नहीं भर सकते ।
गंगी का विद्रोही दिल रिवाजी पाबंदियों और मजबूरियों
पर चोटें करने लगा- हम क्यों नीच हैं और ये लोग क्यों ऊँच हैं ? इसलिए
कि ये लोग गले में तागा डाल लेते हैं ? यहाँ तो जितने है,
एक- से-एक छँटे हैं । चोरी ये करें, जाल-फरेब
ये करें, झूठे मुकदमे ये करें । अभी इस ठाकुर ने तो उस दिन
बेचारे गड़रिये की भेड़ चुरा ली थी और बाद मे मारकर खा गया । इन्हीं पंडित के घर
में तो बारहों मास जुआ होता है। यही साहू जी तो घी में तेल मिलाकर बेचते है । काम
करा लेते हैं, मजूरी देते नानी मरती है । किस-किस बात में
हमसे ऊँचे हैं, हम गली-गली चिल्लाते नहीं कि हम ऊँचे है,
हम ऊँचे । कभी गाँव में आ जाती हूँ, तो रस-भरी
आँख से देखने लगते हैं। जैसे सबकी छाती पर साँप लोटने लगता है, परंतु घमंड यह कि हम ऊँचे हैं!
कुएँ पर किसी के आने की आहट हुई । गंगी की छाती धक-धक
करने लगी । कहीं देख लें तो गजब हो जाय । एक लात भी तो नीचे न पड़े । उसने घड़ा और
रस्सी उठा ली और झुककर चलती हुई एक वृक्ष के अंधेरे साये मे जा खड़ी हुई । कब इन
लोगों को दया आती है किसी पर ! बेचारे महँगू को इतना मारा कि महीनो लहू थूकता रहा।
इसीलिए तो कि उसने बेगार न दी थी । इस पर ये लोग ऊँचे बनते हैं ?
कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी । इनमें बात हो
रही थी ।
‘खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओ । घड़े के
लिए पैसे नहीं हैं।’
‘हम लोगों को आराम से बैठे देखकर जैसे मरदों को जलन होती है
।’
‘हाँ, यह तो न हुआ कि कलसिया उठाकर भर
लाते। बस, हुकुम चला दिया कि ताजा पानी लाओ, जैसे हम लौंडियाँ ही तो हैं।’
‘लौडिंयाँ नहीं तो और क्या हो तुम? रोटी-कपड़ा
नहीं पातीं ? दस-पाँच रुपये भी छीन- झपटकर ले ही लेती हो। और
लौडियाँ कैसी होती हैं!’
‘मत लजाओ, दीदी! छिन-भर आराम करने को
जी तरसकर रह जाता है। इतना काम किसी दूसरे के घर कर देती, तो
इससे कहीं आराम से रहती। ऊपर से वह एहसान मानता ! यहाँ काम करते- करते मर जाओ;
पर किसी का मुँह ही सीधा नहीं होता ।’
दोनों पानी भरकर चली गयीं, तो गंगी वृक्ष की छाया से निकली और
कुएँ की जगत के पास आयी। बेफिक्रे चले गऐ थे । ठाकुर भी दरवाजा बंद कर अंदर आँगन
में सोने जा रहे थे। गंगी ने क्षणिक सुख की साँस ली। किसी तरह मैदान तो साफ हुआ।
अमृत चुरा लाने के लिए जो राजकुमार किसी जमाने में गया था, वह
भी शायद इतनी सावधानी के साथ और समझ-बूझकर न गया हो । गंगी दबे पाँव कुएँ की जगत
पर चढ़ी, विजय का ऐसा अनुभव उसे पहले कभी न हुआ था।
उसने रस्सी का फंदा घड़े में डाला । दायें-बायें
चौकन्नी दृष्टि से देखा जैसे कोई सिपाही रात को शत्रु के किले में सुराख कर रहा हो
। अगर इस समय वह पकड़ ली गयी, तो फिर उसके लिए माफी या रियायत की
रत्ती-भर उम्मीद नहीं । अंत मे देवताओं को याद करके उसने कलेजा मजबूत किया और घड़ा
कुएँ में डाल दिया ।
घड़े ने पानी में गोता लगाया, बहुत ही आहिस्ता । जरा
भी आवाज न हुई । गंगी ने दो- चार हाथ जल्दी-जल्दी मारे ।घड़ा कुएँ के मुँह तक आ
पहुँचा । कोई बड़ा शहजोर पहलवान भी इतनी तेजी से न खींच सकता था।
गंगी झुकी कि घड़े को पकड़कर जगत पर रखे कि एकाएक
ठाकुर साहब का दरवाजा खुल गया । शेर का मुँह इससे अधिक भयानक न होगा।
गंगी के हाथ से रस्सी छूट गयी । रस्सी के साथ घड़ा धड़ाम से पानी में गिरा
और कई क्षण तक पानी में हिलकोरे की आवाजें सुनाई देती रहीं ।
ठाकुर कौन है, कौन है ? पुकारते हुए कुएँ की तरफ आ रहे थे और गंगी जगत से कूदकर भागी जा रही थी ।
घर पहुँचकर देखा कि जोखू लोटा मुँह से लगाये वही मैला-गंदा पानी पी रहा है।
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प्रेमचंद की कहानी
ठाकुर का कुआँ सन १९३२ में प्रकाशित हुई थी, साप्ताहिक हिंदुस्तान
में. बाद में यह मानसरोवर के पहले खंड में संकलित हुई. जाति प्रथा, अछूतोद्धार और स्त्री समस्या को केन्द्र में रखकर लिखी गयी इस कहानी का
महत्त्व आज के विमर्श कारी समय में बहुत बढ़ गया है. यहाँ हमारे ब्लॉग पर आप इस
कहानी को सुन सकते हैं. नीचे दिए गए लिंक पर चटका लगाइए!
वाचन स्वर है डॉ रमाकान्त राय का.
ठाकुर का कुआं |
सद्य: आलोकित!
श्री हनुमान चालीसा: छठीं चौपाई
संकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।। छठी चौपाई श्री हनुमान चालीसा में छठी चौपाई में हनुमान जी को भगवान शिव का स्वरूप (सुवन) कहा ग...