बुधवार, 9 जून 2021

नन्हें राजकुमार की बड़ी बातें


पीयूष कान्त राय

"नन्हा राजकुमार" फ्रांसीसी लेखक सैंतेक्जूपैरि द्वारा मूलतः बच्चों के लिए लिखी गयी किताब हैजिसमें एक 6-7 साल के बच्चे के माध्यम से तथाकथित द्वितीय विश्व युद्ध के कतिपय गंभीर विषयों को व्यंग्य द्वारा पेश किया गया है।

सर्वप्रथम सन 1943 ई० में अमेरिका में प्रकाशित हुई इस किताब का पहला पन्ना ही आकर्षित करता हैजहाँ लेखक यह पुस्तक अपने वयस्क मित्र को समर्पित करने से पहले बच्चों से क्षमा माँगते हुए कहता है कि फ्रांस का वयस्क फिलहाल भूख और सर्दी से जूझ रहा है। किसी वयस्क को समर्पित करने हेतु लेखक दूसरा तर्क यह देता है कि "वह सब कुछ समझ सकता है।" दूसरे, तर्क में छिपे व्यंग्य का पता तब चलता है जब लेखक कथावाचक के माध्यम से यह दर्शाता है कि छः साल की उम्र में उसके द्वारा बनाई गई तस्वीर को आज तक किसी वयस्क ने नहीं समझा जिसमें अजगर एक हाथी को निगलकर पचाने की कोशिश करता है। अजगर के पेट में हाथी एक विशेष प्रतीक है।अजगर के पेट में हाथी दिखाने के पीछे शायद लेखक की संभवत: मंशा यह भी रही हो कि द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने फ्रांस के एक बड़े भाग को अपने कब्जे में ले रखा था जिसे पचा पाना उसे मुश्किल हो रहा था।

नन्हा राजकुमार

इस कहानी का रोमांच शुरू होता है सहारा के रेगिस्तान सेजहाँ कथावाचक का जहाज़ खराब हो गया है और उस जहाज़ में वह अकेला होता है। उसके पास सिर्फ 8 दिन तक पीने योग्य पानी बचा है। उसे एक बच्चा मिलता हैप्यारा साजो उस निर्जन स्थान पर बिना डर या भय की मुद्रा के कथावाचक को एक भेंड़ की तस्वीर बनाने के लिए कहता है। भेड़ों की एक खास बात होती है कि जहाँ एक भेंड़ चलने लगे सभी उसका अनुसरण करने लगती हैं। यहाँ भी लेखक ने भेंड़ का जिक्र करके दुनिया के अन्धानुसरण की तरफ संकेत किया है और इस तरह कथावाचक का उस बच्चे (नन्हें राजकुमार ) साथ परिचय होता है। जब नन्हें राजकुमार को पता चलता है कि कथावाचक हवाई जहाज़ सहित नीचे गिरा है तब वह हँसता हुआ पूछता है, “तू आसमान से गिरा है?” इसके माध्यम से लेखक ने इस उपन्यास में भद्र लोगों की निकृष्ट सोच को भी बड़े ही कोमलता से दिखाया है।

बातचीत मेंकथावाचक को उस 'नन्हें राजकुमारके विषय मे पता चलता है कि वह किसी दूसरे ग्रह से आया है जो बहुत छोटा है और एक घर जितना ही बड़ा है। वह अपने ग्रह पर बाओबाब के पौधों को लेकर चिंतित है क्योंकि बाओबाब के पौधे बहुत विशाल होते हैं। बाओबाब के पौधों से उसके ग्रह के फटने की भी संभावना है। इन पौधों के एक बार बड़े हो जाने पर नष्ट करना भी मुश्किल होता है। नन्हा राजकुमार बताता है कि प्रत्येक ग्रह पर अच्छे और बुरे दोनों तरह के बीज होते हैं जिन्हें काफी संभाल कर रोपण की आवश्यकता होती है। वास्तव में लेखक यहाँ बच्चों की शिक्षा एवं संस्कारों की बात करता हैजिसे समय-समय पर देखते रहने और उसमें सुधार करते रहने की जरूरत होती है।

उपन्यास में कथावाचक ने कुछ नन्हें राजकुमार की बातों और कुछ अपनी कल्पना से  सोचना शुरू किया कि कैसे वह राजकुमार अपने द्वारा लगाए लगे किसी फूल से नाराज होकर अपना ग्रह छोड़  दिया होगा। अनेकों ग्रहों का चक्कर लगाते हुए वह इस ग्रह पर आ गया होगा। आगे की कहानी में एक-एक ग्रह पर नन्हें राजकुमार की उपस्थिति के एवं वहाँ रह रहे लोगों से उसकी बातचीत के द्वारा राज्यसत्तान्यायसामाजिक व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार इत्यादि के विषय मे बात की गई है ।

कई ग्रहों पर अपना ठिकाना ढूंढने में असफल होने के पश्चात यात्रा के सातवें चरण में राजकुमार पृथ्वी पर आता है। राजकुमार का फूललोमड़ी एवं लाइनमैन के साथ वार्तालाप के माध्यम से लेखक सामाजिकआर्थिक एवं राजनैतिक मूल्यों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करता है और इस तरह "बच्चों के लिए लिखे गएइस उपन्यास की गंभीरता का आभास होता है और यह आज 21वीं सदी के तथाकथित आधुनिक दौर में भी प्रासंगिक लगता है।

मूल रूप से फ्रेंच में लिखा गया यह उपन्यास दुनिया के लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवादित हो चुका है। इसकी भाषा न सिर्फ सहजता से कथ्य का बोध कराती है बल्कि इसकी व्यंग्यात्मक शैली पाठकों को बाँधे रखती है।

यह उपन्यास इतना छोटा है कि किसी बड़ी कहानी जैसा लगता है। इतने कम शब्दों में समाज में उपजी कुरीतियों के साथ-साथ सामाजिक मूल्यों को उजागर करना दुनियाँ के कुछ ही लेखकों के सामर्थ्य में है और सैंतेक्जूपैरि को इस कला में महारत हासिल है।

पीयूष कान्त राय

पाद-टिप्पणी- 

द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) का अन्त जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ 08 मई1945 में हुआ। हिटलर ने 1933ई० के अक्तूबर में ब्रिटेन और फ्रांस के साथ निरस्त्रीकरण की वार्ताएं भंग कर दी और लीग ऑफ नेशन्स की सदस्यता भी छोड़ दी। इससे पहले प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी पर कई अपमानजनक संधियाँ थोप दी गयी थींजिसके बोझ तले जर्मनी कराह रहा था। समूचा यूरोप दुनियाभर में अपना उपनिवेश बनाने के लिए बोरिया बिस्तर बांध कर निकल पड़ा था जिसमें इंग्लैण्डफ्रांसपुर्तगाल और हॉलैंड ने सबसे अधिक सफलता प्राप्त की। अधिकार की इस अंतहीन लड़ाई में जर्मनी कसमसा रहा था। इसकी प्रतिक्रिया में हिटलर ने कुछ ऐसे कदम उठाए जो विश्व के दूसरे कई देशों को नागवार गुजरे। आस्ट्रिया और जर्मनी प्रथम विश्व युद्ध के बाद ही अपमानित अनुभव कर रहे थे।

       जब हिटलर प्रतिकार करने के लिए उठ खड़ा हुआ तो तथाकथित मित्र राष्ट्रों ने अपने औपनिवेशिक राज्य विस्तार पर भी खतरा अनुभव किया। इसके अतिरिक्त हिटलर बहुत तेजी से अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ा रहा था। यदि हिटलर ने यहूदियों के विरुद्ध घृणा नहीं की होती तो दुनिया की तस्वीर कुछ दूसरी होती और इस पुस्तक का नैरेशन भी पृथक होता। तब हाथी और अजगर का प्रतीक दूसरी कहानी कह रहा होता।

       हम इतिहास की घटनाओं को यदि प्रचलित मान्यताओं से किंचित इतर देखें तो कई चीजें विमर्श का विषय बनेंगी और ज्ञान जगत में नए गवाक्ष खुलेंगे।

      इस कृति और समीक्षा को उक्त के आलोक में भी पढ़ने की आवश्यकता है- संपादक

      (पीयूष कान्त राय मूलतः गाजीपुरउत्तर प्रदेश के हैं। उनकी पाँखें अभी जम रही हैं। साहित्य और साहित्येतर पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखते हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयकाशी में फ्रेंच साहित्य में परास्नातक के विद्यार्थी हैं। वह फ्रेंच भाषायात्रा और पर्यटन प्रबन्धन तथा प्राचीन भारतीय इतिहाससंस्कृति और पुरातत्त्व के अध्येता हैं और फ्रेंच-अङ्ग्रेज़ी-हिन्दी अनुवाद सीख रहे हैं। साहित्य और संस्कृति को देखने-समझने की उनकी विशेष दृष्टि है।

          सैंतेक्जूपैरि की पुस्तक नन्हा राजकुमार को उन्होंने मूल रूप में यानि फ्रेंच वर्जन पढ़ा है और कथावार्ता के लिए विशेष रूप से यह समीक्षा लिखी है। इससे पहले वह रामचन्द्र गुहा की पुस्तक भारत : गांधी के बाद की समीक्षा कथावार्ता : नेहरू युग की रोचक कहानी कथावार्ता के लिए कर चुके हैं।

          इस समीक्षा पर आपकी प्रतिक्रिया उन्हें उत्साहित करेगी।)

रविवार, 6 जून 2021

'मनु'स्मृति, भाग- दो

सम्यक शर्मा की कहानी मनुस्मृति - भाग -१ 'चीतोदय' में आपने पढ़ा कि कथानायक मनु हथौड़े को बल्ला मानकर कल्पना लोक में विचरण कर रहे थे। आगे क्या हुआजानने के लिए पढ़ें- भाग -२ चीतत्व भंग। इस मनुस्मृति में कहानी हैबचपन की मधुर स्मृतियाँ हैं और शब्दों के साथ गेंदबाजी-बल्लेबाजी और कमेंट्री है। आनन्द लें।  - सम्पादक

 

भाग -२ चीतत्व भंग

          लुहार की दुकान से चीतासत्त्व प्राप्त कर मनु आगे बढ़े। वे भारत को प्राप्त हुई नवीनतम जीत की अद्भुत छटा का स्मरण कर प्रसन्नचित्त थे। चाल में भी उछाल थी, गाबा समान। थोड़ा आगे बढ़ते ही एक पी.सी.ओ. बूथ आया जिसमें चीताप्रसू अपने मायके की खोज-खबर लेने हेतु दाखिल हुईं। मनु उसके किवाड़ से चिपक कर ही बाहर खड़े रहे और क्षण भर में ही अपने पदार्पण स्थल पर पुनः पहुँच गए, कारण कि मैच समाप्त होने के पश्चात् प्रसाद-वंटन की रीति अभी बची थी।

          अब वे ‘मैन ऑफ़ दी मैच’ पाने की जुगत भिड़ाने लगे। चीता हो जाने के उपरांत वे स्पेस-टाइम की चादरों पर और भी तीव्र गति से दौड़ने में सक्षम हो गए थे। अतः पाँच ही नैनोसेकंडों में वे मैच की पहली पारी में पहुँचे जहाँ खटाखट अपने चीतत्व से दो कैच लपक व तीन रनआउट प्रभावित कर क्षेत्ररक्षण में अपना लोहा मनवा वापिस लौट आये रीतिस्थल। इस प्रकार उन्होंने अपने मै.ऑ.दी.मै को न्याय्य (जस्टिफ़ाइड्) बनाया। हालाँकि साढ़े तीन फुटिये मनु से पारितोषिक में मिला पाँच फुटिया चैक संभल नहीं रहा था, उनकी छोटी-छोटी हथेलियों से बार-बार खिसक जाता। मनु की चिंता में वृद्धि तब हुई जब उनके समक्ष यह प्रश्न आ खड़ा हुआ कि "इस लंम्म्म्म्बे चैक को हाथ में पकड़कर घर कैसे लाएँगे? सीधा ऐसे ही ले चले तो बीच में गिर जाएगा, और यदि बीच में से मोड़कर ले चले तो कहीं गत्ता ही न फट जाए?"  इसी मौन एकालाप के मध्य उनकी माता ने फोन काटा और बूथपति को आठ रुपए दो मिनट फ़ोन करने के व दो रुपए पॉपिंस के सहित कुल दस का नोट थमाया और सुत संग आगे बढ़ चलीं। पॉपिंस के खट्टे-मीठे रसों ने चैक की चिंता को उड़नछू कर दिया था। कुछ गोलियाँ दन्तप्रहार से तोड़ कर खाईं, तो कुछ का एक ओर गाल में दबाकर रसपान किया, स्स्स्स्स्प्प्...स्स्स्स्स्प्प्। गोलियों का रंग बदलता गया और क्रमशः मुँह का स्वाद।

          इस जिह्वानंद के दौरान मनु की चीतामय दृष्टि गई दीवार पर लगे जादूगर ओ.पी. शर्मा के अति रंगीन विचित्र से चित्र पर। भड़कीली सी पोशाक, गुलाबी कलगी से लैस चमकीली सी पगड़ी, खुले हुए दोनों पंजे, नाक के दाईं ओर और आँख के नीचे उपस्थित एक मध्यमाकार मस्सा, मस्तक पर काला टीका, रक्ताभ ओंठ...यह भयानक छवि किसी भी सामान्य खरगोश-बिल्ली को भयाक्रांत कर सकती थी, किन्तु चीते के लिए यह बड़े ही कौतूहल का विषय थी। वह अत्यंत रुचि से उसे निहारता और मंत्रमुग्ध हो जाता। अब वह स्वयं को उसी वेशभूषा में पा चुका है। हाथ में जादुई छड़ी लिए वह इंद्रजाल का बौना पुरोधा दो रूसी सहायकों (ललनाएँ ऑफ़कॉर्स्!) के साथ सूरसदन हॉल के मंच पर पहुँचता है। इससे पहले कि वह सैकड़ों दर्शकों को अपने मायापाश में फाँस वशीभूत कर पाता उसे अपने पैर के पिछले भाग पर कुछ लिबलिबा सा संचलन (मूवमेंट्) महसूस हुआ। वह तुरंत ठिठका तथा एक श्वाना को अपना पैर चाटते देख ज़ोर से बिदका। तत्क्षण भरी-बजरिया आरम्भ हुई अनिश्चित दूरी की तेजचाल प्रतियोगिता। चीता आगे, श्वाना पीछे। दोनों की गतियों में सकारात्मक प्रवणता सहित रैखीय सम्बन्ध (लीनियर् रिलेशन् विद् पॉज़िटिव् स्लोप्) स्थापित हो गया था। निर्देशांक ज्यामितियू नो!

          वह तो भला हो उस बिजली के खंभे का जो प्रतियोगितामार्ग में मिला तो श्वाना व्यस्त हुई और चीते को "पितृदेव संरक्षणम्" का जाप करते हुए भाग निकलने का अवसर प्राप्त हुआ अन्यथा बीच-बजार उस चंचल चीते का चीतत्व चौपट हो जाता। थैंक् गॉड्!!! बहरहाल, जैसे-तैसे अपना चीतत्व बचाते हुए मनु वहीं पास ही भारद्वाज चौराहे पर शाक-क्रय में व्यस्त अपनी मम्मी के जा पहुँचे। पल्लू की ओट लेकर उन्होंने एक आँख से अपनी पीछे दौड़ रही (भावी) चीतेशमर्दिनी की ओर मुड़कर देखा, वह नदारद थी। माँ का आँचल और श्वाना को अपनी दृष्टि से ओझल पा मनु की हृदयगति सामान्य हुई और चीतत्व पुनर्जीवित। कुल आधा मिनट तक उस वृद्ध शाक-विक्रेता की बनियान में बनी चोर-ज़ेब का पर्यवेक्षण करने के बाद उन्होंने अपनी बाईं ज़ेब में हाथ डाला और बाहर निकली एक प्लास्टिक की मूल्य दो रुपए वाली गेंद। हुआ यूँ था कि पॉण्ड्स पॉडर छिड़कने के पश्चात् मनु चप्पल निकालने हेतु पलंग के नीचे घुसे थे, वहीं यह गेंद भी धरी थी। यह देखते ही उनकी बड़ी-बड़ी आँखें टिमटिमा गईं और वे उसे अपनी बाईं ज़ेब में धर लाये।

          "अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि कैसे एक योजनाबद्ध रूप से मनुदेव ने जीवात्मा से चीतात्मा बनने तक का सफ़र तय किया है? हैंह्...हैंह्...हैंह्!" ~ रवीशचंद (लाल माइक वाले)

          अब आरम्भ होता है चीताभ्यास। मनु ने गेंद 15 से.मी. हवा में उछाली और लपक ली तथा इस उपलब्धि को चार-पाँच बार दोहराया। लय बनने लगी तो एक कुशल खिलाड़ी की भाँति अपने खेल को उच्च स्तर तक ले जाने के लिए क्रमशः एक और फिर डेढ़ फुट तक गेंद का अंतरिक्ष में प्रक्षेपण कर उसे सफलतापूर्वक लपकते गए। ऐसी भीड़भाड़ और हलचल के बीच ऐसे जौहर दिखाना कोई बाएँ हाथ का खेल नहीं था, इसमें दोनों हाथ प्रयुक्त होते थे, ताकि गेंद सुरक्षित लपकी जाए।

          अब उन्हें खेल में कठिनाई का स्तर और ऊँचा कर अपने को और परिपक्व क्षेत्ररक्षक बनाना था, सो गेंद को धरती पर टिप्पा खिलाकर लपकने का निश्चय किया। गेंद पटकी, और लपकी, आत्मविश्वास में हुई वृद्धि। यूँ मानिए कि उनके शरीर में (अजय) जडेजा-तत्त्व का प्रस्फुटन हो रहा था। गेंद को पटकने और लपकने का चक्र चल पड़ा था जिसकी आवृत्ति समय के संग एक स्थिर गति से बढ़ती जा रही थी। प्रत्येक पटक में स्फूर्ति, प्रत्येक लपक में चपलता, वह भी जडेजा तनु। पटक, लपक व दोनों हाथों के सभी क्रमचय-संचय (पर्म्यूटेशन्-कॉम्बिनेशन् यू नो!) अपनाए जा रहे थे जैसे कभी दाएँ से पटक व बाएँ से लपक, तो कभी बाएँ से पटक व दाएँ से लपक आदि। सटीक पटक, सटीक लपक, सटक-पटक, सटक-पटक! इतने में न जाने कब भावातिरेक में गेंद की पटक एक गिट्टी पर हो गई कि पता ही नहीं चला। गेंद ने कोण बदला और चीतेश की परीक्षा लेने सड़क की ओर गमन करने लगी। इस पटक-लपक के खेल से उनका हस्त-नयन समन्वय गेंद को लपकने में इतना अभ्यस्त हो चुका था कि क्षण भर में ही वे गेंद की दिशा को परखते हुए उसकी ओर दौड़े, उस तक पहुँच पाते इससे पहले ही टिप्पा ले लिया था गेंद ने। परंतु 'वन् टिप् वन् हैंड्' सरीखे भ्रष्ट पैंतरे से अभी भी अपने रिकॉर्ड को बेदाग़ रखने के लिए उन्होंने अपना दायाँ हाथ आगे तो फेंका, किन्तु हाथ निराशा ही लगी, गेंद नहीं। दो टिप्पे हो चुके थे, रिकॉर्ड धूमिल हो इससे पहले चीताधिराज ने जागृत की कुंडलिनी और साधा सीधा आज्ञा चक्र। अब क्या था, तत्क्षण ऐकिक नियम (यूनिट्री मैथड्) का उत्कृष्ट उपयोग उन्होंने 'टू टिप् टू हैंड्' नामक माइंड् = ब्लोन् कर देने वाली विधा का सृजन किया और गेंद की दिशा में स्वयं को झोंक दिया...

          गेंद मनु के हाथों को छू पाती इससे एक साइकिल उनके माथे को छू गई, अर्थात् ठोक गई। उस साइकिल ने चीतत्व को भले ही ठोकर मारी थी, लेकिन वो चीता ही क्या जो ठहर जाए! अतः पाँच-सात सेकण्ड की लघु-मूर्छा से जागृत हो उन्होंने सर्वप्रथम गेंद ढूँढी और उसे पाकर निश्चिंतता की साँस ली, परन्तु

          "चोट सर में लगीऽऽऽ, दर्द होने लगाऽऽऽ..." ~ अलीशा चिनॉय का गायन

          अब हाथ में गेंद व मस्तक में पीड़ा लिए वे शाक का थैला लिए खड़ी अपनी मम्मी के पास पहुँचे, जिसे देखकर वे चिंताभाव से चल्लाईं "कहाँ गायब हो गया था रे नैक सी ही देर में? और खून कैसे आ रहा है माथे पर? कैसे लगा ली?" अचरज एवं अविश्वास में मनु ने माथे को हाथ से टटोला और कुछ गीलापन अनुभव किया। अब खून से लथपथ अपनी हथेली देख मनु को काटो तो खून नहीं। चीतत्व छिन्न-भिन्न, क्योंकि माथे से खून आना मतलब डायरेक्ट मौत! यही तो होता है सन्नी देवल की फिल्मों में। यह सोचते ही मनु के नेत्रों में मोटे-मोटे अश्रुओं की धारा थी व कंठ में कर्कश क्रंदन। बिलखता देख उसे माँ ने तुरंत गोद में उठाया, पल्लू माथे पर रख रक्तस्राव की रोकथाम की और दौड़ पड़ीं उसी चौराहे पर स्थित भारद्वाज अस्पताल की ओर पट्टी कराने। वेदना अधिक नहीं थी किन्तु मृत्यु की आशंका ने उसके विलाप-स्वर को चौरानवे डेसिबल के पार पहुँचा दिया था, जिसे सुनकर माँ ने उसे पुचकारते हुए कहा "कोई बात नहीं बेटा, चींटी मर गईं और कुछ नहीं हुआ। रोये मत बेटू, हॉस्पिटल आ गया।"

          "आखिर हम किस समाज में रहते हैं? जहाँ पिपीलिका-मर्दन से पौरुष प्राप्त होता है? जहाँ अपनी पीड़ा भुलाने के लिए पिपीलिकाओं की (कथित ही सही) मृत्यु पर उल्लास होता है? हम क्या बीज बो रहे हैं अगली पीढ़ियों के अंदर? छः!!!" ~ रैंडम् ऐनिमल् ऐक्टिविस्ट्

          ख़ैर घाव साफ़ हुआ, फिर पट्टी हुई, मनु मरा नहीं, तब जा जाकर वह सामान्य रूप से बोलने योग्य हुआ। डॉ. भारद्वाज के पूछे जाने पर उसने बतलाया कि कैसे-कैसे गेंद को लपकने के चक्कर में वह चलती साइकिल से ठुक गया था। यह इक़बाल-ए-जुर्म सुनते ही उसकी माँ के मुख पर एक भाव आया कि यदि घर में ऐसा किया किया होता तो पहले पूजा होती, फिर पट्टी। नम आँखें, सूखे होंठ, रुँधा हुआ गला लिए और मम्मी की अंगुली थामे अंततः वह लौट आया चुपचाप घर। चीतत्व भी बीच चौराहे पर अंततः भंग हुआ ऐसा प्रतीत हो रहा था कि तभी मनु मिस्टर पलंग पर लेटे-लेटे सोचते हैं कि "पट्टी के ऊपर हेल्मेट तो पहनी नहीं जा सकती, चलो अंपायर के जैसी गोल टोपी पहन कर ही खेला जाएगा...!"

          चीतोपदेश - चीतत्व अक्षय है और चीतात्मा अमर।

          जय दाऊजी की।

सम्यक शर्मा


  (सम्यक शर्मा  पर क्लिक करने पर ट्विटर पर पाये जाते हैं। उन्होंने अपने बारे में लिख भेजा है- ज्यों का त्यों उतार रहा हूँ- "सम्यक् शर्मा। आगरावासी। ब्रजभाषी। शहरी एवं ग्रामीण के बीच का हलुआ। दसवीं-बारहवीं आगरा से ही करी। यांत्रिक अभियांत्रिकी में बी.टेक. ग़ाज़ियाबाद के अजय कुमार गर्ग इंजीनियरिंग कॉलेज से करी। क्यों ही करी! क्रिकेट का आदी। फ़िज़िक्स और हिंदी से विशेष प्रेम। गणित से लगाव। बस।" - सम्पादक)



'मनु'स्मृति

सम्यक् शर्मा

सम्यक शर्मा कथावार्ता पर इससे पहले दिशाभेद के एक दो और तीन सुललित निबंधों के साथ पदार्पण कर चुके हैं। दिशाभेद में उन्होंने अपने चिन्तन और शब्दक्रीड़ा से अपने इरादे स्पष्ट कर दिये थे। वह शब्दों से खेलते हैं और उनका बेहतरीन प्रयोग करते हैं। क्रिकेट उनका दूसरा प्यार है। पहले प्यार के बारे में हम बाद में बताएँगे।

'मनु'स्मृति में कहानी हैबचपन की मधुर स्मृतियाँ हैं और शब्दों के साथ गेंदबाजी-बल्लेबाजी और कमेंट्री है। दो खण्ड में है। सम्यक के निबंधकार से कहानीकार की यात्रा का आनन्द लें।  - सम्पादक

 

भाग -१ 'चीतोदय'

 

ज्ञापन नुमा : इस कहानी के सभी पात्र एवं घटनाएँ वास्तविक हैं, जिनका हमसे पूरा-पूरा सम्बन्ध है। मने यह सत्य घटनाओं पर आधारित है। भई आधारित क्या, सत्य ही है। अतः मुलाहिज़ा फ़रमाएँ...

डाबर आँवला चुपड़कर बाल काढ़ ही रहे थे मनु कि बाहर चौखट पर खड़ी मम्मी ने पुकारा "सज लिया? कि अभी रह गयी है नैक और सजावट? जल्दी चल, नहीं तो अकेले ही चली जाऊँगी।" सायं साढ़े पाँच हो रहे थे, हाट के लिए निकलना थाफल, शाक आदि के क्रय हेतु। मम्मी के हड़काते ही त्वरित बाल काढ़कर और पॉण्ड्स का पॉडर (आगरे में बॉडी टैल्क कोई नहीं कहता) छिड़ककर सुगन्धित व सँवरे पाँच वर्षीय मनु चल दिए हाट को। अल्पवयस्क एवं शिष्ट थे इसलिए मम्मी की अंगुली पकड़कर ही सैर किया करते थे।

          सैयद तिराहे से अंदर ढलान की ओर मुड़ते ही दुकानें आरम्भ होती थीं। ढलान पर थोड़ा सा उतरते ही एक फल वाले की ठेल पर पहुँचे। मम्मी की क्रय-क्रिया (पर्चेज़िंग) आरम्भ हुई और मनु की पर्यवेक्षण-क्रिया (ऑब्सर्वेशन)। ठेल के सामने ही लुहार की दुकान थी (वर्कशॉप भी कोई नहीं कहता), जहाँ वह लुहार हथौड़े से पीट-पीटकर किसी छड़ को नरक के समान ऋजु (स्ट्रेट ऐज़ हैल!) किए दे रहा था। हथौड़े की ऐसा अद्भुत क्षमता देख मनु वशीभूत हो गए, विचारने लगे, "यदि मैंने इस हथौड़े को बल्ला बनाकर बल्लेबाज़ी की, तो क्या-क्या कर सकता हूँ।" हास्यास्पद यह कि माननीय मुंगेरीलाल ने इससे पहले कभी गली-क्रिकेट भी नहीं खेली थी, किन्तु कल्पना वानखेड़े पर दूधिया प्रकाश में एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय खेलने से नीचे की नहीं करते थे। खेलते भी कैसे, गली होती आस-पास तब न, घर के आगे तो दिल्ली से कलकत्ता जोड़ने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 2 बिछा दिया था प्रशासन ने। रक्तरंजित उन्नतिशील (ब्लडी प्रोग्रेसिव!)!

          अस्तु! ...दर्शकों से खचाखच भरे वानखेड़े मैदान पर ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध बल्लेबाजी करने उतर चुके हैं हथौड़ापाणि मनु। हाई कार्बन स्टील से निर्मित 10 से.मी. व्यास का वह लौह-बल्ला भारत को अंतिम गेंद पर जीतने हेतु चार रन दिलाने में अति सक्षम है। बस कनेक्ट हो जाए एक बार। स्टांस लेते समय साढ़े तीन फुटिये मनु चेते कि यदि यॉर्कर आ गई तो यह डेढ़ फुटिया हत्था धोखा ही दे जाएगा। अतएव तुरंत ड्रैसिंग रूम की ओर संकेत कर उन्होंने दो फुटिया हत्था मँगवा लिया। आप सोचिये कि मंगूस बल्ले की परिकल्पना के भी एक दशक पूर्व मनु क्या-क्या कल्पित कर लेते थे! मनु मनु नहीं थे, वे स्वयं (के) कल्पतरु थे। वे स्वयं से याचना कर जो माँगते थे, उसे तत्काल पा लेते थे, कल्पनाओं में। जैसे वानखेड़े पर पदार्पण, हथौड़ा, यॉर्करानुकूल लंबा हत्था इत्यादि-इत्यादि।

          बहरहालयुवा ब्रैट ली अंतिम गेंद फेंकने हेतु बढ़ चले तथा सुन्दर एक्शन से अंदर की ओर रिवर्स होती यॉर्कर फेंकी। मनु ने प्रकाश की गति से गेंद की लाइन एन्ड लेंथ परखी व ध्वनि की गति से डेढ़ कदम आगे बढ़ाए। अब वह तथाप्रक्षिप्त यॉर्कर एक अक्षम लो फ़ुल-टॉस बन मनु के चरणों में थी। गेंद चरण-कमलों को स्पर्श करती इससे पहले ही मनु की गदा ने उस पर प्रहार करके उसे गऊ-कॉर्नर की दिशा में भेजा। बलाघात इतना क्रूर था कि वह एक छक्के में तो प्रतिफलित हुआ ही, साथ ही उसने गेंद को अरब सागर में भेज उसे गेंद-योनि से मुक्त करा दिया। अभागन पचास ओवरों से कष्ट ही पा रही थी! कल्पनाओं में ही सही मनु ने जो चमत्कार किया वह भारत में अनगिनत पुरोधाओं के होते हुए भी अभूतपूर्व था। सचिन-फचिन जो सामान्यतः 'मात्र' डेढ़ किलो का ही बल्ला उठा पाते थे, वे क्या थे मनु के आगे, जिन्होंने साढ़े चार किलो के हथौड़े से छक्का जड़ ऑस्ट्रेलिया को नेस्तनाबूत कर दिया? (वह बात और है कि मनु को यह भी ज्ञात न था कि "साढ़े-चार" कितने होते हैं या "किलो" क्या होता है?)

          ख़ैर जीत सुनिश्चित होते ही दर्शकों में उन्माद था और चहुँ दिशाओं में चीत्कार। मनु भी मन में शौर्य व आँखों में गौरव लिए हथौड़ा हवा में लहराकर दर्शकों का अभिवादन कर रहे थे। मनु अब मनु नहीं रहे थे, वे चीता हो चले थे। जी हाँ, चीते का उदय अर्थात् चीतोदय हो चुका था। चीता ज्यों ही दूसरे छोर पर स्तब्ध खड़े अपने साथी बल्लेबाज़ की ओर बढ़ा, त्यों ही उसके कंधे पर मम्मी का हाथ आया और कानों में उनका स्वर " चल बेटा आगे, ले लिए फल।"

          आगे के घटनाक्रम के लिए बने रहें, हाट अभी शेष है।

 

हथौड़े के आगे जहाँ और भी है,

अभी चीते के इम्तहाँ और भी हैं।

                                                                                                                   जारी......

 

सम्यक शर्मा (Samyak Sharma)


(
सम्यक शर्मा  पर क्लिक करने पर ट्विटर पर पाये जाते हैं। उन्होंने अपने बारे में लिख भेजा है- ज्यों का त्यों उतार रहा हूँ- "सम्यक् शर्मा। आगरावासी। ब्रजभाषी। शहरी एवं ग्रामीण के बीच का हलुआ। दसवीं-बारहवीं आगरा से ही करी। यांत्रिक अभियांत्रिकी में बी.टेक. ग़ाज़ियाबाद के अजय कुमार गर्ग इंजीनियरिंग कॉलेज से करी। क्यों ही करी! क्रिकेट का आदी। फ़िज़िक्स और हिंदी से विशेष प्रेम। गणित से लगाव। बस।" - सम्पादक)

शनिवार, 29 मई 2021

पतंजलि का उत्पाद - मुल्तानी मिट्टी साबुन

कोरोना महामारी के भीषण दिनों में पतंजलि योगपीठ के बाबा रामदेव, एलोपैथ और आयुर्वेद के बहाने आईएमए (इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन) और कुछ बौद्धिक लोगों के निशाने पर हैं। महामारी के नियंत्रण में एलोपैथ ने सराहनीय भूमिका निभाई है, तथापि उसकी कार्यशैली और अल्टप्पू तरीके ने बहुत संदेह का वातावरण और आशंकाओं का घटाटोप बनाया है।

बाबा रामदेव और उनके योगपीठ ने आयुर्वेद, योगासन और जनता की जीवन शैली में अभूतपूर्व जगह बनाई है। उनका व्यापार भी बहुत तीव्र गति से फला-फूला है। यह सब बहुत सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, एलोपैथ के ठेकेदारों को नागवार गुजरा है। परिणामस्वरूप द्वंद्व बढ़ता जा रहा है। ऐसे में पतंजलि के ब्रांड तले एक साबुन पर हमने कभी अपना अनुभव साझा किया था, जो पठनीय है।

अब पतंजलि के उत्पादों में वह गुणवत्ता नहीं रही और कुछ हमारी अपेक्षाएं भी बढ़ गई हैं, किंतु चार वर्ष पहले तो यह नॉस्टेल्जिक लगता था।

पढ़िए!

बाबा रामदेव

बाबा रामदेव ने एक साबुन उतारा है, नहाने के लिए। मुल्तानी मिट्टी के नाम/रूप से। महंगा है। 35 कीमत है। आज तीसरे दिन इस्तेमाल किया। 'मन पवन की नौका' (यह पद आचार्य कुबेरनाथ राय ने अपने एक निबंध संग्रह के लिए प्रयुक्त किया है। इसी नाम से उनका एक निबंध भी है) पर आरूढ़ हुआ तो यह साबुन लेकर गया गंगा किनारे, जल्लापुर गाजीपुर जहाँ हम यदा कदा नहाने जाया करते थे। वहां गंगा किनारे की मिट्टी में लोटते थे, उसी को साबुन/उबटन की तरह प्रयोग में लाते थे। किसी बाजारू साबुन की जरूरत ही न पड़ती थी। यह साबुन कुछ वैसा ही है। कुछ कुछ वैसा जैसा हम पीठ खुझलाने या एड़ियाँ घिसने के लिए झावाँ का इस्तेमाल करते हैं। क्या सुखद अहसास है। आपका मन करता रहेगा कि साबुन घिसते रहें घिसते रहें। कुछ वैसा सुख जैसा हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अनामदास का पोथा में पीठ घिसने का वर्णन किया है।

फोम और शॉवर जेल के इस जमाने में ऐसी स्पृहा पालना वैसे तो गवाँर होना/दिखना है लेकिन इस सुख को पा लेना अपने आप में एक नेमत है। जिनका जीवन शहरों में रहते रहते बहुत सॉफिस्टिकेटेड हो गया है, त्वचा नरम मुलायम हो गयी है और तनिक खरोंच भी जिनको लालिमा से भर देती है उनको यह सुख शायद ही मिले लेकिन मैं जानता हूँ कि ऐसी नाजुकी बस कहने की होती है।

तो लाइए बाबा रामदेव के पतंजलि उत्पाद श्रृंखला की यह अद्भुत पेशकश, जो आपको मन पवन की नौका पर बिठाकर अपने ग्रामीण बचपन में ले जायेगी।

महीनों न नहाने वाले 'बामपंथी' साथियों के लिए यह और शानदार अनुभव देगा।




(#Kathavarta, #कथावार्ता, #बाबा रामदेव, Ramakant Roy, Rama Kant Roy, रमाकांत राय,)

सोमवार, 24 मई 2021

घनानन्द की तेरह कविताएं

 

निसि द्यौस खरी उर माँझ अरीछबि रंगभरी मुरि चाहनि की।

तकि मोरनि त्यों चख ढोरि रहैंढरिगो हिय ढोरनि बाहनि की। 

चट दै कटि पै बट प्रान गएगति सों मति में अवगाहनि की।

घन आनंद जान लख्यो जब तेंजक लागियै मोहि कराहनि की।।

 

 

कान्ह परे बहुतायत मेंइकलैन की वेदन जानौ कहा तुम ?

हौ मनमोहनमोहे कहूँ नबिथा बिमनैन की मानौ कहा तुम ?

बौरे बियोगिन्ह आप सुजान ह्वैहाय कछू उर आनौ कहा तुम ?

आरतिवंत पपीहन कोघन आनंद जू ! पहिचानौ कहा तुम ?

 

 

मंतर में उर अंतर मैं सुलहै नहिं क्यों सुखरासि निरंतर,

दंतर हैं गहे आँगुरी ते जो वियोग के तेह तचे पर तंतर। 

जो दुख देखति हौं घन आनंद रैनि-दिना बिन जान सुतंतर,

जानैं बेई दिनराति बखाने ते जाय परै दिनराति कौ अंतर।

 

 

सावन आवन हेरि सखीमनभावन आवन चोप विसेखी।

छाए कहूँ घनआनंद जानसम्हारि की ठौर लै भूलनि लेखी।

बूंदैं लगैसब अंग दगैंउलटी गति आपने पापनि पेखी।

पौन सों जागत आगि सुनी हीपै पानी सों लागत आँखिन देखी॥

 

निसि द्यौस खरी उर माँझ अरीछबि रंगभरी मुरि चाहनि की।

तकि मोरनि त्यों चख ढोरि रहैंढरिगो हिय ढोरनि बाहनि की।

चट दै कटि पै बट प्रान गएगति सों मति में अवगाहनि की।

घनआनंद जान लख्यो जब तेंजक लागियै मोहि कराहनि की।।

 

 

वहै मुसक्यानिवहै मृदु बतरानिवहै

लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है।

वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन,

वहै हँसि दैनहियरा तें न टरति है।

वहै चतुराई सों चिताई चाहिबे की छबि,

वहै छैलताई न छिनक बिसरति है।

आनँदनिधान प्रानप्रीतम सुजानजू की

सुधि सब भाँतिन सों बेसुधि करति है।।

 

 

बहुत दिनान की अवधि-आस-पास परे,

खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान कौ।

कहि-कहि आवन सँदेसो मनभावन को,

गहि-गहि राखत हैं दै-दै सनमान कौ।

झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास ह्वै कै,

अब न घिरत घन आनंद निदान कौ।

अधर लगै हैं आनि करि कै पयान प्रान,

चाहत चलन ये सँदेसो लै सुजान कौ।।

 

 

छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद

तृषित चषनि लालकबधौ दिखाय हौ।

चटकीलौ भेष करें मटकीली भाँति सौही

मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।

लोचन ढुराय कछु मृदु मुसिक्यायनेह

भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।

बिरह जरत जिय जानिआनि प्रान प्यारे,

कृपानिधिआनंद को धन बरसाय हौ।।

 

 

घन आनंद जीवन मूल सुजान कीकौंधनि हू न कहूँ दरसैं।

सु न जानिये धौं कित छाय रहेदृग चातक प्रान तपै तरसैं।

बिन पावस तो इन्हें थ्यावस हो नसु क्यों करि ये अब सो परसैं।

बदरा बरसै रितु में घिरि कैनितहीं अँखियाँ उघरी बरसैं॥

 

१०

 

अति सूधो सनेह को मारग हैजहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।

तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौझिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं।

घन आनंद प्यारे सुजान सुनौयहाँ एक ते दूसरो आँक नहीं।

तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो कहौमन लेहु पै देहू छटाँक नहीं।।

 

११

 

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरी नेकु न हारति।

साँझ तें भोर लौं तारनि ताकिबो तारनि सों इकतार न टारति।

जौ कहूँ भावतो दीठि परै घनआनँद आँसुनि औसर गारति।

मोहन-सोहन जोहन की लगियै रहै आँखिन के उर आरति।।

 

१२

 

प्रीतम सुजान मेरे हित के निधान कहौ

कैसे रहै प्रान जौ अनखि अरसायहौ।

तुम तौ उदार दीन हीन आनि परयौ द्वार

सुनियै पुकार याहि कौ लौं तरसायहौ।

चातिक है रावरो अनोखो मोह आवरो

सुजान रूप-बावरोबदन दरसायहौ।

बिरह नसायदया हिय मैं बसायआय

हाय ! कब आनंद को घन बरसायहौ।।

 

१३

 

मीत सुजान अनीत करौ जिनहाहा न हूजियै मोहि अमोही!

डीठि कौ और कहूँ नहिं ठौर फिरी दृग रावरे रूप की दोही!

एक बिसास की टेक गहे लगि आस रहे बसि प्रान-बटोही!

हौं घनआनँद जीवनमूल दई कित प्यासनि मारत मोही !!

 

घनानंद

रविवार, 2 मई 2021

ईवीएम में गड़बड़ी कैसे और कब

 -डॉ रमाकान्त राय

हर चुनाव से पहले और बाद में यह प्रवाद चर्चा में आ ही जाता है कि ईवीएम में गड़बड़ी की जाती है अथवा की जा सकती है। यद्यपि ईवीएम से चुनाव प्रक्रिया बहुत पारदर्शी और निष्पक्ष होती है तथापि जब तब यह चर्चा ज़ोर पकड़ती है कि ईवीएम हैक हो गयी है। चुनाव प्रक्रिया के क्रम में कुछ ऐसे चरणों के बारे में जानना इस चर्चा में एक प्रभावी हस्तक्षेप हो सकता है। अगर ईवीएममें गड़बड़ी करना हो तो कितने स्तरों पर “मैनेज” करना पड़ेगा! यह एक जटिल प्रश्न बन जाता है। फिर भी यह सोचें कि इसमें गड़बड़ी की गयी तो एक ऐसा मौका ढूँढना पड़ेगा कि कब और कैसे यह हो सकेगा।

#EVM

   ईवीएम में गड़बड़ी करने के लिए सबसे पहले तो जनपद के जिलाधिकारी को अपने विश्वास में लेना पड़ेगा। यदि जिलाधिकारी, जो जिला निर्वाचन अधिकारी होता है, चाह ले कि ईवीएम में गड़बड़ी करना है तो उसे क्या क्या करना पड़ेगा? आइये, इसे समझने का प्रयास करते हैं।

ईवीएम में गड़बड़ी करने के लिए जिला निर्वाचन अधिकारी को जिले भर की मशीनों को "सेट" करना पड़ेगा। अब ईवीएम में विविपैट भी जुड़ गया है। यह उपकरण ईवीएम से जुड़ा रहता है और प्रत्येक मत के बाद एक पर्ची उगलता है। इस पर्ची का मिलान अंतिम गणना से कर सकते हैं। तो इस तरह तीनों उपकरणों को “सेट” लिए जिला निर्वाचन अधिकारी को सभी तकनीकी समूहों के ईवीएम सेट करनेवाले लोगों को राजी करना पड़ेगा। कहना न होगा कि यह बहुत सूक्ष्म स्तरीय तैयारी से संभव हो सकेगा। जो अगले स्तर पर ही निष्क्रिय हो जाएगा। जिला निर्वाचन अधिकारी रिटर्निंग अधिकारी को इसके लिए राजी करेगा, जो उसी का आदमी हो। रिटर्निंग अधिकारी, सहायक रिटर्निंग अधिकारी को विश्वास में लेगा। जिलाधिकारी को सीडीओ, एसपी, डीवाईएसपी, बीएसए, डीआईओएस आदि सभी अधिकारियों को इसके लिए मनाना पड़ेगा। यह सभी अधिकारी उस चुनाव प्रक्रिया के कोर टीम का अंग रहते हैं।

मान लीजिए कि यह सब सेट हो गए। सेट करके मनचाही मशीनों का वितरण कर दिया गया तो पीठासीन अधिकारी के हाथ जो मशीन आई है, उसे वह जब चाहे तब चेक करने के लिए स्वतंत्र रहता है। इससे पहले, लगभग 40 बूथ पर एक जोनल मजिस्ट्रेट की नियुक्ति होती है, जिसके अंतर्गत औसतन 5 सेक्टर मजिस्ट्रेट रहते हैं। चुनाव के दिन इन मजिस्ट्रेट साहिबान  को क्षेत्र में रहना रहता है। इस प्रक्रिया में सेक्टर मजिस्ट्रेट हर दो घंटे पर जोनल को सूचित करते रहते हैं। यह जोनल मजिस्ट्रेट क्लास वन गजटेड अधिकारी रहता है। जोनल मजिस्ट्रेट के नीचे सेक्टर मजिस्ट्रेट रहता है।वह भी उच्च पदाधिकारी रहता है। उसे वाहन मिलता है, उसकी सुरक्षा में एक दारोगा अलग वाहन में रहता है। दारोगा चार पांच पुलिस कर्मी के साथ रहता है। सेक्टर मजिस्ट्रेट के साथ दो पुलिसकर्मी या/और दो होमगार्ड रहते हैं। वह औसतन 10 बूथ का प्रभारी रहता है।

          सेक्टर मजिस्ट्रेट पीठासीन अधिकारी, प्रथम मतदान अधिकारी, द्वितीय मतदान अधिकारी और तृतीय मतदान अधिकारी के सीधे संपर्क में रहता है। इस तरह वह औसतन 40 मतदान कर्मियों से सीधे जुड़ा रहता है। चुनाव वाले दिन से ठीक पहले पोलिंग पार्टी के रवाना होने से लेकर उन्हें पहुंचाने तक सेक्टर मजिस्ट्रेट क्षेत्र में रहता है। शाम को वह सभी बूथ का निरीक्षण करता है और सबको पारिश्रमिक उपलब्ध कराता है। सुबह मतदान शुरू होने से पूर्व उसे एक बूथ पर रहना होता है। आशय यह है कि वह सभी बूथ का सीधा प्रभारी रहता है। प्रातःकाल मतदान शुरू होने से पूर्व सेक्टर मजिस्ट्रेट और जोनल मजिस्ट्रेट एक एक बूथ पर उपस्थित रहते हैं।

          मतदान प्रारंभ होने से पूर्व पीठासीन अधिकारी एजेंट नियुक्त करते हैं। यह एजेंट प्रत्याशी द्वारा अधिकृत होते हैं। उनकी उपस्थिति में मॉक पोल होता है। मॉक पोल एक विशिष्ट चरण है। इसकी चर्चा पीठासीन अधिकारी को अपनी डायरी में करना पड़ता है। मॉक पोल में सभी प्रत्याशियों के नाम के आगे का बटन दबाकर लगभग 50 मत डाले जाते हैं। मशीन बंद किया जाता है। वहीं एजेंट्स के समक्ष गणना की जाती है और दिखाया जाता है कि जिस प्रत्याशी को जितना मत दिया गया, उतना ही परिणाम में प्रदर्शित हो रहा है। सही हो तो एजेंट्स सम्मति देते हैं। गलत होने की बात बहुत कम बार दिखती है।एजेंट्स जब सम्मति देते हैं तो ईवीएम का डाटा शून्य किया जाता है। एजेंट्स को यह दिखाया जाता है। एक पर्ची इस तरह लगाकर सील की जाती है कि कोई उसे हटाने का प्रयास करे तो वह फट जाए। इस पर्ची पर एजेंट्स और पीठासीन अधिकारी के हस्ताक्षर रहते हैं। अब मतदान शुरू होता है। मतदान शुरू होने से पहले मशीन की स्थिति सबसे सामने स्पष्ट की जाती है। दिनभर पीठासीन अधिकारी बीस तरह के आगंतुकों को बताता रहता है कि इतना वोट पड़ गया। एजेंट्स वहीं नजर गड़ाए रहते हैं। डाले गए वोट और मशीन में दिखा रहे वोट बराबर हैं अथवा नहीं, इसकी जांच करते रहना पड़ता है। कोई भी आकर देख सकता है। एजेंट्स अलग नाक में दम किए रहते हैं। हर बूथ पर सुरक्षा कर्मी रहते ही हैं। उन्हें भी गड़बड़ी करने के लिए अपने पाले में करना पड़ेगा। पत्रकार, मीडियाकर्मी, पर्यवेक्षक आदि आदि का चक्रमण चलता रहता है। मतदान पूर्ण होने पर फिर एक पर्ची, एजेंट्स के हस्ताक्षर वाली सील की जाती है। अब ईवीएम बक्से में बंद होकर जमा हो गई। जमा करते समय पीठासीन अधिकारी अपने हस्ताक्षर से युक्त एक प्रमाणपत्र जारी करता है कि उस बूथ पर इतने मत डाले गए और मशीन इतने समय पर क्लोज़ की गयी।

          जहां ईवीएम जमा होती है, वह स्ट्रॉन्ग रूम कहा जाता है। जमा होने के बाद वह घर भी सील कर दिया जाता है। कड़ा पहरा लगा दिया जाता है। उस कक्ष को बीच में नहीं खोला जा सकता। खोलने के लिए कोई प्रावधान नहीं है। अगर टेम्पर करने के लिए खोला गया तो सुरक्षाकर्मियों को जोड़ना होगा। मतगणना के दिन स्ट्रॉन्ग रूम को वैसा ही सीलबंद मिलना चाहिए, जैसा ईवीएम रखते समय था। जब मशीन गणना के लिए लाई जाती है, तो मतगणना अधिकारी एजेंट को दिखाता है कि डिब्बा सीलबंद है। वह सील हटाकर पर्ची निकालता है और दिखाता है। एजेंट देखता है कि पर्ची पर उसका ही हस्ताक्षर है। मशीन में वही समय दर्ज है, जो उसके समक्ष बंद करते समय बताया गया था।

          मतदान समाप्त होने पर हर एजेंट को वह संख्या उपलब्ध कराई जाती है, जितना मतपेटी में रहती है। एजेंट मिलान करता है कि मतगणना शुरू होने से पहले ईवीएम में उतने ही मत प्रदर्शित हो रहे हैं। तब मतगणना शुरू होती है। इस क्रम में मतगणना अधिकारी, जो पृथक व्यक्ति होता है, कागज मिलाता है।

          इस प्रक्रिया में अन्य कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष व्यक्ति जुड़े रहते हैं। यह प्रक्रिया बहुस्तरीय होती है और इसमें कहीं भी चूक, त्रुटि अथवा गड़बड़ी की जाए तो उसी दम उद्घाटित हो जाती है। सबको साध लेने पर भी सील, पर्ची आदि के प्रमाण नहीं बदले जा सकते। यह व्यवस्था फुलप्रूफ है। अगर कोई इतनी व्यवस्था के बाद भी अड़ियल रवैया अपनाता है तो उससे पूछा जाना चाहिए कि ईवीएम मशीन में गड़बड़ी किस चरण में हो सकती है! गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले इस प्रश्न पर बगलें झांकते हैं। और तब भी कोई नहीं मानता तो उसे कहिए कि आप पप्पू हैं!



(#evm, ईवीएम, ईवीएम में गड़बड़ी कैसे और कब , कथावार्ता, kathavarta, कथावार्ता1, kathavarta1 रमाकान्त राय,)



असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी

राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय,

इटावा, उत्तर प्रदेश

पिन 206001

मोबाइल नंबर 983895242- royramakantrk@gmail.com

सद्य: आलोकित!

हनुमान चालीसा: चौथी चौपाई

 कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा।। चौथी चौपाई श्री हनुमान चालीसा की चौथी चौपाई में हनुमान जी के रूप का वर्णन है। उन्हें कंचन अ...

आपने जब देखा, तब की संख्या.