शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

शैलपुत्री और ब्रह्मचारिणी

प्रथमं मां शैलपुत्री!

नवरात्रि के प्रथम दिवस मां शैलपुत्री की आराधना का विधान है। नाम से ही स्पष्ट है कि यह पर्वतराज हिमालय की पुत्री के निमित्त है।

दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा ने जब आत्मदाह कर लिया तो भगवान शिव को पुनः पति के रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने पर्वतराज के यहां जन्म लिया। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में इसकी कथा विस्तार से की है -

सतीं मरत हरि सन बरु मागा।

जनम जनम सिव पद अनुरागा॥

तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई।

जनमीं पारबती तनु पाई॥

सती ने देह त्यागते हुए यह वर मांगा कि जन्म जन्म तक मैं शिव जी के चरणों में अपना प्रेम बनाए रखूं। इसी प्रारब्ध से वह हिमगिरि के यहां पार्वती का रूप लेकर जन्मीं।

उनका नाम शैलपुत्री, पार्वती, गिरिजा आदि इसी कारण से है।

प्रथम मां शैलपुत्री की वंदना संस्कृत साहित्य में बहुत मधुर तरीके से की गई है जिसमें उनके रूप का वर्णन भी है। देवी पार्वती के लिए यह मंत्र दुहराते हैं - 

या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।

ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।


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द्वितीय ब्रह्मचारिणी!


नवरात्रि के द्वितीय दिवस में देवि दुर्गा के ब्रह्मचारिणी रूप की उपासना की जाती है। ब्रह्मचारिणी का आशय है - ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने वाली। इस व्रत में ज्ञानार्जन पर विशेष बल रहता है, आस्तिकता अपने चरम पर रहती है। तपस्वी मन सांसारिक विषय वासना से दूर रहता है।

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में पार्वती के प्रसंग में लिखा है कि जब नारद जी ने बताया कि इन्हें "जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष" पति मिलेगा तो गिरिजा ने इसे एक अवसर की तरह लिया। उन्होंने जाकर तपस्या करना आरंभ किया।

"उर धरि उमा प्रानपति चरना।

जाइ बिपिन लागीं तपु करना।।"

इस अवधि में उन्होंने कठोर व्रत लिया। "कछु दिन भोजन बारि बतासा" के बाद भोजन आदि छूट गया। अन्नमय कोष से ऊपर उठ गईं। जब उन्होंने सूखे पत्ते तक त्याग दिए तो उनका नाम #अपर्णा हुआ।

ऐसे ब्रह्मचर्य व्रत को करने वाली देवि ब्रह्मचारिणी हमें लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्मुख करती हैं। हम उन्हें बारंबार प्रणाम करते हैं!🙏


ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी।

सच्चीदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते।




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