काशीनाथ सिंह (जन्म 01 जनवरी, 1937) साठोत्तरी कहानी के प्रमुख लेखक, जाने माने उपन्यासकार, संस्मरण लेखक हैं। उनके उपन्यास ‘रेहन पर रग्घू’ (2011) पर उन्हें प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है। ‘अपना मोर्चा’, ‘महुआ चरित’, ‘उपसंहार’ और ‘काशी का अस्सी’ उनकी चर्चित औपन्यासिक कृतियाँ हैं। ‘याद हो के न याद हो’ और ‘घर का जोगी जोगड़ा’ शीर्षक से उनके संस्मरण बहुत सराहे गए हैं। उनकी एक ख्याति नामवर सिंह के अनुज के रूप में भी है।
काशीनाथ सिंह की कहानी ‘सुख’ न समझे जाने की पीड़ा को बहुत कलात्मक तरीके से प्रस्तुत करती है। तार बाबू के पद से हालिया अवकाशप्राप्त भोला बाबू को एक शाम प्राकृतिक सुषमा का दर्शन होता है और वह सबको इस अपरूप सौन्दर्य से परिचित करा देना चाहते हैं। हर संवाद में वह अस्त होते हुए सूर्य की सुन्दरता का साक्षात कराने के लिए अवसर खोजते हैं। निराश होते हैं और झल्लाते हैं। न समझा पाने की पीड़ा उनको अकेला कर जाती है। बहुत अकेला।
कथा-वार्ता के लिए इस कहानी का वाचन किया है- डॉ रमाकान्त राय ने। वीडियो
का सम्पादन और संयोजन भी डॉ राय का है।
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