दोपहर
को भोजन पर बैठे तो थाली सामने आने से पहले ही वसु ने जल ग्रहण करना शुरू कर दिया।
उन्हें सबने मना किया कि 'खाना खाने से पहले पानी नहीं पीना चाहिए।'
"क्यों?"
वसु का सहज और तुरंता सवाल था। सब मेरा मुँह देखने लगे। मैंने कहा
कि, "भोजन से पहले जल ग्रहण करने से जठराग्नि मद्धिम पड़
जाती है। अतएव भोजन ठीक से नहीं पचता।"
"पापा,
यह जठराग्नि क्या होती है?" वसु पूछ
बैठे। हमने कहा कि, भोजन कर लेने के बाद इसका उत्तर दिया
जाएगा। हमारी परम्परा में भोजन के समय वार्तालाप की मनाही है। यद्यपि मैंने कुछ
विदेशी संस्कृति को रेखांकित करने वाली पुस्तकें पढ़ीं तो उसमें देखा कि कठिन मसले
डाइनिंग टेबल पर ही सुलझाए जाते हैं। खैर, तो हमने कहा कि
खाना खा लिया जाए तो बताऊंगा। भोजन के उपरांत वही सवाल मेरे सामने था। अग्नि के
स्थान भेद से कई रूप हैं। जंगल में लगे तो दावाग्नि, पानी
में लगे तो बड़वाग्नि, पेट में लगे तो जठराग्नि। तुलसी बाबा
का एक बहुत प्रसिद्ध पद है। 'आगि बड़वागि ते बड़ी है आग पेट
की।' बहुत पहले एक अध्यापक ने बड़वाग्नि के बारे में बताया था
कि वह आग जो पानी में लगती है।
"पानी
में कौन आग लगती है भला?"
"समुद्र
में कई बार खनिज तेल तिरते रहते हैं, उन्हीं में आग लग जाती
है, वही बड़वाग्नि है। बहुत खतरनाक होती है।" शिक्षक ने
बताया था। हमने वही मान लिया था। बाद में इस व्याख्या को अक्षम माना हमने और अग्नि
का अर्थ ऊर्जा, क्षमता, पॉवर से लगाया
और पानी की ताकत को बड़वाग्नि कहा। तुलसीदास कहते हैं कि पेट की आग, पानी की आग से भी बड़ी होती है। सही बात है। पेट की आग तो मानवीयता तक को
भस्म कर सकती है। खैर,
"जठराग्नि,
भूख लगने पर जाग्रत होती है। जब हम पानी पी लेते हैं तो क्षुधा कुछ
समय के लिए तृप्त हो जाती है। और फिर खाद्य पदार्थ पेट में जाकर सही पाचन नहीं कर
पाते।" वसु मुँह खुला रखकर कुछ सोचते रहे तो मैंने महाभारत से अग्नि देवता से
जुड़ा एक प्रसंग सुनाया। -"एक बार अग्नि देवता को यज्ञ का घी खाते खाते अजीर्ण
हो गया।"
"अजीर्ण
माने?" वसु ने पूछा।
"भूख
न लगने की बीमारी।"
"यह
क्या होता है?"
"एक बीमारी होती है, जिसमें भोजन करने की इच्छा नहीं होती।"
......
"तो
अग्नि अजीर्ण के कारण पीले पड़ गए। जब अग्नि सबसे मद्धिम होती है तो उसकी लौ पीली
होती है। "अच्छा बताओ, जब सबसे तेज होती है तो किस रंग
की होती है?"
"नीले
रंग की!" वसु की माँ ने वसु की मदद की।
"हाँ!
नीला रंग सबसे शक्तिशाली और रहस्यमयी होता है।
"तो,
अग्नि ने इसकी शिकायत अश्विनी कुमारों से की। अश्विनी कुमारों ने
इन्द्र को बताया और इन्द्र ने कहा कि अर्जुन और श्रीकृष्ण से मिलिए। वह लोग खाण्डव
वन जला देंगे। यह वह समय था जब अर्जुन पांडवों को ताकतवर बनाने के लिए गली गली घूम
रहे थे और सबसे अस्त्र-शस्त्र प्राप्त कर रहे थे। अग्नि ने अर्जुन से कहा। अर्जुन
और कृष्ण ने खाण्डव वन को घेर लिया और आग लगा दी। जीव जन्तु जलकर भस्म होने लगे।
हाहाकार मच गया। वन में ही तक्षक नाग परिवार सहित रहता था। उसने इन्द्र को पुकारा।
इन्द्र मदद के लिए भागे आये। वह वर्षा के देवता हैं तो बारिश शुरू कर दी। आग
मद्धिम पड़ने लगी। अग्नि ने अर्जुन की ओर देखा। अर्जुन ने कृष्ण की तरफ। अब अर्जुन
और इन्द्र में द्वन्द्व छिड़ गया। किसी किसी तरह तक्षक को बचाने पर सहमति बनी।
खाण्डव जलकर खाक हो गया। अग्नि ताकतवर हो गए। प्रसन्न होकर उन्होंने अर्जुन को कई
आग्नेयास्त्र दिए। उधर तक्षक नाग ने अर्जुन से दुश्मनी साध ली। और जब महाभारत
युद्ध हुआ तो वह कर्ण के पास पहुँचा। उसने कहा कि मुझे एक बाण पर संधान करके छोड़ो।
मैं जाकर अर्जुन को डंस लूंगा। कर्ण ने ऐसा ही किया। कृष्ण अच्छे सारथी थे।
उन्होंने ऐन वक्त पर रथ एक बित्ता जमीन में गड़ा दिया। बाण सहित तक्षक अर्जुन के
मुकुट को ले उड़ा। अर्जुन बच गए। तक्षक ने फिर से कर्ण से अनुरोध किया लेकिन इस बार
कर्ण ने उसकी बात न मानी। "तो इस तरह से अग्नि को भी प्रज्ज्वलित करने के लिए
खाद्य सामग्री चाहिए होती है।"
कहानी
खत्म हो गई थी। भोजन भी सम्पन्न हो चुका था। सब अपने काम पर लग गए।
2 टिप्पणियां:
वाह! आनंद आ गया। आपने जो प्रसंग वसु से वार्तालाप के क्रम में चुना है उसका सम्यक निर्वाह हुआ है। नए प्रसंग से अवगत हुए हम सब। आपकी ललित शैली बहुत सुंदर है।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका डॉ शत्रुघ्न! यह कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी। बड़वागि को स्पष्ट करते हुए पॉवर का अर्थ संधान बहुत मजेदार और रोचक तथा सार्थक लगा था।
आपको #कथावार्ता की यह प्रस्तुति पसंद आई, इसके लिए धन्यवाद!
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