प्रयागराज में लगे हुए #महाकुंभ2025 के संबंध में 144 साल का जुमला बहुत चर्चा में है। सरकार ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बताने के लिए कहा कि यह शताब्दियों में एक बार लगने वाला मेला है इसलिए अमृत स्नान किया ही जाना चाहिए। श्रद्धालुओं ने भी तय किया कि चलते हैं
#महाकुंभ2025 के आरंभ होने में साथ ही श्रद्धालुओं का रेला चल पड़ा। सरकार और सनातन के समर्थक प्रसन्न। हर हर महादेव और हर हर गंगे की गूंज में जय श्री राम भी सम्मिलित हो गया। सब कुछ सही तरीके से चलने लगा। बेहद अनुशासित। लोग आते। डुबकी लगाते। अपने को धन्य समझते। ऐतिहासिक कुंभ है।
अमृत स्नान हुए। अखाड़े सजे। शंख ध्वनि हुई। सब अपने और परमार्थ के हित में चले। 144 साल चल पड़ा। सब ऐतिहासिक था।
ध्यान से देखा जाए तो जीवन का हर क्षण ऐतिहासिक है। जापानी कहावत है कि आप एक नदी में दुबारा स्नान नहीं कर सकते। जो क्षण जीवन में आया, वह दुबारा नहीं आएगा। हर क्षण ऐतिहासिक है। कोई भी घटना दोहराई नहीं जा सकती।
इस प्रकार कोई भी आवृत्ति असंभव है। फिर भी 144 साल का जुमला चल गया।
हर महाकुंभ या कुंभ या माघ मेला सहस्त्राब्दियों के बाद लगता है। जो पहली बार लगा था, उसके बाद जितने लगते गए, वह सभी ऐतिहासिक हैं। ग्रह, नक्षत्र, राशि और काल की गणना में भी अनूठे। कुछ भी दोहराया नहीं जा सकता। जो वस्त्र एक बार पहन लिया गया है, वह दुबारा नहीं पहन सकते। जो कौर चबा लिया गया है, उसे पुनः नहीं खा सकते। जिस जल में डुबकी लगा दी, वह जल वही नहीं रह गया। जिसके साथ रह लिया, जिसे भोग लिया, वह दोहराया नहीं जा सकता। जिसने एक शब्द उच्चार दिया, वही पुनः नहीं निकलेगा। हर क्षण परिवर्तन चल रहा है। एक अनवरत प्रक्रिया चल रही है। और इसमें कोई वृत्त भी नहीं है। यदि कोई वृत्त है तो वह हमारे बोध से परे है। लेकिन यह सब दार्शनिकों की बातें हैं। भारतीय मन इसे मानता है। इसमें गहराई से विश्वास करता है लेकिन इसी के साथ वह इसे गूढ़ विषय मानकर कहता है कि अपना यह ज्ञान, सूक्ष्म अवलोकन अपने पास रखो। भारतीय मानस एक ऐसा आश्रय खोजता है जो उसे उसके मनोनुकूल आदेश देता हो।
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद जन्मी पीढ़ी ने पहली बार देखा था कि कोई प्रधानमंत्री निषादों के बीच है। सफाई कर्मियों के पांव धो रहा है। उनका आभार प्रकट कर रहा है। कोई मुख्यमंत्री स्वतः रुचि लेकर आयोजनों को मॉनिटर कर रहा है। समूचे अमले को लगा रखा है कि वह संस्कृति के महत्वपूर्ण विषय को गरिमा और उचित आदर से देखे।
ऐसे में उसकी सुप्त भावना को आश्रय मिलता है। वह उठता है और चल पड़ता है अमृत स्नान की खोज में।
भारतीय मानस धर्म की ध्वजा उठाए चल पड़ा है। मैं इस ऐतिहासिकता और सरकारी विज्ञापन के महत्त्व को नहीं भूल रहा हूं लेकिन जोर देकर कहना चाहता हूं कि यदि भारतीय जनता को 144 साल की ऐतिहासिकता का अभिज्ञान नहीं भी कराया गया होता तो भी श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला वही रहता जैसा कि आज है।
इस #महाकुंभ के आयोजन में आग लग गई। #मौनीअमावस्या के दिन भगदड़ हो गई। कल नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर श्रद्धालु दब गए। मीलों तक वाहनों की कतार लगी। लोग भूखे प्यासे रहने के लिए विवश हुए। उन्हें कल्पना से अधिक श्रम करना पड़ा पर उनका धैर्य और उत्साह बना रहा। क्या रेलगाड़ी, क्या बस, क्या हवाई जहाज हर तरफ श्रद्धालु उपस्थित। उससे अधिक दृष्टिगोचर हुए निजी वाहन से पहुंचने के लिए निकले लोग।
दुनिया दांतों तले उंगली दबाए सोच रही है! यह क्या हुआ है। कितना बड़ा मेला है। ब्राजील में कार्निवल लगता है। देश भर में पचास साठ लाख लोग एकत्रित हो जाते हैं। ब्राजील सांबा करने लगता है। यहां एक दिन में साढ़े सात करोड़ श्रद्धालु आते हैं, स्नान करते हैं और अपने गंतव्य पर चल देते हैं। इतने भर से प्रसन्न हैं कि स्वच्छता है। व्यवस्था में लोग लगे हैं। स्रोतस्विनी अविरल है। वह मोक्षदायिनी है।
क्या उन्हें कोई अपेक्षा है? नहीं। वह मुदित हैं। आभारी हैं। अपने को धन्य मान रहे हैं। दूसरे को धन्यवाद कर रहे हैं। महाकुंभ से अमृत रस झर रहा है। शंखनाद जारी है।
यह अमृतकाल है। अयोध्याजी में रामलला के विग्रह की स्थापना। भारत के मंदिरों का पुनरुद्धार चल रहा है। काशी और महाकाल हमारे समक्ष हैं। नए कालचक्र के उद्गम में दुनिया भर से श्रद्धालु आयेंगे। कोई रोक नहीं सकेगा। स्वतः चल पड़ेंगे।
अब यह हम सबका सामूहिक दायित्व है कि हम उनके मार्ग को फूलों से सजा दें। यदि कोई कांटा आए तो उसे उखाड़ फेंके। जो सरकार इसमें सहायक नहीं होगी, वह जनता के चित्त से उतर जाएगी। जो लोग इसमें सहायक होंगे, वही मित्र, सखा, साथी, संघाती कहे जाएंगे।