शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

श्री हनुमान चालीसा

दोहा - 

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। 
बरनऊं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार। 
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार।।

श्री हनुमान जी महाराज

चौपाई - 
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
 तुम रक्षक काहू को डर ना।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि भक्त कहाई।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।। 
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। 
श्री राम लक्ष्मण सीता जी और हनुमान
दोहा - 
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।।

मंगलवार, 14 जनवरी 2025

चंद्रभागा (चेनाब) नदी पर पुल

चंद्रभागा (चेनाब) नदी पर दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल बनकर तैयार है! हम नित प्रति नई ऊंचाइयां छू रहे हैं। तेज गति की रेलगाड़ी अब इसपर चला करेंगी।

चंद्रभागा पर बना पुल वीडियो।

आइए चंद्रभागा के संबंध में कुछ रोचक जानते हैं।


चन्द्रभागा नदी हिमाचल प्रदेश में लाहौल और स्पीति जिले में सूरज ताल और चन्द्र ताल से निकलती है। इसे चेनाब या चिनाब कहने लगे हैं और अब यही नाम मिलता है। ऋग्वेद में इस नदी का नाम अस्किनी है। यह शतद्रु (सतलुज) की सहायक नदी है जो आगे जाकर सिंधु में समाहित होती है।

चन्द्र भागा
चंद्रभागा नदी


चंद्रभागा (चेनाब) त्रिमु में इरावती (रावी) और वितस्ता (झेलम) नदी से मिलती है और आगे बढ़कर उचशरीफ के पास शतद्रु (सतलज) में मिल जाती है। पञ्चनद (पंजाब) क्षेत्र की अन्य नदी विपासा (ब्यास) फिरोजपुर के पास शतद्रु नदी में मिलती है। यह शतद्रु मिथनकोट में सिंधु में समाहित हो जाती है।

सूरजताल, जहां से भागा नदी निकलती है, लेह जाने वाली सड़क पर स्थित बारा लाचा ला नामक दर्रे के पास स्थित है। स्पीति घाटी में स्थित चन्द्रताल के पास ही चन्द्रा नदी का उद्गम स्थान है। टांडी नामक स्थान पर भागा और चंद्रा संगम करती हैं।

ईसा से लगभग तीन सौ साल पहले इस चंद्रभागा और वितस्ता (झेलम) के बीच के क्षेत्र में राजा पोरस का राज्य था। वह पोरस जिसका संघर्ष सिकंदर के साथ हुआ। 

चंद्रभागा पर बना पुल


पंजाबी के साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध कवि सुरजीत पातर बताते हैं - "पंजाब की कविता और साहित्य में चिनाब का उल्लेख सबसे ज़्यादा है। हीर-रांझा के दुखद रोमांस या किस्सा में, नायक रांझा चिनाब नदी को पार करके अपने पैतृक गांव तख्त हजारा से झंग शहर पहुंचता है। नदी के किनारे ही उसकी पहली मुलाकात हीर से होती है। वे नदी के किनारे जंगल में मिलते हैं।

सुरजीत पातर
सुरजीत पातर (चित्र - down to earth से)


सोहनी-महिवाल के एक अन्य लोकप्रिय किस्सा में नायिका सोहनी महिवाल से मिलने के लिए चिनाब नदी के पानी में मिट्टी का घड़ा तैराती है। अंत में, एक ईर्ष्यालु रिश्तेदार उसके घड़े की जगह एक नया बना घड़ा रख देता है, जो टूट जाता है और सोहनी डूब जाती है। महिवाल उसे बचाने के लिए तैरता है। लेकिन वह भी उफनते पानी में डूब जाता है।"

(डाउन टू अर्थ में)

देवेंद्र सत्यार्थी ने लिखा है - नहीं रीसां चिनाब दियां, भरेंव सुक्की वाघे। चेनाब अद्वितीय है, भले सूख जाए। बहुत सारे कवियों/साहित्यकारों ने इस नदी को बहुत प्यार से याद किया है। अमृता प्रीतम ने विभाजन के दृश्य को याद करते हुए लिखा है - "अज्ज बेले लशां बिछियां, ते लहू दी भरी चिनाब। वह लिखती हैं कि प्रेमियों की नदी आज लाशों और खून से भरी हुई है। प्रख्यात पंजाबी कवि प्रोफेसर मोहन सिंह ने एक कविता में कहा था कि उनकी अस्थियों को गंगा के बजाय चिनाब में प्रवाहित किया जाए, क्योंकि यह 'प्रेम की नदी' है।

चेनाब प्रेम की नदी है। हीर रांझा और सोहनी महिवाल की नदी है। इसमें बहने वाला जल प्रेमियों की आँख का जल है। मोहन सिंह ने एक कविता में लिखा कि गंगा नदी देवताओं को बनाती है, यमुना देवियों को जबकि चेनाब प्रेमियों का निर्माण करती है।


मैंने कहीं पढ़ा था कि चेनाब, चेन+आब से बना है जहां चेन का अर्थ चंद्रमा है, आब का जल। इस तरह चेनाब का अर्थ चंद्रमा का जल है। शीतल और प्रिय।

यह नाम चंद्रभागा से ही निष्पन्न समझना चाहिए। चंद्रमा का भाग, हिस्सा समझने पर भी यही अर्थ आयेगा। इस्लामिक संस्कृति के प्रभाव में इस नदी का नाम बदल गया। कवियों/कलाकारों ने इस नदी में सांस्कृतिक भाव भर दिए। चेनाब नाम चल गया। प्रेम की चर्चा होती है तो हीर रांझा याद आ जाते हैं। चेनाब नाम याद आ जाता है। जबकि यह चंद्रभागा है।

मैं हमेशा कहता हूं कि एक संघर्ष हर तरफ चल रहा है। कई मोर्चे पर जारी है। सभ्यता संघर्ष। इस संघर्ष में विरासत पर अधिकार करने की कोशिशें बदस्तूर जारी हैं। झेलम वितस्ता का बदला नाम है। सतलुज का नाम शतद्रु था। व्यास विपासा थी। रावी इरावती का परिवर्तित नाम है।

आज नदियों के नाम बदले हैं। पर्वत शिखरों के नाम बदले जा रहे हैं! नया चलन पहले फैशन और साझा विरासत के नाम पर चल रहा है और बाद में एक कागज लेकर कोई आ जाता है कि महाकुंभ क्षेत्र का इतना अंश हमारा है, जिसपर मेला लग रहा है।

अपने प्राचीन नाम को याद रखें। उन्हें प्रयोग में ले आएं। आज बिन्त नाम पढ़ते समय याद आया कि बिन्नी/बिनती/बंटी आदि नाम हमने उसी के प्रभाव में स्वीकार कर लिए हैं। हमने बहुत अंगीकृत किया है। इतना अधिक कि हम हम नहीं रह गए हैं, वह हो जाने के कगार पर हैं!

मुझे वह नहीं होना है! पुल हमें जोड़ें। अधिग्रहित न कर लें।
इति।

सोमवार, 13 जनवरी 2025

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।।

भाग- 23
अंतिम छंद, दोहा।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

श्री हनुमान चालीसा के इस अंतिम छंद में हनुमान जी को पुनः पवन तनय अर्थात पवन देव का पुत्र बताया गया है। यह कहकर उन्हें किसी भी तरह के संकट को हर लेने वाला यानि ले लेने वाला कहा गया है। हनुमान जी साक्षात् मंगल मूर्ति हैं। वह सदा सर्वदा मंगल करने वाले हैं। गोस्वामी तुलसीदास की प्रार्थना है कि हनुमान जी, जो देवताओं के राजा हैं- सुरभूप; वह भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और जानकी जी के साथ हृदय में निवास करें।

इस दोहे में बहुत सहजता से भगवान श्रीराम, उनके अनुज शेषावतार लक्ष्मण और साक्षात् जगदम्बा सीता जी के साथ हनुमान जी को भी हृदयंगम करने की बात है। यह और इस जैसी कई अन्य युक्तियों को देखकर लगता है कि गोस्वामी तुलसीदास समन्वय की विराट चेष्टा के पैरोकार हैं।

श्री हनुमान चालीसा का समापन भी दोहे से हुआ है। आरंभ में दो दोहा और अंत में एक; कुल तीन दोहे श्री हनुमान चालीसा में हैं। तुलसीदास की काव्य योजना बहुत सुचिंतित और एक सुगठित वास्तु की तरह है। श्रीरामचरितमानस में जिस वर्ण से आरम्भ हुआ है उसी वर्ण से पूर्ण। यह महीन संरचना का एक अंग है।

श्री हनुमान चालीसा की यह कड़ी यहां पूरी होती है। हनुमान जी की चालीसा का यह शृंखलाबद्ध व्याख्या वाला प्रभाग पूर्ण हुआ। भगवान श्री राम और बजरंगी हनुमान जी की जय के साथ इस शृंखला को यहां विराम देता हूं।
 
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राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।


रविवार, 12 जनवरी 2025

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय  सिद्धि  साखी  गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥

भाग- 22
बीसवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।


श्री हनुमान चालीसा पाठ सिद्धिदायक है। हनुमान जी अष्ट सिद्धि के दाता हैं, यह वरदान उन्हें माता जानकी ने दे रखा है। अष्ट सिद्धि नौ निधि पर हमने विस्तार से चर्चा की है। श्री हनुमान चालीसा को पढ़ने से सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं, यह बात इस चौपाई में कही गई है और इसके लिए यह भी कहा गया है कि इस बात की साक्षी स्वयं गौरी पार्वती हैं। उन्होंने इस चौपाई में स्वयं को भगवान का सदा सदा से चेरा अर्थात सेवक माना है और प्रार्थना की है कि श्री भगवान जी हमेशा उनके हृदय में निवास करें। हम जानते हैं कि हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा तुलसीदास जी को भगवान शिव के कहने से मिली थी। यह हनुमान चालीसा पढ़ना प्रभावकारी है, इसकी साक्षी स्वयं माता पार्वती हैं।

तुलसीदास जी ने सामान्य मानवी पर विश्वास जताने के लिए इस वाक्य की योजना की है। जिस बात का साक्ष्य स्वयं माता पार्वती हैं, उसमें अविश्वास करने का कोई कारण नहीं हो सकता।

यह श्री हनुमान चालीसा की अंतिम चौपाई है। सभी कवियों की तरह तुलसीदास जी इस पंक्ति में अपनी छाप के साथ हैं। तुलसीदास का नाम तुलसी ही था किंतु भगवान से भक्ति और स्वयं को सेवक मानने के उनके आग्रह को देखते हुए उनके नाम के साथ ही दास शब्द जुड़ गया। जब यह संज्ञा में परिवर्तित हो गया तो तुलसी ने अपने सेवक रूप को पृथक प्रकट किया और इसी भाव को धारण किया। वह रघुकुल शिरोमणि श्रीरामचंद्र जी के सदा सदा से सेवक बनकर रहना चाहते हैं।

भगवान के भक्त के लिए इससे सुघड़ और उच्च भाव नहीं हो सकता कि वह श्री हरि के सबसे निकट के सेवक बनें। चूंकि भगवान की लीलाओं के भगवान के निकट के संबंधी किसी न किसी के अवतार हैं, इसलिए उसमें सम्मिलित होने की गुंजाइश नहीं है तो सेवक के रूप में रहना सबसे अधिक स्वीकार्य और सहज है। तुलसीदास जी यही प्रार्थना भी करते हैं।

होय सिद्ध साखी गौरीसा।
होय सिद्ध साखी गौरीसा।


पुनः बताना है कि हमारे विवेचन में अब तक बाईस भाग में दो दोहा के साथ जिन बीस चौपाइयों की चर्चा हुई है, वह चालीस अर्द्धाली हैं। चौपाई की एक अर्द्धाली में दो चरण होते हैं। चालीस पंक्तियों की रचना होने के कारण यह चालीसा है।
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शनिवार, 11 जनवरी 2025

जय जय जय हनुमान गोसाईं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु  गुरुदेव  की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छुटहि बँदि महा सुख होई॥

भाग- 21
उन्नीसवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।

जय जय जय हनुमान गोसाईं


हनुमान जी की वंदना बहुविध करने के बाद गोस्वामी तुलसीदास ने इस चौपाई में उनकी जयकार की है और उन्हें गुसाईं कहा है। साथ ही उनसे अपेक्षा की है कि वह गुरुदेव की तरह कृपा करें। वह कहते हैं कि  यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करे तो वह समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे महासुख की प्राप्ति हो जाती है। यहां चौपाई में प्रयुक्त गुसाईं गोस्वामी का लोक व्यवहारित शब्दरूप है। गोस्वामी दो शब्दों का युग्म है- गो+स्वामी। गो का अर्थ है इंद्रिय। हम जानते हैं कि पांच कर्म इंद्रियां हैं और पांच ज्ञानेंद्रियां। यह किसी भी शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग है। कहा जाए कि यही वास्तव में शरीर है तो गलत न होगा। इस प्रकार काया का स्वामी जो है, जो हमारा आराध्य है, उसे गोस्वामी कहा जाएगा। जो अपनी काया का स्वामी है वह भी गोस्वामी होता है।

दूसरे प्रभाग में हनुमान जी से गुरुदेव की भाँति कृपा करने को कहा गया है। गुरुदेव की महिमा भारतीय सनातन परंपरा में खूब गाई गई है। वह अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाले हैं। कबीर ने तो उन्हें गोविंद से भी श्रेष्ठ कहा है। यहां श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की वंदना पूरी होती है। इसी चौपाई में हनुमान चालीसा पढ़ने के माहात्म्य पर चर्चा है।

इस चौपाई में शत बार पाठ करने की बात है। यह बारम्बारता के लिए है। गुणी जन शत की संख्या सात भी बताते हैं किंतु यहां यह समझना चाहिए कि एक दिन में ही पाठ नहीं करना है। बंदी जीवन से आशय है बंधन से युक्त जीवन। यह अनावश्यक प्रतिबंधों, कष्ट आदि से जनित होता है। महासुख की बात भी इसी चौपाई में है। #महासुख का अर्थ है साधकों को सिद्धि प्राप्त हो जाने पर मिलने वाला परमानंद। बौद्ध साधना पद्धति में महासुख को निर्वाण के सुख की तरह समझा गया है। इसे मैथुन अथवा रति से प्राप्त सुख के लिए भी जोड़ते हैं।लेकिन कुल मिलाकर महासुख का अर्थ अतिशय आनंद की स्थिति से है। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा के पाठ से अपरिमित सुख प्राप्ति का उपाय इस चौपाई में बताया है।
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शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

और देवता चित न धरई।

और  देवता  चित न  धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
संकट  कटै  मिटै  सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

भाग- 20
अठारहवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
और  देवता  चित न  धरई।

श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में कहा गया है कि हनुमान जी की सेवा करने से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए अन्य किसी देवता का स्मरण करने की आवश्यकता नहीं है। जो भी व्यक्ति हनुमान जी का ध्यान करता है, उसके समस्त संकट कट जाते हैं और पीड़ा दूर हो जाती है।

यहां तुलसीदास जी ने एकनिष्ठता पर बल दिया है और हनुमान जी के प्रति अगाध श्रद्धा व्यक्त की है। हनुमान जी सभी सुख देने वाले हैं। यहां चौपाई के दूसरे अर्द्धाली में 'और देवता' की चर्चा किंचित विचार करने के लिए रोकती है।

स्वयं तुलसीदास जी वैष्णव हैं। भगवान श्रीराम में उनकी गहन आस्था है। राम के प्रति उनकी भक्ति की अनन्यता सर्वविदित है तब वह हनुमान जी के अतिरिक्त अन्य देवता का ध्यान तक नहीं करने के लिए क्यों कहते हैं? इसका एक उत्तर तो यह है कि रघुकुल शिरोमणि श्रीरामचंद्र कोई देवता नहीं हैं। वह तीनों लोकों के स्वामी हैं। इसमें देवलोक भी आता है। वह सृष्टि के पालक हैं। और दूसरे, वह हनुमान जी से इस प्रकार अभिन्न हैं कि एक का स्मरण दूसरे के साथ ही है। वस्तुत: हनुमान और श्रीराम में अभेद है। तुलसीदास जी ने आजीवन शैव और वैष्णव मत की एकात्मकता पर बल दिया और अपनी रचना में इसी प्रकार विन्यास भी किया। इसलिए यहां हनुमान जी के संबंध में चर्चा करते हुए यह कहना तर्कसंगत और उचित तथा समावेशी है।

श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हनुमान जी के नाम स्मरण के माहात्म्य को पुनः बताया गया है। तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी के नाम का जो भी व्यक्ति सुमिरन करता रहता है, उसके समस्त संकट कट जाते हैं और पीड़ा समाप्त हो जाती है।

तुलसीदास जी न केवल हनुमान चालीसा में अपितु अपने समस्त साहित्य में स्मरण, स्मृति पर सबसे अधिक जोर देते हैं। हमें याद रखना है। हनुमान जी याद रहेंगे तो श्रीराम की याद रहेगी। श्रीराम की स्मृति ध्यान में आएगी तो मर्यादा का स्मरण रहेगा। नीति का ध्यान रहेगा। वह प्रतिबद्धता स्मरण में रहेगी। रावण का संज्ञान रहेगा। हमें हमारी परम्परा और अनुशासन का ज्ञान रहेगा। यह सब अज्ञान और भय को मिटा देने वाले हैं। रोग और शोक को खत्म कर देने वाले हैं।

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी को याद रखना है और इसे बार बार स्मरण में रखना है, ऐसा कहा गया है। सुमिरन शब्द में बारंबारता है। इसे सदैव ध्यान में रखना है।
 
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गुरुवार, 9 जनवरी 2025

तुम्हरे भजन राम को पावै।

तुम्हरे  भजन  राम  को  पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्त काल रघुबर पुर  जाई।
जहां जन्म हरी भक्त कहाई।।

भाग- 19
सत्रहवीं चौपाई।
श्री हनुमान चालीसा शृंखला।
तुम्हरे  भजन  राम  को  पावै।
तुम्हरे  भजन  राम  को  पावै।

श्री हनुमान चालीसा में हनुमान जी की कृपा, उनके नाम का स्मरण, उनके गुणों का बखान करना आदि का माहात्म्य बारम्बार हुआ है। इस चौपाई में कहा गया है कि हनुमान जी को बार बार याद करने, भजने से भगवान श्रीराम का सानिध्य प्राप्त होता है। इसके साथ ही जन्म जन्मांतर के कष्ट से मुक्ति मिल जाती है।

जन्म जन्मांतर की अवधारणा भारतीय सनातन संस्कृति की पहचान है। हमारे यहां जीवन से पहले के जीवन का और जीवन के बाद के जीवन का भी लेखा जोखा है। सृष्टि में 84 लाख योनियां बताई गई हैं जिसमें मनुष्य जीवन सर्वश्रेष्ठ है। इसमें भी शृंखला चलती रहती है। भगवत कृपा से यह क्रम बंद होता है। भगवत कृपा होती है तो भगवान विष्णु के धाम बैकुंठ में जगह मिलती है। यह भगवान श्रीराम का लोक है। श्री हनुमान चालीसा इसी लोक में स्थान पाने के लिए हनुमान जी के भजन पर जोर देता है।

श्री हनुमान चालीसा के इस चौपाई में भी हनुमान जी की महिमा गाई गई है। तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी के भजन के प्रभाव से प्राणी अन्त समय श्री रघुनाथजी के धाम जाते हैं। श्रीरघुनाथ जी का धाम बैकुंठ है। यह तीनों लोकों से इतर है। यहां जाने का अर्थ है- जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाना। यही मोक्ष है। बैकुंठ धाम जाने का आशय है जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्त हो जाना। तुलसीदास जी यह भी लिखते हैं कि यदि मृत्युलोक में जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्रीहरिभक्त कहलायेंगे। इसमें पुनर्जन्म की धारणा में विश्वास तो जताया ही गया है यह भी कहा गया है कि श्रीहरि का भक्त होना अत्यंत गौरव का विषय है। भगवान श्रीराम का भक्त सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है। जो श्रीराम का भक्त है, वही वैष्णव है। जो वैष्णव है वह सहृदय, दयालु और सज्जन है। नरसी मेहता गुजरात के कवि हुए हैं। अपने गीत में वह कहते हैं कि वैष्णव वह है जो दूसरे का दुःख जानता है। यह जानना किसी भी व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाता है।

श्री हनुमान चालीसा का प्रभाव यह है कि इसके गायन/पाठ से व्यक्ति बैकुंठ धाम का पात्र हो जाता है और मर्त्यलोक में वह श्री विष्णु का भक्त समझा जाता है। यह चौपाई एक अन्य विशिष्ट पक्ष की ओर ध्यान कराती है कि स्वयं भगवान शिव के रूप हनुमान जी भी बैकुंठ धाम को श्रेष्ठ मानते हैं।

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सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा

दोहा -  श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।  बरनऊं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।। बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार।  बल बुद...

आपने जब देखा, तब की संख्या.