मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

चॉकलेट दिवस पर ग्रामवासिनी प्रिया से।

(चॉकलेट दिवस पर विशेष)

मेरी ग्रामवासिनी प्रिया
जब चौका बासन हो जाए
और लिपा जाये चूल्हा
कहीं दूर पूरब में झींगुर सनसनाने लगें
और निचाट सन्नाटा अम्मा को डराने लगे
मेरे बारे में सोचना
.
जब पौ फटे
गाय को सानी पानी करके
बछ्ड़े को छोड़ देना
दूध की एक धार बाल्टी में
दूसरी गाय के मुँह पर डालोगी तो
मुझे याद करना
.
मेरी ग्रामवासिनी प्रिया
जब गोबर पाथना
तब ऐसे थपकी देना
जैसे मेरी पीठ पर थपकी देती थी माँ,
यह मेरे श्रम का परिहार करती है।
.
मेरी ग्रामवासिनी प्रिया
मैं चैत्र में आऊँगा
उस समय आसमान भी हमारे बारे में सोचता है।

सोमवार, 18 जनवरी 2016

अशरफ फयाद : फिलिस्तीनी मूल का क्रान्तिकारी कवि

ये कविताएं अशरफ फयाद के कविता संग्रह ‘Instructions Within’ में शामिल हैं जो बेरुत के दर अल-फराबी प्रकाशन द्वारा साल 2008 में प्रकाशित हुआ और बाद में सऊदी अरब में इसके प्रसार पर रोक लगा दी गई
अंग्रेजी अनुवाद : मोना करीम 
हिंदी-उर्दू अनुवाद : शायक आलोक
*ज्ञात हो कि मोना करीम ने फयाद के मामले पर संवाद आंदोलन छेड़ रखा है और इन कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद द्वारा फयाद के केस को व्यापक जनमत तक पहुंचा रही हैं इस अनुवाद को उनके व्यापक संवाद का ही एक हिस्सा माना जाए … --शायक आलोक
1.

बेज़रार है पेट्रोलियम, सिवाय इसके कि अपने पीछे
तंगहाली के निशां छोड़ता है
उस दिन, जिस दिन तेल के और कुएं खोजते चेहरे स्याह हो जाएंगे
जब ज़िन्दगी तुम्हारे कल्ब पर थपेड़े डालेगी
ताकि तुम्हारी रूह से तेल निकाल सके
ताकि उसका आम इस्तेमाल हो
जो वादा है तेल का, एक सच्चा वादा
उस दिन क़यामत होगी
2. 

कहा गया जाओ पनाह पाओ
लेकिन तुम में से कुछ सबके दुश्मन हो
इसलिए अब रुक जाओ
दरिया के तह से देखो खुद को
तुम में जो ऊपर हैं उन्हें नीचे वालों से थोड़ी हमदर्दी होनी चाहिए
महजर वैसे ही मजबूर है
जैसे तेल के बाजार में लहू को नहीं खरीदता कोई
3.
 
मुझे माफ़ी दे दो, मुझे माफ़ करो
कि मैं तुम्हारे लिए अब और आंसू नहीं बहा सकता
कि माजी में लहरता तुम्हारा नाम और नहीं बड़बड़ा सकता
मेरा रुख़ तुम्हारे आगोश की गर्माहट के सदके
मुझे मोहब्बत मिला पर तुम मिले, अकेले तुम, और मैं हूँ
तुम्हारे आशिकों में से पहला
4.
 
रात,
तुम वक़्त के तजर्बाकार नहीं
तुम्हारे पास बारिश की उन बूंदों की कमी
जो तुम्हारे माजी के सभी दुखों को धो देती
और तुम्हें आज़ाद कर देती
उससे जिसे तुम खुदा तरसी कहते रहे
उस दिल सेजो जी सकता है मोहब्बत,
खेल से
और आज़ादी
उस पिलपिले मजहब से तुम्हारी
अश्लील वापसी के साथ कितह करने से
उस नकली तंज़ील से
और उन खुदाओं से जो अपना ग़रूर खो चुके
5.
 
तुम डकार लेते जाते हो पहले से अधिक ..
जैसे जैसे शराबखाने शराबियों को
तलकीन से लुभाते जाते हैं और दिलफ़रेब नचनियों से..
तेज शोरोगुल मोसिक़ी के साथ
तुम अपने दुःस्वप्न सुनाते हो
और इन देहों की तारीफ़ करते हो
जो जला-वतन के वतनी पर झूम रहे हैं
6.
 
उसे तो चलते रहने का हक़ है
झूमते रहने का रोते रहने का
उसे अपनी रूह की खिड़की खोलने का भी हक़ नहीं
कि अपनी सांस, अपनी गर्द, अपने आंसुओं को ताजा कर ले
तुम भी हुआ चाहते हो इस सच्चाई से बेखबर
कि तुम एक रोटी के टुकड़े भर हो
7.

जला-वतनी के रोज, वे नंगे खड़े रहे,
जबकि तुम गंदे पानी के जंग लगे पाइपों में रेंग रहे थे
नंगे पांव ।।
यह भले ही पांव के लिए सेहतमंद हो
नहीं वैसा धरती के लिए
8.
 
गोशा नशीं हो चुके पैगंबर सब
तो मत करो इंतजार कि तुम्हारा नबी आएगा
और तुम्हारे लिए,
तुम्हारे खलीफ़ा अपनी रोजाना रपट लाते हैं
और भारी तनख्वाह पाते हैं ।।
अज़मत की ज़िन्दगी के लिए
पैसे की कितनी अहमियत हो सकती है ?
9.
 
मेरे दादा रोज नंगे खड़े होते हैं
बिना जला-वतनी के, बिना खुदाई तख्लीक़ के ।।
मैं मेरे अक्स में किसी खुदाई फूंक के बिना पहले ही जिंदा हो चुका हूँ
मैं धरती पर नरक का आजमाइश हूँ ।।
धरती
एक नरक है जो बसाई गई महजेरात के लिए
10. 

तुम्हारा खामोश लहू तब तक कुछ बोलेगा
जबतक मारे जाने पर रखोगे तुम ग़रूर
जबतक रहोगे एलान करते राजदारी से
कि तुमने अपनी रूह सौंप रखी
उनके हाथों को जो नहीं जानते ज़ियादा।।
तुम्हारे रूह का खोना वक़्त को भारी गुजरेगा
उससे भी भारी जितना वक़्त लगेगा
तेल के आंसू रोते तुम्हारी आँखों को ठंडा होते 


सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दूसरा दोहा

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।। श्री हनुमान चालीसा शृंखला। दूसरा दोहा। श्रीहनुमानचा...

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