आश्विन या क्वार पंचांग का सातवां मास है। प्रखर। पितरों की स्मृति से इसका आरंभ होता है और प्रभु श्रीराम के पराक्रम तथा देवी दुर्गा के विविध रूपों से परिपूरित होकर सम्पन्न।
आश्विन मास |
बीता हुआ भाद्रपद बहुत सरस रहा। सावन से दुब्बर नहीं है भादो! यह विगत सप्ताह में प्रकट हुआ। खूब बरसात हुई। भाद्रपद मास भी कई पर्व त्योहार का मास रहा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, राधाष्टमी, गणेश चतुर्थी, तीज व्रत और त्रिमुहानी का मेला।
भाद्रपद मास कवियों को बहुत प्रिय है। विरह वेदना दिखाने के लिए भादो से उपयुक्त कोई अन्य मास नहीं - ई भर बादर, माह भादर, दहत सब अंग मोर! विद्यापति की नायिका कहती हैं। भादो की काली अंधेरी रात और "घन घमंड गरजत नभ घोरा" श्रीराम को भी डराने में सक्षम हैं। सूर की गोपियां "निसि दिन बरसत नैन हमारे!" कहकर अपना दुख व्यक्त करती हैं। भादो की काली डरावनी रात के बरसते हुए पानी में ही वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण को लेकर उफनती यमुना में उतर गए थे!
यह आश्विन मास पितरों को याद करने, उनके प्रति श्रद्धा निवेदित करने (श्राद्ध कर्म) और तर्पण करने से शुरू होता है। जिउतिया भी इसी बीच में पड़ेगा।
आश्विन मास का आकाश निरभ्र होता है। सूर्य का प्रकाश बहुत प्रखर होकर धरती पर पड़ता है और चानी चमक उठती है। जेठ बैशाख की तपती दुपहरी सह लेने वाले किसान क्वार के महीने में दोपहर को खेतों में जाने से बचते हैं। रातें, ओस वाली हो जाती हैं इसलिए वह रात को बाहर खुले आकाश में सोने से भी बचते हैं! धरती इस महीने धूप पाकर अगले कुछ महीने तक शीत के प्रभाव में रहेगी।
आश्विन अथवा क्वार के इस पवित्र मास का स्वागत कीजिए। पितरों को याद कर, शक्ति की मौलिक कल्पना करने का महीना है यह!
आइए शक्ति की आराधना करें!
या देवि सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता!
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः!
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