बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

कथावार्ता : शुद्ध देसी रोमांस- प्यार की कहानी



शुद्ध देसी रोमांस को एक रोमांटिक कामेडी फिल्म कहा गया है। जबकि हकीकत इसके उलट है। यह आधुनिक प्रेम की वास्तविक दास्तान है। इसमें नए दिनों का प्रेम है। शुद्ध प्रेम। इस प्रेम में शरीर है, स्वतंत्रता है, स्वायत्तता की चाहत है। सभी पात्र प्रेम तो चाहते हैं लेकिन जिम्मेदारी से भागते हैं। वे बस खेलना चाहते हैं। यह प्रेम की परिभाषा बन गया है। इस प्रेम में दूसरे से सम्बन्ध रखते हुए अपने साथी पर शक किया जाता है। उसकी वफादारी की जानकारी के लिए जासूसी की जाती है। तीसरे से झूठ बोला जाता है। हम स्वयं भले बेवफा हों, अगले से अपेक्षा रखते हैं कि वह साफ़-पाक और वफादार रहे। और तिस पर यह कि निर्णय लेने में उहापोह आखिरी दम तक बना रहता है। निर्णय लिया भी जाता है तो पलायनवादी निर्णय। यह पलायनवादिता आज के प्रेम का सबसे बड़ा लक्षण है।

       शुद्ध देसी रोमांस देखते हुए परिपार्श्व में बजते हुए गीतों को ध्यान से सुना जाना चाहिए। ये गीत न सिर्फ दृश्य की सांद्रता बढ़ाते हैं अपितु फिल्म को गति भी देते हैं। इनसे अर्थ और स्पष्ट होता चलता है। मनोभावों को ठीक से व्यक्त करते हुए। फिल्म में युवा वर्ग के शादी से भागने किन्तु शारीरिक और मानसिक संतुष्टि के लिए रिलेशनशिप बनाए रखने की चाहत बहुत सफाई से व्यक्त हुई है। मुझे लगता रहा कि एक और नायक होना चाहिए था और मामले की संश्लिष्टता और भी बढ़ानी चाहिए थी। फिर भी मूल कथ्य का निर्वाह सही हुआ है।
फिल्म में टॉयलेट का कई दफा उपयोग हुआ है। एक ही प्रसंग में। यह स्थायी सम्बन्ध से भागने के लिए चोर रास्ता बना है। तकरीबन हर बार टॉयलेट के दृश्य आते हैं। यह बारहा आना एक तरह से जुगुप्सा पैदा करता है। शायद निर्देशक को शौचालय शब्द में सोचालय की अर्थवत्ता प्राप्त होती है। यह बार-बार आना भदेस की तरह हो जाता है और हास्य पैदा करने की बजाय सड़ांध पैदा करता है। इससे हास्य/व्यंग्य की धार भोथरी हुई है।
फिल्म में पात्रों के नैरेशन बहुत सहायक बने हैं। इन नैरेशन से फिल्म में बचा-खुचा भी अभिव्यक्त हो गया है। यह प्रविधि नई तो नहीं है लेकिन यहाँ बहुत सुघड़ तरीके से आई है। फिल्म के संवाद कमाल के हैं। कई जगह उनमें दुहराव हुआ है। यह दुहराव संवाद की अर्थवत्ता को बढ़ाते हैं। हर बारात में जाते ही गोयल यानि ऋषि कपूर का टॉयलेट जाने के लिए कहना उनके पेशेवर होने को दिखाता है। साथ ही यह भी दिखाता है कि वे इस पेशे में अब रूढ़िपरक हो गए हैं। उनके पास और कोई आइडिया नहीं है। वे पुरातनता के सटीक प्रतीक बन कर आये हैं।
कल ही परिणित चोपड़ा का जन्मदिन भी था, जब मैं यह फिल्म देख रहा था। अच्छी लगी यह लड़की। उसका अभिनय भी कमाल का है। सुशांत सिंह राजपूत भी जमे हैं। ऋषि कपूर को ऐसे देखना सुखद था। वाणी कपूर ने ख़ासा प्रभावित किया है।
और यह कि यह फिल्म कोई कामेडी फिल्म नहीं है, यह एक विशिष्ट प्रेम कथा है। इसे एक प्रेम कहानी की तरह देखा जाना चाहिए और समझा जाना चाहिए। यह एक गंभीर फिल्म है
Shuddh Desi Romance.



द्वारा- डॉ. रमाकान्त राय.
३६५ ए/१, कंधईपुर, प्रीतमनगर,
धूमनगंज, इलाहाबाद. २११०११
९८३८९५२४२६ 

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

इब्ने इंशा की किताब से तीन अध्याय



मक्खन
"मक्खन कहाँ है?"
"मक्खन ख़त्म, खलास।"
सारा खा लिया?"
"नहीं, सारा लगा दिया। यह खाने की चीज थोड़े ही है। लगाने की है। जिसको लगाओ, फिसल पड़ता है।"
“जो फिसलेगा, उसकी टांग टूटेगी।"
“यह सोचना उसका काम है। हमारा काम तो लगाना है।"
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सवालात-
क्या तुमने कभी किसी को मक्खन लगाया है? अगर नहीं, तो मुझे लगाओ।

एक दुआ
"या अल्लाह! खाने को रोटी दे। पहनने को कपड़े दे। रहने को मकान दे। इज्जत और आसूदगी की जिन्दगी दे।"
"मियाँ, ये भी कोई माँगने की चीजें हैं? कुछ और माँगा करो।"
"बाबाजी! आप क्या माँगते हैं?"
"मैं? मैं ये चीजें नहीं माँगता। मैं तो कहता हूँ, अल्लाह मियाँ मुझे ईमान दे, नेक अमल की तौफ़ीक दे।"
"बाबाजी, आप ठीक दुआ माँगते हैं। इन्सान वही चीज तो माँगता है जो उसके पास नहीं होती।"

हमारा मुल्क
"ईरान में कौन रहता है?"
"ईरान में ईरानी कौम रहती है।"
"इंगलिस्तान में कौन रहता है?"
"इंगलिस्तान में अंग्रेजी कौम रहती है।"
"फ़्रांस में कौन रहता है?"
"फ़्रांस में फ्रांसीसी कौम रहती है।"
"ये कौन सा मुल्क है?"
"ये पाकिस्तान है।"
इसमें पाकिस्तानी कौम रहती होगी?"
"नहीं, इसमें पाकिस्तानी कौम नहीं रहती है। इसमें सिन्धी कौम रहती है। इसमें पंजाबी कौम रहती है। इसमें बंगाली कौम रहती है।इसमें यह कौम रहती है। इसमें वह कौम रहती है।"
"लेकिन पंजाबी तो हिंदुस्तान में भी रहते हैं। सिन्धी तो हिन्दुस्तान में भी रहते हैं। फिर ये अलग मुल्क क्यों बनाया था?"
"ग़लती हुई, माफ़कर दीजिए। आइन्दा नहीं बनायेंगे।"

{इब्ने इंशा (१९२७-१९७८) जन्मे पंजाब में। विभाजन ने उन्हें पाकिस्तानी बना दिया। वे मशहूर कवि थे। जगजीत सिंह ने इनकी कई गजलों को अपनी आवाज दी है। उर्दू की आखिरी किताब एक क्लासिक रचना है। उन्होंने इसमें तमाम अनुशासनों की हदें तोड़ दी हैं। एक साथ ही वे व्यंग्य की तीखी धार और हास्य बोध से चकित कर देते हैं।}

सद्य: आलोकित!

श्री हनुमान चालीसा शृंखला : दूसरा दोहा

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार। बल बुधि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।। श्री हनुमान चालीसा शृंखला। दूसरा दोहा। श्रीहनुमानचा...

आपने जब देखा, तब की संख्या.