- पीयूष कान्त राय
इस बार ऑस्कर अवॉर्ड सेरेमनी में उपजे विवाद ने महिलाओं के सौंदर्यबोध एवं उससे जुड़ी चर्चा के साथ-साथ कॉमेडी के वर्तमान स्वरूप को भी बहसतलब बना दिया है। ऐसा नहीं है कि नारीवाद संबंधी बहसों में यह कोई नया अध्याय है। इस तरह की चर्चा समय समय पर होती रही है और सौन्दर्य के मानकों पर जब तब प्रश्न चिह्न खड़े किए जाते रहे हैं। लेकिन यह विवाद जो दिन प्रतिदिन नाटकीय स्वरूप ले रहा है उसने ह्यूमर या कॉमेडी के नाम पर भद्देपन के बाजार को फिर से गरमा दिया है। क्रिस रॉक, जो एक जाना माना मसखरा (स्टैंड अप कोमेडियन) हैं और प्रसिद्ध ऑस्कर अवार्ड सेरेमनी में मंच संचालन कर रहे थे, ने उस मंच से जैडा पिंकेट (विल स्मिथ, प्रसिद्ध अभिनेता और ‘किंग रिचर्ड’ फिल्म के लिए ऑस्कर पुरस्कार विजेता की पत्नी) का मजाक बनाया और वहां मौजूद सभी दर्शक हंसने लगे। क्रिस रॉक ने जैडा पिंकेट के बाल विहीन सिर को लक्षित कर अपशब्द कहे, जिससे आहत होकर विल स्मिथ ने उन्हें मंच पर ही घूंसा मार दिया। ऑस्कर के आयोजकों ने इस अभद्र व्यवहार पर विल स्मिथ को दस वर्ष के लिए ऑस्कर समारोह में आने से प्रतिबंधित कर दिया। इस घटना के बाद कॉमेडी के औचित्य पर प्रश्न चिह्न खड़े होने लगे हैं।
कॉमेडी जनित हास्य दुनिया की परेशानियों
से लड़ने का जज्बा प्रदान करता है लेकिन उस कॉमेडी का क्या मतलब रह जाता है जिसके पीछे
नफरत या संकुचित भावना के प्रसार की मंशा छिपी हो। दूसरों का मजाक बनाना अब कॉमेडी
की नई परिभाषा बन गया है। एक निश्चित एवं सामाजिक मान्यताप्राप्त मापदंड में स्त्रियों
को पारंपरिक रूप से देखने की आदत बन चुकी है। इस विषय पर नारीवादी लेखिका सिमोन द बुववॉर
ने प्रतीकात्मक व्यंग्योक्ति करते हुए कहा है कि "सबसे पहले तो उसके पंख काट दिए गए,
इसके बाद उसे कोसा जाने लगा कि वो उड़ना नहीं जानती है"। क्रिस रॉक ने भी यही किया। उन्हें जैडा पिंकेट का बाल विहीन सिर हास्यास्पद
लगा। स्त्री के सौन्दर्य बोध का पारंपरिक रूप से इतर रूप उसे हास्यास्पद क्यों लगा?जैडा पिंकेट और विल स्मिथ
महान हास्य कलाकार चार्ली चैपलिन के बारे
में कहा जाता है कि वह जब सबसे अधिक खुश होते थे तब वह स्वयं का ही मजाक उड़ाते थे।
पर्दे पर अपने आप को ऊल-जुलूल स्थिति में परोसकर उन्होंने मूक फिल्मों में कॉमेडी के उच्चतम आयाम तय
किये। 17वीं शताब्दी के फ्रांसीसी लेखक मोलिएर ने अपने साहित्य
एवं सशक्त भाषा के माध्यम से कॉमेडी का जो आख्यान किया, वह व्यक्तिकेंद्रित
न होकर समाज में फैली कुरीतियों पर कटाक्ष होता था। मोलिएर के कद का अंदाजा इस बात
से लगाया जा सकता है कि वह लुई 14वां का दरबारी था। दरबार के
उस मध्यकालीन दौर में अपने गुणवत्तापूर्ण कॉमेडी नाटकों के माध्यम से उसने फ्रांसीसी
भाषा को वैश्विक पहचान दिलाई। इसके इतर आज का कॉमेडी व्यक्ति, धर्म या लिंगविशेष पर केंद्रित है। कॉमेडी के इस दौर ने स्त्रियों के विषय
में संकुचित धारणा बना दी है। वह कॉमेडियन्स का सहज लक्ष्य हैं।
भारत जैसे देश में इस विधा को निम्न कोटि
का बना दिया गया है। स्टैंडअप कॉमेडी के नाम पर भद्दी गालियां परोसी जा रही हैं जो
दर्शकों द्वारा खूब सराही भी जा रही हैं। धर्म विशेष खासकर हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाना
कॉमेडी में प्रगतिवाद का प्रतीक बनता जा रहा है। खास बात यह है कि इस तरह के शो में
अच्छी खासी भीड़ जुट रही है। कॉमेडी के नाम पर गाली, अपशब्दों
का प्रयोग, व्यक्तिविशेष का अपमान एवं धर्म जैसे बेहद संवेदनशील
मुद्दे का मजाक बनाने के खिलाफ कोई सेंसर बोर्ड नहीं है।
जब तक व्यक्ति केंद्रित फूहड़पन को बड़े मंचों से कॉमेडी का नाम दिया जाएगा तथा इसका समर्थन किया जाएगा तब तक इस तरह के ओछे मजाक करके अपना जेब भरने वालों की गाड़ी चलती रहेगी। इस तरह के वाहियात एवं संकुचित मानसिकता वाले कॉमेडियंस का हर माध्यम से बहिष्कार करने की जरूरत है ताकि ऐसे सामाजिक जहर को फैलने से रोका जा सके एवं साफ-सुथरी कॉमेडी को मुख्यधारा में जगह दी जा सके।
(पीयूष कान्त राय मूलतः गाजीपुर, उत्तर प्रदेश के हैं। उनकी पाँखें अभी जम रही हैं। साहित्य और साहित्येतर पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखते हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी में फ्रेंच साहित्य में परास्नातक के विद्यार्थी हैं। NET परीक्षा उत्तीर्ण हैं। वह फ्रेंच भाषा, यात्रा और पर्यटन प्रबन्धन तथा प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व के अध्येता हैं और फ्रेंच-अङ्ग्रेज़ी-हिन्दी अनुवाद सीख रहे हैं। साहित्य और संस्कृति को देखने-समझने की उनकी विशेष दृष्टि है।
ऑस्कर समारोह के ताज़ा विवाद पर उनकी विशेष टिप्पणी।)