पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा।
जब भगवान शिव ने पार्वती का हाथ थामा तब जाकर "शिव विवाह" संपन्न हुआ। जब वर, कन्या का हाथ थामता है तो वह समस्त दायित्व भी लेता है। हाथ थामना #पाणिग्रहण कहा जाता है। यह विवाह का सबसे प्रमुख अंग है। सामान्यत: पिता हाथ सौंपते हैं।
शिव-पार्वती विवाह #श्रीरामचरितमानस के सबसे सुंदर प्रसंग में से है। तुलसीदास ने अपनी सारी काव्य प्रतिभा इस विवाह के वर्णन में उड़ेल दी है। #पाणिग्रहण का महत्त्व महाराजा ययाति, शर्मिष्ठा और देवयानी की कहानी से पता चलता है जब देवयानी कुंआ से हाथ पकड़कर निकालने वाले ययाति की पत्नी बन जाती हैं।
जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई। महामुनिन्ह सो सब करवाई॥
गहि गिरीस कुस कन्या पानी। वहि समरपीं जानि भवानी॥
पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा। हिंयँ हरषे तब सकल सुरेसा॥
बेद मंत्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं॥
बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना। सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना॥
हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू। सकल भुवन भरि रहा उछाहू॥
दासीं दास तुरग रथ नागा। धेनु बसन मनि बस्तु बिभागा॥
अन्न कनकभाजन भरि जाना। दाइज दीन्ह न जाइ बखाना॥
छं0-
दाइज दियो बहु भाँति पुनि कर जोरि हिमभूधर कह्यो।
का देउँ पूरनकाम संकर चरन पंकज गहि रह्यो॥
सिवँ कृपासागर ससुर कर संतोषु सब भाँतिहिं कियो।
पुनि गहे पद पाथोज मयनाँ प्रेम परिपूरन हियो॥
दो0-
नाथ उमा मन प्रान सम गृहकिंकरी करेहु।
छमेहु सकल अपराध अब होइ प्रसन्न बरु देहु॥
#संस्कृति #शब्द
