मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

अंगद रावण संवाद

मुझे अंगद रावण संवाद पढ़ने में बहुत आनंद मिलता है। दोनों हांके पड़े हैं। युवराज अंगद तनिक भी कम नहीं हैं। जब लंकाधिपति रावण कहता है कि वनवासी राम की सेना में लड़ाकू है ही कौन तो हनुमानजी की याद आ जाती है। रावण कहता है कि वही एक बंदर थोड़ा प्रतापी है। अब अंगद को मर्दित कर देने वाला बिंदु मिल जाता है। कहते हैं कि वह हनुमान! अरे वह तो महाराज सुग्रीव का हरकारा है। जो चलता बहुत है और कोई खास वीर नहीं है। हमने उसे बस समाचार जानने के लिए भेजा था!

जो अति सुभट सराहेहु रावन।
सो सुग्रीव केर लघु धावन॥
चलइ बहुत सो बीर न होई।
पठवा खबरि लेन हम सोई॥

रावण जान रहा है कि अंगद मुझे चिढ़ा रहे हैं! लेकिन वह कर भी क्या सकता है! #हनुमानजी का भय उसके समस्त में व्याप्त है।

लंकाधिपति रावण और युवराज अंगद संवाद बहुत तीखा होता गया। दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने और स्वयं को श्रेष्ठ बताने का प्रयास कर रहे हैं। लंकेश का न्यून पक्ष यह है कि वह अपना पक्ष स्वयं रख रहा है। ऐसा करते हुए शील और विनय रखने वाला व्यक्ति संकोची हो जाता है और वाचाल व्यक्ति लुच्चा लगने लगता है। इसके विपरीत अंगद को अपने राजा सुग्रीव तथा प्रभु श्रीराम तथा हनुमानजी के चरित्र का परिचय देना है तो उनके क्रम से निकली बातें मार्मिक और प्रभावी समझ में आती हैं।
जब दोनों में खूब बहसा बहसी हो जाती है तो युवराज अंगद फिर से #हनुमानजी के पराक्रम को उल्लिखित कर रावण का मान मर्दन करते हैं। वह कहते हैं,

सेन सहित तव मान मथि बन उजारि पुर जारि।
कस रे सठ हनुमान कपि, गयउ जो तव सुत मारि।।


इस एक दोहे में युवराज अंगद ने #हनुमानजी के लंका अभियान का मोटा मोटी परिचय दे दिया है। और फिर रावण को ठीक से भयभीत किया। वह कहते हैं - क्यों रे दुष्ट! वे हनुमानजी क्या वानर हैं? अर्थात् हनुमानजी वानर नहीं दिव्य शक्तियों वाले (महादेव जी) हैं।

#Hanumanji


जय हनुमान जी 🙏#Hanumanji 🙏🙏

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सद्य: आलोकित!

अंगद रावण संवाद

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