मुझे अंगद रावण संवाद पढ़ने में बहुत आनंद मिलता है। दोनों हांके पड़े हैं। युवराज अंगद तनिक भी कम नहीं हैं। जब लंकाधिपति रावण कहता है कि वनवासी राम की सेना में लड़ाकू है ही कौन तो हनुमानजी की याद आ जाती है। रावण कहता है कि वही एक बंदर थोड़ा प्रतापी है। अब अंगद को मर्दित कर देने वाला बिंदु मिल जाता है। कहते हैं कि वह हनुमान! अरे वह तो महाराज सुग्रीव का हरकारा है। जो चलता बहुत है और कोई खास वीर नहीं है। हमने उसे बस समाचार जानने के लिए भेजा था!
रावण जान रहा है कि अंगद मुझे चिढ़ा रहे हैं! लेकिन वह कर भी क्या सकता है! #हनुमानजी का भय उसके समस्त में व्याप्त है।
सेन सहित तव मान मथि बन उजारि पुर जारि।
कस रे सठ हनुमान कपि, गयउ जो तव सुत मारि।।
इस एक दोहे में युवराज अंगद ने #हनुमानजी के लंका अभियान का मोटा मोटी परिचय दे दिया है। और फिर रावण को ठीक से भयभीत किया। वह कहते हैं - क्यों रे दुष्ट! वे हनुमानजी क्या वानर हैं? अर्थात् हनुमानजी वानर नहीं दिव्य शक्तियों वाले (महादेव जी) हैं।
#Hanumanji
जय हनुमान जी 🙏#Hanumanji 🙏🙏


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