गुरुवार, 24 अप्रैल 2025

धर्म पूछकर कत्ल किया

 सोशल मीडिया पर बहस इस बात की चल रही है कि पहलगांव में हो रही हिंसा को हिन्दू मुस्लिम धार्मिक चश्मे से क्यों देखा जा रहा है! जबकि वहां आतंकियों द्वारा नृशंस हत्या के बाद लोगों की सहायता करने वाले वहां के स्थानीय लोग, ड्राइवर, कुली ये सब मुसलमान ही थे और इन लोगों ने बड़ी आत्मीयता से समर्पण से और सेवा भाव से लोगों की सहायता की। 

इस बात से कौन इन्कार करेगा कि कश्मीर में आतंकी घटनाओं के बाद स्थानीय लोगों ने, जो शत प्रतिशत मुसलमान ही थे, लोगों की खूब सहायता की। यहां तक कि एक घोड़े से सवारी ढोने वाला मुस्लिम धर्म का व्यक्ति अपने हिन्दू पर्यटक सवारी को बचाने की कोशिश में मारा गया।

इस तथ्य से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता कि सभी टूरिस्ट स्थानों के व्यवसाय में लगे सभी लोग जो मुस्लिम धर्म के ही हैं पर्यटकों की सेवा अपवादों को छोड़ दें तो बड़ी आत्मीयता से करते हैं। आखिर यह उनकी रोजी रोटी का विषय भी होता है और उनके अंदर भी मानवता की भावना होती है। कोई भी समाज हो उसमें बड़ी संख्या मानवीय संवेदना को रखने वालों की ही होती है। लेकिन इस सत्य के साथ सत्य यह भी है कि अनेक पर्यटकों ने जिनके परिजन मारे गए या जो किसी तरह कलमा आदि पढ़कर बच गए उन्होंने यह बताया है कि धार्मिक पहचान पूछ कर हत्याएं हुईं। अनेक वीडियो ऐसे हैं जिनमें पैंट निकाल कर धर्म को चिह्नित किए जाने की बात स्पष्ट परिलक्षित होती है। कुछ का अनुभव यह भी है कि अंधाधुंध गोली चलाकर भी मारा गया। अनेकों के अपने अपने अनुभव हैं। किसी एक के अनुभव को आखिरी सत्य नहीं माना जा सकता। तो स्थानीय मुसलमानों द्वारा पर्यटकों की सहायता करने की बात भी सत्य है और धार्मिक पहचान से लोगों को मारा गया यह बात भी सत्य है। दोनों में एक ही सत्य हो ऐसा नहीं है।

जब धार्मिक कट्टरता को चिह्नित करके धर्म के नाम पर आतंकियों द्वारा आतंक फैलाने या मारने की बात प्रमुखता से की जा रही है तो यह कहा जा रहा है कि आतंक की जड़ में यह धार्मिक उन्माद ही है जो मनुष्य के ऊपर धर्म को मानता है। जो यह मानता है कि एक धर्म के अलावा सभी काफिर हैं और काफिरों की हत्या से या उनको बल पूर्वक धर्मांतरित करने से जन्नत मिलेगी। इसी उन्माद के कारण एक धर्म से अलग मान्यता वाले वहां के वाशिंदों  को मारकर, उनके और उनकी महिलाओं के साथ पाशविक व्यवहार करके उनकी धरती से भगाया गया। क्योंकि उनका मानना था कि कश्मीर में सिर्फ एक धर्म वाले ही रहेंगे।आतंकी इसी मानसिकता के लोग हैं। यह सच है कि अच्छे और बुरे लोग प्रत्येक धर्म में होते हैं।  किसी को बुरा लगे या भला लेके बड़ा सच यह भी है कि इस्लाम मतावलंबियों में धार्मिक उन्मादियों की संख्या दुनिया के किसी भी धर्म से ज्यादा है। यह बात सिर्फ भारत नहीं भारत के बाहर दुनिया के अन्य देशों के अनुभव से कही जा रही है। टर्की, ईरान और इराक जैसे विकसित हो चुके देशों को इन धार्मिक कट्टरपंथियों ने कैसे बर्बाद किया और उन्हें अपने समय से कई दशक पीछे कर दिया यह किसी से छिपा नहीं है। बामियान में बुद्ध के साथ क्या हुआ, म्यांमार में बौद्ध धर्म के साथ क्या हो रहा है, पाकिस्तान और बांग्लादेश में गैर इस्लामियों के साथ क्या हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। अपनी तमाम कमियों के बावजूद केवल चीन ही है जो अपने देश में रोग की तरह बढ़ते जा रहे उइगर विद्रोहियों को सम्हाल पाया और दुनिया चूं तक नहीं कर सकी। फ्रांस और जर्मनी में इनकी कट्टरता के बढ़ते प्रभाव की खबरें आए दिन सुर्खियों में रहती हैं। कश्मीर में भी कट्टरता से धर्म के नाम पर आतंक करने वालों की संख्या अमन पसंद लोगों से ज्यादा नहीं है। लेकिन ये मनपसंद लोग उनका विरोध नहीं करते। पहलगांव में हुई घटना के बाद वहां के स्थानीय लोगों द्वारा आतंक का हो रहा विरोध कट्टरपंथियों का पहला मुखर विरोध है। यह विरोध अगर तीन दशक पूर्व हुआ होता तो गैर मुस्लिमों को कश्मीर घाटी से भागना नहीं पड़ा होता। आए दिन वहां से इस बात के वीडियो आज भी आते हैं जब वहां के युवा यह कहते हैं कि यहां हिन्दू धार्मिक स्थलों के लिए कोई जगह नहीं है। 



कश्मीर के बहुसंख्यक मुस्लिम अमन पसंद हैं लेकिन वे कट्टरपंथियों का उस प्रकार विरोध नहीं करते जैसा इस बार कर रहे हैं। इस बार भी विरोध का मुख्य कारण इससे उनके रोजगार के बुरी तरह प्रभावित होने की संभावना  है जो उन्हें भयाक्रांत करके ऐसा करने पर मजबूर कर रही है। 

धारा 370 अस्थाई थी। इसका हटना देश की जरूरत थी। उसके हटने के बाद पर्यटन उद्योग में बहुत तगड़ा उछाल आया। ऐसे में इस्लामिक कट्टरपंथी आतंकवादी यह संदेश देना चाहते थे कि यह जमीन गैर मुस्लिमों के लिए सुरक्षित नहीं है इसलिए उन्होंने यह कृत्य अंजाम दिया। उन्हें रुपए कमाने के लिए काफिर पर्यटक मंजूर हैं लेकिन उन्हें काफिरों में वहां बसने का भाव भी नहीं आने देना है। वे यह संदेश देने में सफल रहे। अब आपको लगता है कि हिन्दू मुस्लिम होने से भाजपा को देशव्यापी फायदा होगा इसलिए पॉलिटिकली करेक्ट होने के भाव से यदि आप इस तथ्य से इनकार करते हैं तो कीजिए। लेकिन सचाई यही है। आपके आंख मूंद लेने से यह बदल नहीं जाएगी।



भाजपा को फायदा न हो इसके लिए बहुसंख्यक मुस्लिम समाज को मुस्लिम कठमुल्लों, कट्टरपंथियों के खिलाफ खुलकर सड़कों पर आना होगा। वैसे ही जैसे हिन्दू कट्टरपंथियों के खिलाफ बड़ा हिंदू वर्ग खुलकर सड़क पर आता है। आप खुलकर सड़क पर नहीं आएंगे तो जाने अनजाने प्रतिक्रिया में हो सकने वाली हिन्दू कट्टरता को बढ़ावा देंगे। आप माने न माने मुस्लिम कट्टरता पर चुप रहने की प्रवृति ही आज बढ़ी नजर आ रही हिन्दू कट्टरता की प्रवृति की जन्मदाता है।

                                        - गौरव तिवारी

बुधवार, 23 अप्रैल 2025

Welcome Back! आपका पुनः स्वागत है कथावार्ता]!

    लगभग एक माह तक कथावार्ता का ब्लॉग google द्वारा बाधित रहने के बाद पुनः क्रियाशील हो गया है. आज गूगल ने पुनरीक्षण करने के उपरान्त इसे निर्दोष और मौलिक पाया है. मुझे आशंका थी कि कहीं विद्यापति और उसकी व्याख्या में प्रयुक्त चित्रों से तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन सूक्ष्म पर्यवेक्षण करके पाया कि यह काम परेशांत आचार के लड़कों का है. हमने जो ब्लॉग परेशांत आचार के विचारों की आलोचना करते हुए लिखा था, उसके जवाब में परेशांत के लड़कों ने इसे रिपोर्ट किया था जिसे google ने निर्दोष पाया. 
    मैं यह बताना चाहता हूँ कि नव्य वेदांती इस तरह सक्रिय हैं कि वह हमारी हर आवाज़ दबा देना चाहते हैं. यह निंदनीय और घृणास्पद है. इस तरह की वृत्ति की निंदा की जानी चाहिए.


 

Welcome Back!


    अब जबकि kathavarta ब्लॉग पुनः सक्रिय हो गया है, इसपर हम साहित्य संस्कृति और कलात्मक विषयों पर अपने लेख प्रकाशित करते रहेंगे. धन्यवाद.


सद्य: आलोकित!

मौन निमंत्रण : सुमित्रानंदन पंत

स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार चकित रहता शिशु सा नादान , विश्व के पलकों पर सुकुमार विचरते हैं जब स्वप्न अजान ,             न जाने नक्षत्रों...

आपने जब देखा, तब की संख्या.