सोमवार, 3 मार्च 2025

पाँच महत्वपूर्ण कोश ग्रन्थ,

पाँच महत्वपूर्ण कोश ग्रन्थ, जो एक पाठक, अध्येता, लेखक के पास अवश्य होना चाहिए।


पहले कोश और कोष का अंतर स्पष्ट करते चलें।

सामान्यतया दोनों समानार्थी हैं और मूल्यवान वस्तुओं के संग्रह स्थल के परिचायक। अंतर यह है कि कोष संपत्ति, धन, रत्न और मूल्यवान धातुओं के संग्रह से जुड़ा हुआ है। राजकोष, कोषागार आदि इसी से संबंधित हैं। जबकि कोश शब्दों के संग्रह से संबंधित है। यह भाषा से संबंधित है।


१. संस्कृत हिन्दी कोश, कोशकार, वामन शिवराम आप्टे।

संस्कृत के शब्दों का सही हिन्दी अर्थ मुझे इस कोश में मिला। अब यह कोश कॉपीराइट से मुक्त हो गया है तो कई प्रकाशकों ने इसे छाप दिया है। अतः यह चुनाव करना माथापच्ची हो सकती है कि सही पाठ कौन सा है?

संस्कृत हिन्दी कोश


आप मोतीलाल बनारसीदास से प्रकाशित ग्रन्थ चुन सकते हैं!


२. लोकभारती वृहत् प्रामाणिक हिन्दी कोश। कोशकार आचार्य रामचन्द्र वर्मा, डॉ बदरीनाथ कपूर।

हिन्दी से हिन्दी शब्दों का कोश ग्रन्थ लोकभारती प्रकाशन जो राजकमल प्रकाशन का अनुषंगी है, से प्रकाशित है और बहुत उपयोगी है। हिन्दी से हिन्दी शब्दों का एक कोश डॉ हरदेव बाहरी ने भी बनाया है। सबसे समृद्ध तो नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी का है जिसे आचार्य श्याम सुंदर दास ने संपादित किया है। (वहां से इसका नया रूप शीघ्र ही आने की संभावना है। प्रतीक्षारत हूं।) विगत दिवस महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने भी एक कोश प्रस्तुत किया था किंतु ...।   



  ३. उर्दू - हिन्दी शब्दकोश। कोशकार - मुहम्मद मुस्तफा खां 'मद्दाह'। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने यह सबसे अधिक मूल्यवान कोश प्रकाशित किया है। उर्दू अरबी फारसी के शब्दों का हिन्दी अर्थ इसमें बहुत सावधानी से बताने का प्रयास किया गया है। बहुत से ऐसे शब्द जो उर्दू फारसी के हैं, उनका अर्थ जानने के लिए यह एक आवश्यक कोश ग्रन्थ है।



४. OXFORD Advanced Learner's dictionary. ऑक्सफोर्ड की यह प्रस्तुति बहुत सही है। इसमें अंग्रेजी से अंग्रेजी के पर्याय हैं। वैसे तो भार्गव की अंग्रेजी से हिन्दी डिक्शनरी बहुत काम की है और हम सबलोगों के बचपन में वह सबसे अधिक उपयोग में आई है लेकिन जब अंग्रेजी भाषा के शब्दकोश का मामला हो तो यह अपने निकट रखना चाहिए। एक आवश्यक कोश ग्रन्थ है। अंग्रेजी से हिन्दी शब्दों का एक कोश भी ऑक्सफोर्ड के सौजन्य से प्रकाशित किया हुआ रखना चाहिए।

५. हिन्दी साहित्य कोश। यह कोश दो खंड में है। एक में लेखकों के नाम से और दूसरा रचनाओं/परिभाषिक शब्दों के साथ। इसमें साहित्य से संबंधित शब्दों, लेखकों, उनकी रचनाओं का बहुत सही विवरण और परिचय है। एक आवश्यक ग्रन्थ।

हिंदी साहित्य कोश


इसके अतिरिक्त हिन्दी का एक थिसारस (समांतर कोश) भी आवश्यक है, जिसमें शब्दों के उत्पत्ति विषयक अवधारणा भी है।

परिभाषिक शब्दों का एक कोश भी आवश्यक हो गया है। समय की मांग के अनुसार विभिन्न विभागों में प्रयोग के लिए अपने कोश हो सकते हैं। अन्य भाषाओं से हिंदी और हिंदी से अन्य भाषाओं का कोश भी आवश्यक हो तो रख सकते हैं।


धन्यवाद।

रविवार, 2 मार्च 2025

श्री हनुमान चालीसा

श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकर सुधारि।

बरनों रघुवर बिमल जस, जो दायक फल चारि।।


बुद्धि हीन तनु जानिके, सुमिरों पवन कुमार।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश बिकार।।


श्री हनुमान चालीसा


जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।


 

रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।



महाबीर बिक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी।।



कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा।।



हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।

कांधे मूंज जनेऊ साजै।



संकर सुवन केसरीनंदन।

तेज प्रताप महा जग बन्दन।।



विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर।।



प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।।



सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा।।



भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचंद्र के काज संवारे।।



लाय सजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।



रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।



सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।



सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा।।



जम कुबेर दिगपाल जहां ते।

कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।



तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा।।



तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।

लंकेस्वर भए सब जग जाना।।



जुग सहस्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।



प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।



दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।



राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।



सब सुख लहै तुम्हारी सरना।

तुम रक्षक काहू को डर ना।।



आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें कांपै।।



भूत पिसाच निकट नहिं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै।।



नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा।।



संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।



सब पर राम तपस्वी राजा।

तिन के काज सकल तुम साजा।



और मनोरथ जो कोई लावै।

सोइ अमित जीवन फल पावै।।



चारों जुग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा।।



साधु-संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे।।



अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता।।



राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा।।



तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम-जनम के दुख बिसरावै।।



अन्तकाल रघुबर पुर जाई।

जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।



और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।



संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।



जै जै जै हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

 


जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई।।




जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा।।



तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।


पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुरभूप।।

सद्य: आलोकित!

पाँच महत्वपूर्ण कोश ग्रन्थ,

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